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Saturday, June 18, 2022

BSEB Class 12 History Kings and Chronicles The Mughal Courts Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Kings and Chronicles The Mughal Courts Book Answers

BSEB Class 12 History Kings and Chronicles The Mughal Courts Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Kings and Chronicles The Mughal Courts Book Answers
BSEB Class 12 History Kings and Chronicles The Mughal Courts Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Kings and Chronicles The Mughal Courts Book Answers


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Bihar Board Class 12th History Kings and Chronicles The Mughal Courts Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 12th
Subject History Kings and Chronicles The Mughal Courts
Chapters All
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Bihar Board Class 12 History राजा और विभिन्न वृतांत : मुगल दरबार Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया:
16-17 वीं शताब्दियों में पांडुलिपि तैयार करने के लिए एक किताब खाना बनाया गया था। यह ऐसा स्थान था जहाँ सम्राट की पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता था तथा नई पांडुलिपियों की रचना की जाती थी। इनके रचना कार्य में अनेक लोग शामिल होते थे। जैसे-कागज तैयार करने वाले, सुलेखन करने वाले, चित्रकारी करने वाले, पृष्ठों को चमकाने वाले (कोफ्तगर) तथा जिल्दसाज आदि। पांडुलिपि तैयार करने वालों को सम्राट पदवियाँ और पुरस्कार देता था। पांडुलिपि के सुलेखन पर विशेष ध्यान ‘दिया जाता था। नस्तलिक सुलेखन शैली को विशेष वरीयता दी गई।

प्रश्न 2.
मुगल दरबार से जुड़े दैनिक कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह के बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा?
उत्तर:
मुगल दरबार से जुड़े दैनिक कर्म और विशेष उत्सवों के दिन-मुगल दरबार वह स्थान था जहाँ सिंहासन या तख्त यह आभास कराता था कि इस पर सम्पूर्ण धरती टिकी है। यह निम्नलिखित बातों से स्पष्ट है –

  • इतिवृत्तों में संभ्रांत मुगल वर्गों के बीच हैसियत को निर्धारित करने वाले नियमों को स्पष्टता से प्रकट किया गया है।
  • दरबार में सम्राट के निकटवर्ती ही उसके निकट बैठते थे। दरबारी समाज में मान्य संबोधन, शिष्टाचार तथा बोलने के नियम ध्यानपूर्वक निर्धारित किये गये थे। शिष्टाचार उल्लंघन पर कठोर दण्ड दिया जाता था।
  • दरबार में अभिवादन पदानुक्रम के अनुसार विभिन्न प्रकार का होता था। जिस व्यक्ति के सामने अधिक झुककर अभिवादन किया जाता था, उस व्यक्ति की हैसियत उतनी ही अधिक ऊँची मानी जाती थी। यहाँ तक कि राजनयिक दूत भी झुककर ही सम्राट को अभिवादन करता था।
  • शाही सत्ता की स्वीकृति को अधिक विस्तृत करने के लिए अकबर ने झरोखा दर्शन की प्रथा शुरू की। सूर्यास्त के समय व्यक्तिगत धार्मिक प्रार्थनाओं के पश्चात् सम्राट पूर्व की ओर मुँह किये एक झरोखा के सामने आता था। झरोखा दर्शन एक घंटे का होता था।
  • शाही परिवारों के उत्सव और विवाह धूमधाम से होते थे और लोग खूब उपहार देते थे। कहा जाता है कि दाराशिकोह और नादिरा के विवाह में 32 लाख रुपये खर्च हुए थे।

प्रश्न 3.
मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्याँकन कीजिए।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका:

  • भारतीय उपमहाद्वीप में विशेषकर शासक वर्गों में बहु विवाह प्रथा प्रचलित थी। इससे मुगल सम्राटों को कुछ सीमा तक लाभ हुआ। मुगल सम्राटों ने राजपूत घरानों में शादियाँ की जिससे उन्हें राजपूतों का समर्थन मिला और अपने विशाल साम्राज्य की सुरक्षा की। यद्यपि मुगल राजाओं की विभिन्न पत्नियों का दर्जा अलग-अलग था परंतु सबने एक अच्छी पत्नी की भूमिका निभाई।
  • पत्नियों के अतिरिक्त मुगल परिवार में अनेक महिला तथा पुरुष गुलाम थे । ये छोटे काम से लेकर कौशल, निपुणता तथा बुद्धिमता के अलग-अलग कार्यों का संपादन करते थे।
  • नूरजहाँ के पश्चात् मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर नियंत्रण रखना शुरू कर दिया।
  • मुगल साम्राज्य की स्त्रियों ने इमारतों और बागों के निर्माण में भी रुचि ली थी। उदाहरण के लिए-चाँदनी चौक की रूपरेखा जहाँआरा द्वारा बनाई गई।
  • अनेक पारिवारिक संघर्षों को सुलझाने में परिवार की बुजुर्ग स्त्रियों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी। हुमायूँनामा में इसकी स्पष्ट झलक मिलती है।

प्रश्न 4.
वे कौन से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान करने वाले मुद्दे –
1. साम्राज्य की सुरक्षा:
बाहरी क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों का मुख्य उद्देश्य साम्राज्य की सुरक्षा का था। सभी मुगल सम्राटों ने सीमा की सुरक्षा के लिए कई प्रकार की व्यवस्थाएँ की। सीमा रक्षण के लिए उन्होंने अन्य देशों के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किये।

2. व्यापारिक लाभ:
मुगल बादशाह अपनी आर्थिक स्थिति को विदेशी व्यापार बढ़ा कर मजबूत बनाने की दिशा में तत्पर थे। उन्होंने काबुल और कंधार को इसी दृष्टिकोण से अपने अधीन रखने का प्रयास किया।

3. समानता:
मुगलों ने अपनी विदेश नीति में समानता और निष्पक्षता को महत्त्व दिया । उन्होंने सभी देशों को समान महत्त्व दिया। उन्होंने धर्म और जाति को महत्त्व नहीं दिया।

4. शक्ति सन्तुलन:
मुगल बादशाह विश्व में शक्ति संतुलन कायम करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने बाहरी क्षेत्रों के प्रति अपने को पूर्ण स्वतंत्र रखा। तुर्कों और उज्वेकों ने जाति के आधार पर संगठन बनाने का प्रयास किया। इससे शान्ति संतुलन बिगड़ सकता था और अशान्ति उत्पन्न हो सकती थी। यही कारण था कि मुगल सम्राटों ने बल प्रयोग करके उन्हें ऐसा करने से रोका था।

प्रश्न 5.
मुगल प्रांतीय प्रशासन के मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। केन्द्र किस तरह से प्रान्तों पर नियंत्रण रखता था।
उत्तर:
मुगल प्रांतीय प्रशासन के मुख्य अभिलक्षण एवं केन्द्र द्वारा प्रान्तों पर नियंत्रण:
प्रान्तीय शासन:
अकबर के समय में मुगल साम्राज्य का काफी विस्तार हो जाने के कारण एक केन्द्र से सारे देश का शासन चलाना कठिन था। शासन की सुविधा के लिए अकबर ने अपने साम्राज्य को 15 प्रान्तों में बाँट दिया। जहाँगीर के शासन काल में 17, शाहजहाँ के शासन काल में 22, और औरंगजेब के शासन काल में इन प्रान्तों की संख्या बढ़कर 23 तक पहुँच गई थी। प्रान्तीय शासन-व्यवस्था का आधार केन्द्रीय शासन-व्यवस्था ही थी। इसलिए सर यदुनाथ ने लिखा है कि “प्रान्तीय शासन केन्द्रीय सरकार के सदृश्य उसका ही एक छोटा रूप था।”

प्रान्तीय अधिकारी:

1. सूबेदार:
यह प्रान्त का सबसे बड़ा अधिकारी था। इसको सिपहसालार या नाजिम भी कहते थे। इसकी नियुक्ति सम्राट् स्वयं करता था। यह प्रायः एक उच्च मनसबदार होता था। राज परिवार के सदस्य या विश्वासपात्र को ही इस पद पर नियुक्त किया जाता था। यह प्रान्त में सेना तथा नागरिक प्रशासन का अध्यक्ष होता था। इसके प्रमुख कार्य इस प्रकार थे-(क) यह प्रान्त की सेना का प्रधान सेनापति था। यह अपने प्रान्त में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना करता था। (ख) यह अपने प्रान्त के लोगों से शाही आदेश का पालन कराता था। (ग) प्रान्तों के लोगों की सुख-सुविधा का ध्यान रखता था।

2. प्रान्तीय दीवान:
यह प्रान्त के वित्त विभाग का मुखिया था। इसकी नियुक्ति दीवान-ए-आला की सलाह से स्वयं सम्राट करता था। यह प्रान्त का भूमि-कर इकट्ठा करने और प्रान्त के आय-व्यय का हिसाब दीवान-ए-आला के पास भेजने के लिए जिम्मेदार था। यह दीवानी मुकदमों का फैसला भी करता था। यह प्रान्त के माल विभाग की निगरानी भी करता था। प्रान्तों ने दोहरा शासन था। दीवान माल विभाग का मुखिया था। वह अपने काम के लिए सूबेदार के प्रति नहीं बल्कि दीवान-ए-आला के प्रति उत्तरदायी था। इस तरह सूबेदार और दीवान एक-दूसरे के काम पर निगाह रखते थे। इससे केन्द्र सरकार दोनों पर निगरानी रख सकती थी।

3. प्रान्तीय बख्शी-मीर बख्शी की सिफारिश से प्रान्त में बख्शी की नियुक्त स्वयं सम्राट करता था। इसका काम प्रान्त को सेना की भर्ती, तरक्की और तब्दीली आदि था। यह खजाने का अधिकारी था इसलिए वेतन बाँटना भी इसका कार्य था।

4. सदर और काजी-प्रान्त का सदर मुख्य सदर की सलाह से चुना जाता था। इसका काम विद्वानों, फकीरों और स्कूलों को आर्थिक सहायता और भूमि आदि देना था। काजी प्रान्त का मुख्य न्यायाधीश था। प्रायः सदर और काजी एक ही व्यक्ति होता था।

5. वाकियानवीस:
यह प्रान्त के गुप्तचर विभाग का अध्यक्ष था। यह समय-समय पर प्रान्त के अधिकारियों के कार्यों के बारे में केन्द्र सरकार को रिपोर्ट भेजता था।

6. कोतवाल:
प्रान्तों की राजधानियों और बड़े-बड़े नगरों में केन्द्र सरकार की ओर से कोतवाल नियुक्त किये जाते थे। कोतवाल पुलिस अधिकारी होता था। उसका काम नगर में शान्ति बनाए रखना था। वह बाजारों और मण्डियों की भी निगरानी करता था। वह व्यापारियों और नगर में आने वाले विदेशियों पर भी निगाह रखता था । वह लोगों की सेहत और सफाई के प्रबंध का भी ध्यान रखता था।

स्थानीय प्रशासन-
(क) सरकार का प्रबंध: प्रशासन की सहूलियत के लिए प्रान्तों को सरकारों या जिलों में बाँटा गया था। सरकार के प्रमुख अधिकारी निम्नलिखित थे –

  1. फौजदार: फौजदार सरकार का मुख्य सैनिक अधिकारी था। वह अपने इलाके में शान्ति और अनुशासन बनाए रखता था।
  2. आमिल-गुजार: आमिल-गुजार सरकार के अर्थ विभाग का अध्यक्ष था। वह भूमि-कर इकट्ठा करता था।
  3. बितीकची: यह आमिल-गुजार का सहायक था। यह मालगुजारी का हिसाब-किताब रखता था।
  4. खजानेदार: यह भी माल विभाग का अधिकारी था। यह भूमि-कर वसूल करके सरकारी खजाने में जमा कराता था। खजाने की एक चाबी उसके पास और दूसरी आमिल-गुजार के पास होती थी।

(ख) परगने और गाँव का प्रबंध:
प्रत्येक स्थानीय सरकार को परगनों (तहसीलों) और परगनों को गाँवों में बाँटा गया था। परगने के प्रमुख अधिकारी इस प्रकार थे:

  1. शिकदार: यह परगने का मुख्य अधिकारी था। इसका कार्य परगने में शान्ति और अनुशासन बनाए रखना था।
  2. आमिल: यह परगने के माल विभाग का मुखिया था।
  3. पोतदार: यह परगने से वसूल किये गए करों को खजाने में जमा कराता था।
  4. कानूनगो: यह योग्य भूमि और भूमि-कर का रिकार्ड रखता था और पटवारियों पर निगरानी भी रखता था।

गाँव स्थानीय प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी। गाँव का मुखिया या मुकद्दम गाँव में किसानों से लगान इकट्ठा करता था और चौकीदार की सहायता से शान्ति बनाए रखता था। गाँव का पटवारी भूमि-कर का हिसाब लिखता था। गाँव की पंचायत गाँव के छोटे-मोटे झगड़ों का निपटारा करती थी।

प्रश्न 6.
उदाहरण सहित मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षण:
1. मुगल वंश की उत्पत्ति:
यद्यपि मुगल शब्द एक साम्राज्य की भव्यता को प्रकट करता है परंतु इसकी उत्पत्ति मंगोल से हुई है। मंगोल एक बर्बर जाति थी, इसलिए संभवतः राजवंश के शासकों ने इस शब्द का प्रयोग नहीं किया और अपने को तैमूरी कहा, क्योंकि उनका पिता तैमूर के वंश से सम्बन्धित था। माँ चंगेज खाँ की बहिन थी। 16 वीं शताब्दी के भारतीय शासकों का वर्णन करने के लिए अंग्रेजों ने मुगल शब्द का प्रयोग किया।

2. जहीरुद्दीन बाबर:
मुगल साम्राज्य का शासक जहीरुद्दीन बाबर फरगना (मध्य एशिया) का रहने वाला था। उजबेकों द्वारा भाग दिए जाने के बाद वह काबुल आया और फिर 1526 ई. में भारत आया। 1530 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।

3. हुमायूँ:
बाबर की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र हुमायूँ गद्दी पर बैठा। 1540 ई. में अफगान शासक शेरशाह से पराजित होने के पश्चात् उसको ईरान के सफावी शासक के दरबार में निर्वासित जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ा। 1555 में पुनः भारत आकर सूरी वंश के शासकों को हराकर शासक बना परंतु 1556 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

4. जलालुद्दीन अकबर:
पिता की मृत्यु के पश्चात् अकबर सत्तासीन हुआ। उसने 1605 ई. तक शासन किया। वह मुगलवंश में सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक माना जाता है। उसने मुगल साम्राज्य का विस्तार भी किया और उसे मजबूत भी बनाया। उसने ईरान के सफावियों और तूरान (मध्य एशिया) के उजबेकों को काबू में रखा।

5. अकबर के पश्चात् उसके तीन उत्तराधिकारी:
जहाँगीर (1605-27) शाहजहाँ (1627-58) और औरंगजेब (1658-1707) हुए। इनके अधीन साम्राज्य विस्तार जारी रहा।

6. 16.17 वीं सदियों में प्रशासकीय संस्थाओं का निर्माण हुआ। इनमें प्रशासन और कराधान प्रभावशाली थे। केन्द्रीय शक्ति मुगल दरबार में निहित थी और यही से श्रेणियों और हैसियतों का निर्धारण होता था। 1707 ई. में अंतिम शक्तिशाली सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् भुगल साम्राज्य का पतन होने लगा और उसका राज्य क्षेत्र सीमित होता चला गया। क्षेत्रीय शक्तियाँ हावी होने लगी। फिर भी 1857 तक मुगलों का शासन येन-केन-प्रकारेण चलता रहा।

प्रश्न 7.
इस अध्याय में दी गई दृश्य सामग्री किस हद तक अबुल फज्ल द्वारा किए गए ‘तसवीर’ के वर्णन (स्रोत 1) से मेल खाती है?
उत्तर:
इस अध्याय में दी गई दृश्य सामग्री बहुत सीमा तक अबुल फज्ल द्वारा किए गए ‘तसवीर’ के वर्णन से मेल खाती है –

  • किसी भी वस्तु का सादृश्य रेखांकन ही तसवीर कहलाता है। यह बात अध्याय में दी गई दृश्य सामग्री से सुस्पष्ट है।
  • अबुल फज्ल के अनुसार अकबर ने चित्रकारी में अधिक रुचि ली थी और मेहनत की। उसने पाण्डुलिपि तैयार करने के लिए ‘किताबखाना’ की स्थापना की जिसमें अनेक लोग कार्य करते थे। पाठ्य पुस्तक चित्र 9.4 में इसका स्पष्ट निरूपण है। वह चित्रों का निरीक्षण कर रहा है और चित्रकार को सलाह दे रहा है।
  • ब्यौरे की सूक्ष्मता, परिपूर्णता और प्रस्तुतीकरण की निर्भीकता इन सभी चित्रों में दिखाई देती हैं। (देखें चित्र 9.4,9.5, 9.6)
  • अबुल फज्ल का कहना है कि चित्रों में निर्जीव, वस्तुएँ भी प्राणवान् प्रतीत होती हैं। पाठ्यपुस्तक में अंकित चित्रों को देखने से इस बात की पुष्टि होती है।
  • चित्रों में प्रतीकात्मकता को बड़े जोरदार ढंग से दिखाया गया है। (देखें चित्र 9.7)

प्रश्न 8.
मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे? बादशाह के साथ उनके संबंध किस तरह बने।
उत्तर:
मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण और बादशाह के साथ संबंध:
मुगल अभिजात वर्ग के प्रमुख अंग-मुगलकाल में सरदारों की गणना शासक तथा उच्च वर्ग में होती थी। ये सरदार अथवा अमीर विभिन्न वर्गों में बँटे हुए थे। इनमें मध्य एशिया से आए मुगल सरदारों का विशेष स्थान था। उनके बाद तुर्क-अफगान सरदारों का दर्जा था। भारतीय मुसलमान सरदार (शेखजादे या हिन्दुस्तानी), राजपूत राजा, हिन्दू उच्च अधिकारी तथा मराठे भी मुगल अधिकारी वर्ग में शामिल थे। जहाँगीर ने अफगानों तथा शाहजहाँ ने मराठों को भी अभिजात वर्ग में शामिल कर लिया। राजपूतों, मराठों तथा हिन्दुओं का मुगल साम्राज्य में विश्वास बढ़ने के साथ ही इनका अधिकारी वर्ग में अनुपात भी निरंतर बढ़ता गया।

मुगलकालीन अभिजात वर्ग की जीवन-पद्धति:
मुगलकालीन अभिजात अथवा उच्च अधिकारी वर्ग अपनी सम्पन्न आर्थिक स्थिति के कारण ऐश्वर्य एवं विलासिता का जीवन व्यतीत करता था। मुगल सरदार शानों-शौकत में सम्राट् का अनुकरण करते थे। वे फलदार वृक्षों एवं सुन्दर फव्वारों से युक्त बागों के बीच बनाए गए शानदार महलों में रहते थे। वे बड़ी संख्या में दास-दासियाँ, घोड़े-हाथी आदि रखते थे। कई सरदारों के पास बड़े-बड़े हरम थे। वे खाने-पीने पर भी बहुत खर्च करते थे। भोजन में अनेक प्रकार के व्यंजन तथा फल होते थे। कई फल तो बलख, बुखारा तथा समरकन्द से मँगवाये जाते थे। बर्फ का भी बहुत प्रयोग होता था। स्त्री-पुरुष दोनों ही कीमती गहने और कपड़े धारण करते थे। अपने स्तर के अनुसार सरदारों को वर्ष में दो बार सम्राट् को भेंट भी देनी पड़ती थी। इतने भारी व्यय के कारण मुगल सरदार प्रायः कर्ज में फंसे रहते थे।

अधिक व्यय के कारण:
मुगल सरदारों की बचत में विशेष रुचि नहीं थी क्योंकि उनके मरने के बाद उनकी सम्पत्ति सम्राट् द्वारा जब्त कर ली जाती थी। कुछ विद्वानों का मत है कि केवल उन्हीं सरदारों की सम्पति जब्त की जाती थी जिनको केन्द्रीय सरकार का ऋण चुकाना होता था। मृतक सरदार के उत्तराधिकारियों से सरदार द्वारा ली गई ऋण की राशि काटकर शेष सम्पत्ति उनमें बाँट दी जाती थी। इसके अतिरिक्त मध्यकाल में पूँजी निवेश के अच्छे माध्यम न होने के कारण भी मुगल सरदार अपने रहन-सहन पर बहुत अधिक व्यय करते थे। मुगल सम्राट के प्रधानमंत्री अबुल फज्ल ने सरदारों को उद्योगों, क्रय-विक्रय तथा ब्याज पर धन लगाने की सलाह दी थी।

प्रश्न 9.
राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्वों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित थे –

  1. एक दैवीय प्रकाश
  2. सुलह-ए-कुल
  3. न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता।

1. एक दैवीय प्रकाश:
राजत्व का एक प्रमुख स्रोत एक दैवीय प्रकाश था। मुगलकालीन दरबारी इतिहासकारों के अनुसार मुगल राजाओं ने सीधे ईश्वर से शक्ति प्राप्त की थी। इस दृष्टि से पदानुक्रम में मुगल राजत्व को अबुल फज्ल ने सबसे ऊँचे स्थान पर रखा। ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी ने इस विचार को सबसे पहले प्रस्तुत किया था। अबुल फज्ल इससे बहुत प्रभावित हुआ। इस विचार के अनुसार एक पदानुक्रम के अंतर्गत यह दैवी प्रकाश राजा में से संप्रेषित होता था। इस प्रक्रिया के पश्चात् राजा अपनी प्रजा के लिए अध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था। इसको चित्रों में भी प्रकाशित किया गया है। इसीलिए 17वीं शताब्दी में मुगल कलाकारों ने सम्राटों को प्रजा मंडल के साथ चित्रित करना शुरू किया।

2. सुलह-ए-कुल:
मुगल दरबारी इतिहासकारों के अनुसार बादशाह धर्म-सहिष्णु होते थे और साम्राज्य के भीतर न्याय और सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए विभिन्न धर्मों के समुदायों के बीच मध्यस्थता करते थे। विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सम्राट की यह मध्यस्थता ही सुलह-ए-कुल कही गई यह एकीकारण का एक प्रमुख स्रोत था। अबुल फज्ल सुलह-ए-कुल (पूर्ण शान्ति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला मानता था। इसके अन्तर्गत सभी को धार्मिक स्वतंत्रता थी परंतु किसी को भी राज्य को हानि पहुँचाने का अधिकार नहीं था। अभिजात वर्ग को राजा के प्रति सेवा और निष्ठा के लिए पुरस्कार दिये गये। सुलह-ए-कुल के अन्तर्गत अकबर ने तीर्थयात्रा कर और जजिया कर समाप्त कर दिया था। मुगल सम्राटों ने सभी धर्मों के उपासना स्थलों के निर्माण हेतु पर्याप्त अनुदान भी दिये।

3. न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता:
अबुल फज्ल ने न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता को सामाजिक अनुबंध के रूप में स्वीकार किया है। उसके अनुसार केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ इस अनुबंध का सम्मान कर पाते थे। न्याय के विचार को मुगल राजतंत्र में सर्वोत्तम माना गया है। मुगलकालीन चित्रों में शेर और बकरी को साथ-साथ बैठे हुए दिखाया गया है।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
विश्व मानचित्र के एक रेखाचित्र पर उन क्षेत्रों को अंकित कीजिए जिनसे मुगलों के राजनीतिक व सांस्कृतिक संबंध थे।
उत्तर:

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
किसी मुगल इतिवृत्त के विषय में और जानकारी ढूंढिए। इसके लेखक, भाषा, शैली, और विषयवस्तु का वर्णन करते हुए एक बृत्तांत तैयार कीजिए। आपके द्वारा चयनित इतिहास की व्याख्या में प्रयुक्त कम से कम दो चित्रों का, बादशाह की शक्ति को इंगित करने वाले संकेतों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, वर्णन कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 12.
राज्यपद के आदर्शों, दरबारी रिवाजों और शाही सेवा में भर्ती की विधियों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए व समानताओं और विभिन्नताओं पर प्रकाश डालते हुए मुगल दरबार और प्रशासन की वर्तमान भारतीय शासन व्यवस्था से तुलना कर.एक वृत्तान्त तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History राजा और विभिन्न वृतांत : मुगल दरबार Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
इतिवृत्त क्या है?
उत्तर:
मुगलबादशाहों का दरबारी इतिहासकारों द्वारा तैयार किया गया घटनाओं का लेखा-जोखा है।

प्रश्न 2.
औरंगजेब द्वारा जजिया कर लगाने से क्या हानि हुई?
उत्तर:

  1. इसके कारण साम्राज्य में भेदभाव फैल गया। धार्मिक नेता हिन्दुओं को अपमानित करने लगे।
  2. जजिया के खिलाफ अनेक विद्रोह हुए। शहर के व्यापारी आंदोलन करते थे। यहाँ तक कि जजिया वसूल करने वाले अमीन को भी मार देते थे।

प्रश्न 3.
क्या साम्राज्य और दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था?
उत्तर:
मुगल इतिहासकार निर्विवाद रूप से दरबारी थे। उन्होंने जो इतिहास लिखे उनके केन्द्र बिन्दु में शासक पर केन्द्रित घटनायें, शासक का परिवार, दरबार व अभिजात वर्ग का उल्लेख हावी रहा। अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर (औरंगजेब) की कहानियों पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक अकबरनामा, शाहजहाँनामा तथा आलमगीरनामा आदि से स्पष्ट होता है कि इनके लेखकों की दृष्टि में साम्राज्य और दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।

प्रश्न 4.
मुगलों की उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल शब्द की उत्पत्ति “मंगोल” से हुई है। मंगोल शासक चंगेज खाँ बाबर का मामा था। मुगल स्वयं को “तैमूरी” कहना पसंद करते थे क्योंकि चंगेज खाँ एक क्रुर शासक था।

प्रश्न 5.
मुगल दरबार में फारसी का महत्त्व बताइए।
उत्तर:

  1. बाबर के बाद सभी मुगल शासकों ने फारसी भाषा को अपनाया। मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखा गया।
  2. राजा, राजपरिवार के लोग और दरबार के विशिष्ट सदस्य सभी फारसी भाषा में बोलते थे। बाद में लेखाकारों लिपिकों और अन्य अधिकारियों ने भी इसे सीख लिया।

प्रश्न 6.
बिहजाद कौन था?
उत्तर:
बिहजाद ईरान का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। यह सफावी दरबार की शोभा था। इसके कारण यह विश्व में प्रसिद्ध हो गया।

प्रश्न 7.
नस्तलिक शैली क्या थी?
उत्तर:

  1. यह सुलेखन अर्थात् हाथ से लिखने की एक शैली थी। अकबर इसको बहुत पंसद करता था।
  2. यह एक तरल शैली थी जिसे लम्बे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था। इसे 5 या 10 मिली मीटर की नोक वाली कलम से लिखा जाता था। कलम सरकंडे से बनी होती थी और इसे स्याही में डुबोकर लिखा जाता था।

प्रश्न 8.
अबुल फज्ल ने चित्रकारी को जादुई कला क्यों माना है?
उत्तर:

  1. चित्रों से पुस्तक का सौन्दर्य बढ़ जाता है तथा राजा के विचारों का संप्रेषण सशक्त ढंग से किया जा सकता है।
  2. अबुल फज्ल के अनुसार यह कला किसी निर्जीव वस्तु को भी जीवन्त दर्शाने की क्षमता रखती है।

प्रश्न 9.
जनता के वे कौन से चार सत्य है जिनकी रक्षा सम्राट करता है?
उत्तर:

  1. जीवन (जन)
  2. धन (माल)
  3. सम्मान (नामस)
  4. विश्वास (दीन)

प्रश्न 10.
सुलह-ए-कुल क्या है?
उत्तर:
यह मुगल साम्राज्य के एकीकरण का एक स्रोत है। इसके अंतर्गत सम्राट को सभी नृजातीय और धार्मिक समुदायों से ऊपर माना जाता था। वह इन सभी के बीच मध्यस्थता करता था ताकि शान्ति एवं सुव्यवस्था बनी रहे। अबुल फज्ल सुलह-ए-कुल के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बताता है। इसमें सभी को धार्मिक स्वतंत्रता थी परंतु राज्य सत्ता को हानि पहुँचाने का किसी को अधिकार नहीं था।

प्रश्न 11.
ऐतिहासिक विवरण और एककालिक में अंतर बताइए।
उत्तर:

  1. ऐतिहासिक विवरण विकास की समयवार रूप-रेखा प्रस्तुत करता है।
  2. एककालिक विवरण एक समय विशेष की स्थिति का वर्णन करता है।

प्रश्न 12.
दैवीय प्रकाश सिद्धांत क्या था?
उत्तर:

  1. दैवीय प्रकाश सिद्धांत में सूफी सुहरावर्दी ने यह प्रतिपादित दिया था कि मुगल राजाओं को सत्ता की शक्ति सीधे ईश्वर से प्रान्त हुई थी।
  2. इन विचार के अनुसार एक पदानुक्रम के अंतर्गत राजा में दैवीय प्रकाश का संप्रेषण होता था। इसके प्रभाव से ही राजा अपनी जनता के लिए अध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था।

प्रश्न 13.
शब-ए-बारात क्या था?
उत्तर:

  1. शब-ए-बारात हिजरी कैलेंडर के 8 वें महीने अर्थात् 14 वें सावन को पड़ने वाली पूर्णचन्द्र रात्रि है। भारतीय उपमहाद्वीप में इस दिन प्रार्थनाएँ की जाती हैं और आतिबाजियां छुड़ाई जाती है।
  2. ऐसा माना जाता है कि रात मुसलमानों के लिए आगे आने वाले वर्ष का भाग्य निर्धारित होता है और उनके पाप माफ कर दिये जाते हैं।

प्रश्न 14.
‘बरीद और ‘वाक्यानवीस की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
मीर बख्शी सुफिया विभाग का भी अध्यक्ष होता था। उसके अधीन गुप्त अधिकारी (‘बरीद’) और संदेश लेखक (‘वाक्यानवीस’) की नियुक्ति की जाती थी। उनके द्वारा दी गई सूचनाओं को मीर बख्शी ही बादशाह तक पहुँचाता था।

प्रश्न 15.
‘काजी’ की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
अकबर के अधीन न्याय विभाग मुख्य काजी के अधीन होता था। उसकी देखरेख में समस्त कल्याण संस्थाओं की देखरेख तथा धार्मिक अनुदानों की व्यवस्था होती थी।

प्रश्न 16.
‘फौजदार’ और ‘अमल गुजार’ शब्दों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शेरशाह की भाँति अकबर ने भी अपने साम्राज्य को अनेक सरकारों में बाँटा। सरकार के मुख्य अधिकारियों को ‘फौजदार’ और ‘अमल गुजार’ कहा जाता था। फौजदार का काम न्याय और व्यवस्था बनाये रखना था जबकि अमल गुजार भू-राजस्व की वसूली और नियंत्रण का काम करता था।

प्रश्न 17.
‘दीवान-ए-आला’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
‘दीवान-ए-आला’ का अर्थ है-मुख्य दीवान जो राज्य की समस्त आय और व्यय का उत्तरदायी होता तथा सरकारी या खालिसा, जागीर और इनाम भूमियों का ब्यौरा रखता था। प्रान्तीय दीवान उसी के अधीन कार्य करते थे।

प्रश्न 18.
‘मीर बख्शी’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सैनिक विभाग का मुख्य अधिकारी मीर बख्शी कहलाता था। जो महत्त्व मुख्य दीवान का दीवानी मामलों में होता था वही महत्त्व सैनिक मामलों में मीर बख्शी का था। वास्तव में मुख्य दीवान और मीर बख्शी समान पदों पर थे। वे एक-दूसरे के पूरक थे और एक-दूसरे पर नजर रखते थे। मनसब पदों पर नियुक्ति या पदोन्नति मीर बख्शी की सिफारिश पर ही होती थी। मीर बख्शी ही खुफिया विभाग का मुखिया होता था।

प्रश्न 19.
मुगलकालीन इतिहास के दो ग्रंथों एवं उनके लेखकों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. अकबरनामा-अबुल फज्ल
  2. बादशाहनामा-अब्दुल हमीद लाहौरी।

प्रश्न 20.
अबुल-फज्ल की भाषा शैली की दो विशेषतायें बताइए।
उत्तर:

  1. अबुल-फज्ल की भाषा अलंकारों से भरी होती थी। इस भाषा के पाठों को ऊँची आवाज में पढ़ा जा सकता था क्योंकि इस भाषा में लय तथा कथन शैली को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया था।
  2. इस भारतीय फारसी शैली को मुगल-दरबार का संरक्षण प्राप्त था।

प्रश्न 21.
अकबर को अबुल-फल क्यों पसंद था?
उत्तर:

  1. अबुल फज्ल को अरबी, फारसी, यूनानी दर्शन और सूफीवाद की अच्छी जानकारी थी।
  2. वह एक स्वतंत्र चिंतक था जिसने उलमाओं के संकीर्ण विचारों का विरोध किया।

प्रश्न 22.
मुगलों को तैमूरी क्यों कहा गया?
उत्तर:

  1. मुगलों की उत्पत्ति मंगोल स्त्री से हुई थी। मुगल बर्बर मंगोलों से जुड़ना नहीं चाहते थे।
  2. बाबर का पिता तुर्की था। मुगल तुर्कों से जुड़ना पसंद करते थे। इसलिए मुगलों ने अपने को तैमूरी कहा।

प्रश्न 23.
हुमायूँ ने भारत से पलायन क्यों किया?
उत्तर:

  1. अफगान शासक शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को दो युद्धों-चौसा के युद्ध (1539) और विलग्राम के युद्ध (1540) में पराजित कर दिया था।
  2. इन युद्धों में हार और शेरशाह के पीछा करने से भयभीत हुमायूँ को अपनी जान बचाने के लिए भारत छोड़ना पड़ा।

प्रश्न 24.
मुगल सम्राटों द्वारा तैयार करवाये गये इतिवृत्तों के मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर:

  1. मुगल साम्राज्य की जनता को मुगल शासन व्यवस्था की जानकारी देना।
  2. मुगल शासन का विरोध करने वाले लोगों को यह बताना कि उनके सभी विरोधों का असफल होना निश्चित है।

प्रश्न 25.
फारसी भाषा का भारतीयकरण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:

  1. फारसी ने स्थानीय मुहावरों को शामिल करने से फारसी का भी भारतीयकरण हो गया।
  2. फारसी का हिंदी के साथ संपर्क होने से उर्दू नामक एक नई भाषा का विकास हुआ।

प्रश्न 26.
जहाँआरा कौन थी? वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में उसका क्या योगदान था?
उत्तर:

  1. जहाँआरा मुगल बादशाह शाहजहाँ की पुत्री थी। जिसका वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में पर्याप्त योगदान रहा।
  2. उसने नई राजधानी शाहजहाँबाद (दिल्ली) के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उसने ही चाँदनी चौक की रूपरेखा भी तैयार करवाई।

प्रश्न 27.
सुलह-कुल के आदर्श को बढ़ावा देने के लिए अकबर ने कौन-से मुख्य कार्य किये।
उत्तर:

  1. साम्राज्य के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सुलह-कुल के सिद्धांतों का अनुपालन करने के निर्देश दिये।
  2. अकबर ने 1563 में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया, क्योंकि ये दोनों कर धर्म से जुड़े हुए थे।

प्रश्न 28.
झरोखा दर्शन सबसे पहले किसने शुरू किया और इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:

  1. झरोखा दर्शन सबसे पहले सम्राट अकबर ने शुरू किया। इसके अनुसार बादशाह एक छज्जे अथवा झरोखे में पूर्व की ओर मुँह करके लोगों की भीड़ को दर्शन देता था।
  2. इसका उद्देश्य शाही सत्ता के प्रति जन विश्वास को बढ़ावा देने का था।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आइन-ए-अकबरी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अबुल फज्ल कृत ‘आइने-अकबरी’-अबुल फज्ल अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक था। वह फारसी भाषा का उच्चकोटि का विद्वान था। उसने अकबर के समय में ‘अकबरनामा’ तथा ‘आइने-अकबरी’ नामक दो प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे। ‘आइने-अकबरी’ आज भी अकबर पर एक विश्वसनीय तथा प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है। इसमें अकबर की विजयों, उसके राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजस्व सम्बन्धी विवरणों का सटीक उल्लेख है।

स्थान-स्थान पर इससे अकबर की आदतों, उसके व्यक्तिगत गुणों तथा रुचियों के बारे में उपयोगी जानकारी मिलती है। इसमें फारसी भाषा के उन 59 सर्वश्रेष्ठ कवियों के नाम दिए गए है जिन्हें अकबर का संरक्षण प्राप्त था। इनके अतिरिक्त 15 ऐसे कवि थे जो मालिक साहित्य की रचना किया करते थे और समय-समय पर ईरान से अपनी कविताएँ अकबर के पास भेजा करते थे। इस ग्रन्थ का न केवल राजनीतिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व है वरन् यह एक उच्चकोटि साहित्यिक रचना भी है। अब इस ग्रन्थ का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यह इतिहास के छात्रों और इतिहासकारों के लिए बहुत ही उपयोगी ग्रथ सिद्ध हुआ है।

प्रश्न 2.
हुमायूँ के पलायन (Expulsion) का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हुमायूँ का पलायन-कन्नोज की लड़ाई (1540 ई.) में हारने के पश्चात् हुमायूँ आगरा पहुँचा, परंतु शेरशाह ने उसका पीछा किया। विवश होकर उसे पंजाब की ओर भागना पड़ा। उसके भाई कामरान ने उसकी कोई मदद न की अतः वह शेरशाह के भय से पंजाब छोड़ कर काबुल चला गया। हुमायूँ सिन्ध की ओर जा रहा था कि रास्ते में अमरकोट नामक स्थान पर 23 नवम्बर, 1542 ई. को अकबर का जन्म हुआ। इसे विपत्तिकाल में उसका एक सरदार बैरम खाँ उससे आ मिला।

सिन्ध से वह काबुल पहुँचा परंतु कामरान ने उसके पाँव वहाँ न जमने दिए और उसकी सहायता न की। विवश होकर हुमायूँ को ईरान में शरण लेनी पड़ी। ईरान के शाह तहमास्प (Shah Tahmasp) ने उसे 14,000 सैनिक दिए। इसके बदले में हुमायूँ ने शिया धर्म अपनाने और कन्धार जीतकर शाह को वापस लौटाने का वचन दिया। इन सैनिकों की सहायता से उसने 1545 ई. में काबुल और कन्धार को जीत लिया। इसके पश्चात् 10 वर्ष तक उसे अपने भाईयों से लड़ना पड़ा। हिन्दाल युद्ध में मारा गया। असकरी को उसने मक्का भेज दिया परंतु रास्ते में उसकी मृत्यु हो गई। कामरान की आँखें निकलवा दी गई और उसे भी मक्का भेज दिया गया।

प्रश्न 3.
इतिवृत्तों की रचना के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
इतिवृत्तों की रचना के उद्देश्य –

  1. इतिवृत्त मुगल साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने एक प्रबुद्ध राज्य के दर्शन की प्रायोजना के उद्देश्य से लिखे गये थे।
  2. इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  3. इनका उद्देश्य मुगल साम्राज्य के विरोधी लोगों को यह बताना था कि उनके सभी विरोधी का असफल होना निश्चित है।
  4. इतिवृत्तों के द्वारा बदशाह यह सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासन का विवरण उपलब्ध रहे।
  5. सम्राट पर केन्द्रित घटनाओं, शासक के परिवार, दरबार व अभिजात, युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाओं का वर्णन करना इतिवृत्तों का मुख्य उद्देश्य था।

प्रश्न 4.
बादशाहनामा का लेखक कौन था? इसमें किसका वर्णन किया गया है?
उत्तर:

  1. बादशाहनामा की रचना अबुल फज्ल के एक शिष्य अब्दुल हमीद लाहौरी ने की। बादशाह शाहजहाँ ने उसे अकबरनामा के नमूने पर अपने शासन काल का इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया।
  2. बादशाहनामा भी सरकारी इतिहास है। इसकी तीन जिल्दें (दफ्तर) हैं और प्रत्येक जिल्द दस चन्द्र वर्षों का ब्यौरा देती है।
  3. लाहौरी ने बादशाह के शासन (1627-47) के पहले दो दशकों पर पहला और दूसरा दफ्तर, लिखा। इन जिल्दों में बाद में शाहजहाँ के वजीर सादुल्लाह खाँ ने सुधार किया।”
  4. तीसरे दशक के बारे में इतिहासकार वारिस ने लिखा क्योंकि लाहौरी अशक्त हो गया था।

प्रश्न 5.
अकबरनामा का भारतीय इतिहास में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
अकबरनामा का महत्त्व –

  1. अकबरनामा का लेखक अबुल फज्ल था जिसे इसने 1589 ई. में लिखना शुरू किया और 13 वर्षों में इस ग्रंथ को पूरा किया।
  2. अकबरनामा को तीन जिल्दों में बाँटा गया है जिनमें से प्रथम दो इतिहास हैं। तीसरी जिल्द आइन-ए-अकबरी है।
  3. इसका लेखन राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण घटनाओं का कालानुक्रमिक विवरण देने के परपरागत ऐतिहासिक दृष्टिकोण से किया गया।
  4. इसकी भाषा अलंकृत है। इसमें लय और कथन शैली को महत्त्व दिया गया हैं। इस भारतीय-फारसी शैली को मुगल दरबार का विशेष संरक्षण मिला।

प्रश्न 6.
अकबर ने अपने साम्राज्य में सांस्कृतिक एकता किस प्रकार स्थापित की?
उत्तर:
सांस्कृतिक एकता (Cultural Unity):
अकबर ने फारसी को राष्ट्रीय भाषा बनाकर, हिन्दी, संस्कृत, अरबी, तुर्की तथा यूनानी आदि भाषाओं के प्रमुख ग्रंथों का फारसी में अनुवाद कराकर, मुसलमानों के मदरसों में हिन्दू बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करके तथा हिन्दू पाठशालाओं को भी राजकीय सहायता प्रदान करके इस देश में सांस्कृतिक एकता पैदा करने की दिशा में विशेष कार्य किया। इसके अतिरिक्त उसने ललित कलाओं, भवन-निर्माण-कला, चित्रकला और संगीत के क्षेत्र में हिन्दू तथा मुसलमानों की परम्पराओं तथा शैलियों के मिलाप में बड़ा सहयोग दिया। अकबर द्वारा बनाए गए भिन्न-भिन्न कलाओं के नमूने हिन्दू-मुसलमानों की साझी सम्पत्ति बन गए और अकबर के द्वारा संस्कृत तथा हिन्दी साहित्य को राज्य का संरक्षण मिलने से भी सांस्कृतिक एकता स्थापित हुई।

प्रश्न 7.
मुगलशासन में दीवान के कार्य एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वकील-ए-मुतलक, वजीर या दीवान:
मुगल शासन-व्यवस्था में वजीर का पद बड़ा गर्वपूर्ण था। अबुल फज्ल के अनुसार, “वकील साम्राज्य और शाही परिवार से संबंधित सभी कार्यों में सम्राट का नायक होता है। वह परामर्श देता है और अपनी प्रखर बुद्धि से राज्य की बड़ी-बड़ी समस्याओं को सुलझाता है। किसी भी अभिजात या अधिकारी की पदोन्नति, पदावनति, नियुक्ति तथा हटाया जाना आदि उसी की समझ पर निर्भर है।” किन्तु बैरम खाँ के पश्चात् ऐसे अधिकार किसी भी पदाधिकारी को नहीं दिये गए।

प्रधानमंत्री को दीवान के कार्य सौंप दिए गए और बाद के समय में दीवान ही राज्य का वजीर तथा प्रधानमंत्री होने लगा। दीवान का मुख्य कार्य राज्य की आय और व्यय की देखभाल करना था। वह बादशाह और अन्य अधिकारियों के बीच की कड़ी था। बादशाह की अनुपस्थिति में राजधानी में रहकर शासन की देखभाल करता था। बादशाह अवयस्क होने की दशा में उसका संरक्षक बनता था और आवश्यकता पड़ने पर सेना का नेतृत्व करता था। उसका सभी विभागों पर नियंत्रण था। सूबों की सूचनाएँ प्राप्त करता था और बादशाह के आदेश को वहाँ भेजता था। राजनीतिक पत्र-व्यवहार करता था और शासन के सामान्य कार्यों को बादशाह की ओर से स्वयं करता था। उसकी सहायता के लिए पाँच प्रमुख अधिकारी तथा अन्य अनेक अधिकारी थे। इस प्रकार वह सम्राट् का दूसरा रूप था।

प्रश्न 8.
फतेहपुर सीकरी पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
फतेहपुर सीकरी:
फतेहपुर सीकरी उत्तर प्रदेश राज्य में आगरा के समीप अकबर द्वारा बनाई गई नवीन राजधानी थी। 1570 ई. में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ तथा गुजरात-विजय के उपलक्ष्य में उसने इसका नाम फतेहपुर सीकरी रखा। अबुल फज्ल के शब्दों में, “उसके श्रेष्ठ पुत्रों ने सीकरी में जन्म लिया था तथा शेख सलीम को दिव्यज्ञानयुक्त आत्मा उनमें प्रविष्ट हो गई थी। अतः अकबर के पवित्र हृदय में इस अध्यात्मिक स्थान को सुन्दर रूप प्रदान करने की इच्छा प्रकट हुई। बादशाह ने निजी प्रयोग के लिए भव्य भवनों के निर्माण की आज्ञा दे दी।” फतेहपुर सीकरी के भवन में हमें हिन्दू तथा मुस्लिम वास्तुकला का मिश्रित प्रभाव दिखाई देता है।

15 वर्षों के अल्पकाल में इस नगर का निर्माण इतनी तीव्र गति से हुआ कि सर्मी ग्रोउन के शब्दों में, “ऐसा प्रतीक होता है कि किसी जादूगर ने इसका निर्माण किया हो। इस नगर का विस्तार सात मील के पहाड़ी क्षेत्र पर है। इसके एक ओर कृत्रिम झील है तथा तीन ओर ऊँची चारदीवारी है। इसमें कुल नौ द्वार हैं। इस नगर में बनी इमारतों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-धार्मिक इमारतें तथा धर्म-निरपेक्ष इमारतें। धार्मिक इमारतों में जामा मस्जिद, बुलंद दरवाजा, शेख सलीम चिश्ती का मकबरा शामिल है। धर्म-निरपेक्ष इमारतों में दीवान-ए-आम, जोधाबाई का महल, तुर्की सुल्तानों का महल, बीरबल का महल, दीवाने खास, पंचमहल, टकसाल तथा ज्योतिष भवन प्रसिद्ध हैं। यहाँ पर बनी इमारतें अकबर की उदार नीति का प्रतीक हैं।” सच तो यह है कि वास्तुकला ‘के क्षेत्र में फतेहपुर सीकरी मुगल काल की सर्वोत्कृष्ट कलाकृति का उत्तम उदाहरण है। मुगल सम्राटों द्वारा बनाई गई इमारतों में फतेहपुर सीकरी का ताजमहल के बाद दूसरा स्थान है।

प्रश्न 9.
औरंगजेब की राजपूत नीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औरंगजेब की राजपूत नीति-औरंगजेब ने राजपूतों के प्रति उदार नीति को ठीक न समझा और उसमें कई प्रकार के परिवर्तन कर दिए। वह एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था और भारत में एक इस्लामी राज्य स्थापित करना चाहता था। वह ऐसा कदापि नहीं चाहता था कि राजपूत लोग उसके अधीन ऊँचे पदों पर नियुक्त रहें और बड़ी शान के साथ अपना जीवन व्यतीत करें। उनके प्रभाव को समाप्त करने के उसने हर सम्भव तथा असम्भव कार्य किए –

  1. उसने उन्हें ऊँचे पदों से अलग कर दिया।
  2. 1679 ई. में जजिया तथा यात्रा-कर पुनः लागू कर दिए।
  3. उनके दीवाली और होली आदि त्यौहारों को मनाना बंद करा दिया।
  4. राजपूतों के लिए अच्छे घोड़े की सवारी करना भी प्रतिसिद्ध कर दिया।
  5. उनके धर्म-स्थलों का भी घोर निरादर किया गया।
  6. 1678 ई. में मारवाड़ (Marwar) के राजा जसवन्त सिंह राठौर की मृत्यु के पश्चात् उनकी पलियों, पुत्र अजीतसिंह तथा अन्य सम्बन्धियों को कैद करने का आदेश दिया। वह राजपूतों की शक्ति को पूरी तरह कुचल देना और उनकी स्वतंत्रता को समाप्त कर देना चाहता था।

प्रश्न 10.
जहाँगीर के काल को मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
जहाँगीर और चित्रकला का उत्कर्ष:
जहाँगीर स्वयं एक अच्छा चित्रकार था और इस कला का महान् पारखी था। उसका समय चित्रकला का स्वर्ण-युग था। उसने अपने निजी बगीचे के एक भाग में चित्रकला कक्ष की स्थापना कर रखी थी। उसने अपनी आत्मकथा ‘तुजके जहाँगीरी’ में लिखा था-‘कला में मेरी रुचि एवं ज्ञान इस सीमा तक पहुँच गया है कि यदि मेरे सामने किसी भी मृत या जीवित चित्रकार की कलाकृति लाई जाती है और मुझे उस चित्रकार का नाम नहीं बताया जाता है तो मैं एकदम बता देता हूँ कि यह कृति अमुक चित्रकार ने बनाई है। यदि एक चित्रकार ने चेहरा बनाया हो और दूसरे ने उसी चेहरे में आँखें व भौहें बनाई हों तो मैं यह बता सकता हूँ कि अमुक चित्रकार ने चेहरा तथा अमुक चित्रकार ने आँखें तथा भौहें बनाई हैं।” जहाँगीर का यह कथन अतिशयोक्ति पूर्ण है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि वह एक उच्चकोटि का चित्रकार तथा इस कला का महान् पारखी था।

जहाँगीर ने अपने यहाँ अनेक हिन्दू तथा मुसलमान चित्रकारों को संरक्षण दिया था। समरकन्द के मुहम्मद नादिर, उस्ताद तथा मुहम्मद मुराद; हिरात के आगा रजा और उसका पुत्र अब्दुल हसन प्रसिद्ध मुसलमान चित्रकार थे। जहाँगीर में उस्ताद मंसूर व आगा रजा को ‘नारिस्लासार’ की उपाधि से विभूषित किया था। हिन्दू कलाकारों में बिशनदास, मनोहर, गोवर्धन, तुलसी, माधव आदि प्रसिद्ध थे। बिशनदास अपने सजीव एवं यथार्थ चित्रों के लिए उसके समय का उच्चकोटि का चित्रकार था।

प्रश्न 11.
सुलह-ए-कुल के आदर्श को मुगल सम्राटों ने किस प्रकार लागू किया?
उत्तर:
सुलह-ए-कुल का आदर्श और मुगल सम्राट:

  1. सुलह-ए-कुल के आदर्श को राज्य नीतियों के माध्यम से लागू किया गया। मुगल सम्राटों के अधीन अभिजात वर्ग मिश्रित किस्म का था। उसमें ईरानी, तूरानी, अफगानी, राजपूत आदि सभी शामिल थे। इन सबको पद और पुरस्कार दिये गये जो राजा के प्रति सेवा और निष्ठा पर आधारित थे।
  2. अकबर ने 1563 में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 में जजिया को समाप्त कर दिया, क्योंकि ये दोनों कर धार्मिक पक्षपात पर आधारित थे।
  3. साम्राज्य के अधिकारों को सुलह-ए-कुल के नियम का अनुपालन करने के निर्देश दे दिए गए।
  4. सभी मुगल सम्राटों ने उपासना-स्थलों के निर्माण एवं रख-रखाव के लिए अनुदान दिए। युद्ध के दौरान ध्वस्त होने वाले मंदिरों की मरम्मत के लिए प्रचुर अनुदान दिए जाते थे।

प्रश्न 12.
मुगल बादशाहों के लिए कन्धार का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
कन्धार पर अधिकार:
मुगलों की विदेश नीति का मुख्य आधार कन्धार पर अधिकार रखना था। ऐसा दो कारणों से था-प्रथम, कन्धार पर कब्जा न रहने की दशा में वे काबुल पर शासन नहीं कर सकते थे। दूसरे, कन्धार उस व्यापारिक मार्ग पर था जो भारत को ईरान और मध्य-एशिया से मिलाता था। इस तरह कन्धार 1522, 1558, 1595, 1622, 1638 और 1649 ई. में निरंतर हाथ बदलता रहा। 1522 ई. में बाबर ने इस पर अधिकार किया था परंतु अकबर के बाल्यकाल में (1558 ई. को) ईरानियों ने इसे जीत लिया था। फिर अकबर ने इसे 1595 ई. में जीत लिया परंतु जहाँगीर के काल में ईरानियों ने 1622 ई. में इसे मुगलों से पुनः छीन लिया। शाहजहाँ ने 1638 ई. में इसे बड़ी कठिनाई से अपने अधीन कर लिया परंतु 1649 ई. में ईरानियों ने इसे पुनः छीन लिया। इस प्रकार मध्य एशिया में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए मुगलों के नियंत्रण में कन्धार राज्य-क्षेत्र का रहना आवश्यक था।

प्रश्न 13.
मुगल शासकों ने राजवंशीय इतिहास लिखवाने में क्यों रुचि दिखाई ?
उत्तर:
राजवंशीय इतिहास लिखवाने में मुगल शासकों की रुचि के कारण –

  • मुगल शासक दैवी सिद्धांत में विश्वास करते थे। उनका कहना था कि स्वयं ईश्वर ने उन्हें जनता पर शासन करने के लिए भेजा है। लोकप्रिय बनने के लिए वे राजवंशीय इतिहास लिखवाना चाहते थे।
  • मुगल दरबार में कई दरबारी इतिहासकार उपलब्ध रहने के कारण ऐसा इतिहास लिखवाना आसान था।
  • इन विवरणों में संबंधित बादशाह के शासन-काल की घटनाओं का लेखा-जोखा तैयार किया जाना था।
  • भारतीय उपमाहद्वीप के अन्य क्षेत्रों की जानकारियाँ प्राप्त करनी आवश्यक थी क्योंकि सुचारू शासन चलाने के लिए ऐसी जानकारियों का प्राप्त करना मुगल शासकों के लिए अनिवार्य था। (v) मुगल वंश के भावी शासकों को शासन प्रबंध में कुशल बनाने के लिए भी ऐसे ऐतिहासिक ग्रंथों का उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य समझा गया था।

प्रश्न 14.
गुलबदन बेगम कौन थी? लेखन के क्षेत्र में उसकी क्या उपलब्धियाँ थीं?
उत्तर:

  1. गुलबदन बेगम बाबर की पुत्री, हुमायूँ की बहन तथा अकबर की चाची (बुआ) थी।
  2. उसने मुगलों के पारिवारिक जीवन पर प्रकाश डालने वाली एक रोचक पुस्तक हुमायूँनामा लिखी।
  3. वह तुर्की तथा फारसी में धाराप्रवाह लिख सकती थी।
  4. उसने अबुल फज्ल की अकबरनामा लिखने में सहायता की। उसने बाबर और हुमायूँ के समय के संस्मरणों को लिपिबद्ध किया था।
  5. उसने राजाओं और राजकुमारियों के बीच चलने वाले संघर्ष और तनावों के साथ ही इनमें से कुछ संघर्षों को सुलझाने में परिवार की बुजुर्ग स्त्रियों की भूमिका के बारे में भी विस्तार से लिखा।

प्रश्न 15.
पाण्डुलिपियों के महत्त्व की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
पाण्डुलिपियों का महत्त्व –

  1. किसी बादशाह के शासन की घटनाओं का विवरण देने वाले इतिहासों में लिखित पाठ के साथ उन घटनाओं को चित्र के माध्यम से दर्शाया जाता था।
  2. हस्तलिखित ये विवरण मुगलों की इतिहास रचना में बहुत सहायक हैं। पाण्डुलिपियों के संरक्षण के लिए अकबर ने एक अलग विभाग बनाया था।
  3. मुगलकालीन पाण्डुलिपियों के रचनाकारों को पदवियों और पुरस्कारों के रूप में पहचान मिली। इनमें सुलेखक (सुन्दर लिखने वाले) और चित्रकार बहुत लोकप्रिय बने।
  4. पाण्डुलिपियों में सुलेखन भिन्न-भिन्न शैलियों में किया जाता था। ‘नस्तलिक’ अकबर की मनपसंद शैली थी। यह एक ऐसी तरल शैली थी जिसे क्षैतिज रूप से प्रभावी ढंग से लिखा जाता था।
  5. मुगल शासक जानते थे पाण्डुलिपियों से उनकी शक्ति और समृद्धि की जनता को जानकारी दी जा सकती है।

प्रश्न 16.
ब्रिटिश काल में ऐतिहासिक पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए क्या उपाय किये गये?
उत्तर:
ब्रिटिश काल में ऐतिहासिक पांडुलिपियों के संरक्षण के उपाय –

  1. ब्रिटिश काल में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए अभिलेखागार बनाये गये क्योंकि अंग्रेज भारतीयों के बारे में विस्तृत अध्ययन करना चाहते थे।
  2. 1784 ई. में सर विलियम जोन्स द्वारा स्थापित एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल ने कई भारतीय पांडुलिपियों के संपादन, प्रकाशन और अनुवाद का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया।
  3. एशियाटिक सोसाइटी द्वारा 19वीं शताब्दी में सर्वप्रथम अकबरनामा और बादशाहनामा के संपादित प्रारूप प्रकाशित किये गये।
  4. 20 वीं शताब्दी के आरंभ में हेनरी बेवरिज ने अकबरनामा का अंग्रेजी में अनुवाद किया।
  5. बादशाहनामा के अभी तक केवल कुछ ही अंशों का अंग्रेजी में अनुवाद हो पाया है।

प्रश्न 17.
मुगलकालीन इतिहास की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मुगलकालीन इतिहास की प्रमुख विशेषतायें –

  • मुगलों के इतिहास से सम्बन्धित घटनायें तिथियुक्त हैं। ये घटनायें एक और मुगल राज्य की संस्थाओं की जानकारी देते हैं तो दूसरी ओर मुगल शासकों के उद्देश्यों पर प्रकाश डालती हैं।
  • मुगल इतिहास प्रायः दरबारी लेखकों द्वारा लिखे गये हैं। इस इतिहास को इतिवृत्ति भी कहते हैं। इनमें तत्कालीन सम्राट और उसके साम्राज्य से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी दी गयी है।
  • यहाँ दरबार तथा बादशाह के इतिहास में समानता मिलती है। अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर के शासनकाल पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक अकबरनामा, बादशाहनामा और आलमगीरनामा यह संकेत देते हैं कि इनके लेखकों की दृष्टि में सम्राट और दरबार का इतिहास किसी तरह भिन्न न होकर एक ही था।
  • मुगल इतिवृत्त (इतिहास) रंगीन चित्रों से सुसज्जित है। इसमें कलाकारों की कई कल्पनायें स्थान पाती हैं।
  • इतिहास सम्राट और दरबार के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं । सम्राट चाहते थे कि भावी पीढ़ी के लिए उनके शासन का विवरण उपलब्ध रहे।

प्रश्न 18.
अकबर ने राजपूतों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने का प्रयास क्यों किया?
उत्तर:
अकबर राजपूतों के साथ मित्रता के कारण:

  • अकबर के माता-पिता और शिक्षक अब्दुल लतीफ और संरक्षक बैरम खाँ उदार धार्मिक विचारों के थे। अकबर में उदारता एवं सहनशीलता के गुणों का सृजन इसी कारण हुआ।
  • अकबर के उजबेक, मुगल और तुर्क सरदार वफादार नहीं थे। उन्होंने कई बार उसके विरुद्ध विद्रोह किए थे।
  • अकबर का जन्म राजपूत शासक के संरक्षण में हुआ था अतः वह राजपूतों के प्रति कृतज्ञ था।
  • राजपूत योद्धा, वीर और साहसी थे। वे बात के धनी और अपनी आन पर मर मिटने वाले थे। अपने स्वामी को धोखा देना पाप समझते थे। अकबर राजपूतों के इन गुणों से प्रभावित था।
  • प्रजा से राज-भक्ति पाने की इच्छा से भी अकबर ने हिन्दुओं और विशेषकर राजपूतों से मैत्री सम्बन्ध स्थापित किए।
  • कुछ विद्वानों का मत है कि अकबर की राजनैतिक दूरदर्शिता ही राजपूतों के साथ मैत्री-संबंध बनाने में सहायक रही। वह जानता था कि हिन्दू राजपूतों के सहयोग के बिना उसकी साम्राज्यवादी लालसा पूरी नहीं हो पाएगी और न साम्राज्य को सुरक्षित ही रखा जा सकेगा।
  • डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने भी लिखा है, “राजपूतों के सहयोग बिना भारत में मुगल साम्राज्य सुरक्षित न था। उनके विवेकपूर्ण और सक्रिय सहयोग के बिना सामाजिक तथा राजनैतिक एकता स्थापित होनी बहुत कठिन थी।”

प्रश्न 19.
शेरशाह के साथ संघर्ष में हुमायूँ की असफलता के कारण बताइए।
उत्तर:
हुमायूँ की असफलता और शेरशाह की सफलता के कारण:
हुमायूँ-शेरशाह के आपसी संघर्ष में हुमायूँ की असफलता तथा शेरशाह की सफलता के मुख्य कारण इस प्रकार हैं –
1. हुमायूँ का सबसे बड़ा शत्रु वह स्वयं ही था। उसे अफीम खाने और शराब पीने की आदत थी। वह आलसी और विलासी होने के कारण उसमें दृढ़ निश्चय की कमी थी। वह किसी ठीक निर्णय पर नहीं पहुंच पाता था और अपना बहुत-सा समय सोच-विचार में ही गँवा देता था।

2. हुमायूँ अपना बहुत-सा कीमती समय और धन (रंगरलियों में) व्यर्थ गंवा देता था। हुमायूँ को खजाना लगभग खाली मिला था, इसके बावजूद उसने बहुत-सा धन रंगरलियों और उपहार देने में खर्च कर दिया। उसका अधिक समय महलों में रंगरलियाँ मनाने में व्यतीत होता था।

3. हुमायूँ आवश्यकता से अधिक दयालु था और उसमें साधारण योग्यता तथा बुद्धि का अभाव था। उसने अपने साम्राज्य का बंटवारा अपने भाइयों में करके अपने-आप को आय के साधनों और सैनिक स्थलों से वंचित कर लिया।

4. हुमायूँ कोई दूरदर्शी और चतुर राजनीतिज्ञ भी नहीं था। आरंभ में उसने शेरखाँ की ओर ध्यान न दिया और उसे शक्तिशाली होने का अवसर दिया। शेरखाँ ने दिखाने को उसकी अधीनता स्वीकार कर ली और अपनी शक्ति को बढ़ाया। उधर हुमायूँ बंगाल विजय के बाद रंगरलियों में मस्त रहा। इसके अतिरिक्त चौसा के युद्ध में उसने शेरखाँ की सेना पर पहले आक्रमण न करके एक भारी भूल की। शेरखाँ के प्रति उसकी गलत नीतियों ने शेरखाँ को शक्तिशाली बनने का सुअवसर प्रदान किया।

5. जब हुमायूँ ने बहादुरशाह के विरुद्ध चढ़ाई की तो उस समय वह चितौड़ विजय में लगा हुआ था। चितौड़ के राजपूतों ने हुमायूँ से सहायता माँगी परंतु उसने ऐसा न किया। इस प्रकार बहादुरशाह के विरुद्ध चित्तौड़ के , राजपूतों की सहायता न कर उसने राजपूतों को अपने साथ मिलाने का अवसर खो दिया।

प्रश्न 20.
अकबर ने सांस्कृतिक एकीकरण के लिए कौन-कौन से उपाय किये?
उत्तर:
अकबर द्वारा सांस्कृतिक एकीकरण के लिए उठाये गये कदम:

  • आरंभ में अकबर एक कट्टरपंथी मुसलमान था परंतु बैरम खाँ, अब्दुल रहीम खानखाना, फैजी, अबुल फज्ल, बीरबल जैसे उदार विचारों वाले लोगों के सम्पर्क से उसका दृष्टिकोण बदल गया। हिन्दू रानियों का भी उस पर प्रभाव पड़ा। अब वह अन्य धर्मों के प्रति उदार हो गया था।
  • 1575 ई. में उसने इबादत खाना बनवाया। इसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों को अपने-अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। बहस के समय मौलवियों के अशिष्ट व्यवहार को देखकर उसे इस्लाम धर्म से अरुचि हो गई।
  • हिन्दुओं की तरह वह माथे पर तिलक लगाने लगा और गौ की पूजा करने लगा। कट्टर पंथी मुसलमानों द्वारा “काफिर” कहे जाने को भी उसने कोई परवाह न की।
  • 1579 ई. में उसने अपने नाम का खुतवा पढ़वा कर स्वयं को धर्म प्रमुख घोषित कर दिया। इससे उलेमाओं का प्रभाव कम हो गया।
  • उसने सभी धर्मों का सार लेकर नया धर्म दीन-ए-इलाही चलाया। अपने धर्म को उसने किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया।
  • उसने रामायण और महाभारत जैसे कई हिन्दू ग्रंथों का फारसी अनुवाद करवाया। वह धर्म को राजनीति से दूर रखता था।
  • फतेहपुर सीकरी में पंच महल, जोधाबाई का महल एवं बीरबल के महल में भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती है।

प्रश्न 21.
दीने-इलाही के मुख्य सिद्धांत क्या थे?
उत्तर:
दीने-इलाही के मुख्य नियम:

  1. ईश्वर एक है और अकबर उसका खलीफा है।
  2. इस मत के अनुयायी आपस में एक-दूसरे से मिलते समय ‘अल्लाहू-अकबर जल्ले जलालहू’ कहकर अभिवादन करते थे।
  3. दीने-इलाही के सदस्यों से बादशाह की सेवा के लिए धन, मान, जीवन और धर्म का बलिदान करने की आशा की जाती थी।
  4. सभी सदस्यों को अकबर के सामने सिर झुकाना अथवा सिजदा करना पड़ता था।
  5. प्रत्येक सदस्य अपने जन्म-दिन को मनाता था और उसे अन्य सदस्यों को उस दिन दावत देनी पड़ती थी।
  6. मांस खाने की मनाही थी।
  7. प्रत्येक सदस्य को बूचड़ों, मछियारों तथा शिकारियों के साथ भोजन करने की मनाही थी।
  8. दीने-इलाही के सदस्य बाल-विवाह और वृद्ध-विवाह के विरुद्ध थे।
  9. प्रत्येक सदस्य को दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता अपनानी पड़ती थी।
  10. इस मत को मानने वाले सूर्य की पूजा करने के पक्ष में थे और अग्नि का सत्कार करते थे।
  11. प्रत्येक सदस्य को अपने आचार-विचार ऊँचा रखने की प्रतिज्ञा करनी पड़ती थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘बाबरनामा’ या ‘तुजके-बाबरी’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। अथवा, बाबरनामा के ऐतिहासिक महत्त्व पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
तुज्क-ए-बाबरी या बाबरनामा:
यह बाबर की आत्मकथा है। इसको मूलतः तुर्की भाषा में लिखा गया है। यह पुस्तक विश्व साहित्य का उच्चकोटि का ग्रन्थ (Classic) समझी जाती है। इस पुस्तक में स्वयं बाबर ने अपनी आँखों से देखे भारतीय जनजीवन, पशु-पक्षियों तथा भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव चित्रण किया है। बाबर ने इस ग्रन्थ में जहाँ अपने गुणों एवं उज्ज्वल पक्ष का वर्णन किया है, वहीं उसने अपनी दुर्बलताओं तथा असफलताओं को भी स्पष्ट शब्दों में आंका है।

उसने तत्कालीन भारतीय राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशा के अतिरिक्त शत्रुओं की त्रुटियों तथा उनके गुणों का भी लेखा-जोखा पेश किया है। इस ग्रन्थ की भाषा अत्यन्त सरल, शुद्ध, स्वाभाविक, हृदयग्राही तथा अलंकृत है। इसमें अतिशयोक्ति तथा लच्छेदार शब्दावली का पूर्णतया अभाव है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह एक बहुमूल्य ग्रन्थ है। लेनपूल के अनुसार, “बाबर के बाद में आने वाले सम्राटों की परम्परा, जिनका आरम्भ बाबर से ही हुआ था, समाप्त हो चुकी है-बाबर के वंश की शक्ति तथा शान समाप्त हो चुकी है परंतु उसके जीवन का विवरण अर्थात् आत्मकथा-काल का उपहास करती हुई बिल्कुल अपरिवर्तित है और अब तक अमर है।” श्रीमती बेवरिज, जिसने तुर्की भाषा से इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया था, का कहना है-“बाबर की आत्मकथा एक वह अमूल्य भंडार है-जिसे सेंट आगस्टाइन तथा रूसो के स्वीकृति वचन और गिब्बन तथा न्यूटन की आत्मकथाओं के समकक्ष रखा जा सकता है।”

यह ग्रन्थ तत्कालीन भारतीय एवं मध्य एशिया के इतिहास का सच्चा दर्पण है। इसमें सभी घटनाओं का वर्णन बड़ा सजीव, मार्मिक तथा वस्तुनिष्ठ बन पड़ा है। इसमें न किसी चीज की अपेक्षा है और न ही अतिरंजना। इसमें प्रत्येक बात का वर्णन प्रत्यक्ष, स्पष्ट तथा नपे-तुले शब्दों में किया गया है। यह ग्रन्थ बड़ा मनोरंजक है। इसमें समस्त घटनाओं को एक क्रम से विधिपूर्वक दिया गया है। इसमें बाबर ने अपने बचपन, यौवन तथा प्रौढ़ावस्था को गूंथा है। यह ग्रन्थ बाबर के दु:खमय, संघर्षपूर्ण तथा कठिनाइयों से भरे जीवन की गाथा है। इसमें बाबर की काबुल तथा भारत विजय का मनोहर वर्णन पढ़ने को मिलता है। यह पुस्तक बाबर के प्रकृति-प्रेम को दर्शाती है। इसमें बाबर की सूक्ष्मदृष्टि पीलिभित होती है।

बाबर की आत्मकथा से हमें तत्कालीन भारत, काबुल, फरगना, समरकन्द तथा मध्य एशिया के लोगों के आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक जीवन की मनोहर झांकी भी देखने को मिलती है। इस सम्बन्ध में लेनपूल ने ठीक ही लिखा है, “उसकी आत्मकथा किसी अशिक्षित सैनिक के आक्रमणों तथा प्रत्याक्रमणों, रसों, सुरंगों, झिलमिलाते पदों, किलाबंदी की खचियाओं, सुरक्षा के लिए बने कटघरों, दुर्गों के बाह्य स्वरूपों, मन्द स्वर में दिए गए दर्द के शब्द तथा अन्य असार वस्तुओं का वर्णन मात्र नहीं हैं, वरन् एक ऐसे मनुष्य के व्यक्तिगत भावों का प्रतिबिम्ब है, जो संसार का एक सच्चा व्यक्ति था,. फारसी साहित्य का विद्वान था, एक गम्भीर तथा जिज्ञासु निरीक्षक था और तीक्ष्ण-बुद्धि मानव-स्वभाव का विचारशील परीक्षक तथा प्रकृति का अनन्य प्रेमी था।”

प्रश्न 2.
मुगल प्रशासन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल प्रशासन:-
1. केन्द्रीय प्रशासन:
बादशाह के हाथ में प्रशासन की समस्त शक्तियाँ थी। राज्य की सैनिक और असैनिक शक्तियाँ उसी के पास थी परंतु अकबर को सदा प्रजा की भलाई का ध्यान रहता था। उसने परामर्श के लिए कई मंत्री नियुक्त किए थे। ये मंत्री राज्य प्रबंध में उसे पूर्ण सहयोग देते थे। इन मंत्रियों में वकील (प्रधानमंत्री), मुख्य दीवान (वजीर), मीर बख्शी (वेतनाधिकारी) और मुख्य सदर (धार्मिक मंत्री) आदि मंत्री थे।

1. वकील-राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर बादशाह उसकी सलाह लेता था। राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण विभागों का वह निरीक्षण करता था। बैरम खाँ की मृत्यु के बाद वकील की समस्त शक्तियाँ समाप्त कर दी गईं। अब वह केवल नाममात्र का अधिकारी था।

2. मुख्य दीवान-यह अधिकारी राज्य की आय-व्यय का ब्यौरा रखता था। उसके हस्ताक्षरों के बिना राजकीय कोष से कुछ भी नहीं निकाला जा सकता था। वह प्रांतीय दीवानों की नियुक्ति में सम्राट को सलाह देता था।

3. मीर बख्शी-वह सम्राट की निजी सेना का प्रधान सेनापति था। वह राज्य के सैनिक और असैनिक अधिकारियों का वेतन बाँटता था। राज्य के समस्त मनसबदारों का हिसाब रखता था। वह कई बार सैनिक भी भर्ती करता था। वह गुप्तचर विभाग का प्रधान भी होता था। घोड़ों का निरीक्षण करने, प्रशिक्षण देने, अस्त्र-शस्त्रों के प्रबंध के अलावा वह रण सामग्री भी इकट्ठा करता था।

4. मुख्य सदर-राजा की ओर से धार्मिक संस्थाओं को दान दिया जाता था। वह देखता था कि दान में दिया गया धन ठीक कार्य में लग रहा है या नहीं। यही अधिकारी सिविल जज का काम भी करता था।

5. खान-ए-सामा-वह राजकीय परिवार के कार्यों की देखभाल तथा प्रबंध करता था। राजकीय इमारतों, बागों आदि की देखभाल करता था।

प्रश्न 3.
प्रान्तीय एवं स्थानीय प्रशासन:
1605 ई. में अकबर के प्रांतों की संख्या 15 थी। प्रत्येक प्रांत के प्रबंध की जिम्मेदारी एक सूबेदार के हाथों में थी। वह शाही परिवार का सदस्य या बहुत अधिक विश्वासपात्र व्यक्ति होता था। पूरे प्रांत में शांति और व्यवस्था बनाए रखना उसका प्रमुख काम था। उसे कई सैनिक और न्याय सम्बन्धी अधिकार प्राप्त थे। लेकिन बादशाह की अनुमति के बिना किसी से युद्ध या संधि नहीं कर सकता था। बादशाह की अनुमति के बिना वह किसी को मृत्यु दण्ड भी नहीं दे सकता था।

दीवान प्रान्तीय आय:
व्यय का ब्यौरा रखता था। वह राजस्व सम्बन्धी मुकदमों का निर्णय भी करता था। उसकी नियुक्ति केन्द्र द्वारा मुख्य दीवान के परामर्श से की जाती थी। प्रान्तीय सेना को वेतन बाँटने का काम मीर बख्शी का होता था। सेना को संभालने का काम फौजदार का होता था। बड़े-बड़े नगरों का प्रबंध कोतवाल संभालते थे तथा काजी न्याय सम्बन्धी कार्यों में सहायता देता था। आमिल गुजार लगान इकट्ठा करके सरकारी खजाने में जमा करवाते थे। गाँवों का प्रबंध पंचायतें करती थीं। इनकी सहायता के लिए मुकद्दम, पटवारी और फौजदार आदि होते थे।

प्रश्न 4.
मनसबदारी प्रथा का क्या अर्थ है? इसकी प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मनसबदारी का अभिप्राय:
मनसबदारी अरबी भाषा का एक शब्द है। इसका अर्थ है-पदवी या स्थान निश्चित करना। मनसबदारी वह प्रणाली थी, जिसके अनुसार कर्मचारियों का पद, वेतन और दरबार में स्थान निश्चित किया जाता था। मनसबदार मुगल राज्य का नौकर था। प्रत्येक मनसबदार को अपनी मनसब के अनुसार घुड़सवार, हाथी, ऊँट, और गाड़ियाँ आदि रखनी पड़ती थी। मनसब केवल सैनिक अधिकारियों को ही नहीं, नागरिक अधिकारियों को भी दिए जाते थे। काजी, सदर, चित्रकारों और विद्वानों को भी मनसब दिए जाते थे, लेकिन सैनिक अधिकारियों के समान उन्हें निश्चित संख्या में हाथी, घोड़े और सैनिक आदि रखने पड़ते थे। इस तरह मुमल राज्य में मनसबदारी के अतिरिक्त अमीरों की कोई अलग श्रेणी नहीं थी।

मनसबदारी प्रथा की विशेषताएँ:
1. मनसबदारी की योग्यता-साधारण मनसब के लिए मनसबदार की योग्यता और राज-भक्ति का विचार किया जाता था लेकिन ऊँचे मनसबं के लिए यह देखा जाता था कि वह राज-परिवार या ऊँचे खानदान का व्यक्ति हो।

2. मनसबदारों की नियुक्ति, पदोन्नति और पद-मुक्ति-मनसबदारों की नियुक्तियाँ सम्राट स्वयं करता था। मनसब पाने वाले व्यक्ति को मीर बख्शी के पास ले जाया जाता था। मीर बख्शी उसे सम्राट के सामने पेश करता था। सम्राट् उसकी योग्यता और मीर बख्शी की सलाह से मनसबदार नियुक्ति कर देता था। नियुक्ति के बाद उसका नाम सरकारी रजिस्टरों में दर्ज कर लिया जाता था। मनसबदारों की पदोन्नति भी, सम्राट की इच्छा पर होती थी। सम्राट् जब चाहे किसी भी मनसबदार को उसके पद से हटा सकता था।

मनसबदारों की श्रेणियाँ:
अबुल फज्ल के अनुसार, “मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।” अकबर के शासन काल में सबसे छोटा मनसब 10 सैनिकों और सबसे बड़ा मनसब दस हजार का होता था। बाद में राजकुमारों का मनसब बारह हजार तक कर दिया गया। साधारण मनसबदारों का सर्वोच्च मनसब सात हजार तक था। अकबर ने सम्भवतः तीन अमीरों-मिर्जा शाहरूख, अजीज कोका और राजा मानसिंह को ही सात हजार का मनसब दिया था।

मनसबदारों के लिए जाब्ती प्रथा:
यह जरूरी नहीं था कि मनसबदार के पुत्र को भी वही मनसब मिले जो उसे दिया गया था। मनसबदार की मृत्यु के बाद उसकी अचल सम्पत्ति जब्त कर ली जाती थी। उसे सरकारी खजाने में जमा कर दिया जाता था। मनसबदार अपने मनसब के अनुसार घुड़सवार नहीं रखते थे। वे अपने मनसब का केवल एक निश्चित भाग रखते थे। इसलिए 1594-95 ई. में अकबर ने सवार मनसब की स्थापना की।

जात और सवार:
अकबर ने अपने शासन काल के अंतिम वर्षों में 300 से ऊँचे मनसबों के लिए जात और सवार नामक दो पद जारी किए। ब्लोच मैन के अनुसार, “मनसबदार से जितने सैनिक रखने की आशा की जाती थी, उसे जात मनसब कहा जाता था।” डॉ. त्रिपाठी के अनुसार, “सवार मनसब एक अतिरिक्त सम्मान था, लेकिन फिर भी इसके लिए उसे भत्ता मिलता था। इस पद को पाने वाला मनसबदार किसी निश्चित संख्या में घुड़सवार रखने के लिए बाध्य नहीं था।” डॉ. ईश्वरी प्रसाद और ए.एल. श्रीवास्तव आदि का मत है कि “मनसबदारों को पहली, दूसरी और तीसरी श्रेणी में बाँटने के नियम निम्नवत् जारी किये गए थे –

  • जिन मनसबदारों के जात और सवार मनसब समान होते थे वे पहली श्रेणी के मनसबदार कहलाते थे।
  • जिनका सवार मनसब आधा या आधे से अधिक होता था वे दूसरी श्रेणी के मनसबदार कहलाते थे।
  • जिनका सवार मनसब जात मनसब के आधे से कम होता था उन्हें तीसरी श्रेणी का मनसबदार कहते थे।

मनसबदारों का वेतन:
मनसबदारों को नकद वेतन दिया जाता था। वेतन के साथ ही उनके सैनिकों तथा वाहनों का व्यय भी दिया जाता था। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के दसहजारी मनसबदारों को क्रमश: 30 हजार, 29 हजार और 28 हजार रुपये प्रति मास वेतन दिया जाता था।

मनसबदारों की सेना का निरीक्षण:
मनसबदारों के सैनिकों का समय-समय पर निरीक्षण किया जाता था। उनके घोड़ों को दाग दिया जाता था और उनके सैनिकों का हुलिया रिकार्ड किया जाता था। इसका उद्देश्य यह था कि मनसबदार निश्चित सैनिक और घोड़े अपने पास रखें।

मनसबदारी प्रथा के गुण:

  1. मनसबदार अपने वेतन के लिए सम्राट् पर निर्भर होते थे इसलिए वे विद्रोह नहीं कर सकते थे।
  2. मनसब योग्यता के आधार पर दिये जाते थे। पिता के बाद उसका पुत्र यदि योग्य नहीं है तो उसको पिता का मनसब नहीं मिल सकता था। इस तरह योग्य अधिकारियों के नियुक्त किए जाने से राज्य के सभी कार्य भली प्रकार होने लगे।
  3. सरदारों को बड़ी-बड़ी जागीरें देने से संभावित आर्थिक हानि अब शेष न रही। मनसबदार की मृत्यु के बाद उसकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली जाती थी। इससे राज्य की आय में काफी वृद्धि हुई।
  4. अलग-अलग जातियों के मनसबदार एक-दूसरे के विरुद्ध सन्तुलन बनाए रखते थे।

मनसबदारी प्रथा के दोष –

  1. मनसबदारों के सैनिक सम्राट् की अपेक्षा अपने सरदार के प्रति अधिक वफादार थे।
  2. एक मनसबदार जीवन-भर एक सैनिक दल का सेनापति रहता था। वह भिन्न-भिन्न प्रकार के सैनिकों को सम्भालने के अनुभव से वंचित रहता था।
  3. मनसबदारों को भारी वेतन मिलता था इससे सरकारी धन का बहुत अपव्यय होता था। इसके अलावा मनसबदार अधिक समृद्ध होने पर अपने कर्तव्यों का ठीक तरह से पालन भी नहीं करते थे।

प्रश्न 5.
क्या अकबर एक राष्ट्रीय सम्राट था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अकबर एक राष्ट्रीय सम्राट-अकबर भारत के सबसे महान् सम्राटों में से एक था। वह एक महान् राष्ट्र-निर्माता था। राष्ट्र से अभिप्राय ऐसे लोगों के समूह से है जिनके हितों में समानता होती है। अकबर के राज्य में भिन्न-भिन्न नस्लों के लोग थे, जो भिन्न-भिन्न धर्मों के अनुयायी थे और भिन्न-भिन्न भाषा बोलते थे लेकिन अकबर ने उनसे समानता का व्यवहार किया। उसके प्रयत्नों से भारतीय जनता भाषा, धर्म और संस्कृति के मतभेदों को भुलाकर अपने को एक राष्ट्र का अंग समझने लगी।

अकबर रक्त से चाहे विदेशी था; लेकिन भारत उसकी जन्म-भूमि थी (अकबर का जन्म सिन्ध प्रांत के अमरकोट नामक स्थान पर हुआ था) अतः अकबर को अपने पूर्वजों की अपेक्षा इस भूमि में अधिक लगाव था। उसने राजनैतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक एकता के आधार पर राष्ट्रीय शासक का सम्मान प्राप्त किया। अकबर को राष्ट्रीय शासक स्वीकार करने वाला पहला इतिहासकार मैलीसन था। उसके अनुसार, “अकबर भारत में राजनैतिक एकता का संस्थापक था।” यह सत्य है कि राष्ट्र की आधुनिक परिभाषा में मध्य युग का भारत नहीं आता लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों में वह निस्सन्देह राष्ट्रीय शासक था।

राजनैतिक, प्रशासनिक तथा आर्थिक एकता (Political, administrative and economic unity):

1. अकबर ने अपनी राजनीति, कूटनीति तथा विजयों से सारे उत्तरी भारत तथा दक्षिणी भारत के कुछ भागों को एक ही राजसत्ता अर्थात् शासन के अधीन लाने का प्रयत्न किया। उत्तर-पश्चिमी विजयें तो भारतीय साम्राज्य की सुरक्षा के लिए ही थीं। इससे स्पष्ट है कि अकबर ने भारत में राजनैतिक एकता स्थापित की। पं. जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में, “उसने भारतीय एकता का पुराना स्वप्न फिर से साकार करा दिया।

2. भारत के एकीकरण के लिए प्रशासनिक एकता अत्यन्त आवश्यक थी। अकबर ने अपने सारे साम्राज्य में समान न्याय-व्यवस्था, भूमि-कर-व्यवस्था तथा सैनिक-व्यवस्था स्थापित की। उसने अपने साम्राज्य में ही शासन-व्यवस्था तथा मुद्रा प्रणाली को चलाकर देश को ऐसी प्रशासनिक एकता प्रदान की जो उसे पहले कभी प्राप्त नहीं हुई थी। सारे देश में एक सरकारी भाषा, सारी प्रजा के लिए एक ही कानून और समान सुविधाएँ होने से भिन्न-भिन्न प्रान्तों के लोगों में भाई-चारे की भावना उत्पन्न हुई और वे अपने को एक राष्ट्र का नागरिक समझने लगे।

3. अकबर ने जन-हित का सदा ध्यान रखा। उसने अपने साम्राज्य की वृद्धि एवं सम्पन्नता के लिए कृषि, उद्योग तथा वाणिज्य का विकास किया । यातायात के साधनों को सुधारकर तथा विदेशी व्यापार बढ़ाकर उसने साम्राज्य की आर्थिक दशा सुधारने तथा लोगों की सुख-समृद्धि बढ़ाने का प्रयत्न किया। भूमि सम्बन्धी सुधार करके किसानों की दशा में भी वृद्धि हुई; लेकिन उसने कृषि, उद्योग तथा व्यापार के क्षेत्र में एक-सी व्यवस्था लागू करके आर्थिक एकता लाने का प्रयत्न किया।

सांस्कृतिक एकीकरण (Cultural unity):
अकबर ने अपनी प्रजा का सांस्कृतिक एकीकरण करने के लिए भी महत्त्वपूर्ण प्रयत्न किये। इसके लिए उसने धार्मिक समानता और सामाजिक एकता की नीति अपनाई तथा शिक्षा, साहित्य और कला का राष्ट्रीयकरण किया। अकबर ने देश के भिन्न-भिन्न धर्मों में एकता लाने के लिए सभी धर्मों के प्रति नरम स्वभाव अपनाया। उसने अपने राज्य के हिन्दू, जैन, पारसी, ईसाई तथा मुसलमानों को समान अधिकार दिए। उसने सभी धर्मों की अच्छी-अच्छी बातों को लेकर “दीन-ए-इलाही” धर्म की स्थापना की, ताकि सभी को एक ही धर्म में लाया जा सके।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
इतिवृत्त क्या है?
(अ) भारत का इतिहास है
(ब) बादशाह के समय की घटनाओं का लेखा-जोखा है
(स) शासक की आत्मकथा है
(द) लेखकों की जीवनी है
उत्तर:
(ब) बादशाह के समय की घटनाओं का लेखा-जोखा है

प्रश्न 2.
मुगल शासक अपने को तैमूर से क्यों जोड़ते हैं?
(अ) वे तैमूर के वंशज थे
(ब) तैमूर शक्तिशाली आक्रमणकारी था
(स) वह धनवान था
(द) उसने भारत पर आक्रमण किया है
उत्तर:
(अ) वे तैमूर के वंशज थे

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौन-सा मुगल शासक शिवाजी का समकालीन था?
(अ) अकबर
(ब) जहाँगीर
(स) शाहजहाँ
(द) औरंगजेब
उत्तर:
(द) औरंगजेब

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में अंतिम मुगल शासक कौन था?
(अ) बहादुरशाह जफर
(ब) औरंगजेब
(स) शाहजहाँ
(द) जहाँगीर
उत्तर:
(अ) बहादुरशाह जफर

प्रश्न 5.
मुगलकाल में किस भाषा का महत्त्व अधिक था?
(अ) तुर्की
(ब) फारसी
(स) उर्दू
(द) हिन्दवी
उत्तर:
(ब) फारसी

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में कौन-सा इतिहास मुगल वंश से संबंधित नहीं है?
(अ) अकबरनामा
(ब) शाहजहाँनामा
(स) आलमगीरनामा
(द) रज्मनामा
उत्तर:
(द) रज्मनामा

प्रश्न 7.
नस्तलिक किसकी पसंदीदा शैली थी?
(अ) जहाँगीर
(ब) शाहजहाँ
(स) अकबर
(द) औरंगजेब
उत्तर:
(स) अकबर

प्रश्न 8.
इतिहास में रंगीन चित्रों के प्रति उलेमाओं का क्या दृष्टिकोण था?
(अ) वे पसंद करते थे
(ब) वे घृणा करते थे
(स) समय के अनुसार उनका दृष्टिकोण अलग था
(द) कोई दृष्टिकोण नहीं था
उत्तर:
(ब) वे घृणा करते थे

प्रश्न 9.
बिहजाद कहाँ का चित्रकार था?
(अ) तुर्की
(ब) इराक
(स) ईरान
(द) भारत
उत्तर:
(स) ईरान

प्रश्न 10.
न्याय के लिए सोने की जंजीर किसने बनवाई था?
(अ) अकबर
(ब) जहाँगीर
(स) शाहजहाँ
(द) औरंगजेब
उत्तर:
(ब) जहाँगीर

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन मुगलों की राजधानी नहीं बनी?
(अ) आगरा
(ब) दिल्ली
(स) फतेहपुरी
(द) इलाहाबाद
उत्तर:
(द) इलाहाबाद

प्रश्न 12.
कोर्निश क्या था?
(अ) अभिवादन का एक तरीका
(ब) स्थापत्य का एक ढंग
(स) चित्रकारी का एक ढंग
(द) संगीत का एक राग
उत्तर:
(अ) अभिवादन का एक तरीका


BSEB Textbook Solutions PDF for Class 12th


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