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Saturday, June 18, 2022

BSEB Class 12 History Bricks Beads and Bones The Harappan Civilisation Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Bricks Beads and Bones The Harappan Civilisation Book Answers

BSEB Class 12 History Bricks Beads and Bones The Harappan Civilisation Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Bricks Beads and Bones The Harappan Civilisation Book Answers
BSEB Class 12 History Bricks Beads and Bones The Harappan Civilisation Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Bricks Beads and Bones The Harappan Civilisation Book Answers


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Bihar Board Class 12th History Bricks Beads and Bones The Harappan Civilisation Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 12th History Bricks Beads and Bones The Harappan Civilisation Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 12th
Subject History Bricks Beads and Bones The Harappan Civilisation
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 12 History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

ईंटें मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता Question Answer Bihar Board Class 12 Chapter 1 प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइए। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची:-

  1. अनेक प्रकार के अनाज: गेहूँ, जौ, चावल, दाल, सफेद चना, तिल और बाजरे का भोजन सामग्री के रूप में उपयोग करते थे।
  2. पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद: फल, पत्ती आदि।
  3. दूध: दूध एवं उसके अन्य उत्पाद।
  4. मांस: विशेष रूप से मछली खाते थे। इसके अलावा मांस भेड़, बकरी तथा सूअर आदि पशुओं का मांस भी खाया जाता था। भोजन सामग्री उपलब्ध करने वाले समूह:
      • किसान।
      • मछुआरे।
      • पशुपालक यथा गड़रिये।

Bihar Board 12th History Book Pdf Chapter 1 प्रश्न 2.
पुरातत्त्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं। वे कौन-सी भिन्नाताओं पर ध्यान देते हैं?
उत्तर:
पुरातत्त्वविदों द्वारा हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने के तरीके और भिन्नतायें:

सामाजिक भिन्नताओं के दर्शन शवाधानों और विलासिता की वस्तुओं में होते हैं। मिस्र के शवाधानों (पिरामिड) की भाँति हड़प्पा स्थलों से भी शवाधान मिले हैं। हड़प्पाई लोग अपने मृतकों को गों में दफनाते थे। शवाधानों में भिन्नता मिलती है। कुछ शवाधानों या कब्रों से मिट्टी के बर्तन और आभूषण भी मिले हैं। आभूषण स्त्री और पुरुष दोनों धनी लोगों की कब्रों से मिले हैं। मृत्यु के बाद भी मनुष्य की आत्मा द्वारा इन वस्तुओं का प्रयोग करने की धारणा इस साक्ष्य से पुष्ट होती है। कुछ शवाधानों से छल्ले, मनके और दर्पण भी मिले हैं।

सामाजिक भिन्नता का एक अन्य प्रमाण विलासिता की वस्तुओं का मिलना है। दैनिक उपयोग की वस्तुएँ यथा-चक्कियाँ, मृद्भाण्ड, सूइयाँ, झांवा आदि भी मिले हैं। ये वस्तुएँ लगभग सभी बस्तियों से मिली हैं। कुछ कीमती पात्र भी मिले हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि महँगे पदार्थों से निर्मित दुर्लभ वस्तुएं सामान्य रूप से मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी बस्तियों में ये विरले ही मिलते हैं। स्वर्णाभूषण केवल हड़प्पा स्थलों से मिले हैं। इन आधारों पर विद्वानों का विचार है कि हड़प्पा सिन्धु घाटी सभ्यता की राजधानी थी।

ईंटें मनके तथा अस्थियाँ Question Answer Bihar Board Class 12 Chapter 1 प्रश्न 3.
क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर योजना की ओर संकेत करती है? अपने उत्तर के कारण बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकाल प्रणाली और नगर योजना-हड़प्पा सभ्यता के शहरों की नगर योजना विशिष्ट थी। इन नगरों की मुख्य विशेषता इसका जल निकास प्रबंध था। इस नगर की नालियाँ, मिट्टी के गारे, चूने और जिप्सन की बनी हुई थी। इनको बड़ी ईंटो और पत्थरों से ढका जाता था। जिसको ऊपर उठाकर उन नालियों की सफाई की जा सकती थी। घरों से बाहर की छोटी नालियाँ सड़कों के दोनों ओर बनी हुई थीं। जो बड़ी और पक्की नालियों में आकर मिल जाती थीं।

वर्षा जल के निकास की बड़ी नालियों का घेरा एक से दो मीटर तक था। घरों से गंदे पानी के निकास के लिए सड़क के दोनों ओर गड्ढे बने हुए थे। इन सब तथ्यों से प्रतीत होता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग अपने नगरों की सफाई की ओर अधिक ध्यान देते थे। नालियों के विषय में मैके लिखे हैं “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा संपूर्ण प्राचीन प्रणाली है।” ए, डी. पुल्सकर (A. D. Pulsakar) के अनुसार मोहनजोदड़ों नगर के खण्डहरों को देखने वाला व्यक्ति नगर के योजनाबद्ध निर्माण और सफाई प्रणाली को देखकर चकित हो जाता है। यह निकास प्रणाली निश्चित रूप से नगर योजना की ओर संकेत करती है।

Class 12 History Notes Bihar Board Chapter 1 प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए। कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थ –

  1. कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग का)
  2. जैस्पर
  3. स्फाटिक,
  4. क्वार्ट्ज
  5. सेलखड़ी जैसे पत्थर,
  6. तांबा
  7. कोसा,
  8. सोने जैसे धातुएँ
  9. शंख
  10. फयॉन्स
  11. पकी मिट्टी।

मनका बनाने की एक विधि की प्रक्रिया: मनके बनाने की तकनीकों में प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भिन्नताएँ थी। सेलखड़ी पत्थर से आसानी से मनके बनाये जा सकते थे, क्योंकि यह मुलायम पत्थर होता था। कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढालकर तैयार किए जाते थे। ठोस पत्थरों से बनने वाले केवल ज्यामितीय आकारों छोड़कर इससे अन्य कई आकारों के मनके बनाए जा सकते थे। सेलखड़ी के सूक्ष्म मनकों के निर्माण की विधि स्पष्ट नहीं है।

Harappa Sabhyata Class 12 Bihar Board Chapter 1 प्रश्न 5.
चित्र 1.1 को देखिए और उसका वर्णन कीजिए। शव किस प्रकार रखा गया है? उसके समीप कौन-सी वस्तुएँ रखी गई हैं? क्या शरीर पर कोई पुरावस्तुएँ हैं? क्या इनसे कंकाल के लिंग का पता चलता है?
उत्तर:
शव का वर्णन: शव को एक गर्त में दफनाया गया है और उसे उत्तर-दक्षिण दिशा में रखा गया है। शव का सिर उत्तर की ओर है जो धर्मशास्त्र के अनुसार उचित दिशा में है। शव की मांसपेशियाँ, कपड़े आदि सड़ गये हैं और केवल कंकाल ही दिखाई दे रहा है।

  1. शव के निकट विशेष रूप से सिर के निकट दैनिक उपयोग की वस्तुएँ घड़ा, फ्लास्क, थूकदान आदि रखे गये हैं।
  2. शरीर पर रखी गई पुरावस्तुएँ स्पष्ट नहीं हैं। सम्भवतः हाथ में कड़े डाल रखे हैं।
  3. सम्भवतः यह कंकाल पुरुष का है क्योंकि इसका ललाट चौड़ा है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में)

History Class 12 Bihar Board Chapter 1 प्रश्न 6.
मोहनजोदड़ों की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ों की विशिष्टताएँ:
1. मोहनजोदड़ों विश्व का सर्वाधिक प्राचीन योजनाबद्ध नगर है। यह पाकिस्तान में सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के किनारे है। मोहनजोदड़ों का शाब्दिक अर्थ है-मृतकों का शहर। यहाँ खुदाइयों में मुर्दो के अस्थिपंजर मिले थे। आर्य सभ्यता से पूर्व यह नगर सिंधु घाटी के लोगों की सामाजिक गतिविधियों का मुख्य केन्द्र था। इसका क्षेत्रफल लगभग एक वर्ग किलोमीटर था। इस समय यह नगर. दो टीलों पर स्थित है।

2. मोहनजोदड़ों में वर्तमान नगरों के समान योजनानुसार बनाई गई चौड़ी सड़कें थीं । इसकी मुख्य सड़क 33 फुट चौड़ी है और दूसरी सड़कें 13.5 फुट चौड़ी है। सभी पूर्व से पश्चिम या उत्तर-दक्षिण की ओर आपस में जुड़ी हुई हैं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं। मैके (Machay) के अनुसार इन सड़कों को इस प्रकार से बनाया गया था कि यहाँ पर चलने वाली हवायें एक पंप की भाँति प्रदूषित हवाओं को खींच सकें जिससे वातावरण स्वच्छ रहे। इन बातों से यह प्रतीत होता है कि इस नगर का योजनाबद्ध ढंग से विकास करने के लिए एक उच्चाधिकारी नियुक्ति किया जाता होगा। भवनों के निर्माण के नियमों को कठोरता से लागू किया जाता होगा और यह भी ध्यान में रखा जाता होगा कि कोई भी भवन सड़कों के ऊपर न बने।

3. इस नगर की एक मुख्य विशेषता जल निकास व्यवस्था (Drainage System) थी। इस नगर की नालियाँ मिट्टी के गारे, चूने और जिप्सम की बनी हुई थीं। इनको बड़ी ईंटों और पत्थरों से ढका गया है। इन्हें ऊपर उठाकर उन नालियों की सफाई की जा सकती थी। घरों से बाहर की छोटी नालियाँ सड़कों के दोनों ओर बनी हुई थीं जो बड़ी और पक्की नालियों में आकर मिल जाती थीं। घरों से गंदे पानी के निकास के लिए मार्गों के दोनों ओर गड्ढे बने हुए थे।

4. गृह-वास्तु: मोहनजोदड़ों का गृहवास्तु विशिष्ट था। कई भवनों के केन्द्र में आगन था जिसके चारों ओर कमरे बने थे। संभवतः आँगन खाना पकाने और कताई करने जैसे गतिविधियों का केन्द्र था। गर्म और शुष्क मौसम में इसका पर्याप्त उपयोग किया जाता था। भूमितल पर बने कमरों में कोई खिड़की नहीं होती थी।

इसके अलावा मुख्य द्वार (आँगन) दिखाई नहीं देता था। इससे पता चलता है कि लोग एकांतप्रिय थे। प्रत्येक घर में ईंटों के फर्श से बना स्नानघर था। जिसकी नालियाँ सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थी। छत पर जाने के लिए कई घरों में सीढ़ियाँ भी थीं। कई घरों में कुएँ भी थे।

5. दुर्ग: मोहनजोदड़ों में बस्तियों की सुरक्षा के लिए दुर्ग था। बस्ती का पश्चिमी भाग छोटी ऊँचाई वाला भाग होता था तथा पूर्वी भाग कम ऊंचाई वाला होता था। दुर्ग ऊँचे स्थान पर होता था। इसके अन्दर बड़े-बड़े सरकारी भवन, खाद्यान्न भंडार और बड़े स्नानघर बने होते थे। इनके ईंटों से बने ढाँचे आज भी देखे गए हैं। लकड़ी से बने ऊपरी हिस्से बहुत पहले सड़ चुके होंगे।

12th History Book Bihar Board Chapter 1 प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची बनाइये तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किए जाते होंगे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चा माल: शिल्प उत्पादन का अर्थ है-माला के मनके बनाना, सीपियाँ काटना, धातु की वस्तुएँ बनाना, मोहरे बनाना तथा बाट बनाना। सिंधु घाटी में माला के मनके बनाने में प्रयुक्त सामग्री निम्नलिखित थी।

  1. सुन्दर लाल रंग का कार्नीलियन
  2. जैस्पर
  3. क्वार्ट्ज
  4. ताँबा
  5. कांसा
  6. सोने जैसी धातुएँ
  7. सीपियाँ
  8. टेराकोटा या आग में पकी हुई चूना-मिट्टी
  9. विभिन्न प्रकार के पत्थर।

प्राप्ति के तरीके: शिल्प उत्पादन के लिए अनेक प्रकार के कच्चे माल का प्रयोग किया जाता था। मिट्टी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध थी परन्तु पत्थर, लकड़ी तथा धातु बाहर से मँगाना पड़ता था। कच्चा माल प्राप्त करने के लिए हड़प्पा सभ्यता के लोग कई प्रकार की नीतियाँ अपनाते थे।

1. उपमहाद्वीप तथा आगे से आने वाला माल: कच्चा माल प्राप्त करने में हड़प्पाइयों ने कई स्थानों पर बस्तियाँ बसायी, जैसे शंख प्राप्त करने के लिए नागेश्वर और बालाकोट में, नीले रंग की लाजवर्द मणि के लिए सूदूर अफगानिस्तान के शोर्तुघई में। ये लोग कच्चे माल के विभिन्न स्थानों का खोज-अभियान भी जारी रखते थे। ये अभियान दल स्थानीय समुदायों के सम्पर्क में रहते थे।

2. सुदूर क्षेत्रों के सम्पर्क: कच्चे माल के लिए हड़प्पाई लोग सुदूर क्षेत्रों सम्पर्क में भी रहते थे। उदाहरण के लिए ये लोग तांबा अरब से मंगाते थे।

Bihar Board Class 12 History Book Chapter 1 प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद् किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं?
उत्तर:
अतीत के पुनर्निर्माण में पुरातत्त्वविदों का योगदान:
अतीत के पुनर्निर्माण में पुरातत्त्वविदों का महत्त्वपूर्ण योगदान निम्नवत रहा है –

  1. हड़प्पा सभ्यता की लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है। ऐसे में उस नगर के भौतिक साक्ष्य यथा-मृद्भाण्ड, औजार, आभूषण और खुदाई के समय तक अक्षत सामान हड़प्पाई जीवन का पुनर्निर्माण आधिकारिक और विश्वसनीय ढंग से करने में सहायक बनते हैं।
  2. मूर्तियों जैसी खुदाई से प्राप्त आकृतियाँ अतीत के सामाजिक जीवन को समझने में सहायक बनती हैं।
  3. कीमती आभूषणों से आर्थिक प्रास्थिति/अर्थव्यवस्था की जानकारी मिलती है।
  4. विभिन्न प्रकार की मूर्तियों यथा-मातृदेवी की मूर्ति या मुहर पर बने ‘आद्य शिव’ से लोगों के धार्मिक जीवन की जानकारी होती है।
  5. बैलगाड़ीनुमा खिलौने यह बताते हैं कि हड़प्पाई लोग आने-जाने या सामान ढोने के लिए परिवहन साधनों का भी प्रयोग करते हैं।
  6. शवाधानों से प्राप्त विभिन्न सामग्रियों से सामाजिक भिन्नता की जानकारी मिलती है।

प्रश्न 9.
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्य:
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों से कोई ऐसा स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिला है जिसके आधार पर शासकों द्वारा किये गये कार्यों का विवरण दिया जा सके। पुरातात्विक साक्ष्यों का भी अभाव है। मोहनजोदड़ों में एक विशाल भवन को प्रासाद कहा गया है परन्तु वहाँ शासकों से सम्बद्ध कोई वस्तु नहीं मिली है। पुरातत्त्वविदों ने एक पत्थर की मूर्ति को मेसोपोटामिया के इतिहास के आधार पर पुरोहित-राजा की संज्ञा दी है।

हड़प्पाई शासक संभवत:
आनुष्ठानिक कार्य कराते थे और उनकी याद बनाये रखने के लिए उनके चित्र मुहरों पर उत्कीर्ण कराते थे। ऐसा प्रतीत होता है राजनीतिक सत्ता वालों को ही अनुष्ठान करवाने का अधिकार था।

कुछ विद्वानों का विचार है कि हड़प्पाई समाज में कोई शासक नहीं था तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। पुरातत्त्वविदों के एक वर्ग का कहना है कि यहाँ एक से अधिक शासक थे। उनके अनुसार हड़प्पा, मोहनजोदड़ों और चहुँदड़ों आदि के अलग-अलग शासक थे। पुरात्त्वविदों का एक अन्य वर्ग कहता है कि सम्पूर्ण हड़प्पा सभ्यता एक राज्य की थी। इसका प्रमाण पुरावस्तुओं में पर्याप्त समानता का रहना है। ईंटों के आकार में निश्चित अनुपात है तथा कच्चे माल के स्रोतों के समीप ही बस्तियों का विकसित होना स्पष्ट है।

प्रश्न 10.
मानचित्र 1.2 पर उन स्थलों पर पेंसिल से घेरा बनाइए जहाँ से कृषि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। उन स्थलों के आगे क्रॉस का निशान बनाइए जहाँ शिल्प उत्पादन के साक्ष्य मिले हैं। उन स्थलों पर ‘क’ लिखिए जहाँ कच्चा माल मिलता था।
उत्तर:
संकेत: कृषि के साक्ष्य वाले स्थल Ο
शिल्प उत्पादन के साक्ष्य वाले स्थल ⊗
कच्चे माल वाले स्थल 

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
पता कीजिए कि क्या आपके शहर में कोई संग्रहालय है। उनमें से एक को देखने जाइए और किन्हीं दस वस्तुओं पर एक रिपोर्ट लिखिए, जिसमें बताइए कि वे कितनी पुरानी हैं वे कहाँ से मिली थीं, और आपके अनुसार उन्हें क्यों प्रदर्शित किया गया है?
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 12.
वर्तमान समय में निर्मित तथा प्रयुक्त पत्थर, धातु तथा मिट्टी की दस वस्तुओं के रेखाचित्र एकत्रित कीजिए। इनकी तुलना इस अध्याय में दिये गये हड़प्पा सभ्यता के चित्रों से कीजिए तथा आपके द्वारा उनमें पाई गई समानताओं एवं भिन्नताओं पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति क्यों कहते हैं?
उत्तर:

  1. सिन्धु घाटी सभ्यता की सर्वप्रथम खोज हड़प्पा नामक स्थान पर हुई। इसलिए इसे हड़प्पा संस्कृति कहते हैं।
  2. इसकी सर्वप्रथम खोज दयाराम साहनी ने 1921 ई. में की।

प्रश्न 2.
आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्पा संस्कृतियों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. सिन्धु घाटी क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है।
  2. इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
हड़प्पा संस्कृति का विस्तार बताइये।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति का विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक और पश्चिम में बलुचिस्तान के मकरान समुद्रतट से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था। यह सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार है और इसका क्षेत्रफल लगभग 1,299,600 वर्ग कि.मी. है।

प्रश्न 4.
हड़प्पा स्थल की दुर्दशा के क्या कारण हैं?
उत्तर:

  1. हड़प्पा स्थल की कई प्राचीन संरचनायें ईंट चुराने वालों की अशिष्टता का शिकार हो चुकी हैं। अर्थात्-लुप्तप्राय हैं।
  2. 1875 में ही भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के पहले जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने लिखा है कि ईंट चोरों ने इतनी ईंटें चुरा ली थी कि वे लाहौर और मुल्तान के बीच 100 मील लम्बी रेल की पटरी तैयार करने के लिए पर्याप्त होती।

प्रश्न 5.
अवतल चक्कियों का क्या उपयोग था?
उत्तर:

  1. विद्वानों का अनुमान है कि इनकी सहायता से अनाज पीसा जाता था।
  2. सालन या तरी बनाने के लिए जड़ी-बूटियों तथा मसालों को कूटने के लिए भी विशेष प्रकार की अवतल चक्कियों का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 6.
हड़प्पा संस्कृति में वर्णित विभिन्न जानवरों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. पालतू मवेशियों में भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर आदि प्रमुख थे।
  2. जंगली प्रजातियों में हिरण, घड़ियाल, सूअर आदि थे। मछली और पक्षियों जैसे जलचर और नभचर प्राणियों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 7.
उन छः स्थलों के नाम बताइये जहाँ हड़प्पा संस्कृति उन्नत और परिपूर्ण थी। सम्बन्धित प्रदेशों के नाम भी बताइये।
उत्तर:

  1. हड़प्पा (पंजाब)
  2. मोहनजोदड़ो (सिन्ध)
  3. चहुँदडा (सिन्ध)
  4. लोथल (गुजरात)
  5. कालीबंगन (राजस्थान)
  6. बनावली (हरियाणा)।

प्रश्न 8.
आप किन तथ्यों के आधार पर कह सकते हैं कि सिन्धुवासी सफाई और स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखते थे?
उत्तर:

  1. हड़प्पा संस्कृति के लोगों के मकान पक्के और सड़कों तथा गलियों के किनारे स्थित थे। ये ऊँचे तथा खिड़कियों वाले हवादार घर थे।
  2. घरों का गन्दा जल बाहर निकलने के लिए भूगत नालियाँ बनी हुई थीं । इन नालियों का पानी नगर से बाहर तक जाता था।
  3. अधिकांश मकानों में स्नानघर तथा कुएँ आदि प्राप्त हुए हैं।
  4. कूड़ा-करकट एकत्र करने के लिए जगह-जगह टैंक बने हुए थे।

प्रश्न 9.
हड़प्पा संस्कृति का ज्ञान हमें किन स्रोतों से होता है?
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति की जानकारी के अनेक स्रोत हैं:

  1. विभिन्न स्थलों की खुदाई से प्राप्त सड़कों, गलियों, भवनों, स्नानागारों आदि के द्वारा नगर योजना, वास्तुकला और लोगों के रहन-सहन के विषय में जानकारी मिलती है।
  2. तकलियाँ, मिट्टी के खिलौने, धातु की मूर्तियाँ, आभूषण, मृद्भाण्ड जैसी कला एवं शिल्प की जानकारी कराने वाली वस्तुएँ विभिन्न व्यवसायों एवं सामाजिक दशा की जानकारी भी कराती है।
  3. मिट्टी की मुहरों से धर्म, लिपि आदि का ज्ञान होता है।

प्रश्न 10.
मोहनजोदड़ो के सार्वजनिक स्नानागार के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:

  1. यह सिन्ध प्रांत के मोहनजोदड़ो नामक शहर में पाया गया है। यह एक विशाल स्नानागार है। इसका जलाशय दुर्ग के टीले में है।
  2. यह स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना है। इसकी लम्बाई 11.88 मी., चौड़ाई 7.01 और गहराई 2.43 मी. है। इसके साथ सीढ़ियाँ, कपड़े बदलने के कमरे और कुँआ भी बना हुआ है। गंदे पानी के निकास की गहरी और चौड़ी नालियाँ भी हैं।
  3. यह धार्मिक अवसरों पर प्रयोग किया जाता होगा।

प्रश्न 11.
हड़प्पा संस्कृति की काल गणना कीजिए।
उत्तर:
यह संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक और भारत की सर्वाधिक प्राचीन विकसित नगर सभ्यता है। इसकी लिपि अभी तक न पढ़ी जाने के कारण इसकी निश्चित तिथि नहीं बतायी जा सकती है। मेसोपोटामिया और बेबीलोनिया की खुदाई से मिले बर्तन, मोहरों आदि की तुलना सैन्धव सभ्यता की इन सामग्रियाँ से की गयी है। इस आधार पर इसका काल 2600 सा०यु०पू० से 1900 सा०यु०पू० ठहरता है।

प्रश्न 12.
हड़प्पा काल की तौल और माप पद्धति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. नगरवासियों ने व्यापार और आदान-प्रदान की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए माप और तौल का प्रयोग किया।
  2. ये लोग ‘तौल’ में बाटों का प्रयोग करते थे। ये बाट 16 या उसके गुणकों यथा -4, 8, 16, 64, 80, 160, 320 और 640 आदि में मानकीकृत थे।
  3. मापने के लिए पैमाने का प्रयोग करते थे। माप के निशान वाले लकड़ी और कांसे के डंडे प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 13.
हड़प्पा के शवाधानों में कौन-कौन सी वस्तुएँ मिली हैं और क्यों?
उत्तर:

  1. हड़प्पा के शवाधानों में दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ, बर्तन, मटके, आभूषण, ताँबे के दर्पण आदि मिले हैं।
  2. इसके पीछे संभवतः ऐसी मान्यता थी कि इन वस्तुओं का मृत्योपरांत प्रयोग किया जा सकता था। पुरुषों और महिलाओं दोनों के शवाधानों से आभूषण मिले हैं।

प्रश्न 14.
कानीलियन से मनके किस प्रकार तैयार किये जाते थे?
उत्तर:
पीले रंग के एक कच्चे माल को आग में पकाने से लाल रंग का कार्नीलियन बनता था। अब इसके मनके तैयार किए जाते थे। इसके लिए पत्थर के टुकड़ों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और फिर बारीकी से शल्क निकालकर इन्हें अंतिम रूप दिया जाता था। घिसाई, पॉलिश और इनमें छेद करने के साथ ही यह प्रक्रिया पूरी होती थी। चहुँदड़ों, लोथल और हाल ही में धोलाविरा से छेद करने के विशेष उपकरण मिले हैं।

प्रश्न 15.
क्या सैन्धव सभ्यता एक नगर सभ्यता थी? अथवा, इस सभ्यता के नागरिक जीवन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिन्धु की सभ्यता एक नगर सभ्यता थी। यह निम्नलिखित बातों से स्पष्ट है –

  1. इस संस्कृति में, नगरों में सड़कों का निर्माण किया गया था जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी और चौराहों का निर्माण करती थी।
  2. मकानों का विन्यास एक महाजाल (dragnet) की तरह है। इन मकानों में आराम की सभी व्यवस्थायें थी। मकान पक्की ईंटों के थे।
  3. नगरों के गन्दे पानी को निकालने के लिए भूगत पक्की नालियों की व्यवस्था की गई थी।
  4. अनेक घरों में स्नान आदि के लिए कुएँ मिले हैं।
  5. विशेष अवसरों के लिए सार्वजनिक स्नानागार बनाए गए थे।

प्रश्न 16.
कनिंघम के बारे में क्या जानते हैं?
उत्तर:

  1. ये भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने 19 वीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्विक उत्खनन आरम्भ किये।
  2. कनिंघम की मुख्य रूचि आरम्भिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी सा०यु०पू०) से चौथी शताब्दी ई.) तथा उसने बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्त्व में थी।

प्रश्न 17.
उत्पादन केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्त्वविद् किन वस्तुओं को ढूंढ़ते हैं?
उत्तर:
उत्पादन केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद् निम्नलिखित वस्तुओं को ढूंढते हैं:

  1. प्रस्तर पिंड
  2. पूर्ण शंख
  3. तांबा-अयस्क जैसा कच्चा माल
  4. औजार
  5. अपूर्ण वस्तुएँ
  6. परित्यक्त माल
  7. कूड़ा-करकट।

प्रश्न 18.
ओमान (अरब) के हड़प्पा सभ्यता के संबंध के क्या प्रमाण हैं?
उत्तर:

  1. ओमान अरब प्रायद्वीप के दक्षिण-पश्चिम छोर पर स्थित था। संभवतः हड़प्पा में ताँबा यहीं से आता था। रासायनिक विश्लेषण से ज्ञात होता है कि ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं दोनों में निकल के अंश मिले हैं जो इस सभ्यता के उभयनिष्ठ या समकालिक उद्भव को दर्शाते हैं।
  2. काली मिट्टी की परत चढ़ा हुआ एक हड़प्पाई मर्तबान ओमान नामक पुरातत्व स्थल में भी प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 19.
हड़प्पन लिपि की दो विशेषतायें बताइये।
उत्तर:

  1. यद्यपि हड़प्पन लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है तथापि यह निश्चित रूप से यह वर्णमालीय नहीं है क्योंकि वर्णमालीय के प्रत्येक चिह्न एक स्वर अथवा व्यंजन को दर्शाता है।
  2. यह लिपि दाई से बांई ओर लिखी जाती थी क्योंकि दाई ओर चौड़ा अंतराल है और बांई ओर यह संकुचित है।

प्रश्न 20.
हड़प्पा स्थलों से कौन-कौन से अनाज प्राप्त हुए हैं?
उत्तर:

  1. गेहूँ
  2. जौ
  3. दाल
  4. सफेद चना
  5. तिल
  6. बाजरा
  7. चावल।

प्रश्न 21.
हड़प्पाई पुरातत्त्व में क्या उन्नति हुई है?
उत्तर:

  1. 1990 के दशक में हड़प्पाई पुरातत्त्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों की रूचि बढ़ती जा रही है। उदाहरणार्थ-हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों स्थानों पर भारतीय उपमहाद्वीप तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से कार्य कर रहे हैं।
  2. वे आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं। इन तकनीकों में मिट्टी, पत्थर, धातु की वस्तुएं, वनस्पति और जानवरों के अवशेष प्राप्त करने हेतु धरातल (स्थल) का अन्वेषण और साथ ही उपलब्ध साक्ष्य के प्रत्येक सूक्ष्म टुकड़े का विश्लेषण शामिल है।

प्रश्न 22.
संस्कृति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. संस्कृति शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं और प्रायः एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल खण्ड से सम्बद्ध पाये जाते हैं।
  2. हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन विशिष्ट पुरावस्तुओं के मुहरे, मनक, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें शामिल हैं।

प्रश्न 23.
हड़प्पाई लिपि की लिखावट कहाँ मिलती है?
उत्तर:

  1. मुहरें
  2. ताँबे के औजार
  3. मर्तबानो के, अॅबठ
  4. ताँबे तथा मिट्ठी की लघु पटिट्कायें
  5. आभूषण
  6. आस्थि – छड़ें
  7. सूचनापट्ट।

प्रश्न 24.
हड़प्पा के शवाधानों की मुख्य विशेषतायें क्या हैं?
उत्तर:

  1. यहाँ के शवाधानों में प्रायः मृतकों को गड्ढों में दफनाया गया था।
  2. कभी-कभी शवाधान गर्त की बनावट एक-दूसरे भिन्न होती थी। कुछ स्थानों पर गर्त की सतहों पर ईंटों की चिनाई की गई थी।

प्रश्न 25.
फयॉन्स क्या है? ये कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:

  1. घिसी हुई रेत अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाये गये पदार्थ को फयॉन्स कहते हैं। यह हड़प्पा की विलासी वस्तु मानी जाती थी।
  2. संगधि त द्रव्यों को रखने के पात्र जैसी फयान्स की वस्तुएँ मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े नगरों की खुदाई से प्राप्त हुई हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्यौगिकी:

  1. प्राप्त प्रमाणों से ज्ञात होता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था क्योंकि यहाँ के कई स्थलों से अनाज के दाने प्राप्त हुए हैं।
  2. मुहरों पर वृषभ या बैल का अंकन रहना तथा बैलों की कई मृणमूर्तियों का मिलना खेत जोतने और बैलगाड़ी के लिए वृषभ का प्रयोग किए जाने का स्वतः साक्ष्य है।
  3. चोलिस्तान के कई स्थलों यथा-बनावली (हरियाणा) में मिट्टी निर्मित हल के अवशेष मिलना यह अधि कारिक जानकारी बनता है कि खेतों की जुताई हल से होती थी। कालीबंगन (राजस्थान) में जुते हुए खेत के साक्ष्य भी मिले हैं।
  4. फसलों की कटाई के लिए लकड़ी के हत्थों में जड़े/फँसाए गए पत्थर के फलक (धार) या धातु फलक से पता चलता है कि उन्हें कृषि उपकरणों का ज्ञान था।
  5. सिंचाई के लिए नहरों और कुँओं का प्रयोग किया जाता था। अफगानिस्तान के शोर्तुघई में नहरों के अवशेष मिले है।

प्रश्न 2.
शिल्प और तकनीक के क्षेत्र में हड़प्पाई लोगों की उपलब्धियाँ बताएँ। अथवा, हड़प्याई संस्कृति की कला का उल्लेख 100 शब्दों में करें।
उत्तर:
हड़प्पा लोगों की शिल्प और तकनीकी अत्यन्त विकसित थी। इस क्षेत्र में उनकी निम्नलिखित उपलब्धियाँ थीं –

  1. हड़प्पा के लोग कांस्य निर्माण और प्रयोग से अच्छी तरह परिचित थे। तांबे में टिन मिलाकर कांसा बनाते थे। हड़प्पाई स्थलों से प्राप्त कांस्य के औजार और हथियारों में टिन की मात्रा कम है। वस्तुतः टिन उन्हें मुश्किल से मिलता होगा। उनके धातु-शिल्प-मूर्ति विनिर्माण एवं औजार विनिर्माण के थे। वे कुल्हाड़ी, आरी, छुरा आदि बनाते थे।
  2. ये लोग बुनाई कला से भी परिचित थे। वे कपड़े बनाते थे। सूत कातने के लिए तकली का प्रयोग करते थे। बुनकरों का समूह सूती और ऊनी कपड़ा तैयार करता था।
  3. हड़प्पाई लोग अच्छे राजगीर भी थे। उनकी कला विशाल इमारतों में देखने को मिलती है।
  4. ये नाव बनाने का काम भी करते थे।
  5. इनका महत्त्वपूर्ण शिल्प मिट्टी की मुहरें और मूर्ति बनाने तक सीमित था।
  6. समाज में चंद लोग स्वर्णकार या आभूषण विनिर्माता थे। स्वर्णाभूषण, रजत-भूषण और रत्नाभूषण बनाए जाते थे।
  7. हड़प्पाई कारीगर मणियों के निर्माण में भी निपुण थे।
  8. वे कुम्हारी कला से भी परिचित थे । चाक की सहायता से बर्तन चिकने और चमकीले बनाये जाते थे।

प्रश्न 3.
हड़प्पा नगरों का विन्यास कैसा था? इसकी विलक्षणताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा नगरों का विन्यास तथा प्रमुख विलक्षणतायें:
हड़प्पा सभ्यता का नगर का विन्यास जाल की भांति था। नगर एक निश्चित योजना के अनुसार बसाये गये थे। इसकी प्रमुख विलक्षणतायें या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. नगरों में सड़कें बनायी गयी थी जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सड़कें गलियों से सम्बद्ध थीं। सड़कों और गलियों के कारण नगर कई खण्डों में विभक्त था।
  2. मकान, सड़कों और गलियों के किनारे बनाये गये थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों नगर-दुर्ग (Garrison) थे। इन दुर्गों में शासक वर्ग रहता था। दुर्गों से बाहर पक्की ईंटों के मकान बने थे जिनमें सामान्य लोग रहते थे।
  3. मोहनजोदड़ो के प्रमुख सार्वजनिक स्थल दुर्ग में एक विशाल स्नानागार है। यह 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मी. चौड़ा तथा 2.43 मीटर गहरा है। अनुमान है कि इसका प्रयोग महत्त्वपूर्ण अवसरों पर किया जाता होगा।
  4. अनाज के गोदाम भी बनाये गये हैं। हड़प्पा नगर के ऐसे एक गोदाम में 6 अन्तः कक्ष हैं।
  5. इन नगरों की जल-निकास व्यवस्था अति-सुधड़ और योजनाबद्ध थी। घरों का पानी भूगत और स्थान-स्थान पर ढक्कन-बंद नालियों से होता हुआ बस्ती सीमा से बाहर एक बड़े नाले का रूप लेता था और ऐसे कई नाले समूचे नगर की सीमा से बाहर त्यक्त-स्थान में मल-व्ययन एवं विसर्जन करते थे।
  6. लगभग सभी घरों में स्नानागार, कुएँ व आँगन आदि थे। इस प्रकार हड़प्पा नगरों का विन्यास अत्यन्त उच्चकोटि का था।

प्रश्न 4.
हड़प्पाई लोगों के मुख्य काम-धंधे क्या थे? उपलब्ध भौतिक साक्ष्यों के आधार पर वर्णन कीजिए। अथवा, “सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों की आजीविका के साधन” शीर्षक से 100 शब्दों की सीमा में एक अवतरण लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पाई सभ्यता के लोगों को आजीविका के विविध साधनों का विशेष ज्ञान था इसीलिए वे समृद्ध और सुखी थे। इनका मुख्य व्यवसाय खेती था। ये लोग गेहूँ, जौ आदि की खेती करते थे। दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। पालतू पशुओं में बैल, बकरी, सुअर, भैंस और ऊँट आदि प्रमुख थे। जंगली जानवरों में बन्दर, रीछ, खरगोश, चीता और गैंडा आदि थे। उनका तीसरा मुख्य व्यवसाय कपड़े तैयार करने (विनिर्माण) का था । आभूषण बनाना, मिट्टी के बर्तन बनाना और व्यापार करना भी उनके प्रमुख व्यवसायों में शामिल थे। उत्खनन में प्राप्त बाटों से हड़प्पाई लोगों की व्यापारप्रियता स्पष्ट झलकती है। उनका व्यापार भारत तक सीमित न होकर विदेशों में भी फैला था। जल और स्थल दोनों मार्गों से यह व्यापार सुमेरिया और बेबीलोन आदि दूर-दूर के देशों के साथ किया जाता था।

प्रश्न 5.
सिन्धु घाटी के लोगों द्वारा बनाए जाने वाले मिट्टी के बर्तनों की मुख्य विशेषताएं कौन-कौन सी थी?
उत्तर:
सिन्धु घाटी के लोगों द्वारा बनाए जाने वाले मिट्टी के बर्तनों की निम्नलिखित विशेषताएँ थी –

  1. सिन्धु घाटी के लोगों द्वारा प्रयुक्त होने वाले बर्तन चाक पर बने हुए होते थे। यह बात अपने में स्पष्ट करती है कि यह संस्कृति पूर्णतया विकसित थी।
  2. रूप और आकार की दृष्टि से इन बर्तनों की विविधता आश्चर्यजनक है।
  3. पतली गर्दन वाले बड़े आकार के घड़े तथा लाल रंग के बर्तनों पर काले रंग की चित्रकारी आदि हड़प्पा के बर्तनों की दो मुख्य विशेषताएँ हैं।
  4. इन बर्तनों पर अनेक प्रकार के वृक्षों, त्रिभुजों, वृत्तों और बेलों आदि का प्रयोग करके अनेक प्रकार के नमूने बनाये गये हैं।

प्रश्न 6.
“पकी मिट्टी की मूर्तियाँ और सीलें हड़प्पाई लोगों की धार्मिक प्रथाओं पर प्रचुर प्रकाश डालती हैं।” विवेचन करें। अथवा, हड़प्पाई मुहरों का धार्मिक महत्त्व 100 शब्दों में लिखें।
उत्तर:
पकी मिट्टी की मूर्तिकाएँ और सीलों या मुहरों का हड़प्पाई लोगों की धार्मिक प्रथाओं को जानने में विशेष महत्त्व है। हड़प्पा में पकी मिट्टी की मूर्तिकायें भारी संख्या में मिली हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये मूर्तियाँ मातृदेवी की मूर्तिकायें हैं क्योंकि एक स्त्री मूर्तिका के पेट से निकलता हुआ पौधा दिखाया गया है। यह देवी की प्रतीक भी मानी जाती है।

सीलों पर धर्म से सम्बन्धित अनेक आकृतियाँ मिलती है। एक सील पर एक पुरुष देवता अंकित है जिसके तीन सींग हैं और इसके आस-पास अनेक पशु अंकित किये गए हैं। इसकी पहचान पशुपति या शिव से की गयी है। सीलों पर पशुओं के अंकन से ज्ञात होता है कि लोग पशुओं की भी पूजा करते थे।

प्रश्न 7.
अन्य सभ्यता की तुलना में सिन्धु घाटी की सभ्यता के विषय में अधिक जानकारी नहीं मिलती है। क्यों?
उत्तर:
स्वल्प जानकारी मिलने के कारण (हेतुक):

  1. इसकी निश्चित तिथि ज्ञात नहीं है। तुलना के आधार पर इसकी तिथि निश्चित की गई हैं। इसको लेकर इतिहासकारों में मतभेद है।
  2. हड़प्पा संस्कृति की लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है जिससे इसकी तिथि नहीं हो पाती तथा विभिन्न क्षेत्रों में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती।
  3. तिथि के अभाव में साहित्य, रीति-रिवाज, रहन-सहन, धार्मिक क्रिया-कलापों के विषय में निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं होती।
  4. हड़प्पा संस्कृति के नागरिकों के विषय में कोई निश्चित ज्ञान नहीं है । ये मूल निवासी कहाँ के थे, पता नहीं चलता।
  5. हड़प्पा संस्कृति के प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।
  6. चित्रलिपि की गूढ़ता अभी तक पुरातत्त्वविदों और भाषाविदों की समझ से बाहर बनी हुई है।

प्रश्न 8.
सिन्धु घाटी के विभिन्न केन्द्रों से जो मुहरें (Seals) मिली हैं उनका क्या महत्त्व है? अथवा, “पकी मिट्टी की मूर्तिकाएँ और मुहरें हड़प्पाई लोगों की धार्मिक प्रथाओं पर प्रचुर प्रकाश डालती हैं।” विवेचना करें।
उत्तर:
सिन्धु घाटी के लोगों की पकी मिट्टी की मूर्तियाँ और मुहरें वहाँ की संस्कृति का विशिष्ट उदाहरण हैं। यह हड़प्पाई लोगों की धार्मिक आस्थाओं पर प्रकाश डालती है। शिव, मातृदेवी आदि की पूजा करने के ध्वंसावशेष बताते हैं कि पुरुष और प्रकृति की अदृष्ट शक्तियों का उन्हें संज्ञान, अभिज्ञान या बोध था। कला की दृष्टि से ये अपना जवाब नहीं रखती। इन मुहरों पर खुदे हुए साँड, गेंडा, हाथी, बारहसिंघा के चित्र देखते ही बनते हैं। ये चित्र अपनी वास्तविकता एवं सुन्दरता के लिए अद्वितीय हैं। एक अन्य प्रकार से भी यह मुहरें प्रसिद्ध हैं। कुछ मुहरों पर अभिलेख खुदे हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्वपूर्ण हैं। अभी उन पर खुदी लिपि पढ़ी नहीं जा सकी है। जब साहित्यकार इसे पढ़ने में सफल हो जायेंगे तो इन मुहरों का महत्त्व और भी बढ़ जायेगा-इस बात से कौन इंकार कर सकता है।

प्रश्न 9.
हड़प्पा संस्कृति के प्रमुख स्थलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अभी तक हड़प्पा संस्कृति के लगभग 1000 स्थलों की जानकारी मिल पाई है। हड़प्पा संस्कृति के आधिकारिक तौर पर प्रमुख स्थल केवल एक दर्जन हैं। ये निम्नलिखित हैं

  1. हड़प्पा: यह स्थल पश्चिमी पंजाब में मॉटगोमरी जिले में स्थित है। इसके उत्तर क्षेत्र से एक विशाल और समृद्ध नगर का ध्वंसावशेष प्राप्त हुआ है।
  2. मोहनजोदड़ो: यह सिन्ध के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है। यहाँ से समृद्ध नगर के साथ-साथ एक विशाल सार्वजनिक स्नानागार भी प्राप्त हुआ है।
  3. चहुँदड़ो: यह मोहनजोदड़ो से दक्षिण-पूर्व दिशा में 130 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ से भी एक नगर का ध्वंसावशेष मिला है।
  4. लोथल: यह स्थल काठियावाड़ में स्थित है। विद्वानों के अनुसार यह हड़प्पा संस्कृति का एक बन्दरगाह था। स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस संस्कृति में सती-प्रथा भी प्रचलित थी।
  5. कालीबंगन: यह राजस्थान के गंगानगर जिले की घाघरा नदी के किनारे स्थित है। यहाँ से भी पूर्ण नगर का अवशेष मिला है।
  6. बनावली: यह हरियाणा के हिसार जिले में है । यहाँ से हड़प्पा-पूर्व और हड़प्पा-कालीन संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।
  7. सुतकार्गेडोर और सुरकोतड़ा: इन समुद्रतटीय नगरों में हड़प्पा की विकसित और समृद्ध संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
  8. रंगपुर और रोजड़ी: ये काठियावाड़ प्रायद्वीप में है। यहाँ उत्तर हड़प्पा के अंश मिले हैं।

प्रश्न 10.
हड़प्पा निवासियों के व्यापार और वाणिज्य का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
हड़प्पा निवासियों का व्यापार और वाणिज्य:
इन लोगों का आंतरिक और विदेशी व्यापार उन्नत था। हड़प्पा सभ्यता के अधिकांश नगरों में तैयार की जाने वाली वाणिज्यिक वस्तुओं के उत्पादन का कच्चा माल उपलब्ध नहीं था। अन्य देशों व विदेशों से आयात करके इस जरूरत। को पूरा किया जाता था। उदाहरण के लिए-तांबे का आयात मुख्यतः खेतड़ी से होता था। सीप, शंख, कौड़ी आदि काठियावाड़ के समुद्र तट से आयात की जाती थी। जल और स्थल दोनों मार्गों से व्यापार विकसित था। अवशेषों में मुहर पर एक समुद्री जहाज की आकृति चित्रित है जो इस बात का द्योतक है कि इस समय नौका व छोटे जहाजों का प्रयोग होता था। स्थल-मार्ग द्वारा आवागमन के लिए घोड़े व गधे के अलावा बैलगाड़ियों का भी प्रयोग होता था। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के अवशेषों में मिट्टी की अनेक गाड़ियाँ भी मिली हैं। हड़प्पा के अवशेषों में कांसे का बना हुआ एक इक्का भी मिला है जिससे पता चलता है कि इस युग में इक्कों का प्रयोग होता था।

प्रश्न 11.
हड़प्पा लोगों के धार्मिक रीति-रिवाजों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई लोगों के धार्मिक रीति-रिवाजों का अनुमान उनकी कुछ मूर्तियों, बर्तनों और ताम्रपत्रों के चित्रों से मिलता है। मातृदेवी की अनेक मूर्तियाँ मिली हैं। इनसे पता चलता है कि मातृदेवी ही उनकी पूज्य देवी थी। एक मूर्ति ऐसी मिली है जो बिल्कुल नग्न है। हाथ में कटार तथा गले में नर-मुंडों की माला है। इससे पता चलता है कि लोग देवी, देवताओं को प्रसन्न करने के लिए नरबलि भी देते थे। यह नहीं कहा जा सकता है कि मातृदेवी के लिए मन्दिर भी बनाये जाते थे अथवा नहीं मोहनजोदड़ो से इनके एक देवता की मूर्ति मिली है जो कि आजकल के शिव देवता से मिलती-जुलती है। सम्भवतः ये लोग वृक्षों तथा पशुओं (सांड आदि), सांपों और पत्थरों की भी पूजा करते थे। यह धर्म आजकल के हिन्दू धर्म का उदयी रूप था। बड़ी संख्या में प्राप्त ताबीज उनकी भूत-प्रेत में विश्वास रखने और अदृष्ट एवं अशरीरी शक्तियों से डरने की मनोवृत्ति के परिचायक हैं। ताबीज वस्तुतः अज्ञान भय की आशंका से मुक्त करने वाले मंत्र या बीज-मंत्र प्रतिष्ठित कण्ड-गंड के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 12.
हड़प्पा संस्कृति व आर्य सभ्यता की तुलना कीजिए। दोनों के प्रमुख भेदों .. को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति और आर्य सभ्यता में अंतर –

  1. आर्य एक ग्रामीण सभ्यता थी जबकि हड़प्पा संस्कृति एक शहरी सभ्यता थी।
  2. हड़प्पा संस्कृति के लोग शांतिप्रिय थे जबकि आर्य युद्ध को पसंद करते थे। वे विभिन्न प्रकार के हथियारों से भलीभाँति परिचित थे।
  3. घोड़ा, आर्यों के लिए युद्ध, यातायात और आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था जबकि हड़प्पा संस्कृति के लोग इससे अपरिचित थे।
  4. आर्य लोग गाय को पवित्र मानते थे जबकि हड़प्पाई लोगों ने यह स्थान सांड को दिया था।
  5. हड़प्पाई लोग मूर्ति-पूजक थे जबकि आर्य मूर्ति-पूजा से अपरिचित थे।
  6. हड़प्पा संस्कृति का व्यापार आर्य संस्कृति के व्यापार से अधिक विकसित था।

प्रश्न 13.
हड़प्पा संस्कृति के सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति का सामाजिक जीवन –

  1. भोजन: इस सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों थे। फलों का प्रयोग अतिरिक्त भोजन के रूप में किया जाता था। गेहूँ और जौ प्रमुख खाद्यान्न थे।
  2. वस्त्र: विभिन्न स्थलों की खुदाई से प्राप्त बुने हुए और तकली पर कटे हुए बहुत से वस्तु अवशेषों, सुइयों व ताँबे के बटनों से उनके कताई और बुनाई शिल्प में जानकार होने का पता चलता है। सूती और ऊनी कपड़ों का प्रयोग किया जाता था। ये लोग रंगीन वस्त्र पहनते थे। स्त्री और पुरुषों की पोशाक में विशेष अन्तर नहीं था।
  3. आभूषण: स्त्री-पुरुष दोनों ही आभूषणों का प्रयोग करते थे। धनी वर्ग चाँदी आदि बहुमूल्य धातुओं परन्तु निर्धन वर्ग हड्डी और ईंटों के बने आभूषण धारण करता था। हार, कुण्डल, बाजूबंद, कटिबंद, अंगूठी आदि प्रमुख आभूषण थे।
  4. सफाई एवं स्वास्थ्य: हड़प्पा संस्कृति के लोग शरीर और घर की सफाई पर अधिक ध्यान देते थे। कुँओं और स्नानागारों के अवशेषों से पता चलता है कि लोग स्नान करते थे एवं घरेलू वस्तुओं की सफाई करते थे। खुदाई में कूड़ा एकत्रित करने के टैंक भी मिले हैं।
  5. मनोरंजन: ये लोग आखेट, पक्षी पालन, मछली पकड़ना, शतरंज, नृत्य, चित्रकला आदि से मनोरंजन करते थे।
  6. श्रृंगार प्रसाधन: उत्खनन से प्राप्त हाथीदाँत की वस्तुएँ, पीतल की फ्रेम वाले शीशे, लिपस्टिक आदि से पता चलता है कि शृंगार और केश-सज्जा का भी शालीन ज्ञान रखते थे।

प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता कैसे समाप्त हुई? विवेचना करें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के अवसान को लेकर विद्वानों में मतभेद है। अभी तक ज्ञात कुछ कारण इस प्रकार हैं –

  1. सिन्धु क्षेत्र में आगे चलकर जलवायु परिवर्तन की स्थिति उत्पन्न हुई और जल-स्तर घटने लगा, वर्षा भी कम होने लगी अतः कृषि और पशुपालन का मुख्य व्यवसाय कर पाना असंभव हो गया होगा।
  2. कुछ विद्वानों के अनुसार सम-सीमान्त उपयोगिता हास नियम के अनुसार अति-भोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति क्षीण होने लगी और ऊसर क्षेत्र बढ़ने लगा। सिन्धु घाटी के पतन का यह भी एक प्रमुख कारण रहा होगा।
  3. कुछ लोगों के अनुसार यहाँ भूकम्प आने से बस्तियाँ समाप्त हो गयीं।
  4. कुछ दूसरे लोगों का कहना है कि यहाँ भीषण बाढ़ आ गयी और पानी जमा हो जाने के कारण भारी मात्रा में विस्थापन हुआ।
  5. एक विचार म ए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट टू यह भी माना जाता है कि सिन्धु नदी की धारा बदल गयी और सभ्यता का क्षेत्र नदी से दूर हो गया।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के पशुपालन व्यवसाय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का पशुपालन व्यवसाय –

  1. हड़प्पा स्थलों से प्राप्त अवशेषों से। ज्ञात होता है कि यहाँ के लोगों का एक मुख्य व्यवसाय पशुपालन का था।
  2. प्राप्त अवशेषों में भेड़, बकरी, भैंस तथा सुअर की हड्डियाँ मिली हैं। पुरा-प्राणिविज्ञानियों द्वारा किये गये अध्ययनों से संकेत मिलता है कि ये सभी जानवर पालतू थे।
  3. हड़प्पाई मुद्राओं पर वृषभ (बैल) का अंकन है। बैल का प्रयोग कृषि कार्यों में किया जाता था।
  4. जंगली प्रजातियों जैसे वराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियों मिली हैं। यह निश्चित नहीं है कि हड़प्पाई लोग इन जानवरों का स्वयं शिकार करते थे या इनका मांस अन्य शिकारी समुदाय के लोगों से प्राप्त करते थे।
  5. मछली तथा पक्षियों की हड्डियाँ भी मिली हैं। इससे पता चलता है कि वे इनका मांस भी खाते थे।

प्रश्न 16.
भारतीय सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति की क्या देन है? अथवा, सैन्धव सभ्यता अथवा हड़प्पा संस्कृति के उन तत्त्वों का वर्णन कीजिए जो आज भी भारतीय जीवन में परिलक्षित होते हैं।
उत्तर:
सैन्धव सभ्यता अथवा हड़प्पा संस्कृति की आधुनिक भारतीय जीवन को देन:
हड़प्पा संस्कृति में भारतीय जीवन के अनेक तत्त्व विद्यमान थे। भारतीय जीवन के हड़प्पा संस्कृति में दृष्ट कुछ तत्व निम्नलिखित हैं:

1. नगर विन्यास:
हड़प्पाई नगर एक निश्चित योजना के अनुसार बसाये गये थे । नगर में लम्बी चौड़ी सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटकर चौराहों का निर्माण करती थी । यह लक्षण आधुनिक जीवन में भी दिखाई पड़ते हैं।

2. मकान:
सैन्धव सभ्यता के लगभग प्रत्येक घर, सड़कों और गलियों के किनारे पर थे। भारतीय घरों में आज भी आँगन, स्नान-कक्ष तथा छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ ठीक वैसी ही दिखाई पड़ती हैं जैसी हड़प्पा संस्कृति के मकानों में रही होंगी। घरों में दरवाजों और खिड़कियों का प्रयोग आज भी होता है।

3. आभूषण एवं श्रृंगार प्रसाधन:
आधुनिक भारतीय स्त्रियों के समान हड़प्पा स्त्रियाँ आभूषण पहनती थीं और अधर-रंजक (Lipstick), उबटनों का लेपन और सुगंधित द्रव्य (Powder) आदि का प्रयोग करती थीं।

4. धार्मिक समानता:
आधुनिक भारतीय, सैन्धव निवासियों की तरह शिव, मातृदेवी, तथा पशु आदि की पूजा करते हैं।

प्रश्न 17.
सिन्धु घाटी की सभ्यता का अन्य सभ्यताओं से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए। अथवा, हड़प्पा संस्कृति और मेसोपोटामिया की सभ्यता का आपसी सम्बन्ध क्या है?
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति के स्थलों से प्राप्त अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहां के निवासियों का सम्बन्ध चीन, मिस्र, क्रीट और मेसोपोटामिया आदि के साथ भी था। ये अवशेष एक विकसित सभ्यता के समस्त लक्षणों को रखते हैं। हड़प्पा संस्कृति व मेसोपोटामिया से प्राप्त बर्तन और मोहरें स्पष्ट साक्ष्य हैं कि सिन्धु-घाटी की सभ्यता के लोगों (भारतीयों) का मेसोपोटामिया के साथ व्यापार संबंध था। केश-सज्जा की समानता भी दिखाई पड़ती है। मिस्र की सभ्यता के आभूषण इस सभ्यता से मिलते-जुलते हैं।

इन समानताओं के साथ असमानताएँ भी दिखाई देती हैं। नगर-विन्यास और स्थापत्य-कला (Architecture) की दृष्टि से हड़प्पा संस्कृति अन्य स्थानों की सभ्यताओं से उच्चकोटि की थी। हड़प्पाई लोग अध्यात्मिक और धार्मिक क्षेत्र में भी अन्य सभ्यताओं से आगे थे। हड़प्पा सभ्यता के धारणा-तत्व हिन्दु-धर्म से मेल खाते हैं।

प्रश्न 18.
हड़प्पा संस्कृति गृह स्थापत्य की प्रमुख विशेषतायें कौन-कौन सी थीं।
उत्तर:
गृह-स्थापत्य की विशेषतायें:

  1. प्रायः सभी घरों में आँगन होता या जिसके चारों ओर कमरे बने होते थे। आँगन का उपयोग खाना बनाने और सूत कातने जैसे कुटीर-उद्योगों को चलाने में होता था।
  2. लोग सम्भवतः एकांत को महत्त्व देते थे। भूतल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं। इसके अलावा मुख्य द्वार से आंतरिक भाग अथवा आँगन को सीधा नहीं देखा जा सकता था।
  3. प्रत्येक घर में ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानकक्ष होता था जिसकी नालियाँ सड़क की नालियों से जुड़ी होती थी।
  4. कुछ घरों में छत पर जाने के लिए सीढ़ियों के अवशेष मिले थे।
  5. कई आवासों में कुएँ। ये ऐसे कक्ष में बनाए गए थे जिसका मुँह सड़क की ओर खुलता था। इनमें दरवाजा नहीं रहता था अतः राहगीर इनसे जल ले सकते थे।

प्रश्न 19.
हड़प्पाई लोगों की सिंचाई व्यवस्था का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
सिंचाई व्यवस्था:

  1. अधिकांश हड़प्पा स्थल अर्द्ध-शुष्क या परिच्छाया क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ संभवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी।
  2. अफगानिस्तान के शोर्तुघई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परन्तु पंजाब और सिंध से नहीं मिले हैं। हो सकता है कि प्राचीन नहरें बाढ़ से भर गई हों।
  3. सम्भवतः कुँओं से भी सिंचाई होती होगी।
  4. जलाशयों से भी खेतों की सिंचाई की जाती थी। धौलावीरा (गुजरात) की खुदाई में एक जलाशय मिला है।

प्रश्न 20.
हड़प्पा सभ्यता में मनके किस प्रकार बनाये जाते थे?
उत्तर:
मनकों का निर्माण:

  1. हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन में मनकों का विशेष महत्त्व था। ये विभिन्न पदार्थों से बनाये जाते थे। इनमें कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग का), जैस्पर, स्फटिक, क्वार्टज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा, सोना, शंख, फयॉन्स, पकी मिट्टी आदि थे।
  2. कुछ मनके दो या उससे अधिक पत्थरों को आपस में जोड़कर बनाये जाते थे और कुछ स्वर्णजटित पत्थर के होते थे।
  3. मनके चक्राकार, बेलनाकार, गोलाकार, ढोलाकार तथा कुछ मनके सममिति रहित पाए गए हैं।
  4. कुछ मनकों में चित्र उत्कीर्ण है जबकि कुछ में केवल रेखाचित्र हैं।
  5. मिट्टी के मनकों को भाड़ में पकाया जाता था। पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और बारीकी से तराशकर अंतिम रूप दिया जाता था। यह कार्यविधि घिसाई, पालिश और इनमें छेद करने के साथ पूरी होती थी।

प्रश्न 21.
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की विशेषतायें –

  1. बस्ती दो भागों में विभाजित थी-एक भाग छोटा परन्तु ऊँचाई पर बनाया गया और दूसरा कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया। पुरातत्त्वविदों ने इन्हें क्रमश: दूकी और निचला शहर का नाम दिया है। दोनों बस्तियों को अलग-अलग दीवारों से घेर कर दूरी रखी गई थी।
  2. बस्ती का नियोजन करने के बाद ही उसके निर्माण का कार्य आरंभ किया जाता था। यह सभ्य लोगों की नियोजित बस्तियाँ थी।
  3. मकान धूप में सुखाई गई अथवा भट्टी में पकाई गई ईंटों के मिले हैं। इन ईंटों की लम्बाई, ऊँचाई की चार गुनी और चौड़ाई ऊँचाई की दुगुनी होती थी। इस प्रकार की ईंटें सभी हड़प्पाई बस्तियों में प्रयोग में लाई गई थीं।
  4. सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति (जालीनुमा) से बनाया गया था। ये एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी।
  5. उनके पार्श्व भागों में आवासों का निर्माण किया गया था।

प्रश्न 22.
अवतल चक्कियों के बारे में क्या जानते हैं?
उत्तर:
अवतल चक्कियाँ –

  1. इनमें चाक के नीचे वाला गोल पत्थर अंदर की ओर धंसा हुआ है।
  2. इनका प्रयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता था।
  3. ये चक्कियाँ प्रायः कठोर, उबड़-खाबड़, चकमक अथवा बलुआ पत्थर से निर्मित थीं।
  4. अवतल होने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इन्हें घर्षण के समय स्थिर रखने के लिए जमीन अथवा मिट्टी में जमाकर रखा जाता होगा।
  5. ये चक्कियाँ प्रायः दो प्रकार की हैं-एक वे हैं जिनमें एक बड़े शिला-खण्ड पर दूसरे छोटे टुकड़े को आगे-पीछे चलाया जाता होगा। नीचे के बड़े शिलाखण्ड का घिसने से अवतल होना इस तथ्य का प्रथम दृष्ट्या साक्ष्य है। दूसरी वे हैं जिनका प्रयोग केवल सालन या तरी बनाने के लिए जड़ी बूटियाँ तथा मसाले कूटने के लिए किया जाता था। इन्हें ‘सालन पत्थर’ भी कहा गया है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
हड़प्पा संस्कृति की विभिन्न विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति की मुख्य विशेषतायें –
1. काल:
इस सभ्यता में प्रचलित भाषा आज तक नहीं पढ़ी जा सकी अतः इस सभ्यता का सही काल-क्रम निश्चित करने के लिए हमें दूसरे देशों में पाए जाने वाली सभ्यताओं पर निर्भर रहना पड़ता है। बेबीलोन और मेसोपोटामिया में ठीक सिन्धु-घाटी की सभ्यता के भग्नावशेषों से प्राप्त कुछ बर्तन और मोहरें मिली हैं। इन देशों की प्राचीन सभ्यता का काल ईसा से लगभग 3000 वर्ष पहले का माना जाता है। इसलिए यह सभ्यता आज से 500 वर्ष पहले की मानी गई है।

सिन्धु घाटी की खोजों से पता चलता है कि उस समय लोग प्रायः नगरों में रहते थे। डॉ. वी. डी. पुलस्कर के अनुसार मोहनजोदड़ो की खुदाई में सात संस्त प्राप्त हुए हैं। इनके आधार पर इस सभ्यता को 3250 से 2750 और 220 सा०यु०पू० के मध्य की सभ्यता माना जाता है। इन स्तरों में तीन स्तर उत्तरकालीन तीन मध्यकालीन और एक प्राचीन है। सम्भवतः यहाँ और भी प्राचीन स्तर रहे हों परन्तु वे पाताल या जल के गर्त में विलीन हो गये हैं। ज्ञात स्तरों में प्रत्येक के लिए 500 वर्ष की अवधि निश्चित की गयी है। इस आधार पर सिन्धु-घाटी की सभ्यता का जीवन काल निकालने का प्रयास किया गया है। कार्बन-विधि से भी इसकी तिथि निकालने का प्रयास किया गया है। समस्त आधारों पर कहा जा सकता है कि इस सभ्यता का प्रारम्भ 2800 सा०यु०पू० से 2200 सा०यु०पू० तक हुआ होगा। यह भी माना जाता है कि इस सभ्यता का प्रारम्भ बहुत पहले रहा होगा। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का विकसित जन-जीवन निश्चित रूप से शताब्दियों के क्रमिक प्रयास का फल रहा होगा। इस प्रकार इस सभ्यता को आज से 5009 वर्ष पूर्व का माना जा सकता है।

2. नगर निर्माण योजना:
स्थलों के उत्खनन दर्शाता है कि उस समय के लोग नगरों में रहते थे। डॉ. पुलस्कर के अनुसार मोहनजोदड़ो में जाने वाले व्यक्ति उनके नगर निर्माण को देखकर चकित रह जाते होंगे। इन खण्डहरों में आकर ऐसा प्रतीत होता है कि हम लंकाशायर के किसी आधुनिक नगर में खड़े हैं। नगर का निर्माण सुनियोजित है। डॉ. मैले ने इस सम्बन्ध में लिखा है –

“It is interesting to note that these ancient cities of the Indus and earliest yet disocovered had a scheme of town planning existed.”

नगर में बड़ी-बड़ी सड़कें थी जो एक-दूसरे से मिलकर आधुनिक सड़कों जैसे चौराहे (crossing, roundabout) बनाती थी। मैके के विचार में यह सड़कें और गलियाँ इस प्रकार बनी हुई थीं कि आने वाली वायु एक कोने से दूसरे कोने तक शहर को स्वयं साफ कर दे। यह कहना कठिन है कि शहर की सफाई एक व्यक्ति के हाथ में थी अथवा एकाधिक के, परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इस सभ्यता जितनी नागरिक सुख-सुविधाएँ अन्य किसी भी प्राचीन सभ्यता में नहीं दिखाई दी है। गलियों में रोशनी का विशेष प्रबंध था। शहर की गन्दगी को शहर से बाहर खाइयों में फेंका जाता था। आजकल की तरह ये लोग जल निष्कासन की सुव्यवस्थित और वैज्ञानिक पद्धति का ज्ञान रखते थे। उन्होंने यह नालियाँ खड़िया-मिट्टी, चूने और एक प्रकार के सीमेंट से बनाई थी। वे अपनी नालियों को ऊपर से खुली नहीं छोड़ते थे। वर्षा का पानी शहर से बाहर जाने के लिए एक बड़ा नाला बनाया गया था। सिन्धु घाटी के निवासियों की जल-निष्कासन व्यवस्था से यह पता चलता है कि वे सफाई का विशेष ध्यान रखते थे।

3. भवन-निर्माण कला:
सिन्धु घाटी की खुदाई करने से यह पता चलता है कि उस काल में एक कमरे के मकान से लेकर बड़े-बड़े भवन तक बनाये जाते थे। यह भवन प्रायः तीन प्रकार के होते थे –

  • आवास-गृह
  • पूजा गृह या बैठक-कक्ष (Drawing Room)
  • सार्वजनिक स्नानागार।

प्रायः पक्की ईंटों और मिट्टी के बने विभिन्न आकार-प्रकार के मकान मिले हैं। मकान कई तलों के होते थे। ऊपर जाने के लिए प्रायः सीढ़ियों का प्रयोग किया जाता था। मकानों में हवा और धूप जाने के लिए रोशनदान तथा दरवाजों का प्रयोग किया जाता था। प्रत्येक घर में रसोई घर व स्नानागृह होता था। दूसरे प्रकार के भवन को पूजा गृह या बैठक कक्ष जाना जाता था जो राज-काज चलाने के प्रयोग में आते थे। तीसरे प्रकार के भवन सार्वजनिक स्नानागार थे। इनमें सम्भवतः सबसे बड़ा स्नानागार मोहनजोदड़ो में था। प्राचीन काल में ऐसे जलाशयों के चारों ओर बरामदे तथा कमरों का विशेष प्रबन्ध था। तालाब में उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थी। गंदा पानी बाहर निकालने के लिए नालियाँ बनी थी । हजारों वर्ष से आजतक यह तालाब अपने जीवन्त रूप में है। इस विषय में डॉ. मुखर्जी का कहना है –

“The construction of such a swimming bath reflects great crediton engi neering of those days.”

4. शिल्प एवं तकनीकी:
भवन-निर्माण कला के अतिरिक्त सिन्धु घाटी के लोगों ने मूर्तिकला, नक्काशी की कला, मिट्टी के बर्तन बनाने की कला तथा चित्रकला में विशेष उन्नति कर रखी थी। मूर्तिकला की यहाँ जो मनुष्यों तथा पशुओं की मूर्तियाँ मिली हैं उनसे स्पष्ट होता है कि सिन्धु-घाटी के लोग मूर्तिकला में बड़े चतुर थे। बहुत-सी मोहरों पर जोकि खुदाई से प्राप्त हुई हैं, बड़े सुन्दर ढंग से और विभिन्न प्रकार के चित्र खुदे हैं। सांड, बैल, बारहसिंगा तथा हाथी जैसे पशुओं के चित्र उकेरे गए हैं । मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा के लोगों ने तरह-तरह के मिट्टी ” के बर्तन बनाए हैं जिन्हें आज की भाँति रोगन तथा पालिश करके रखा जाता था। यह पालिश किये हुए बर्तन संसार में मृदा-शिल्प का एक बेजोड़ नमूना है।

5. लेखन कला:
मिस्र और सुमेरिया की भाँति सिन्धु घाटी के लोग भी लेखन कला की जानकारी नहीं रखते थे। उनकी मुद्राओं में जहाँ मनुष्य और विभिन्न पशुओं के चित्र थे, वहीं कुछ लेख भी अंकित हैं। 400 से अधिक संकेतों वाली चित्रलिपि प्राप्त हुई है। इस लिपि को कई वर्षों तक पढ़ने का प्रयत्न किया गया लेकिन अभी तक कोई सफल नहीं हो सका। मिस्त्र और सुमेरिया की चित्र-लिपि पढ़ी जा चुकी है अत: उम्मीद की जाती है कि सिन्धु-घाटी की लिपि का रहस्य भी एक-न-एक दिन खुल जाएगा।

6. कृषि तथा उद्योग:
सिन्धु-घाटी के निवासियों का भोजन बहुत ही सादा था। वे गेहूँ, जौ और दूध से बनी हुई चीजों का अधिक प्रयोग करते थे। सब्जियाँ भी उनके भोजन का प्रमुख अंग थीं। उनका सबसे मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी था। अधिकतर जौ या गेहूँ की खेती की जाती थी। उनका दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुओं को पालना था। पालतू पशुओं में बैल, बकरी, सूअर, भैंस तथा ऊँट और जंगली जानवरों में बंदर, रीछ, खरगोश, हिरण और गेंडा मुख्य पशु थे। उनका तीसरा मुख्य व्यवसाय कपड़े तैयार करने का था। आभूषण बनाना, मिट्टी के बर्तन बनाना और व्यापार करना आदि भी उनके मुख्य व्यवसायों में से थे। खुदाई में जो अनेक बाट प्राप्त हुए हैं उनसे सिन्धु-घाटी के लोगों की व्यापारप्रियता स्पष्ट झलकती है। उन लोगों का व्यापार भारत तक सीमित न रहकर विदेशों तक फैला हुआ था। जल और स्थल दोनों मार्गों से सुमेरिया और बेबीलोन आदि दूर-दूर के देशों के साथ भी व्यापार किया जाता था।

7. धर्म:
प्राप्त उपकरणों से ज्ञात होता है कि सिन्धु नदी की घाटी के निवासी मूर्तिपूजक थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में एक स्त्री के बहुत-से चित्र प्राप्त हुए हैं। उसकी कमर में एक करधनी बंधी है और सिर के ऊपर भी वह कुछ पहने हुए है। अनुमान है कि ये सब पृथ्वी माता के चित्र होंगे। उसकी पूजा संसार के एक विस्तृत क्षेत्र में होती है। यह भी कहा जाता है कि यह काली देवी का आरंभिक या आदि स्वरूप है। इसके अतिरिक्त एक देव की मूर्ति भी मिली है। इसके तीन मुख हैं और वह योगासन में बैठी है जिसके सिर पर विस्तृत प्रसाधन थे।

प्रश्न 2.
हड़प्या सभ्यता और आर्य सभ्यता में तुलना कीजिए। अथवा, हड़प्पा सभ्यता और आर्य सभ्यता में क्या अंतर है?
उत्तर:
हड़प्पा की सभ्यता एवं आर्य सभ्यता (Harappan Civilization and Aryan Civilization):
हड़प्पा के लोग उतने ही भारतीय हैं जितने कि आर्य सभ्यता के लोग। अब यह स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि इस सभ्यता का आर्य सभ्यता से क्या सम्बन्ध है? कुछ इतिहासकारों ने यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि हड़प्पा की सभ्यता भी आर्य सभ्यता की ही एक शाखा है परन्तु ऐसा करने में उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली है। वास्तव में हड़प्पा की सभ्यता और आर्य सभ्यता में कुछ ऐसी असमानताएँ हैं जो आसानी से भुलाई नहीं जा सकती जैसे:

  1. दोनों सभ्यताओं में पहला अन्तर यह है कि आर्य प्रायः ग्रामीण थे जबकि सिन्धु घाटी के लोग शहरी थे।
  2. दूसरा बड़ा अन्तर यह है कि हड़प्पा के निवासी शान्ति-प्रिय थे। वे तलवार, कवच और शिरस्त्राण से अपरिचित थे जबकि आर्य शूरकर्मा थे और प्रायः युद्ध में उलझे रहते थे। वे आक्रमण करने और आक्रमण से बचने की रणनीतियों से भली प्रकार परिचित थे।
  3.  तीसरा अन्तर यह है कि घोड़ा, जो आर्यों के आर्थिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग था, हड़प्पा के लोगों के लिए इतना महत्त्व नहीं रखता था और सम्भवतः वे इससे लगभग अपरिचित थे।
  4. चौथा अन्तर यह है कि आर्य लोग गाय को पवित्र मानते थे जबकि हड़प्पा के लोगों ने यह स्थान सांड (Bull) को दे रखा था।
  5. पाँचवा मुख्य अन्तर यह है कि हड़प्पा के लोग मूर्तिपूजक थे और शिव तथा अधिष्ठात्री देवी (Mother Goddess) उनके आराध्य थे। आर्य मूर्तिपूजा से अपरिचित थे। वे प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूपों की उपासना करते थे।
  6. छठा बड़ा अन्तर यह है कि हड़प्पा के लोग घरेलू खेलों जैसे नाच व गाने को, तथा आर्य बाहर के खेलों जैसे शिकार और रथ दौड़ाना इत्यादि को अधिक महत्त्व देते थे। इन तर्कों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आर्य सभ्यता हड़प्पा की सभ्यता से भिन्न थी जिसमें द्रविड़ सभ्यता के लक्षण थे।

यद्यपि आर्य सभ्यता और हड़प्पा की सभ्यता दो भिन्न सभ्यताएँ थी फिर भी बहुत-से इतिहासकारों के अनुसार हड़प्पा के लोगों से आर्य लोग परीचित थे –

  1. ऋग्वेद में आर्यों के जिन विपक्षियों का उल्लेख है, वे वास्तव में हड़प्पा के लोगों की ओर संकेत करते हैं।
  2. आर्य ग्रन्थों में भगवान इन्द्र को नगरों का नाश करने वाला कहा गया है। आर्यों के नगर नहीं थे, इसलिए सम्भव है कि ये नगर हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने बसाए होंगे।
  3. ऋग्वेद में चपटी नाक और काले रंग वाले लोगों का उल्लेख है। वे अवश्य ही हड़प्पा में रहने वाले लोग होंगे।
  4. भेड़, बकरी, गाय, बैल और कुता आदि पशु जो आर्य तथा हड़प्पा के लोग दोनों पालते थे। इससे स्पष्ट होता है कि आर्य लोग तथा हड़प्पा के लोग साथ-साथ रहे या आर्य कुछ समय बाद में आए होंगे किन्तु उन दोनों के बीच परिचय अवश्य था।
  5. सोना, चाँदी जैसी धातुओं की जानकारी आर्य तथा हड़प्पा के लोगों को समान रूप से थी। अँगूठी और गले का हार दोनों लोग एक जैसे बनाते थे।
  6. स्त्रियों की वेशभूषा का ढंग लोगों का एक जैसा जान पड़ता है। इन बातों से सिद्ध होता है कि दोनों सभ्यताओं में कुछ मेल अवश्य था।

प्रश्न 3.
हड़प्पाई समाज पर प्रकाश डालिए। अथवा, हड़प्पा संस्कृति के सामाजिक जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक जीवन-प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा संस्कृति के सामाजिक जीवन के विषय में निम्नलिखित जानकारी मिलती है –

1. सामाजिक गठन:
सैन्धव सभ्यता का समाज निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित था (क) विद्वान: इस वर्ग में पुरोहित, वैद्य, ज्योतिषी आते थे। (ख) योद्धा: इस वर्ग में सैनिक तथा राजकीय अधिकारी आते थे। (ग) व्यवसायी: इस वर्ग में व्यापारी और अन्य धंधों में लगे लोग आते थे। (घ)श्रमजीवी: इस वर्ग में घरेलू नौकर एवं मजदूर लोग आते थे।

2. भोजन:
हड़प्पा संस्कृति के लोगों का भोजन सादा और पौष्टिक था। उनके भोजन में गेहूँ, चावल, खजूर, फल, सब्जियाँ, दूध, दुग्ध पदार्थ, मिठाई, मांस और मछली आदि की प्रधानता थी। खुदाई में सिल-बट्टे भी मिले हैं। सम्भवतः ये लोग चटनी तथा स्वादिष्ट भोजन खाने के शौकीन थे।

3. वस्त्र:
सैन्धव सभ्यता के लोग ऋतुओं के अनुसार सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के कपड़ों का प्रयोग करते थे। कहा जाता है कि कपास की उत्पत्ति सबसे पहले भारत में ही हुई। प्राप्त मूर्तियों तथा खिलौनों से यह अनुमान लगाया जाता है कि ये साधारण ढंग से कपड़े पहनते थे। पुरुष प्रायः शाल की तरह का वस्त्र शरीर पर लपेटते थे। ऐसा लगता है कि शरीर के ऊपरी और निचले भाग को ढकने के लिए दो प्रकार के वस्त्र पहनते होंगे। सम्भवतः स्त्रियाँ तथा पुरुषों के वस्त्रों में कोई विशेष अन्तर नहीं होता था। इस सभ्यता से प्राप्त अनेक नग्न मूर्तियों के आधार पर कहा जा सकता है कि वहाँ के लोग नग्न भी रहते होंगे। हड़प्पा की खुदाई से प्रमाणित होता है कि औरतें सिर पर एक विशेष प्रकार का वस्त्र पहनती थीं जो पीछे की ओर पंख की तरह उठा रहता था।

4. आभूषण, केश- शृंगार तथा सौंदर्य प्रसाधन:
सिन्धु घाटी सभ्यता के स्त्री-पुरुष दोनों ही आभूषणों के बड़े शौकीन थे। हार, भुजबंद, कर-कंगन और अंगूठी स्त्री-पुरुष दोनों पहनते थे। गरीब लोगों के आभूषण तांबे, अस्थि और सीप आदि के बने होते थे। त्रियों में लम्बे-लम्बे बाल रखने, माँग भरने तथा जूड़ा बाँधने की प्रथा थी। पुरुष छोटी दाढ़ी और मूंछे रखते थे। स्त्रियाँ होठों पर लाली (Lipstick) तथा चेहरे पर पाउडर (Powder) लगाती थीं । वे काजल, सुरमा और सिन्दूर का भी प्रयोग करती थीं।

5. आमोद-प्रमोद:
सिन्धु घाटी के लोग नाच-गाने के बड़े शौकीन थे। घर में खेले जाने वाले खेलों (Indoor Game) का अधिक प्रचलन था। ये लोग शिकार और जुआ खेलने के बड़े शौकीन थे। पासा खेलना और पशु पक्षी आदि उनके मनोरंजन के अन्य प्रमुख साधन थे। बच्चों के मन-बहलाव के लिए खिलौने, झुनझुने, सीटियाँ, बैलगाड़ी के छोटे नमूने आदि होते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किस पत्थर की मुहरें बनाई जाती थीं?
(अ) सेलखड़ी पत्थर
(ब) लाल पत्थर
(स) बलुआ पत्थर
(द) काला पत्थर
उत्तर:
(अ) सेलखड़ी पत्थर

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के अवशेष कहाँ से नहीं मिले हैं?
(अ) अफगानिस्तान
(ब) जम्मू
(स) बलूचिस्तान
(द) केरल
उत्तर:
(द) केरल

प्रश्न 3.
भारतीय पुरातत्त्व का जनक किसको माना जाता है?
(अ) जान मार्शल
(ब) दयाराम साहनी
(स) जनरल अलैक्जेंडर कनिंघम
(द) ह्वीलर
उत्तर:
(स) ह्वीलर

प्रश्न 4.
मोहनजोदड़ो में कितने कुएँ मिले हैं?
(अ) 400
(ब) 500
(स) 600
(द) 700
उत्तर:
(द) 700

प्रश्न 5.
दुर्ग में स्थित मालगोदाम किसका बना था?
(अ) ईंटों का
(ब) ईंट और लकड़ी दोनों का
(स) पत्थर
(द) लकड़ी का
उत्तर:
(ब) ईंट और लकड़ी दोनों का

प्रश्न 6.
शवाधानों में निम्नलिखित कौन-सी वस्तु नहीं है?
(अ) मनके
(ब) आभूषण
(स) ताँबे के दर्पण
(द) ताँबे के घड़े
उत्तर:
(द) ताँबे के घड़े

प्रश्न 7.
शंख से क्या नहीं बनता था?
(अ) मनके
(ब) चूड़ियाँ
(स) करछियाँ
(द) पच्चीकारी की वस्तुएं
उत्तर:
(अ) मनके

प्रश्न 8.
गठोश्वर-जोधपुरा संस्कृति कहाँ पनपी थी?
(अ) पंजाब
(ब) राजस्थान
(स) गुजरात
(द) महाराष्ट्र
उत्तर:
(ब) राजस्थान

प्रश्न 9.
हड़प्पा लिपि के कितने चिह्न मिले हैं?
(अ) 100 से 150 तक
(ब) 150 से 200 तक
(स) 200 से 250 तक
(द) 375 से 400 तक
उत्तर:
(द) 375 से 400 तक

प्रश्न 10.
हड़प्पा सभ्यता का अंत कब हुआ?
(अ) 1600 सा०यु०पू० में
(ब) 1700 सा०यु०पू० में
(स) 1800 सान्यु०पू० में
(द) 2000 सा०यु०पू० में
उत्तर:
(स) 1800 सान्यु०पू० में


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