Bihar Board Class 12th History Mahatma Gandhi and the Nationalist Movement Civil Disobedience and Beyond Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | History Mahatma Gandhi and the Nationalist Movement Civil Disobedience and Beyond |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 12th History Mahatma Gandhi and the Nationalist Movement Civil Disobedience and Beyond Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)
प्रश्न 1.
महात्मा गांधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
महात्मा गांधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए निम्नलिखित कार्य किये –
- महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के परामर्शानुसार एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा की ताकि वे इस भूमि और इसके लोगों को अच्छी तरह जान सकें।
- गांधी जी ने अपने को आम लोगों की वेशभूषा धारण की। उन्होंने खादी के वस्त्र पहने, हाथ में लाठी उठाई, चरखा काता। हरिजनों के हितों, महिलाओं के प्रति सद्व्यवहार किया और उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त की। उन्होंने अपने भाषणों में यह बार-बार दोहराया कि भारत गाँवों में बसता है। किसानों और गरीब लोगों की समृद्धि और खुशहाली के बिना देश की उन्नति नहीं हो सकती।
- उन्होंने आम लोगों यथा-किसान और मजदूरों के दुःख दूर करने के लिए. चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में आंदोलनों का सूत्रपात अकेले किया।
- वे आम व्यक्ति की तरह भगवान की पूजा करते थे और जन-सेवा में लगे रहते थे।
प्रश्न 2.
किसान महात्मा गांधी को किस तरह देखते थे?
उत्तर:
- गांधी जी को किसान अपना हमदर्द मानते थे। इसीलिए जब उन्होंने फरवरी 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में किसानों या आम आदमियों को देखा तो वे दुःखी हो गये। इसके लिए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में आयोजकों की निन्दा की।
- गरीब किसान भूराजस्व को कम कराने तथा भूराजस्व की दर कम करवाने के लिए अधिकारियों, जमींदारों, को शोषण से मुक्त होने तथा समस्याओं को दूर करने की आशा गाँधी जी को समक्ष मानते है।
- किसानों को सेषण से मुक्त होने तथा समस्थाओं को दूर करने की आशा गाँधी जी पर टीकी थी।
- वे जानते थे कि केवल गाँधी जी ही उनके कुटीर उद्योगों को बर्बाद होने से बचा सकते हैं।
- किसान गांधी जी को लोकप्रिय नेता और अपने में से एक समझते थे। उनका यह मानना था कि वे उन्हें अंग्रेजों की दासता, जमींदारों के शोषण और साहूकारों के चंगुल से अहिंसात्मक आन्दोलनों और शांतिपूर्ण प्रतिरोधों द्वारा बचायेंगे।
प्रश्न 3.
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?
उत्तर:
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा बनने के कारण –
- महात्मा गांधी ने घोषणा की कि नमक मनुष्य की बुनियादी जरूरत है और सभी लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता है। इस पर ब्रिटिश सरकार का एकाधिकार रहना मानव जाति के प्रति घोर अत्याचार है।
- नमक उत्पादन और विक्रय पर राज्य के एकाधिकार को तोड़ना आवश्यक है।
- लोगों को नमक बनाने से रोकना नागरिक अधिकारों को घोर दमन है। भारतीय घर में नमक का प्रयोग अपरिहार्य था परन्तु इसके बावजूद उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोका गया। फलस्वरूप लोगों को ऊँचे दामों पर नमक खरीदना पड़ता था।
प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आन्दोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन के अध्ययन में अखबार का महत्त्व –
- इनसे देश में होने वाली घटनाओं, नेतागणों और अन्य लोगों की गतिविधियों, विचारों आदि की जानकारी मिलती है।
- उदाहरण के लिए-नमक आन्दोलन के विषय में अमेरिकी समाचार पत्रिका ‘टाइम’ का आरंभ में गांधी जी की हँसी उड़ाना है परन्तु बाद में इस आंदोलन से अंग्रेज शासकों की नींद हराम होने की बात करना स्वयमेव दर्शाता है कि वह आंदोलन कितना प्रभावशाली था इनमें आंदोलनकारियों का मनोबल बड़ा होगा।
- लेखकों, कवियों, पत्रकारों, साहित्यकारों और विचारकों के नजदीक लाकर आम-जनता को एक नई दिशा में आगे बढ़ाते हैं।
- अखबार जनमत का निर्माण और इसकी अभिव्यक्ति करते हैं। यह सरकार और सरकारी अधिकारियों तथा आम लोगों के विचारों और समस्या के विषय में जानकारी देकर व्यष्टि स्तर पर श्रेष्ठ कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 5.
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
उत्तर:
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक चुनने के कारण –
- महात्मा गांधी मशीनीकरण के विरुद्ध थे। उनका मानना था कि मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर उनका स्वास्थ्य प्रभावित किया है तथा श्रमिकों के हाथों से काम और रोजगार छीन लिया है।
- चरखा स्वयं में एक सहज और सरल मशीन था जो प्रत्येक व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता था।
- उन्होंने मशीनों की आलोचना की और चरखे को ऐसे मानव समाज के प्रतीक रूप में देखा जिसमें मशीनों और प्रौद्योगिकी को अधिक महत्त्व नहीं दिया जायेगा।
- गांधी जी के अनुसार भारत एक गरीब देश है। चरखा गरीबों को पूरक आमदनी प्रदान करेगा। वे स्वावलंबी बनेंगे और गरीबी तथा बेरोजगारी से उन्हें छुटकारा मिलेगा।
- महात्मा गांधी मानते थे कि मशीनों से श्रम बचाकर लोगों को मौत के मुँह में ढकेलना या उन्हें बेरोजगार करके सड़क पर फेंकना एक बराबर है। चरखा धन के केन्द्रीकरण को रोकने में भी सहायक है।
प्रश्न 6.
असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन एक प्रतिरोध के रूप में –
1. औपनिवेशिक सरकार ने ‘रोलेट एक्ट’ पारित कर दिया जिसके अनुसार दोष सिद्ध हुए बिना ही किसी को भी जेल में बंद किया जा सकता था। गांधी जी ने इसके विरुद्ध अभियान चलाया। इसी को लेकर जलियाँवाला बाग में एक सभा हो रही थी। वहाँ जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। जिनमें सैकड़ों लोग मारे गये। गांधीजी ने इसके विरोध में असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया।
2. उन्होंने लोगों से अपील की कि वे सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय में न जाएँ तथा कर न चुकाएँ। उन्होंने कहा कि स्वेच्छा से इसका पालन करें जिससे स्वराज्य मिल सके। इस प्रकार उन्होंने लोगों से प्रतिरोध करने की अपील की।
3. असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध आंदोलन था क्योंकि राष्ट्रीय नेता उन अंग्रेज अधिकारियों को कठोर दंड दिलाना चाहते थे जिन्होंने अमृतसर के जलियाँवाला बाग में प्रदर्शनकारियों और जलसे में भाग लेने वालों की गोलियों से निर्मम हत्या कर दी थी।
4. खिलाफत आन्दोलन के साथ चलाया गया यह असहयोग आंदोलन देश के हिन्दू और मुसलमानों का अन्यायी ब्रिटिश सरकार को आगे ऐसे जघन्य कार्यों से रोकने का प्रतिरोध करने का था।
5. इंस प्रतिरोध को सरकारी अदालतों का बहिष्कार करके संपन्न किया गया था।
6. विदेशी शिक्षा संस्थाओं और सरकारी विद्यालयों और कॉलेजों के समान्तर राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाएँ खोलना भी एक प्रतिरोध ही था।
7. उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जनजातियों द्वारा वन्य कानूनों की अवहेलना किया जाना। अवध के किसानों द्वारा कर न चुकाया जाना और कुमाऊँ के किसानों द्वारा औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से इन्कार किया जाना भी एक प्रतिरोध ही था।
प्रश्न 7.
गोलमेज सम्मेलन से हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
उत्तर:
गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से नतीजा न निकलने के कारण:
दाण्डी यात्रा ने अंग्रेजों को यह अहसास करा दिया कि उनका शासन अधिक दिन नहीं चलने वाला है। अब भारतीयों को सत्ता में हिस्सा देकर ही शान्त किया जा सकता था। इसके लिए आयोजित तीन गोलमेज सम्मेलन निम्नलिखित कारणों से बिफल रहे –
- प्रथम गोलमेज सम्मेलन (नवम्बर 1930) में वायसराय इर्विन ने कैदियों की रिहाई और तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया।
- 1931 के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में मुस्लिम लीग और डा. अम्बेडकर की पार्टी ने कांग्रेस को एकमत से समर्थन न दिया।
- तीसरे गोलमेज सम्मेलन में इंग्लैण्ड की लेबर पार्टी द्वारा भाग न लिए जाने के कारण कांग्रेस ने इसका बहिष्कार कर दिया था।
प्रश्न 8.
महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
उत्तर:
महात्मा गांधी द्वारा राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप में बदलाव:
1. 1915 में भारत आकर गाँधी जी ने आंदोलन के निम्नलिखित पहलू तय किए –
- सत्याग्रह
- अहिंसा
- शांति
- गरीबों के प्रति सच्ची सहानुभूति
- महिलाओं का सशक्तिकरण
- साम्प्रदायिक सद्भाव
- अस्पृश्यता का विरोध
- कल्याणकारी कार्यक्रम
- कुटीर उद्योग धंधे
- चरखा, खादी आदि के अपनाने पर बल
- रंगभेद और जातीय भेद का विरोध
2. महात्मा गांधी ने अपने भाषणों को देकर और पत्र:
पत्रिकाओं में लेख छपवाकर एवं पुस्तकों के माध्यम से औपनिवेशिक शासन में भुखमरी, निम्न जीवन स्तर, अशिक्षा, अंधविश्वास और सामाजिक फूट के कारणों का खुला पर्दाफाश किया तथा इसके लिए ब्रिटिश सरकार को ही एकमात्र दोषी साबित कर दिया।
3. गांधी जी ने राष्ट्रीय आन्दोलन में ग्रामीण लोगों, श्रमिकों, सर्वसाधारण, महिलाओं और युवाओं आदि सभी को शामिल कर लिया था। वे मानते थे कि जब तक ये सभी लोग राष्ट्रीय संघर्ष से नहीं जुडेंगे तब तक ब्रिटिश सत्ता में शांतिपूर्ण, अहिंसात्मक आन्दोलनों और सत्याग्रहों आदि से नहीं हटाया जा सकता।
4. गांधी जी ने अहमदाबाद और खेड़ा में गरीब किसानों और श्रमिकों के लिए आंदोलन चलाकर यह सिद्ध कर दिया था कि वे आम जनता के साथ हैं।
5. गांधी जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। असहयोग आंदोलन के साथ खिलाफत आंदोलन को जोड़ कर उन्होंने साबित कर दिया था कि एकता रहने पर ही स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है।
6. वे अपने सभी अनुयायियों एवं राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं को बड़े सरल ढंग से समझाते थे कि अहिंसात्मक ढंग से शांतिपूर्ण सत्याग्रह ही प्रबुद्ध, न्यायप्रिय, उदार, मानवतावादी तथा लोकतंत्र समर्थक लोगों का विश्वास जीत सकता है।
7. उन्होंने स्त्री और पुरुष दोनों को आंदोलन में समान रूप से जोड़ा।
प्रश्न 9.
निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है? ये स्त्रोत सरकारी ब्यौरों से किस तरह भिन्न होते हैं?
उत्तर:
निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में मिलने वाली जानकारी और सरकारी ब्यौरों से इनकी भिन्नता –
1. निजी पत्रों और आत्मकथाओं से लेखक के भाव और उसके भाषा स्तर की जानकारी मिलती है।
2. निजी पत्र से विभिन्न घटनाओं और व्यक्तियों के बारे में जानकारी मिलती है। उदाहरण के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखे गए पत्र और पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा महात्मा गांधी को लिखे गए पत्र।
3. विभिन्न नेताओं, संगठनों द्वारा लिखे गये .पत्रों से सरकार के दृष्टिकोण, व्यवहार, प्रशासन की आंतरिक जानकारी पर बतायी विशेष के विचारों की झलक मिलती है।
4. आत्मकथाएँ व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन काल, जन्म स्थान उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, व्यवसाय, रुचियों, प्राथमिकताओं, कठिनाइयों, जीवन में आए उतार-चढ़ाव तथा जीवन से जुड़ी अन्य घटनाओं के बारे में भी बताती हैं।
5. निजी पत्र और आत्मकथायें सरकारी ब्यौरों से भिन्न होती हैं। सरकारी ब्यौरे प्रायः उलटबाँसी वाले या रहस्यपूर्ण होते हैं। ये सरकार और लिखने वाले लेखकों के पूर्वाग्रहों, नीतियों और दृष्टिकोण आदि से प्रभावित होते हैं। निजी पत्र व्यक्तियों के मध्य आपसी संबंध, विचारों के आदान-प्रदान और निजी स्तर से जुड़ी सूचनाएँ देने के लिए होते हैं। किसी व्यक्ति की आत्मकथा उसकी ईमानदारी, निष्पक्षता और सत्यपरक स्व-मूल्यांकन को दर्शाती है।
मानचित्र कार्य
प्रश्न 10.
दाण्डी मार्च के मार्ग का पता लगाइए। गुजरात के नक्शे पर इस यात्रा के मार्ग चिन्हित कीजिए और उस पर पड़ने वाले मुख्य शहरों व गाँवों को चिन्हित कीजिए।
उत्तर:
दाण्डी मार्च अहमदाबाद (गुजरात) के निकट स्थित साबरमती आश्रम से शुरू हुआ तथा दाण्डी समुद्र तट तक गया।
परियोजना कार्य
प्रश्न 11.
दो राष्ट्रवादी नेताओं की आत्मकथाएँ पढ़िए। देखिए कि उन दोनों में लेखकों ने अपने जीवन और समय को किस तरह अलग-अलग प्रस्तुत किया है और राष्ट्रीय आन्दोलन की किस प्रकार व्याख्या की है। देखिए कि उनके विचारों में क्या भिन्नता है। अपने अध्ययन के आधार पर एक रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान घटी कोई एक घटना चुनिए। उसके विषय में तत्कालीन नेताओं द्वारा लिखे गये पत्रों और भाषणों को खोज कर पढ़िए। उनमें से कुछ अब प्रकाशित हो चुके हैं। आप जिन नेताओं को चुनते हैं उनमें से कुछ आपके इलाके भी हो सकते हैं। उच्च स्तर पर राष्ट्रीय नेतृत्व की गतिविधियों को स्थानीय नेता किस तरह देखते थे इसके बारे में जानने की कोशिश कीजिए। अपने अध्ययन के आधार पर आन्दोलन के बारे में लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
Bihar Board Class 12 History महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
रोलेट एक्ट के प्रावधान बताइए।
उत्तर:
- ब्रिटिश सरकार द्वारा रोलेट एक्ट 1919 में पारित किया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को बिना सुनवाई का अवसर दिए किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है।
- वस्तुतः यह अधिनियम भारतीयों द्वारा चलाए गए सभी तरह के आंदोलनों को रोकने के लिए पास किया गया। गाँधी जी सहित अन्य नेताओं ने इसका जमकर विरोध किया।
प्रश्न 2.
असहयोग आन्दोलन के शुरू होने के मुख्य कारण लिखें।
उत्तर:
गाँधी जी ने 1920 ई. में असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। इसके निम्नलिखित कारण थे –
1. रोलेट एक्ट:
प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 ई. में रोलेट एक्ट पास किया गया। इसके द्वारा सरकार अकारण ही किसी व्यक्ति को बन्दी बना सकती थी। इससे असंतुष्ट होकर महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन चलाया।
2. जलियाँवाला बाग की दुर्घटना:
रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में जलियाँवाला बाग के स्थान पर एक जनसभा बुलायी गई। जनरल डायर ने इस सभा में एकत्रित सर्वप्रथम सत्याना वहाँ उन्होंने विा और घटना से दुःखी होकर असहयोग आन्दोलन आरंभ कर दिया।
प्रश्न 3.
दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी की दो उपलब्धियाँ बताइए।
उत्तर:
- दक्षिण अफ्रीका में ही महात्मा गाँधी ने सर्वप्रथम सत्याग्रह के रूप में प्रचलित अहिंसात्मक विरोध की अपनी विशिष्ट तकनीक का इस्तेमाल किया।
- वहाँ उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया तथा उच्च जातीय भारतीयों को निम्न जातियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव वाले व्यवहार को चेताया।
प्रश्न 4.
1905-07 के स्वदेशी आन्दोलन के तीन प्रमुख नेताओं के नाम बताइए।
उत्तर:
- महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक।
- बंगाल के विपिन चन्द्र पाल।
- पंजाब के लाला लाजपत राय।
प्रश्न 5.
बारदोली आन्दोलन का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
बारदोली में मजदूरों और किसानों के आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन का अंग माना गया तथा उनके आर्थिक और सामाजिक उत्थान के उद्देश्य पर विचार किया गया।
प्रश्न 6.
26 जनवरी 1930 ई. को जनता द्वारा ली गई स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा के दो मुख्य पहलू लिखिए।
उत्तर:
- प्रथम राजनीति पहलू था: “हम यह विश्वास करते हैं कि यदि कोई सरकार लोगों को उनके मूल अधिकारों से वंचित रखती है और माँग उठाने पर निर्दयता से दमनचक्र चलाती है तो लोगों को भी यह अधिकार है कि वे उसे बदल दें या समाप्त कर दें।”
- द्वितीय आर्थिक पहलू था-“भारत को आर्थिक दृष्टि से बर्बाद कर दिया गया है। हम लोगों से आय के अनुपात में बहुत अधिक धन वसूला जाता है ….. हम ऐसी सरकार के सामने कदापि नहीं झुकेंगे जिसने हमारे देश को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है।”
प्रश्न 7.
गांधी जी ने चम्पारन सत्याग्रह क्यों शुरू किया?
उत्तर:
- चम्पारन (बिहार) में यूरोप के व्यापारी किसानों से नील की खेती कराते थे और उनके ऊपर अनेक प्रकार के अत्याचार करते थे। उन्हें उत्पादन का उचित मूल्य नहीं दिया जाता था।
- महात्मा गांधी अफ्रीका के अपने आन्दोलन के अनुभव का प्रयोग चम्पारन में करना चाहते थे। राष्ट्रीय आंदोलन में किसानों का सहयोग पाने के लिए ऐसा करना आवश्यक था।
प्रश्न 8.
1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम की दो प्रमुख धारायें क्या थी?
उत्तर:
- इसके अंतर्गत विधान परिषदों का आकार बढ़ाया गया और निर्वाचन की व्यवस्था की गई।
- प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली लागू की गई और प्रांतीय सरकारों को अधिक अधि कार दिये गये।
प्रश्न 9.
खिलाफत आन्दोलन की असहयोग आन्दोलन में क्या भूमिका थी?
उत्तर:
- खिलाफत आन्दोलन ने मुसलमानों को राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
- मुसलमानों ने 1920 ई. में खिलाफत आन्दोलन चलाकर अंग्रेजों को किसी भी तरह का सहयोग देना बंद कर दिया था।
प्रश्न 10.
अखिल भारतीय प्रजामंडल आन्दोलन क्यों आरंभ किया गया?
उत्तर:
देशी राज्यों में जनता की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक दशा अत्यंत खराब थी। राजा जनता के स्वास्थ्य और शिक्षा की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं देते थे। वे राज्य के स्रोत का उपयोग राजकुमारों के ऐश्वर्य के लिए करते थे। इस शोचनीय दशा में सुधार लाने के लिए अखिल भारतीय प्रजामंडल नामक आन्दोलन आरंभ किया गया।
प्रश्न 11.
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन का महत्त्वपूर्ण पक्ष क्या था? अथवा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में दो कौन-कौन से प्रस्ताव पास किये गये? अथवा, स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कांग्रेस के 1929 ई. के लाहौर अधिवेशन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
- इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की मांग का प्रस्ताव पास किया और निर्णय लिया कि प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी का दिन सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाए। इस प्रकार 26 जनवरी 1930 का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया।
- इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की मांग का प्रस्ताव किया।
प्रश्न 12.
1935 के भारत सरकार के अधिनियम की क्या मुख्य विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
1935 के भारत सरकार अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं:
- केन्द्र में एक संघात्मक सरकार की स्थापना की गयी। इस संघ में प्रांतों का सम्मिलित होना आवश्यक था, जबकि रियासतों का सम्मिलित होना उनकी इच्छा पर निर्भर था।
- संघीय विधान मंडल के ‘राज्य परिषद्’ और ‘संघीय सभा’ दो सदन बनाये गये। राज्य परिषद् में प्रांतों के सदस्यों की संख्या 156 और रियासतों की संख्या 140 निश्चित की गई। संघीय सभा में प्रांतों के सदस्यों की संख्या 250 और रियासतों की संख्या 125 निश्चित की गई।
- यह भी निश्चित किया गया कि प्रांतों के प्रतिनिधि जनता के द्वारा चुने जाएँ और रियासतों के प्रतिनिधि राजाओं के द्वारा मनोनीत हों।
- केन्द्र के विषयों को रक्षित (Reserved) और प्रदत्त (Transferred) दो भागों में बाँटकर दोहरा शासन स्थापित किया गया। रक्षित विषय गर्वनर-जनरल के अधीन थे। जबकि प्रदत्त विषय मन्त्रियों को सौंपे गए। मंत्रियों को विधान मंडल के सामने उत्तरदायी ठहराया गया।
प्रश्न 13.
महात्मा गांधी की तुलना अब्राहम लिंकन से क्यों की जाती है?
उत्तर:
एक धर्मांध अमेरिकी ने लिंकन को मार दिया था क्योंकि उन्होंने नस्ल या रंग भेद को दूर करने का संकल्प लिया था। दूसरी ओर एक धर्मांध हिंदू ने गांधी की जीवन लीला इसलिए समाप्त कर दी क्योंकि वे भाईचारे का प्रचार कर रहे थे।
प्रश्न 14.
केबिनेट मिशन से क्या आशय है? भारतीय नेताओं के साथ इसकी बातचीत के क्या नतीजे निकले?
उत्तर:
16 मई, 1946 के दिन इंग्लैण्ड के श्रमिक दल की सरकार ने भारत की स्वतंत्रता के बारे में यहाँ के नेताओं से अंतिम बातचीत करने जो तीन सदस्यीय दल भेजा उसे कैबिनेट मिशन कहा गया इसके संघीय व्यवस्था के लिए कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों को मध्यस्त कर लिया था।
प्रश्न 15.
भारत को स्वतंत्रता किस प्रकार मिली?
उत्तर:
मुस्लिम लीग को पृथक राष्ट्र माँग को मानकर भारत और पाकिस्तान नामक दो राज्यों में विभाजन करने के बाद।
प्रश्न 16.
प्रजामंडल आंदोलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारतीय रियासतों (562) की जनता ने अपनी आजादी तथा अन्य सुविधाओं को माँगा। भूमिकर की कमी और बंधुआ मजदूरी की समाप्ति को लेकर आन्दोलन चलाया।
प्रश्न 17.
भारत छोड़ो आन्दोलन कब और क्यों चलाया गया?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात भारत को स्वतंत्रता देने से इंकार कर दिया जबकि युद्ध पूर्व इसका वचन दिया गया था। इसके विरोध में 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया।
प्रश्न 18.
राष्ट्रीय आन्दोलन में राजघरानों के लोगों को क्यों शामिल किया गया?
उत्तर:
- लगभग 563 राज्यों की रियासतों के बिना भारत सम्पूर्ण नहीं था।
- कांग्रेस इन राजघरानों को देश का अभिन्न अंग मानती थी।
प्रश्न 19.
प्रांतों में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने त्याग-पत्र क्यों दे दिए?
उत्तर:
1939 ई. के द्वितीय महायुद्ध में इंग्लैण्ड भी शामिल था। भारत के वायसराय लिनलिथगो ने कांग्रेस से उचित परामर्श लिए बिना ही भारत को इस युद्ध में शामिल कर दिया। इस बात से नाराज होकर कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने त्याग-पत्र दे दिए।
प्रश्न 20.
क्रिप्स मिशन भारत क्यों आया?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों को भेजने के लिए कांग्रेस को किसी तरह राजी करने के लिए।
प्रश्न 21.
‘खुदाई खिदमतगार आन्दोलन’ कहाँ और क्यों चलाया जा रहा था? इसके प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर:
- ‘खुदाई खिदमतगार आन्दोलन’ पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में किसानों द्वारा सरकार की मालगुजारी नीति के खिलाफ चलाया जा रहा था।
- इस आन्दोलन के प्रमुख नेता खान अब्दुल गफ्फार खान थे।
प्रश्न 22.
“साम्प्रदायिक पंचाट” की घोषणा किसने की? इसके प्रावधान क्या थे?
उत्तर:
- ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मेकडॉनल्ड ने 16 अगस्त 1932 में।
- दलितों को हिन्दुओं से अलग मानकर अलग प्रतिनिधित्व दिया जाय और दलित वर्गों के लिए एक अलग निर्वाचक मंडल दिया जाए।
प्रश्न 23.
शिमला कांफ्रेंस कब और क्यों हुई थी? इसके उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
- शिमला कांफ्रेंस 25 जून 1945 को शिमला में हुई।
- इसका उद्देश्य स्वच्छ राजनीतिक वातावरण बनाने के लिए सभी दलों के नेताओं को एकमत करना था।
प्रश्न 24.
वेवल योजना कब और क्यों बनाई गई।
उत्तर:
- वेवल योजना 14 जून, 1945 को लार्ड वेवल द्वारा बनाई गई।
- इसका उद्देश्य भारत में व्याप्त जनाक्रोश को कम करने का था।
प्रश्न 25.
गांधी जी ने साबरमती आश्रम की स्थापना क्यों की?
उत्तर:
- इसे राष्ट्रीय आन्दोलन के एक मुख्य केन्द्र के रूप में उपयोग में लाया जाना था।
- इसे चरखा चलाने, सूत कातने, खादी बनाने, शिक्षा का प्रचार करने, हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित करने तथा हरिजनों का कल्याण करने जैसे रचनात्मक कार्यों का केन्द्र बनाया जाना था।
प्रश्न 26.
चम्पारण सत्याग्रह शुरू करने के दो कारण बताइए।
उत्तर:
- चम्पारण में नील की खेती करने वाले किसानों पर यूरोपियन निलहें बहुत अत्याचार करते थे।
- भारतीय किसानों ने यूरोप के इन व्यापारियों से अपने शोषण के विरुद्ध गाँधी जी से सहयोग की अपील की थी।
प्रश्न 27.
बारदौली आन्दोलन क्यों किया गया?
उत्तर:
- यहाँ किसानों और बटाईदारों की दशा बहुत खराब थी वे लगान में कमी, बेदखली से सुरक्षा और कर्ज से राहत चाहते थे। परंतु अंग्रेजी सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही थी।
- 1928 में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किसानों के साथ टैक्स न देने का आन्दोलन चलाया।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
स्वतंत्रता आन्दोलन में बाल गंगाधर तिलक का क्या योगदान था? उनके कोई दो महत्त्वपूर्ण कार्य बताइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन में लाल, बाल और पाल तीन महान् विभूतियाँ थीं जो गरम दल के सिरमौर नेताओं के रूप में जानी जाती हैं। बाल अर्थात् बाल गंगाधर तिलक ने अनेक ऐसे कार्य किये जिनके लिये भारत उनका सदैव ऋणी रहेगा। यहाँ उनके दो प्रमुख योगदानों का वर्णन किया जा रहा है –
1. राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार:
बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करने के लिए गीतों, लेखों और भाषणों की सहायता ली। उन्होंने ‘मराठा’ और ‘केसरी’ समाचारपत्र निकाले जिनमें राष्ट्रवाद के विचार छपते थे। इन समाचारों में भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए दिलेर, आत्मनिर्भर और निःस्वार्थी बनने की प्रेरणा दी।
2. होमरूल लीग की स्थापना:
जेल से छूटते ही एनी बेसेन्ट की सहायता से होमरूल की स्थापना की। तिलक जी ने होमरूल के लिए देश में जोरदार प्रचार किया और-“स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा”-नारा दिया।
प्रश्न 2.
स्वदेशी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
स्वदेशी आन्दोलन:
स्वदेशी का अर्थ है – “अपने देश का” स्वतंत्रता संद्यर्ष में इसका अर्थ था – विदेशी वस्तुओं का परित्याग। देश के उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, दस्तकारों को काम मिलेगा, बेरोजगारी व गरीबी कम होगी तथा सारे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार आयेगा। इस आन्दोलन से देशवासियों में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत हुई। इससे भारत में अंग्रेजी माल की माँग प्रायः समाप्त हो गई। इसका प्रभाव इंग्लैण्ड के उद्योगों पर बहुत बुरा पड़ा। कांग्रेस पार्टी ने 1905 अधिवेशन में स्वेदशी आन्दोलन को पक्का समर्थन दे दिया। इससे कांग्रेस के कार्यक्रमों और नीतियों में परिवर्तन दिखाई देने लगा।
इस आन्दोलन को सफल बनाने में विद्यार्थियों का बहुत योगदान रहा। उन्होंने स्वयं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग शुरू कर दिया था। समाज के सभी वर्गों से अपील की गई कि वे विदेशी वस्तुओं का प्रयोग बंद करें और अपने देश में बनी वस्तुओं को इस्तेमाल में लाएँ। इस बात का लोगों पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि जो लोग विदेशी वस्तुएँ खरीदते थे या बेचते थे, नाइयों ने उन लोगों के बाल काटने बंद कर दिये और धोबियों ने उनके कपड़े धोने छोड़ दिये। इस सामाजिक बहिष्कार के भय से लोगों ने विदेशी माल खरीदना छोड़ दिया। अन्त में यही आन्दोलन विदेशी शासन से छुटकारा दिलाने की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बना।
प्रश्न 3.
खिलाफत आंदोलन क्या है? इसका महत्त्व बताइए।
उत्तर:
प्रथम महायुद्ध में अंग्रेज तुर्की के सुल्तान के विरुद्ध लड़े थे। इस युद्ध में उन्होंने भारतीय मुसलमानों का सहयोग भी प्राप्त किया था मुसलमानों ने अंग्रेजों का साथ इस शर्त पर दिया था कि युद्ध के बाद तुर्की के सुल्तान के साथ अच्छा व्यवहार किया जाएगा। परन्तु युद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों ने वहाँ के सुल्तान के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। मुसलमान तुर्की के सुल्तान को अपना खलीफा (धार्मिक नेता) मानते थे इसलिए वे अंग्रेजों से नाराज हो गये और अंग्रेजों के विरुद्ध एक आन्दोलन आरंभ कर दिया। इसी आन्दोलन को खिलाफत आंदोलन कहा जाता है। यह आन्दोलन अली बन्धुओं ने गांधी जी के साथ मिलकर चलाया।
महत्त्व:
भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में खिलाफत आन्दोलन का बड़ा महत्त्व है। इसी के कारण हिन्दू और मुसलमान एकता को बल मिला। स्वतंत्रता आन्दोलन सबल बना। अंग्रेजी सरकार जनता के सहयोग से वंचित हो गयी।
प्रश्न 4.
1919 ई. के अधिनियम के अंतर्गत लागू की गई द्वैध शासन प्रणाली के क्या दोष थे?
उत्तर:
1919 ई. के अधिनियम ने प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभाजित, (आरक्षित तथा हस्तांतरित) कर दिया। आरक्षित विषयों में वित्त, कानून तथा व्यवस्था को रखा गया। इन सभी विषयों को गवर्नर के अधीन कर दिया गया। हस्तान्तरित विषयों में स्थानीय स्वशासन, शिक्षा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे विषय थे जिनके ऊपर मंत्रियों का अधिकार था। ये मंत्री विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी होते थे। गवर्नर मंत्रियों व काउन्सिल के सदस्यों को नामजद कर सकता था और उनको हटा भी सकता था। वह विधान सभा द्वारा बनाये किसी कानून को रद्द भी कर सकता था। वह मंत्रियों या विधान सभा की सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं था। इसे भारतीयों ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि निम्नलिखित कमियाँ थी –
- इन सुधारों के उपरांत भी प्रमुख विभाग गवर्नर के अधीन रहे।
- परिषदों के चुनावों में कुछ ही प्रभावशाली लोग मतदान कर सकते थे।
- इस अधिनियम ने कोई उत्तरदायी सरकार नहीं दी।
- प्रांतों के अंदर शुरू की गई इस द्वैध शासन प्रणाली में अनेक दोष थे।
प्रश्न 5.
असहयोग आन्दोलन क्यों चलाया गया और क्यों असफल हो गया?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन चलाये जाने के कारण:
यह आन्दोलन महात्मा गांधी ने सन् 1921 में चलाया। इस आन्दोलन का उद्देश्य अंग्रेज सरकार के साथ असहयोग करने का था। इसको चलाने के चार कारण इस प्रकार थे –
- जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों की हत्या करना और पंजाब में लोगों पर अत्याचार करना।
- सन् 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा मान्टेग्यू चैम्सफोर्ड सुधार अधिनियम पारित करके प्रांतों में द्वैध शासन लागू किया जाना तथा भारतीय लोगों के विचारों को महत्त्व न दिया जाना। (iii) स्वराज्य देने के वचन का पालन न करना।
- टर्की साम्राज्य के खलीफा को अपदस्थ करना।
प्रश्न 6.
नेहरू रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं? इस रिपोर्ट को किन लोगों ने तैयार किया?
उत्तर:
नेहरू रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें:
नेहरू जी ने अपनी रिपोर्ट सन् 1928 ई. में ब्रिटिश सरकार के सम्मुख रखी। इसमें निम्नलिखित सिफारिशें की गई थीं:
- भारत को डोमिनियम स्टेटस (अधिराज्य का दर्जा) दिया जाए।
- प्रांतों में स्वायत्त शासन स्थापित हो।
- सभी रियासतें संघ में शामिल हों।
- भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश बने।
- देश में नवीन चुनाव प्रणाली शुरू की जाए।
- केन्द्र में जनता के प्रति उत्तरदायी सरकार बने।
- जनता को मौलिक अधिकार दिये जाएँ।
नेहरू रिपोर्ट का महत्त्व:
ब्रिटिश सरकार ने 1935 के भारत सरकार अधिनियम में नेहरू रिपोर्ट के आधार पर कई धाराएँ अधिनियमित की। इस प्रकार नेहरू रिपोर्ट का भारतीय संविधान के संदर्भ में बहुत महत्त्व है।
इस रिपोर्ट की तैयारी में जुड़े चार नाम:
इस रिपोर्ट पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोतीलाल. नेहरू, कृष्णामेनन और मदनमोहन मालवीय ने तैयार किया। इन चारों के अतिरिक्त एक पांचवाँ नाम चितरंजन दास का है जिन्होंने इस रिपोर्ट को तैयार कराने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।
प्रश्न 7.
असहयोग आन्दोलन की वापसी के तुरंत बाद कांग्रेस में क्या मतभेद उत्पन्न हुए? इन मतभेदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रथम असहयोग आन्दोलन को वापस लेने के बाद कांग्रेस:
1922-28 के दौरान भारतीय राजनीति में बड़ी-बड़ी घटनाएँ घटी। कांग्रेस में भारी मतभेद उभर गए। एक गुट (परिवर्तनवादी) के प्रतिनिधि चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू थे जिन्होंने बदली हुई परिस्थितियों में एक नए प्रकार की राजनीतिक गतिविधि का सुझाव दिया। उनका कहना था कि राष्ट्रवादियों ने विधानसभाओं में प्रवेश करके सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में बाधा डालनी चाहिए। सरकार की कमजोरियों को सामने लाना चाहिए तथा जन-उत्साह जगाकर राजनीतिक विरोध को और अधिक प्रखर बनाना चाहिए।
“अपरिवर्तनवादी” कहे जाने वाले दूसरे गुट के नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. अंसारी, बाबू राजेन्द्र प्रसाद तथा दूसरे लोगों ने विधानमंडलों में जाने का विरोध किया। उन्होंने चेतावनी दी कि संसदीय राजनीति में भाग लेने से राष्ट्रवादी उत्साह कमजोर पड़ेगा और नेताओं के बीच प्रतिद्वंद्विता पैदा होगी। इसके विपरीत लोग चरखा चलाने, चरित्र-निर्माण, हिन्दू-मुस्लिम एकता, छूआछूत उन्मूलन तथा गाँवों में और गरीबों के बीच रचनात्मक कार्य किए जाएं उनका कहना था कि इससे देश धीरे-धीरे जन-संघर्ष के एक नए दौर के लिए तैयार होगा।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित उद्धरण को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
उत्तर:
“आधुनिक युग में संसार ने एक नया चमत्कार देखा कि एक छोटा – सा मानव जिसको आप में से कोई भी नहीं देख सकता है, एक मानव इतना छोटा और नाजुक निकला और यह कहकर” मैं तीन दिन में समुद्र पर जाऊँगा और कुछ कानून प्रतीक रूप में तोगा।” उसके हाथ में केवल एक लाठी थी। प्रत्येक उस पर हँसा और मैं भी हँसी। “कैसे वह छोटा व्यक्ति संसार के सबसे बड़े शक्तिशाली साम्राज्य से लड़ेगा? “और जैसे यात्रा चली, दिन शाम में परिवर्तित हुआ। हमने अपनी आँखों से देखा कि संसार का इतिहास बदल रहा है। हमने देखा कि सम्पूर्ण भारत जोश में उठ रहा है।” (सरोजनी नायडु का एक भाषण, मद्रास में अगस्त 1934)
1. इसमें किस व्यक्ति का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
इसमें भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उल्लेख है।
2. कौन-सा चमत्कार इस व्यक्ति ने किया था?
उत्तर:
गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरंभ किया। इस आंदोलन में गांधी जी ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध अहिंसक रहने का निश्चय किया। इसमें पूर्ण स्वराज्य को अपना लक्ष्य बनाया गया था। उन्होंने समर्थकों के साथ डांडी की यात्रा की।
3. उन्होंने कौन-सा कानून तोड़ा?
उत्तर:
गांधी जी अपने कुछ अनुयायियों के साथ 200 मील की कठिन यात्रा करके भारत के पश्चिमी समुद्री तट डांडी पहुँचे और वहाँ के जल से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। नमक बनाने पर सरकार का एकाधिकार था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि अंग्रेजों को पता लग जाये कि भारतीयों को उनके कानूनों की जरा भी परवाह नहीं है।
4. किस प्रकार सारा भारत जोश में उमड़ पड़ा?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन सारे भारत में शीघ्र फैल गया। समस्त भारत में ब्रिटिश शासन के विरोध में प्रदर्शन हुए। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया। किसानों ने भू-राजस्व नहीं दिया। इस आन्दोलन में भारतीय महिलाओं ने भी भाग लिया। यह आन्दोलन उत्तर-पश्चिमी सीमा तक पहुँच गया तथा खान अब्दुल गफ्फार खाँ, जो सीमान्त गांधी के नाम से प्रसिद्ध थे, ने लालकुर्ती नामक खुदाई खिदमतगारों का संगठन बनाया। इसी समय पेशावर में प्रदर्शनकारियों पर गढ़वाली सैनिकों ने गोली चलाने से इंकार कर दिया। इस प्रकार भारतीय फौज में राष्ट्रवाद का आरंभ हुआ।.
प्रश्न 9.
भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में सांप्रदायिकता की राजनीति की क्या भूमिका थी?
उत्तर:
स्वराज्य के संघर्ष के दिनों में देश में प्रमुख रूप से दो ही पार्टी ऐसी थी जिनको साम्प्रदायिक कहा जाता था –
- मुस्लिम लीग,
- हिन्दू महासभा।
इन दोनों ही पार्टियों ने संकीर्णता से काम किया। मुस्लिम लीग की करारी हार हुई। हिन्दू महासभा के नुमाइन्दे भी हार गये। मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के अन्दर धार्मिक भावनाओं को भड़काना शुरू कर दिया। उनके नेताओं ने कहा कि हिन्दुस्तान दो भागों में बँटा हुआ है –
- हिन्दू और
- मुसलमान।
इस जहर का असर दोनों संप्रदायों में हुआ। मुस्लिम लीग ने 1940 ई. में लाहौर अधिवेशन में अलग राज्य पाकिस्तान की माँग पूरी ताकत के साथ की। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दू महासभा ने हिन्दुस्तान को हिन्दुओं की भूमि कहा जिससे मुसलमानों को आत्मग्लानि हुई और उन्होंने भी द्विराष्ट्र सिद्धान्त प्रतिपादित करके सीधी कार्यवाही को अंजाम दे दिया। दूसरे शब्दों में, ऐसी राजनीति ने हिन्दुस्तान का विभाजन करवा दिया।
प्रश्न 10.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन क्यों शुरू किया गया? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
सिविल नाफरमानी अथवा सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरंभ 1930 में गांधी जी के नेतृत्व में हुआ। यह आंदोलन दो चरणों में चला और 1933 ई. के अंत तक चलता रहा। इसके कारणों और इसकी प्रगति के महत्त्व का वर्णन इस प्रकार है:
कारण:
- 1928 ई. में ‘साइमन कमीशन’ भारत आया। इस कमीशन ने भारतीयों के विरोध के बावजूद भी अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। इससे भारतीयों में असंतोष फैल गया।
- सरकार ने नेहरू रिपोर्ट की शर्तों को स्वीकार न किया।
- बारदौली के किसान आन्दोलन की सफलता ने गांधी जी को सरकार के विरुद्ध आंदोलन चलाने के लिए प्रेरित किया।
- गांधी जी ने सरकार के सामने कुछ शर्ते रखी, परन्तु वायसराय ने इन शर्तों को स्वीकार न किया। इन परिस्थितियों में गांधी जी ने सरकार के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरंभ कर दिया।
महत्त्व:
सिविल नाफरमानी आन्दोलन वास्तव में उस समय तक का सबसे बड़ा जन-संघर्ष था। इस आंदोलन में देश के सभी भागों तथा सभी वर्गों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। लोगों ने बड़ी संख्या में जेल-यात्रा की परन्तु सरकार के आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया। यद्यपि 1934 में यह आंदोलन समाप्त हो गया लेकिन यह स्वतंत्रता सेनानियों का तब तक मार्ग-दर्शन करता रहा जब तक कि देशं स्वतंत्र नहीं हो गया।
प्रश्न 11.
सविनय अवज्ञा आंदोलन क्यों आरंभ किया गया?
उत्तर:
12 मार्च 1930 ई. को गांधी जी के दाण्डी मार्च से आरंभ किया गया यह आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से चलाया गया –
1. अंग्रेजी सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध करना –
- 1928 ई. में ‘साइमन कमीशन’ भारत आया। इस कमीशन ने भारतीयों के विरोध के बावजूद अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। इससे भारतीयों में असंतोष फैल गया।
- सरकार ने नेहरू रिपोर्ट की शर्तों को अस्वीकार कर दिया।
- गांधी जी ने सरकार के सामने कुछ शर्ते रखी, परन्तु वायसराय ने इन शर्तों को स्वीकार न किया। इसके विपरीत सरकार ने अपनी दमनकारी नीति जारी रखी। उदाहरण के लिए साइमन कमीशन का विरोध करने वाले भारतीयों पर भीषण अत्याचार किए गए।
2. सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध करना:
अंग्रेजी सरकार ने नमक बनाने पर रोक लगा दी और नमक पर कर लगा दिया। इसका साधारण जनता पर बुरा प्रभाव पड़ा। गांधी जी सरकार के इस कानून तथा ऐसे कई अन्य अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध करना चाहते थे। वह सरकार को दिखाना चाहते थे कि जनता उसके किसी भी गलत कानून का पालन नहीं करेगी।
3. राष्ट्रीय आंदोलन में जनसाधारण का अधिक से अधिक सहयोग प्राप्त करना:
गांधी जी जनसाधारण की शक्ति को समझते थे। वह जानते थे कि आम जनता के सहयोग के बिना कोई भी आन्दोलन सफल नहीं हो सकता। फिर, राष्ट्रीय आंदोलन को सशक्त बनाने तथा अंग्रेजी सरकार को झुकाने के लिए समस्त भारतीय जनता का सहयोग आवश्यक था। सविनय अवज्ञा आंदोलन द्वारा गांधी देश की समस्त जनता को राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल करना चाहते थे।
4. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का राष्ट्रीय आंदोलन के विकास पर प्रभाव:
सविनय अवज्ञा आंदोलन वास्तव में उस समय तक का सबसे बड़ा जन-संघर्ष था। इस आंदोलन में देश के सभी भागों तथा सभी वर्गों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। लोगों ने बड़ी संख्या में जेल-यात्रा की परन्तु सरकार के आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया। यद्यपि 1934 में यह आंदोलन समाप्त हो गया फिर भी यह स्वतंत्रता सेनानियों का तब तक मार्ग-दर्शन करता रहा जब तक कि देश स्वतंत्र नहीं हो गया।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और अंत में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: “मैं आपको एक छोटा-सा मंत्र देता हूँ। आप इस मंत्र को अपने हृदय में अंकित कर लीजिए और आपकी हर साँस के साथ इस मंत्र की ध्वनि गूंजनी चाहिए। मंत्र है – “करो या मरो”। अर्थात् या तो भारत को हम स्वतंत्र कराएँगे या स्वतंत्रता के प्रयास में हम अपने प्राणों की आहूति दे देंगे। दासता की शाश्वतता देखने के लिए हम जीवित नहीं रहेंगे।”
(क) इस गद्यांश में वर्णित “छोटा मंत्र’ कौन-सा है?
(ख) यह मंत्र किसने दिया और किस आंदोलन के सम्बन्ध में दिया गया?
(ग) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस आंदोलन की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
(क) ‘छोटा मंत्र’ है “करो या मरो”।
(ख) यह मंत्र महात्मा गांधी ने दिया था। उन्होंने यह मंत्र ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के संबंध में दिया था।
(ग) भारत छोड़ो आंदोलन की भूमिका –
- भारत छोड़ो आन्दोलन एक महान् जन आन्दोलन था जिसका मुख्य उद्देश्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने का था। इस आन्दोलन में सभी वर्गों के नर-नारियों ने भाग लिया।
- इस आन्दोलन ने लोगों में स्वतंत्रता के प्रति अद्वितीय उत्साह एवं देश भक्ति की भावना का सृजन किया।
- सरकार ने लगभग सभी नेताओं को जेल में डाल दिया और यह आन्दोलन नेतृत्वहीनता के बावजूद दो साल तक चलता रहा। अंग्रेजी सरकार को यह आभास हो गया कि भारत के लोग तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक कि उन्हें स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो जाती।
- इस आन्दोलन ने भारत के लोगों के सामने एकमात्र लक्ष्य प्रस्तुत किया-यह लक्ष्य था अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए इस देश के लोगों ने अभूतपूर्व एकता का प्रदर्शन किया।
- भारत छोड़ो आंदोलन – के कारण यू. पी. में बलिया तथा मिदनापुर में लोगों का उत्साह विद्रोह की सीमाओं को छूने लगा। इन इलाकों से ब्रिटिश सत्ता लगभग समाप्त हो गई थी।
प्रश्न 13.
कैबिनेट मिशन से क्या आशय है?
उत्तर:
फरवरी, 1946 ई. में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श के लिए मंत्रियों का एक शिष्टमंडल (Cabinet Mission) भेजा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री एटली ने घोषणा की कि हमारा विचार शीघ्र ही भारत को आजाद कर देने का है और अल्पसंख्यक दल को बहुसंख्यक दल की प्रगति के मार्ग में बाधा नहीं बनने दिया जाएगा। इसमें पाकिस्तान की माँग को ठुकरा दिया गया था, तथापि भारत में एक संघ शासन की स्थापना करने और जिसमें भारतीय प्रांतों के चार क्षेत्र बनाए जाने की संस्तुति दी गई थी।
विदेश नीति, सुरक्षा एवं संचार को छोड़कर बाकी सभी विषयों में प्रत्येक क्षेत्र को पूर्ण स्वतंत्रता दी जाए और हर क्षेत्र का अपना पृथक् संविधान हो। शिष्ट मंडल ने संविधान सभा के गठन का सुझाव दिया। इसके सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा न होकर साम्प्रदायिक निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर प्रांतीय सभाओं में करना था। राज्यों के प्रतिनिधियों को मनोनीत करने का अधिकार उनके राजाओं को दिया गया। कांग्रेस को हिन्दुओं के प्रतिनिधि मनोनीत करने का अधिकार दिया गया तथा मुस्लिम लीग को मुस्लिम प्रतिनिधियों को मनोनीत करने का अधिकार मिला।
प्रश्न 14.
साइमन कमीशन भारत में क्यों आया? भारत में इसका विरोध क्यों हुआ?
उत्तर:
1927 ई. में इंग्लैण्ड की सरकार द्वारा नियुक्त कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन कमीशन कहा गया है। यह कमीशन 1928 ई. में भारत पहुँचा। इसका उद्देश्य 1919 ई. के कानूनी सुधारों के परिणामों की जाँच करना था। इस कमीशन में भारतीय सदस्य न होने के कारण इसका स्थान-स्थान पर विरोध किया गया। यह कमीशन जहाँ भी गया, वहीं इसका स्वागत किया गया। स्थान-स्थान पर ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारे लगाये गये। जनता के इस शांत प्रदर्शन को सरकार ने बड़ी कठोरता से दबाया। लाहौर में इस कमीशन का विरोध करने के कारण लाला लाजपत राय पर लाठियाँ बरसाई गईं। कुछ दिनों में उनकी मृत्यु हो गई थी। देश के सभी राजनीतिक दलों ने सरकार की इस नीति की कड़ी आलोचना की।
प्रश्न 15.
गोलमेज काँफ्रेंस तथा गांधी-इरविन समझौता के विषय में क्या जानते हैं?
उत्तर:
गोलमेज काँफ्रेंस 1930 ई. तथा गाँधी-इरविन समझौता:
तत्कालीन वायसराय श्री इरविन ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार का अन्तिम उद्देश्य भारत में डोमीनियन सरकार की स्थापना करने का है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह सर्वसम्मत हल ढूँढना चाहती है। इस सम्बन्ध में उन्होंने इंग्लैण्ड में गोलमेज काँफ्रेंस किए जाने की योजना पर प्रकाश डाला। 12 नवम्बर, 1930 ई. को लन्दन में गोलमेज काँफ्रेंस का प्रथम अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। काँग्रेस अपने आन्दोलन में व्यस्त थी। इस कारण इस सम्मेलन में उसका कोई भी प्रतिनिधि उपस्थित न हो सका।
ब्रिटिश सरकार की घोषणाओं से वातावरण में सुधार हुआ और सरकार ने महात्मा गांधी आदि नेताओं को जेल से रिहा कर दिया। इस अनुकूल वातावरण में गाँधी-इरविन समझौता हुआ और गाँधी जी गोलमेज कॉंफ्रेंस के द्वितीय अधिवेशन में भाग लेने लन्दन गए। वहाँ उन्हें अपने उद्देश्य में सफलता नहीं मिली और वे निराश होकर भारत आए। यहाँ उन्हें बन्दी बना लिया गया और इस प्रकार पुनः संघर्ष आरम्भ हो गया। गोलमेज काँफ्रेंस का तीसरा अधिवेशन भी हुआ किन्तु काँग्रेस का उससे कोई सम्बन्ध नहीं था।
प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आन्दोलन में स्वराज्य दल की क्या भूमिका रही?
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन में स्वराज्य दल की भूमिका:
स्वराज्यवादियों ने 1923 ई. में अपने स्वराज दल की स्थापना की। इन स्वराज्यवादियों ने केन्द्रीय व्यवस्थापिका में रहकर अंग्रेजों से भारत में पूर्ण उत्तरदायी शासन की माँग की और बंगाल के दमनकारी आदेशों को समाप्त करके गोलमेज अधिवेशन की माँग की। उस गोलमेज अधिवेशन में भारत के अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने के लिए नया संविधान बनाया जाये। स्वराज्यवादियों का प्रभाव बंगाल और मध्य प्रान्त में था जहाँ पर इन्होंने अंग्रेजों द्वारा लागू द्वैध शासन को ठप्प कर दिया।
इन लोगों ने न मन्त्रिमण्डल बनाया न दूसरे मन्त्रिमण्डल को काम करने दिया। इन स्वराज्यवादियों की माँग को पूरा करने के लिए गोलमेज अधिवेशन बुलाया गया था। साईमन कमीशन भी इन्हीं लोगों के कारण भारत आया था परन्तु इन्हें संतुष्ट करने में सफल नहीं हो सका। अंत में ये स्वराज्यवादी कांग्रेस में शामिल हो गये।
प्रश्न 17.
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड:
कुछ नेताओं के गिरफ्तार करने से जनता क्रुद्ध हो गई और उसने एक मुठभेड़ में कुछ अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। अंग्रेज इस काण्ड से बौखला उठे। जब अपने नेताओं की गिरफ्तारी के विरुद्ध लगभग बीस हजार जनता 13 अप्रैल, 1919 को (बैसाखी के दिन) अमृतसर के जलियाँवाला बाग में शान्तिपूर्ण वातावरण में एक सार्वजनिक सभा में भाग ले रही थी उसी समय जनरल डायर ने सभा को गैर-कानूनी घोषित करके अंग्रेज सैनिकों को मशीनगन से गोलियाँ चलाने की आज्ञा दी।
इस स्थान से निकलने का एक ही संकरा रास्ता था। और इसी पर सैनिक खड़े होकर मशीनगनों से जनता को भून रहे थे। इस हत्याकाण्ड में हजारों व्यक्ति मारे गए। अब पंजाब में कई स्थानों पर मार्शल लॉ लागू किया गया। इस हत्याकांड की तीव्र प्रतिक्रिया हुई और जांच करने की मांग उठाई गई किन्तु सरकार ने श्री हण्टर समिति को जांच करने का आदेश दिया। उसने डायर के कार्य पर पर्दा डालने का प्रयास किया और इंग्लैण्ड में हण्टर समिति की अत्यधिक प्रशंसा की गई। इससे भारतीयों को अंग्रेजों की न्यायप्रियता पर विश्वास न रहा, कुपित भारतीयों ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
प्रश्न 18.
अगस्त प्रस्ताव 1940 की प्रमुख विशेषतायें क्या थीं?
उत्तर:
अगस्त 1940 का प्रस्ताव:
सांविधिक गतिरोध को दूर करने के लिए वायसराय द्वारा 8 अगस्त, 1940 को एक घोषणा की गई जिसमें “भारतीय का लक्ष्य औपनिवेशिक स्वराज्य घोषित किया गया”। इस घोषणा को ही अगस्त-प्रस्ताव (August-offer) कहा जाता है। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
- वायसराय को अपनी कार्यकारिणी समिति का विस्तार करने का अधिकार मिला। वह भारतीय प्रतिनिधियों को उसमें नियुक्त कर सकता था।
- वायसराय भारत के समस्त वर्गों के प्रतिनिधित्व वाली एक युद्ध-सलाहकार समिति (War Advisory Committee) की नियुक्ति कर सकता था।
- अल्पसंख्यकों को विश्वास दिलाया गया कि सभी राजनीतिक दलों की सहमति मिलने पर ही ब्रिटिश सरकार किसी एक दल को सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित करेगी।
- संविधान का निर्माण अल्पसंख्यकों के हितों को ध्यान में रखकर भारत के नेताओं द्वारा ही किया जाएगा।
- भारतीय जनता ब्रिटिश सरकार की सहायता के लिए तत्पर रहे।
प्रश्न 19.
पूना समझौता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पूना समझौता:
मैकडॉनल्ड एवार्ड की घोषणा के समय गाँधी जी जेल में थे। उन्होंने वहीं आमरण अनशन (20 सितम्बर, 1932) प्रारम्भ कर दिया। इस घोषणा से सरकार के कान पर तक नहीं रेंगी। पं. मदन मोहन मालवीय के विशेष प्रयास से डा. अम्बेडकर ने, पूना में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके अनुसार हरिजनों के विशेषाधिकार दिए गए। बाद में सरकार ने भी इसे स्वीकार कर लिया और गाँधी जी ने अपना आमरण व्रत तोड़ दिया। यह समझौता पूना समझौता (Poona Pact) के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 20.
साम्प्रदायिक निर्णय (Communal Award) की क्या शर्ते थी?
उत्तर:
साम्प्रदायिक निर्णय की शर्ते –
- मैकडॉनल्ड एवार्ड ने विशेष हितों, अल्पसंख्यकों तथा बहुमत में होते हुए भी बंगाल व पंजाब में मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन पद्धति की व्यवस्था को यथापूर्व बनाए रखा।
- पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के अतिरिक्त सभी विधान-मण्डलों में महिलाओं के तीन प्रतिशत स्थान आरक्षित किए गए। इन स्थानों को विभिन्न सम्प्रदायों में बाँटा जाना था।
- उन प्रान्तों में जिनमें मुसलमान अल्पसंख्यक थे; भारात्मक (Weightage) प्रतिनिधित्व दिया गया।
- भारत के हरिजनों को एक विशिष्ट अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में मान्यता दी गई और उन्हें पृथक निर्वाचन पद्धति के द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनने तथा साधारण निर्वाचन क्षेत्रों में अतिरिक्त मत देने का अधिकार दिया गया।
- भारतीय ईसाइयों व आंग्ल भारतीयों को भी पृथक् निर्वाचन क्षेत्र प्रदान किए गए।
प्रश्न 21.
क्रिप्स योजना-1942 के मुख्य सुझाव क्या थे?
उत्तर:
क्रिप्स योजना-1942:
सर स्टेफर्ड क्रिप्स को इंग्लैण्ड की सरकार ने मार्च, 1942 में भावी शासन व्यवस्था की योजना लेकर भारत भेजा। इस योजना के मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे –
- युद्ध के पश्चात् भारत को डोमीनियन राज्य (Dominion State) घोषित किया जाएगा अर्थात् ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत भारत को स्वशासी राज्य बना दिया जाएगा।
- युद्धोपरान्त संविधान सभा गठित की जाएगी जो भारत के लिए संविधान बनाएगी।
- यदि कोई प्रान्त अथवा देशी राज्य उक्त निर्मित संविधान को स्वीकार न करे तो उसे डोमीनियन से पृथक् होने की स्वतन्त्रता होगी। मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की माँग इसी योजना के तहत स्वीकार कर ली गई थी।
- गवर्नर-जनरल तथा गवर्नरों की परिषद् में भारतवासियों को प्रतिनिधित्व दिए जाने की व्यवस्था थी। उपर्युक्त प्रस्ताव भविष्य में प्रभावी थे अतः सभी दलों ने इन्हें अस्वीकार कर दिया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
खिलाफत आन्दोलन के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खिलाफत आन्दोलन का विकास:
27 दिसम्बर 1919 ई. को खिलाफत कमेटी ने भारतीय मुसलमानों से 17 अक्टूबर को देश भर में खिलाफत दिवस मनाने, हड़तालें, भूख हड़ताल तथा प्रार्थना करने की अपील की। मांगें स्वीकार न करने की दशा में देशव्यापी आन्दोलन चलाने का निर्णय भी लिया गया। ब्रिटिश सरकार ने मुसलमानों की मांग को नकार दिया। मुसलमानों ने इसके विरोध में खिलाफत आन्दोलन आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन के तीन उद्देश्य थे –
- तुर्की समाज के विघटन को रोकना।
- तुर्की पर कठोर सन्धि शर्ते लागू न होने देना।
- तुर्की के सुल्तान की ‘खलीफा’ पदवी को बनाए रखना।
24 नवंबर 1919 ई. को दिल्ली में एक अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन का सभापतित्व महात्मा गांधी ने किया। इस सम्मेलन में गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार पर मुसलमानों को दिए अपने वचन को तोड़ने का आरोप लगाया। उन्होंने हिन्दुओं से आग्रह किया कि इस संकट के समय मुसलमानों की सहायता करें तथा खिलाफत आन्दोलन में सम्मिलित हों।
महात्मा गांधी के सुझाव पर जनवरी 1920 ई. को डॉक्टर अंसारी के नेतृत्व में एक शिष्टमण्डल वायसराय विन्सफोर्ड से मिला तथा उसे मुसलमानों के क्षुब्ध विचारों से अवगत कराया। इसका कोई परिणाम न निकला। मार्च 1920 में अली बन्धु ब्रिटिश प्रधानमंत्री लायड जार्ज से भेंट करने तथा उसे खिलाफत के वायदे का स्मरण करवाने के लिए लंदन गए परन्तु यह शिष्टमंडल भी निराश वापस पहुँचा।
भारतीय मुसलमानों का असंतोष तब और अधिक भड़क उठा जब ब्रिटेन ने तुर्की के साथ अगस्त 1920 को सेवर्स की सन्धि स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। इस सन्धि के द्वारा तुर्की के साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया गया तथा तुर्की के सुल्तान को लगभग बन्दी की स्थिति में ले लिया गया। इस कारण मुस्लिम लीग ने खिलाफत आन्दोलन को तीव्र करने का निर्णय किया । महात्मा गाँधी ने 1920 ई. में सरकार के विरुद्ध संयुक्त रूप से असहयोग आन्दोलन चलाने का सुझाव दिया। इस सुझाव को खिलाफत आन्दोलन के नेताओं ने स्वीकार कर लिया। हिन्दुओं तथा मुसलमानों की इस एकता ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन को एक नई दिशा प्रदान की और असहयोग आन्दोलन को एक मजबूत आधार स्तंभ दिया।
जुलाई 1921 ई. में एक प्रस्ताव द्वारा खिलाफत आन्दोलन ने यह घोषणा की कि कोई मुसलमान ब्रिटिश भारत की सेना में भर्ती न हो। सरकार ने राजद्रोह का आरोप लगाकर अली बन्धुओं को गिरफ्तार कर लिया। गाँधी जी ने सरकार के इस निर्णय की घोर आलोचना की तथा लोगों से आह्वान किया कि इस प्रस्ताव को सैकड़ों सभाओं में पढ़कर सुनाया जाए। खिलाफत आन्दोलन का अंत: फरवरी 1922 में चौरी-चौरा की घटना के कारण महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा की। इस निर्णय से खिलाफत आन्दोलन को धक्का पहुँचा, क्योंकि दोनों आन्दोलन संयुक्त रूप से चलाए जा रहे थे।
प्रश्न 2.
1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। इस अधिनियम के प्रति कांग्रेस के दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1935 के भारत सरकार अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
केन्द्रीय सरकार में परिवर्तन –
- केन्द्र में एक संघात्मक सरकार की स्थापना की गई। इस संघ में प्रांतों का सम्मिलित होना आवश्यक था जबकि रियासतों का सम्मिलित होना उनकी इच्छा पर निर्भर था।
- संघीय विधान मंडल के ‘राज्य परिषद्’ और ‘संघीय सभा’ दो सदन बनाये गये। राज्य परिषद् में प्रांतों के सदस्यों की संख्या 156 और रियासतों की संख्या 140 निश्चित की गई। संघीय सभा में प्रांतो के सदस्यों की संख्या 250 और रियासतों की संख्या 125 निश्चित की गई।
- यह भी निश्चित किया गया कि प्रांतों के प्रतिनिधि जनता के द्वारा चुने जाएँ और रियासतों के प्रतिनिधि राजाओं के द्वारा मनोनीत हों।
- केन्द्र के विषयों को रक्षित रक्षित विषय गवर्नर-जनरल के अधीन थे। जबकि प्रदत्त विषय मन्त्रियों को सौंपे गए । मंत्रियों को विधान मंडल के समान उत्तरदायी ठहराया गया।
- विधान मंडल को बजट के 20 प्रतिशत भाग पर मत. देने का अधिकार दिया गया।
- गवर्नर-जनरल को कुछ विशेषाधिकार दिये गये।
- जब तक भारतीय संघात्मक सरकार की स्थापना नहीं हो जाती तब तक केंद्र का शासन 1919 ई. के एक्ट में किये गए संशोधन के अनुसार चलाया जायेगा।
प्रांतीय सरकारों में परिवर्तन:
- बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। इसके अतिरिक्त उड़ीसा और सिन्ध के दो प्रान्त बनाये गये।
- बंगाल, बिहार, असम, बम्बई, मद्रास और उत्तरप्रदेश में विधान मंडल के दो सदनों की व्यवस्था की गयी और शेष प्रांतों में एक ही सदन बनाया गया। उच्च सदन का नाम विधान परिषद् और निम्न सदन का विधान सभा रखा गया।
- विधान परिषद् के कुछ सदस्य गर्वनर द्वारा मनोनीत किये जाते थे और विधान सभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता था।
- प्रांतों में मत देने का अधिकार स्त्रियों, परिगणित जातियों और मजदूरों को भी दिया गया।
- प्रांतों से दोहरे शासन को सदा के लिए समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर स्वायत्त शासन (Autonomy) की स्थापना की गई। सभी प्रांतीय विषय एक मंत्रिमंडल को सौंप दिये गये। मंत्रियों का चुनाव बहुमत प्राप्त राजनैतिक दल में से किया जाता था। प्रधानमंत्री शासन विभाग का कार्य मंत्रियों में बाँट देता था। मंत्रिमंडल विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी था।
- प्रांतों के गवर्नरों को विशेष अधिकार दिए गए।
- प्रांत में विशेष परिस्थिति उत्पन्न होने पर गवर्नर विधान सभा को भंग करके प्रांत का शासन अपने हाथ में ले सकता था।
- गवर्नरों को अध्यादेश तथा गवर्नरी एक्ट जारी करने का भी अधिकार था।
इण्डिया कौंसिल में परिवर्तन:
इंडिया कौंसिल भंग कर दी गई। भारत के मंत्री को कम से कम तीन और अधिक से अधिक 6 सलाहकारों को नियुक्त करने का अधिकार दिया गया।
अन्य परिवर्तन –
- उच्च न्यायालयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिए तथा 1935 ई. के एक्ट के अर्थ के बारे में मतभेद का निर्णय करने के लिए दिल्ली में फैडरल कोर्ट (Federal Court) की स्थापना की गई।
- रेलवे विभाग प्रशासन के लिए एक संघीय रेलवे सत्ता (Federal Railway Authority) की व्यवस्था की गई।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित उद्धरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: “अगस्त आंदोलन से अत्यधिक लाभ हुआ। स्त्रियों में बहुत जागृति आई। दमन के दौरान गाँवों की स्त्रियों को भी अत्यधिक कष्ट उठाने पड़े। उनका शहर के निवासियों को लेशमात्र भी खेद नहीं है। कांग्रेस की पराजय नहीं हुई है। यह पहले से अधिक शक्तिशाली हुई है।”
(अ) भारत छोड़ो आन्दोलन क्यों आरंभ किया गया?
(ब) इस आन्दोलन में स्त्रियों की क्या भूमिका थी?
(स) इस आन्दोलन का भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
(अ) भारत छोड़ो आन्दोलन आरंभ होने के कारण निम्नलिखित हैं –
- भारत से अंग्रेजों का शासन समाप्त करने के उद्देश्य से 1942 ई. के अगस्त माह में भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ।
- क्रिप्स मिशन की असफलता से भारत की जनता रूष्ट हो गई। उसे फाँसीवाद विरोधी शक्तियों से अभी भी पूरी सहानुभूति थी, लेकिन देश की राजनीतिक स्थिति खराब होती जा रही थी।
- युद्ध के कारण वस्तुओं की कमी हो गई थी तथा वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे थे।
- जैसे-जैसे जापानी फौजें भारत की ओर बढ़ रही थी, वैसे-वैसे भारतीय जनता और नेताओं का भय बढ़ रहा था क्योंकि वे समझते थे कि अंग्रेजों से शत्रुता निकालने के लिए जब जापानी सेना बम बरसाएगी तो भारतीय जनता व्यर्थ में उनका शिकार बन जाएगी।
(ब) इस आंदोलन में स्त्रियों की भूमिका –
- स्त्रियों ने इस आन्दोलन में अपनी भूमिका सक्रिय रूप से निभाई।
- उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध जुलूसों एवं धरनों में पुरुषों का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया।
- अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी तथा बम्बई की उषा मेहता इस काल की प्रमुख महिला नेता थी।
- वे स्थान-स्थान पर झंडे, पोस्टर तथा हाथों में तख्तियाँ लेकर प्रदर्शन करतीं थी।
- महिलाओं ने धन के अलावा अपने गहने भी राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए दे दिये।
- स्त्रियाँ विदेशी शराब की दुकानों तथा विदेशी माल बेचने वाली दुकानों पर धरने देतीं तथा जो व्यक्ति इस माल को खरीदता उसका घेराव करती थीं।
(स) स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्त्व –
इसने राष्ट्रीय आन्दोलन की तीव्रता को प्रदर्शित किया क्योंकि जैसे ही गांधी जी को गिरफ्तार करने की खबर फैली, लोग भड़क उठे। रेलों की पटरियाँ उखाड़ दी गईं। सरकारी इमारतें जलाई जाने लगीं। टेलीफोन के तार काट दिए गए। पुलिस थानों को आग लगा दी गई।
प्रश्न 4.
महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों शुरू किया? इसके विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन:
महात्मा गाँधी आरम्भ में अंग्रेजों के पक्ष में थे परन्तु प्रथम महायुद्ध के समाप्त होने से पूर्व वे अंग्रेजों के कार्यों से असन्तुष्ट हो गए। कारण अथवा परिस्थितियाँ –
- भारतीयों ने प्रथम महायुद्ध में अंग्रेजों को पूरा सहयोग दिया था परन्तु महायुद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों ने भारतीय जनता का खूब शोषण किया।
- प्रथम महायुद्ध के दौरान भारत में प्लेग आदि महामारियाँ फूट पड़ी। परन्तु अंग्रेजी सरकार ने उसकी ओर कोई ध्यान न दिया।
- गांधी जी ने प्रथम महायुद्ध में अंग्रेजों की सहायता करने का प्रचार इस आशा से किया था कि वे भारत को स्वराज्य प्रदान करेंगे। परन्तु युद्ध की समाप्ति पर ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी की आशाओं पर पानी फेर दिया।
- 1919 ई. में ब्रिटिश सरकार ने रोलेट एक्ट पास कर दिया। इस काले कानून के कारण जनता में रोष फैल गया।
- रोलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन के लिए अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक विशाल जनसभा हुई। अंग्रेजों ने एकत्रित भीड़ पर गोलियाँ चलायीं जिससे हजारों लोग मारे गये।
- सितम्बर 1920 ई. में कांग्रेस ने अपना अधिवेशन कलकत्ता में बुलाया। इस अधिवेशन में ‘असहयोग आन्दोलन’ का प्रस्ताव रखा गया जिसे बहुमत से पार सकर दिया गया। असहयोग
आन्दोलन का कार्यक्रम अथवा उद्देश्य: असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम की रूपरेखा इस प्रकार थी –
- विदेशी माल का बहिष्कार करके स्वदेशी माल का प्रयोग किया जाए।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गयी उपाधियाँ तथा अवैतनिक पद छोड़ दिये जाएँ।
- स्थानीय संस्थाओं में मनोनीत भारतीय सदस्यों द्वारा तयागपत्र दे दिये जाएँ।
- सरकारी स्कूलों तथा सरकार से अनुदान प्राप्त स्कूलों में बच्चों को पढ़ने के लिए न भेजा जाए।
- ब्रिटिश अदालतों तथा वकीलों का धीरे-धीरे बहिष्कार किया जाए।
- सैनिक, क्लर्क तथा श्रमिक विदेशों में अपनी सेवाएँ अर्पित करने से इन्कार कर दें।
आन्दोलन की प्रगति तथा अन्त:
असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम को जनता तक पहुँचाने के लिए महात्मा गाँधी तथा मुस्लिम नेता डॉ. अन्सारी, मौलाना अबुल कलाम आजाद तथा अली बन्धुओं ने सारे देश का भ्रमण किया। शीघ्र ही यह आन्दोलन बल पकड़ गया। जनता ने सरकारी विद्यालयों का बहिष्कार कर दिया। बीच चौराहों पर विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘सर’ की उपाधि तथा गाँधी जी ने ‘केसरे-हिन्द’ की उपाधि का त्याग कर दिया। इसी बीच उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा नामक स्थान पर उत्तेजित भीड़ ने पुलिस चौकी को आग लगा दी। इस हिंसात्मक घटना के कारण गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी।
महत्त्व:
- असहयोग आन्दोलन के कारण कांग्रेस ने सरकार से सीधी टक्कर ली।
- भारत के इतिहास में पहली बार जनता ने बढ़-चढ़ कर इस आन्दोलन में भाग लिया।
- असहयोग आन्दोलन में ‘स्वदेशी’ का खूब प्रसार किए जाने लगे।
देश के उद्योग:
धंधों का विकास हुआ। सच तो यह है कि गाँधी जी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन ने भारत के स्वाधीनता-संग्राम को एक नयी दिशा प्रदान की।
प्रश्न 5.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गाँधी का क्या स्थान है?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध में भारतीयों ने अंग्रेजों की तन-मन-धन से सहायता की थी। उनका अंग्रेजों की न्यायप्रियता पर विश्वास था। अप्रैल 1918 ई. में दिल्ली में एक युद्ध सम्मेलन बुलाया गया। गाँधी जी ने इसमें भाग लिया था। उन्होंने अंग्रेजों को मित्र जानकर संकट में उनकी सहायता की। युद्ध समाप्त होने के पश्चात् अंग्रेजों ने मुँह मोड़ लिया। उन्होंने भारतीयों को किसी प्रकार का अधिकार न दिया तथा इसके विपरीत राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए कमर कस ली। विवश होकर गाँधी जी ने असहयोग का मार्ग अपनाया।
गाँधी जी द्वारा चलाये जाने वाले असहयोग आन्दोलन के लिए उत्तरदायी तत्त्व निम्नलिखित थे –
1. प्रथम विश्व युद्ध (First World War):
प्रथम विश्व युद्ध राष्ट्रीयता तथा आत्मनिर्णय के सिद्धांत (Principle of Self Determination) के आधार पर लड़ा गया था। युद्ध के बाद इन सिद्धांतों के आधार पर यूरोप में कुछ नये राष्ट्रों का जन्म हुआ। इससे एशिया के देशों में राष्ट्रीयता का अंकुर फूट पड़ा। इसके फलस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भी एक नया मोड़ आना स्वाभाविक था।
2. रोलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह (Satyagraha Against Rowlett Act):
सन् 1919 ई. में मांटेग्यू चेम्सफोर्ड योजना भारतीय कांग्रेस ने ठुकरा दी। इसके अनुसार प्रान्तीय विधानसभाओं में सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई थी। कांग्रेस ने इसके विरुद्ध आन्दोलन छेड़ा और अंग्रेजों ने इसे दबाने के लिए रोलेट एक्ट का सहारा लिया। इस एक्ट द्वारा किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए बन्दी बनाया जा सकता था। गांधी जी ने इसे ‘काला कानून’ कहा और इसके विरुद्ध सत्याग्रह किया। लाखों व्यक्तियों ने हड़तालों और प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।
3. असहयोग आन्दोलन (Non-Cooperation Movement):
भारतीय हितों पर चोट पड़ते ही भारतीय जनता कराह उठी। ब्रिटिश सरकार की दमनात्मक नीति का विरोध करने के लिए गाँधी जी ने एक अनोखे हथियार का आविष्कार किया जो विश्व में अपने किस्म का पहला था – असहयोग आन्दोलन। गाँधी जी ने छात्रों, प्रशासनिक कर्मचारियों, अध्यापकों, वकीलों, दुकानदारों का आवाह्न किया, सभी असहयोग आंदोलन के लिए तैयार हो गये।
4. सत्याग्रह (Satyagraha):
गाँधी जी बिना किसी को सताये या दुःखी किये स्वयं भूख हड़ताल करते, धरना देते, आमरण अनशन करते तो हजारों की संख्या में लोग भी उनका अनुसरण करने लगते थे। उनका सत्याग्रह पूरे देश का सत्याग्रह माना जाता था।
5. अहिंसा (Non-Violence):
गाँधी जी ‘अहिंसा परमो धर्म’ में विश्वास रखते थे। उन्होंने शांतिपूर्ण तरीकों से आत्मबल के द्वारा साम्राज्यवादी शक्ति के घुटने टिकवा दिए थे।
6. साम्प्रदायिक सद्भावना (CommunalGoodwill):
गाँधी जी ने अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति को समझ लिया था। अतः उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने के हर सम्भव प्रयास किए। वे हिन्दू-मुस्लिम दोनों को अपनी दो आँखें समझते थे। जब कभी साम्प्रदायिक तत्त्व साम्प्रदायिकता की आग भड़काने की कोशिश करते, गाँधी जी स्वयं जाकर मैत्री एवं सद्भावना का वातावरण तैयार करने का प्रयत्न करते थे।
7. हरिजनों का कल्याण (Welfare of the Harijans):
भारत में उच्च जातियों का निम्न वर्ग के लोगों के साथ ताल-मेल नहीं बैठ रहा था। अतः अपने प्रति घृणा और तिरस्कार को देखकर वे ईसाई बन रहे थे। उन्होंने सर्वप्रथम उन्हें ‘हरिजन’ नाम दिया। उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए गाँधी जी ने ‘हरिजन’ नामक पत्रिका निकाली। गाँधी जी ने हरिजनों की गंदी बस्तियों में स्वयं अपने हाथों से सफाई की। इससे इन्होंने हरिजनों का हृदय जीत लिया।
प्रश्न 6.
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) के योगदान की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
भारत छोड़ो आन्दोलन:
क्रिप्स मिशन (मार्च, 1942 ई.) की असफलता के पश्चात् भारतीय नेताओं ने महसूस किया कि ब्रिटिश सरकार भारत को स्वाधीनता देने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसी स्थिति में देश में अंग्रेजों के प्रति भीषण उत्तेजना फैल गई। 7 अगस्त, 1942 ई. को कांग्रेस की महासमिति की बैठक बम्बई में हुई और 8 अगस्त, 1942 ई. को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सामने गाँधी जी ने अपना ऐतिहासिक प्रस्ताव रखा। गँधी जी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। अंग्रेजों को ऐतिहासिक प्रस्ताव रखा। गाँधी जी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए एक विशाल सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने का निर्णय किया गया। गाँधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा देते हुए कहा कि “हमने कांग्रेस को बाजी पर लगा दिया है या तो यह विजयी होगी या समाप्त हो जाएगी। “महात्मा गाँधी ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे आन्दोलन शुरू करने से पूर्व सरकार को एक अन्तिम मौका और देंगे तथा वायसराय से मिलेंगे।
किन्तु सरकार ने उन्हें यह अवसर नहीं दिया। 9 अगस्त को सुबह होने से पूर्व ही गाँधी जी तथा अनेक कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तथा कांग्रेस को एक बार पुनः अवैध संगठन घोषित कर दिया। गाँधी जी तथा अन्य नेताओं की गिरफ्तारी का समाचार पाते ही देश के विभिन्न भागों में हड़ताल तथा जुलूस निकाले गए। सरकार ने बर्बरतापूर्वक इन शान्त प्रदर्शनकारियों का दमन किया। इसी कारण भारतीय लोग एकदम भड़क उठे। लगभग 70,000 से अधिक व्यक्तियों को जेल में बन्दी बनाया गया। अनेक गांवों के लोगों पर सामूहिक जुर्माने किए गए तथा उन पर कोड़े बरसाए गए। आखिरकार सरकार इस आन्दोलन को दबाने में सफल हो गई
भारत छोड़ो का महत्त्व अथवा योगदान:
वस्तुतः 1942 ई. का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ थोड़े ही दिन तक चल सका। इसने स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रवादी चेतना तथा शीघ्र स्वतन्त्रता प्राप्ति की आकांक्षा लोगों में बहुत प्रबल हो चुकी है। तथा लोग देश की आजादी के लिए बड़े से बड़ा बलिदान देने के लिए तैयार हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार इस विद्रोह की आग में औपनिवेशिक स्वराज्य की सारी इच्छा पूर्णतया जल गई। भारत अब पूर्ण स्वतन्त्रता से कम कुछ नहीं चाहता था ……. इसकी तुलना फ्रांस के ऐतिहासिक बेस्टीले पतन अथवा रूस की अक्टूबर क्रांति से की जा सकती है। जवाहरलाल नेहरू ने इस आन्दोलन के बारे में कहा, “1942 ई. में जो कुछ हुआ, उस पर मुझे गर्व है” कुछ विद्वानों की राय है कि इसी आन्दोलन ने भारतीय पक्ष को दूसरे देशों के सामने स्पष्ट किया। इसी आन्दोलन की व्यापकता के कारण अमेरिका एवं चीन जैसे देशों ने इंग्लैण्ड की सरकार पर भारत की स्वतंत्रता पर शीघ्र निर्णय लेने के लिए दबाव डाला।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता कौन नहीं था?
(अ) बाल गंगाधर तिलक
(ब) विपिनचन्द्र पाल
(स) लाला लाजपत राय
(द) मिर्जा गालिब
उत्तर:
(द) मिर्जा गालिब
प्रश्न 2.
लखनऊ समझौता कब हुआ?
(अ) 1916
(ब) 1915
(स) 1917
(द) 1919
उत्तर:
(अ) 1916
प्रश्न 3.
खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व किसने किया?
(अ) गांधी जी और नेहरू
(ब) शौकत अली और मुहम्मद अली
(स) मोहम्मद अली जिन्ना
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) शौकत अली और मुहम्मद अली
प्रश्न 4.
‘काला विधेयक’ किसे कहा जाता है?
(अ) रोलेट एक्ट
(ब) अलबर्ट बिल
(स) 1919 का एक्ट
(द) 1935 का एक्ट
उत्तर:
(अ) रोलेट एक्ट
प्रश्न 5.
असहयोग आन्दोलन कब शुरू हुआ?
(अ) 1918
(ब) 1919
(स) 1921
(द) 1922
उत्तर:
(ब) 1919
प्रश्न 6.
भारत में साइमन कमीशन कब आया?
(अ) 1926
(ब) 1927
(स) 1928
(द) 1929
उत्तर:
(स) 1928
प्रश्न 7.
तुम मुझे खून दो, मै तुम्हें आजादी दूंगा’ किसका कथन था?
(अ) भगतसिंह
(ब) रासबिहारी बोस
(स) मोहन सिंह
(द) सुभाष चन्द्र बोस
उत्तर:
(द) सुभाष चन्द्र बोस
प्रश्न 8.
लाल कुर्ती का नेतृत्व किसने किया था?
(अ) महात्मा गाँधी
(ब) अब्दुल गफ्फार खां
(स) पं. जवाहर लाल नेहरू
(द) मौलाना आजाद
उत्तर:
(ब) अब्दुल गफ्फार खां
प्रश्न 9.
प्रथम पूर्ण स्वराज्य कब मनाया गया?
(अ) 26 जनवरी 1922
(ब) 26 जनवरी 1929
(स) 26 जनवरी 1930
(द) 26 जनवरी 1950
उत्तर:
(स) 26 जनवरी 1930
प्रश्न 10.
दूसरा गोलमेज सम्मेलन कब हुआ?
(अ) 1931 के प्रारंभ में
(ब) 1931 के अंत में
(स) 1932
(द) 1933
उत्तर:
(ब) 1931 के अंत में
प्रश्न 11.
महात्मा गाँधी को सर्वप्रथम ‘महात्मा किसने कहा?
(अ) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(ब) पं. जवाहर लाल नेहरू
(स) बाल गंगाधर तिलक
(द) मोहम्मद अली जिन्ना
उत्तर:
(अ) रवीन्द्रनाथ टैगोर
प्रश्न 12.
‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन कब शुरू हुआ?
(अ) अगस्त 1942
(ब) अगस्त 1940
(स) अगस्त 1944
(द) अगस्त 1946
उत्तर:
(अ) अगस्त 1942
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