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Saturday, June 18, 2022

BSEB Class 12 History Colonialism and the Countryside Exploring Official Archives Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Colonialism and the Countryside Exploring Official Archives Book Answers

BSEB Class 12 History Colonialism and the Countryside Exploring Official Archives Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Colonialism and the Countryside Exploring Official Archives Book Answers
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Bihar Board Class 12th History Colonialism and the Countryside Exploring Official Archives Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 12th History Colonialism and the Countryside Exploring Official Archives Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 12th
Subject History Colonialism and the Countryside Exploring Official Archives
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 12 History उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों था?
उत्तर:
ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती था। इसके निम्नलिखित कारण थे-

  1. बंगाल के दिनाजपुर जिले के धनी किसानों को जोतदार कहा जाता था। इनके पास जमीन के बड़े-बड़े रकबे होते थे। कहीं-कहीं तो यह हजारों एकड़ का होता था।
  2. स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर इनका नियंत्रण था। वे क्षेत्र के गरीब काश्तकारों पर शक्ति प्रयोग करते थे।
  3. ये लोग गाँवों में रहते थे और गरीब ग्रामीणों के बड़े वर्ग:पर नियंत्रण रखते थे।
  4. ये किसानों के पक्षधर और लगान बढ़ाए जाने के मुद्दे पर जमींदार के कट्टर विरोधी थे। ये अंग्रेज अधिकारियों के कार्यों पर रोक भी लगाते थे।
  5. ये खुद खेती नहीं करते थे और अपनी जमीन बटाईदारों को खेती करने के लिए दे देते थे। उनसे वे उपज का आधा भाग लेते थे। इस प्रकार ये बिना मेहनत धनवान हो जाते थे।

प्रश्न 2.
जमींदार लोग अपनी जमींदारियों पर किस प्रकार नियंत्रण बनाए रखते थे?
उत्तर:
जमींदारों द्वारा अपनी जमींदारियों पर नियंत्रण रखने के उपाय –

  1. राजस्व की अत्यधिक माँग और अपनी भूसम्पदा की नीलामी से जमींदार तंग आ गये थे। इससे बचने के लिए जमींदारों ने नया षड्यंत्र सोच लिया। संपदा की फर्जी बिक्री ऐसी ही एक रणनीति थी।
  2. बर्दमान के राजा ने पहले तो अपनी जमींदारी का कुछ भाग अपनी माँ के नाम कर दिया क्योंकि कंपनी ने यह नियम बनाया था कि स्त्रियों की सम्पत्ति को छीना नहीं जायेगा।
  3. नीलामी की प्रक्रिया में एजेंटों और नौकरों को शामिल किया गया। इस प्रकार संपदा पर जमींदार का अधिकार बना रहता था।
  4. जमींदार कंपनी को राजस्व समय पर नहीं देते थे और इस प्रकार बकाया राजस्व राशि का बोझ बढ़ता गया। जब भूसंपदा का कुछ भाग नीलाम किया गया तो जमींदार के संबंधियों ने ही ऊँची बोली लगाकर खरीद लिया परंतु रकम का भुगतान नहीं किया। यही प्रक्रिया बार-बार चलती रही।
  5. कुछ दिनों के बाद लोगों ने बोली लगाना बंद कर दिया। कंपनी को कम दाम पर जमीन जमींदार को बेचनी पड़ी।
  6. जमींदारों ने नीलामी से बचने के लिए अन्य कई तरकीबें निकालीं। वे संपदा खरीदने वालों को जमीन पर कब्जा नहीं करने देते थे या मार-पीटकर भगा देते थे।

प्रश्न 3.
पहाडिया लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया दर्शाई?
उत्तर:

  1. स्थायी कृषि विस्तार के साथ बाहरी लोगों और पहाड़ियों के बीच संघर्ष तेज हो गया था। वे ग्रामवासियों का अनाज और पशु झपटने लगे।
  2. 1770 ई. के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने पहाड़ियों के प्रति कठोरता की नीति अपनाई और उन पर आक्रमण शुरू कर दिया।
  3. 1780 के दशक के भागलपुर के कलक्टर ऑगस्ट्स क्लीवलैंड ने शांति स्थापना का प्रस्ताव रखकर पहाड़ी मुखियाओं का वार्षिक भत्ता निश्चित किया ताकि वे अपने आदमियों को नियंत्रण में रख सकें। पहाड़िया लोग अंग्रेजों को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे और उनसे घृणा करने लगे।
  4. पहाड़ियों के लिए एक अन्य खतरा इनके क्षेत्रों में संस्थालों का प्रवेश बन गया । जहाँ कुदाल पहाड़ियों की रक्षक थी, वहीं हल संथालों का सुदृढ़ अस्त्र बन गया। अब इन दोनों के बीच संघर्ष शुरू हो गया।

प्रश्न 4.
संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?
उत्तर:
संथालों द्वारा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध-विद्रोह के कारण:

  1. ब्रिटिश अधिकारियों ने संथालों को दामिन-इ-कोह में बसने के लिए निमंत्रण दिया । यहाँ संथालों के गाँवों और जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई। वे व्यापारिक फसलों की खेती करते थे परंतु ब्रिटिश सरकार ने उनकी जमीन पर भारी कर लगा दिया।
  2. 1850 ई. के दशक तक संथाल लोग स्वायत्त शासन चाहते थे परंतु ब्रिटिश सरकार इसके लिए तैयार नहीं की। फलस्वरूप संथालों ने विद्रोह कर दिया।
  3. 1855-56 के संथाल विद्रोह के बाद संथाल परगने का निर्माण कर दिया गया। इस प्रकार उनका क्षेत्र सीमित कर दिया गया।

प्रश्न 5.
दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध क्यों थे?
उत्तर:
दक्कन के रैयत का ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध होने के कारण –
1. जब भारत से इंग्लैण्ड में कपास का निर्यात हो रहा था तो महाराष्ट्र के निर्यात व्यापारी और साहूकार रैयत को खूब ऋण दे रहे थे। अमेरिका में गृहयुद्ध की समाप्ति और वहाँ से इंग्लैण्ड में कपास का निर्यात पुनः होने से ये ऋणदाता ऋण देने में उत्सुक नहीं रहे। यह भी एक कारण था कि दक्कन के रैयत क्रुद्ध हो गये।

2. ऋणदाताओं ने देखा कि भारतीय कपास की माँग घटती जा रही है और कपास की कीमतों में भी गिरावट आ रही है। यही कारण था कि उन्होंने अपना कार्य व्यवहार बंद करने, रैयत की अग्रिम राशियाँ प्रतिबंधित करने और बकाया ऋणों को वापस लेने का निर्णय लिया।

3. 1830 ई. के पश्चात् राजस्व का नया बंदोवस्त लागू किया गया जिसमें भूराजस्व 50 से 100 प्रतिशत बढ़ा दिया गया। इतना भारी लगान देने के लिए रैयतों को ऋण लेना अनिवार्य हो गया परंतु ऋणदाताओं ने ऋण देने से मना कर दिया। रैयत इस बात से अधिक नाराज था कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खा रहा है और गाँव की प्रथाओं का उल्लंघन कर रहा है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत सी जमींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गई?
उत्तर:
इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत सी जमींदारियों के नीलाम होने के कारण –
1. 1793 ई. में चार्ल्स कार्नवालिस द्वारा इस्तमरारी बंदोबस्त लागू कर दिया गया। इसके अंतर्गत निश्चित भूराजस्व लम्बे समय के लिए निर्धारित कर दिया गया और इसे निश्चित तिथि पर भुगतान करना होता था। निश्चित भूराजस्व जमा न करने पर जमींदारों की भूमि नीलाम कर दी जाती थी।

2. बंगाल में राजस्व के भुगतान की समस्या बढ़ती जा रही थी जबकि ब्रिटिश अधिकारी यह आशा कर रहे थे कि इस्तमरारी बंदोबस्त लागू होने के पश्चात् यह समस्या हल हो जायेगी। वस्तुतः 1770 ई. के पश्चात् बंगाल में बार-बार अकाल पड़ रहे थे एवं खेती की पैदावार घटती जा रही थी। इसलिए किसान भूराजस्व नहीं दे पा रहे थे। ऐसे में जमींदार भी भूराजस्व देने में असमर्थ हो जाते थे। फिर तो भूमि का नीलाम होना निश्चित था।

3. जमींदारों के अधीन अनेक गाँव यहाँ तक कि 400 गाँव भी होते थे। कई गाँव मिलकर एक जमींदार के अधीन राजस्व सम्पदा बनाते थे। इस संपदा पर कंपनी राजस्व की कुल माँग का निर्धारण करती थी। इसके बाद जमींदार अलग-अलग गाँवों के लिए भूराजस्व निश्चित करता था और वसूल करता था। इस प्रकार यह एक जटिल कार्य था। जब जमींदार निर्धारित राजस्व को समय पर जमा न कर पाता था तो उनकी संपदा (भूमि) का नीलाम कर दिया जाता था।

प्रश्न 7.
पहाडिया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस रूप में भिन्न थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों और संथालों की आजीविका में अंतर –
1. 18 वीं शताब्दी के परवर्ती दशकों के राजस्व अभिलेखों से ज्ञात होता है कि पहाड़िया जंगल की उपज से अपनी जीविका चलाते थे और झूमकर खेती किया करते थे। जंगल को साफ करके बनाई गई जमीन पर लोग खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें और ज्वार-बाजरा उगा लेते थे। कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन पर खेती करते थे और फिर उसे परती छोड़कर नये इलाके में चले जाते थे। जमीन की खोई हुई उर्वरता फिर से लौट आए, इसीलिए ऐसा किया जाता था। संथाल लोग स्थायी खेती करते थे। वे परिश्रम से जंगल को साफ करके खेतों की जुताई करते थे। इनकी जमीन चट्टानी थी लेकिन उपजाऊ थी। बुकानन के अनुसार वहाँ तम्बाकू और सरसों की अच्छी खेती होती थी।

2. पहाड़िया लोग गुजारे वाली और खाद्य पदार्थों की खेती अधिक करते थे जबकि संथाल लोग व्यापारिक और नकदी फसलों की खेती करते थे।

3. पहाड़िया लोग जंगल साफ करने और खेती करने के लिए कुदाल का प्रयोग करते थे। वे जंगल काटने के लिए हल का प्रयोग नहीं करते थे और उपद्रवी थे। इसके विपरीत संथाल आदर्श बाशिंदे थे, क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने में कोई हिचक नहीं थी और वे भूमि की गहरी जुताई करते थे।

4. जंगलों में पहाड़िया लोग खाने के लिए महुआ के फूल, बेचने के लिए रेशम के कोया और राल और काठ कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ, एकत्र करते थे। संथाल लोग इस प्रकार का कार्य नहीं करते थे।

5. पहाड़िया लोग प्रायः उन मैदानों पर आक्रमण किया करते थे जहाँ के स्थाई किसान खेती-बाड़ी करते थे। अभाव या अकाल के वर्षों में स्वयं को जीवित रखने के लिए ऐसे आक्रमण किये जाते थे। संथाल लोग इस प्रकार के कार्यों में रुचि नहीं लेते थे।

6. मैदानों में रहने वाले जमींदार पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज देकर उनसे शांति खरीदनी पड़ती थी। पहाड़िया लोग व्यापारियों से पथकर लिया करते थे। पथकर लेकर वे व्यापारियों की रक्षा करते थे। संथाल ऐसा कार्य नहीं करते थे।

प्रश्न 8.
अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर:
अमेरिकी गृहयुद्ध का भारत में समुदाय के जीवन पर प्रभाव –
1. 1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन अमेरिका से कपास आयात करता था जिसके बंद होने की आशंका बनी रहती थी। 1857 में ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य कंपनी की आय बढ़ाने के लिए विश्व के प्रत्येक भाग में कपास के उत्पादन को प्रोत्साहित करना था। भारत को ऐसा देश समझा गया जो अमेरिका से कपास की आपूर्ति बंद हो जाने की स्थिति में ब्रिटेन को कपास भेज सकता है। भारत से कपास का निर्यात, सस्ते दामों पर ब्रिटेन को होता था। रैयतों को इससे बहुत घाटा उठाना पड़ता था।

2. 1861 में अमेरिकी गृह-युद्ध छिड़ने के कारण कपास में कमी आने लगी और उसका दाम बढ़ने लगा। भारत और अन्य देशों से कपास की आपूर्ति होने लगी। इसके कारण भारतीय रैयतों को कपास का अच्छा दाम मिलने लगा।

3. दक्कन में किसानों को कपास उगाने के लिए खूब ऋण दिया गया । फलस्वरूप दक्कन से कपास के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई।

4. इंग्लैंड में कपास के कुल आयात का 90% भाग भारत से आयात होता था। परंतु कपास की उत्पादन की वृद्धि से भी रैयतों को पर्याप्त लाभ नहीं हुआ। वे कर्ज में दबे रहे।

5. 1865 ई. तक अमेरिका में शांति बहाल होने के साथ ही ब्रिटेन में अमेरिका से कपास पुनः आने लगी। इसके कारण भारतीय कपास के निर्यात में कमी आ गई। महाराष्ट्र में साहूकारों ने कर्ज देना बंद कर दिया और किसानों से ऋणों की वसूली करने लगे। इस प्रकार रैयतों को ऋण मिलना भी बंद हो गया और वे तबाह होने लगे।

प्रश्न 9.
किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या समस्याएँ आती हैं?
उत्तर:
किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के विषय में आने वाली समस्याएँ:
किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में अनेक समस्याएँ आती हैं जो निम्नलिखित हैं –
1. सरकारी स्रोत सरकार के कार्यों से सम्बद्ध होते हैं। किसानों के बारे में इनसे विस्तृत और सही रिपोर्ट नहीं मिलती है।

2. सरकारी स्रोत में उल्लिखित विवरण सरकार के पक्ष में होते हैं। उसमें सरकारी कमियों को नहीं दिखाया जाता था। किसानों के हित की बात की जाती है परंतु अहित के बारे में नहीं लिखा जाता।

3. सरकारी स्रोत घटनाओं के बारे में सरकारी सरोकार और अर्थ प्रतिबिंबित करते हैं। उदाहरण के लिए-दक्कन दंगा आयोग से विशिष्ट रूप से यह जाँच करने के लिए कहा गया था कि क्या सरकारी राजस्व की माँग का स्तर विद्रोह का कारण था।

4. संपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करने के बाद आयोग ने यह सूचित किया था कि सरकारी माँग किसानों के गुस्से की वजह नहीं थी। इसमें पूरा दोष ऋणदाताओं या साहूकारों का ही था, जबकि ऐसा नहीं था। इसमें सरकारी माँग बहुत कुछ उत्तरदायी थी। ब्रिटिश सरकार यह मानने को कभी तैयार नहीं थी कि जनता में असंतोष या क्रोध सरकारी कार्यवाही के कारण उत्पन्न हुआ था।

5. सरकारी रिपोर्ट किसानों के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए उपयोगी है परंतु उन्हें सावधानीपूर्वक पढ़ना पड़ेगा अन्य का तथ्य गलत हो सकते हैं।

6. सरकारी स्रोतों से प्राप्त जानकारी का समाचारपत्रों, गैर सरकारी वृत्तान्तों, विधिक अभिलेखों और यथासंभव मौखिक स्रोतों से संकलित साक्ष्य के साथ मिलान करके उनकी विश्वसनीयता की जाँच करनी पड़ेगी।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
उपमहाद्वीप के बाह्यरेखा मानचित्र (खाके) में इस अध्याय में वर्णित क्षेत्रों को अंकित कीजिए। यह भी पता लगाइये कि क्या ऐसा भी कोई इलाका था जहाँ इस्तमरारी बंदोबस्त और रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू थी। ऐसे इलाकों को मानचित्र में भी अंकित कीजिए।
उत्तर:

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
फ्रांसिस बुकानन ने पूर्वी भारत के अनेक जिलों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उनमें से एक रिपोर्ट पढ़िए और इस अध्याय में चर्चित विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए उस रिपोर्ट में ग्रामीण समाज के बारे में उपलब्ध जानकारी को संकलित कीजिए। यह भी बताइए कि इतिहासकार लोग ऐसी रिपोर्टों का किस प्रकार उपयोग कर सकते हैं।
उत्तर:
छात्र स्वयं करे।

प्रश्न 12.
आप जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहाँ के ग्रामीण समुदाय के वृद्धजनों से चर्चा कीजिए और उन खेतों में जाइए जिन्हें वे अब जोतते हैं। यह पता लगाइए कि वे क्या पैदा करते हैं, वे अपनी रोजी-रोटी कैसे कमाते हैं, उनके माता-पिता क्या करते थे, उनके बेटे-बेटियाँ अब क्या करते हैं और पिछले 75 सालों में उनके जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए हैं। अपने निष्कर्षों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
जमींदार राजस्व क्यों नहीं अदा कर पाते थे?
उत्तर:

  1. सरकार के भूराजस्व की प्रारंभिक मांगें बहुत ऊँची थी, क्योंकि स्थाई बंदोबस्त में कई वर्षों तक एक निश्चित भूराजस्व का अनुबंध किया गया था। कंपनी ने महसूस किया कि आगे चलकर कीमतों में बढ़ोत्तरी होने और खेती का विस्तार होने से आय में वृद्धि होगी परंतु कंपनी उस वृद्धि में अपने हिस्से का दावा नहीं कर सकेगी।
  2. 1793 में कृषि वस्तुओं की दरें नीची थीं। इस कारण रैयत के लिए जमींदारों के ऊँची राजस्व राशि चुकाना मुश्किल था।

प्रश्न 2.
उपनिवेशवाद का क्या अर्थ है ? उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:

  1. उपनिवेशवाद वह विचारधारा है जिसमें एक ताकतवर देश दूसरे कमजोर देश पर अधिकार कर लेता है और उनके संसाधनों का मनमाने ढंग से उपयोग करने लगता है।
  2. भारत कभी ब्रिटेन का एक उपनिवेश था। ब्रिटेन के उपनिवेशवाद की वजह से ही भारत गुलाम हुआ और उसके संसाधनों का शोषण हुआ।

प्रश्न 3.
इस्तमरारी बंदोबस्त कब, किसने और कहाँ लागू किया? इसमें क्या व्यवस्था की गई?
उत्तर:

  1. इस्तमरारी बंदोबस्त 1793 ई. में बंगाल के गवर्नर चार्ल्स कार्नवालिस द्वारा बंगाल प्रान्त में लागू किया गया।
  2. इस बंदोबस्त के अंतर्गत बंगाल की सम्पूर्ण कृषि योग्य भूमि जमींदार को दे दी गई। इस सम्पदा पर निर्धारित भूराजस्व को जमींदार निश्चित समय पर सरकारी खजाने में जमा करते थे अन्यथा उनकी जमीन नीलाम कर दी जाती थी।

प्रश्न 4.
1770 के दशक में बंगाल की ग्रामीण अर्थव्यवस्था क्यों खराब हो गई?
उत्तर:

  1. बंगाल में बार-बार अकाल पड़ रहे थे और खेती की पैदावार घटती जा रही थी।
  2. खेती के विकास के लिए सरकार कोई निवेश नहीं कर रही थी जबकि राजस्व की दर लगातार बढ़ाई जा रही थी।

प्रश्न 5.
जोतदार और मंडल जमींदार से क्यों नहीं डरते थे?
उत्तर:

  1. जोतदार एक धनी रैयत होता था जबकि मंडल गाँव का मुखिया होता था। दोनों जमींदार के अधीन होते थे। वे डरते नहीं थे बल्कि जमींदारों को परेशान देखकर खुश होते थे।
  2. वस्तुत: जमींदार आसानी से उन पर अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं कर सकता था। जमींदार बाकीदारों पर मुकदमा तो चला सकता था मगर न्यायिक प्रक्रिया बहुत लंबी होती थी।

प्रश्न 6.
ताल्लुकदार कौन थे?
उत्तर:

  1. ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ है-वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक या सम्बन्ध हो। परंतु आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया। ताल्लुकदार क्षेत्रीय इकाई का स्वामी होता था।
  2. ब्रिटिश सरकार ने इस्तमरारी बंदोबस्त के अधीन बंगाल के राजाओं और ताल्लुकदारों के साथ अनुबंध किया।

प्रश्न 7.
सूर्यास्त कानून क्या है?
उत्तर:

  1. फसल अच्छी हो या खराब, राजस्व का ठीक समय पर भुगतान जरूरी था। इस कानून के अनुसार निश्चित तिथि को सूर्य डूबने तक भुगतान हो जाना चाहिए।
  2. यदि ऐसा नहीं होता तो जमींदारी को नीलाम किया जा सकता था। इस प्रकार जमींदार को जमीन से हाथ, धोना पड़ता था।

प्रश्न 8.
19 वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में जमींदारों की स्थिति कैसे मजबूत बनी?
उत्तर:

  1. इस अवधि में राजस्व के भुगतान संबंधी नियमों को लचीला बना दिया गया था। इससे गाँवों पर जमींदार की सत्ता और अधिक मजबूत हो गई।
  2. 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ में कृषि उत्पादों की कीमतों में बढ़ोत्तरी होने लगी थी।

प्रश्न 9.
गाँवों में जोतदारों की शक्ति, जमींदारों की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी। क्यों?
उत्तर:

  1. जमींदार शहर में रहते थे और राजस्व की वसूली के लिए गाँवों में अपने अमलों (अधिकारी) को भेजते थे। जोतदार गाँवों में रहते थे और गरीब ग्रामवासियों के एक बड़े वर्ग पर नियंत्रण रखते थे।
  2. जब जमींदार गाँवों में लगान बढ़ाना चाहते थे तो जोतदार इसका विरोध करते थे और अंग्रेज अधिकारियों के कार्यों में बाधा उत्पन्न करने थे। इससे वे अपने साथ के रैयतों में लोकप्रिय थे।

प्रश्न 10.
पहाड़िया लोगों के जीविका के क्या साधन थे?
उत्तर:

  1. राजमहल के जंगलों में रहने वाले पहाड़िया लोग खाने के लिए महुआ के फूल एकत्र करते थे, बेचने के लिए रेशम का कोया, राल और काष्ठ कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र करते थे।
  2. पेड़ों के नीचे जमने वाली घासों पर उनके पशु जीवित रहते थे और ये घासें पशुओं के लिए चरागाह बन जाती थी।

प्रश्न 11.
पहाड़िया लोगों के आवास और स्वभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. वे लोग जंगलों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े थे। वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे और आम के पेड़ों के नीचे आराम करते थे।
  2. वे सम्पूर्ण प्रदेशों को अपनी निजी भूमि मानते थे और यह भूमि उनकी पहचान और जीवन का आधार थी। वे शहरी लोगों को अपनी जमीन में घुसने देना नहीं चाहते थे। उनके मुखिया लोग अपने समूह में एकता बनाये रखते थे और अपने झगड़े आपस में ही निपटा लेते थे।

प्रश्न 12.
संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों में कैसे पहुँचे?
उत्तर:

  1. संथाल लोग बंगाल में जमींदारों के लिए नई भूमि तैयार करने और खेती के विस्तार के लिए भाड़े पर काम करते थे। ब्रिटिश उद्यमियों ने इन्हें राजमहल पहाड़ियों में बसने का न्यौता दिया।
  2. अंग्रेज अधिकारी पहाड़ियों के कृषि कार्य से संतुष्ट नहीं थे। संथाल मेहनती थे और जंगल को शीघ्र साफ करके खेत तैयार कर देते थे और खेतों की अच्छी जुताई करते थे।

प्रश्न 13.
पाँचवीं रिपोर्ट क्या है?
उत्तर:

  1. भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी के प्रशासनिक तौर तरीकों तथा क्रियाकलापों व तैयार की गई और ब्रिटिश संसद में पेश की गई रिपोर्ट को पाँचवीं रिपोर्ट कहते हैं। यह रिपोर्ट 1002 पृष्ठों की थी जिसमें 800 से अधिक पृष्ठ परिशिष्टों के थे।
  2. इसमें जमींदारों और रैयतों की अर्जियाँ, भिन्न-भिन्न जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व विवरणियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय तालिकाएँ और अधिकारियों की बंगाल और मद्रास के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखित टिप्पणियाँ शामिल की गई थीं।

प्रश्न 14.
पाँचवीं रिपोर्ट की दो कमियाँ बताइये।
उत्तर:

  1. पाँचवीं रिपोर्ट लिखने वाले कंपनी के कुप्रशासन की आलोचना करने का आशय रखते थे। उल्लेखनीय है कि पाँचवीं रिपोर्ट में परम्परागत जमींदारी सत्ता के पतन का वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण है।
  2. जमींदारों द्वारा जमीन खोने का भी अतिरंजित वर्णन किया गया है। जब जमींदारियाँ नीलाम की जाती थी, तो जमींदार नए-नए हथकंडे अपनाकर अपनी जमींदारी को बचा लेते थे और बहुत कम जमीन छीनी जाती थी।

प्रश्न 15.
महालवाड़ी व्यवस्था के दोष बताइए।
उत्तर:
दोष:
इस भूमि व्यवस्था में निम्नलिखित दोष थे:
1. नम्बरदारों के विशेषाधिकार:
नम्बरदारों व अन्य विशिष्ट लोगों की सरकार तक पहुँच थी क्योंकि ये ही सरकार के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करते थे। इस स्थिति का वे अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग करते थे। इस व्यवस्था में भी मध्यस्थता करने वाले व्यक्ति विद्यमान रहते थे।

2. छोटे किसानों की दयनीय स्थिति:
गाँवों के बड़े-बड़े जमींदार तथा मान्यता प्राप्त व्यक्ति अपनी स्थिति का लाभ उठाकर छोटे किसानों पर अत्याचार करते थे और उनसे बेगार लेते थे। वे इन किसानों की भूमि को अपने अधिकार में कर लेते थे और अन्ततः बड़े किसानों के नौकर के रूप में काम करने पर मजबूर हो जाते थे। इन कारणों से उनकी स्थिति दयनीय बन गई थी।

प्रश्न 16.
रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली क्या है?
उत्तर:

  1. रैयत का अर्थ किसान है। यह प्रणाली कंपनी और रैयत के मध्य लगान संबंधी सीधा इकरारनामा (ठेका) थी। इसके अनुसार समय-समय पर लगान बढ़ाया जा सकता था।
  2. यह राजस्व प्रणाली मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसियों में लागू की गई।

प्रश्न 17.
किसानों के सूपा आंदोलन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. किसान व्यापारियों और साहूकारों से चिढ़े हुए थे। उन्होंने पूना जिले के सूपा गाँव में आंदोलन शुरू कर दिया। यहाँ एक मंडी थी जहाँ अनेक व्यापारी और साहूकार रहते थे।
  2. 12 मई, 1875 को आस-पास के ग्रामीण इलाकों के किसान एकत्र हो गये। उन्होंने व्यापारियों और साहूकारों पर आक्रमण कर दिया और उनकी बहियाँ तथा ऋणपत्र जला दिये, उनकी दुकानें लूट ली और कुछ मामलों में तो साहूकारों के घरों में आग भी लगा दी।

प्रश्न 18.
डेविड रिकार्डो कौन था?
उत्तर:

  1. डेविड रिकार्डों इंग्लैंड का एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री था। भारत में ब्रिटिश अधिकारियों ने अपने महाविद्यालयी जीवन में रिकार्डों के विचारों का अध्ययन किया था।
  2. 1820 के दशक में महाराष्ट्र में ब्रिटिश अधिकारियों में बंदोबस्त की शर्त तय करने के लिए रिकार्डो के विचारों का सहारा लिया।

प्रश्न 19.
जमींदारों को कृषकों से लगान (भू-राजस्व) एकत्र करने में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था?
उत्तर:

  1. प्राकृतिक आपदा के कारण किसानों की फसल खराब हो जाने से वे लगान देने में असमर्थ हो जाते थे। कभी-कभी उपज का दाम भी बहुत गिर जाता था।
  2. किसान कभी-कभी स्वयं भी भूराजस्व देने में विलम्ब करते थे जबकि जमींदारों के समय पर लगान जमा करना होता था।

प्रश्न 20.
दामिन-ए-कोह क्या है?
उत्तर:

  1. 1832 में अंग्रेजों ने राजमहल के पहाड़ी प्रदेश में जमीन के एक बहुत बड़े भाग को सीमित कर दिया और इसे संथालों की भूमि घोषित कर दिया।
  2. यहाँ संथालों को कृषि करने के लिए प्रेरित किया गया। इस भूमि को ‘दामिन-ए-कोह’ नाम दिया गया।

प्रश्न 21.
ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना कब हुई? इसके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:

  1. ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना 1857 में हुई।
  2. इस संघ का उद्देश्य विश्व के प्रत्येक भाग में कपास के उत्पादन को प्रोत्साहित करना था जिससे कि इंग्लैण्ड की मैनचेस्टर कॉटन कंपनी का विकास हो सके। उल्लेखनीय है कि भारत को इसके लिए अनुकूल माना गया और प्रोत्साहन के लिए कपास उगाने वाले किसानों को खूब कर्ज दिया गया।

प्रश्न 22.
दक्कन दंगा आयोग क्यों स्थापित किया गया?
उत्तर:

  1. दक्कन में हुए दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए जिस आयोग की स्थापना की गई उसे दक्कन दंगा आयोग कहते हैं।
  2. ब्रिटिश सरकार 1857 के विद्रोह की याद से चिंतित थी। वह नहीं चाहती थी कि भारत में फिर से इसी प्रकार का विद्रोह हो।

प्रश्न 23.
जमींदारी को नियंत्रित और उनकी आजादी समाप्त करने के लिए अंग्रेजी कंपनी ने क्या कदम उठाये?
उत्तर:

  1. जमींदारों से स्थानीय न्याय तथा स्थानीय पुलिस व्यवस्था का अधिकार छीन लिया गया।
  2. उनकी कचहरियों को कंपनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर के अधीन कर दिया गया।
  3. जमींदारों की सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया गया।
  4. सीमा शुल्क लेने का अधिकार छीन लिया गया।

प्रश्न 24.
1832 ई. के बाद कृषकों को ऋण लेने के लिए विवश होना पड़ा। क्यों?
उत्तर:

  1. 1832 ई. के बाद कृषि उत्पादों के मूल्यों में तेजी से गिरावट आई और लगभग डेढ़ दशक तक यही स्थिति बनी रही। इसके कारण किसानों की आमदनी घट गई।
  2. 1832-34 के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रो में अकाल फैल गया। इसमें जन-धन की विपुल हानि हुई। वस्तुतः किसानों के पास खाने को पर्याप्त खाद्यान्न भी न रहा। दूसरी भूराजस्व की बकाया राशि भी बढ़ती जा रही थी। ऐसी स्थिति में ऋण लेने के अलावा किसानों के पास कोई अन्य विकल्प शेष न रहा।

प्रश्न 25.
बटाईदार (बकगादार) कौन थे?
उत्तर:

  1. बटाईदार एक प्रकार के किसान थे जो जोतदारों की जमीन पर खेती करते थे। वे अपने हल का प्रयोग करके फसल उगाते थे।
  2. उपज तैयार होने पर ये लोग उसका आधा भाग जोतदार को देते थे।

प्रश्न 26.
ग्रामीण जोतदार जमींदारों से अधिक शक्तिशाली क्यों होते थे?
उत्तर:

  1. जोतदार गाँवों में गरीब किसानों के साथ रहते थे। किसानों को उनका समर्थन प्राप्त था, जमींदार शहरों में रहते थे और किसानों पर उनका नियंत्रण नाममात्र के लिए था।
  2. जमींदारों की नीलाम होने वाली जमींदारी प्राय: जोतदार ही खरीदते थे।

प्रश्न 27.
ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ तथा मैनचेस्टर में कॉटन कंपनी की स्थापना कब हुई? इनका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:

  1. ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना 1857 में हुई और मैनचेस्टर कॉटन कंपनी 1859 में बनी।
  2. इनका उद्देश्य विश्व के सभी स्थानों पर कपास के उत्पादन को बढ़ावा देने का था।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जोतदारों की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जोतदारों की स्थिति –

  1. बंगाल के दिनाजपुर जिले के किसानों को जोतदार कहा गया है। 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में इनके पास बड़े-बड़े रकबे होते थे जो कभी-कभी कई हजार एकड़ तक विस्तृत होते थे।
  2. स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर भी उनका नियंत्रण होता था और इस प्रकार वे उस क्षेत्र के गरीब काश्तकारों पर व्यापक शक्ति का प्रयोग करते थे।
  3. उनकी जमीन का काफी बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था और उन्हें उपज का आधा भाग मिलता था।
  4. गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी। वे गाँवों में रहते थे और ग्रामीणों में काफी लोकप्रिय थे। इसके विपरीत जमींदार शहरों में रहते थे और गाँवों में उनकी धाक नहीं थी।
  5. जोतदार ग्रामीणों को जमींदारों के विरुद्ध भड़काते थे और उन्हें भूराजस्व न देने के लिए प्रेरित करते थे। वे जमींदारों से विल्कुल भी नहीं डरते थे।

प्रश्न 2.
भारत में इस्तमरारी बंदोबस्त या स्थायी भूमि व्यवस्था किस प्रकार लागू की गई?
उत्तर:
भारत में इस्तमरारी या स्थायी भूमि व्यवस्था-पिट के इण्डिया एक्ट के अनुसार भारत में कंपनी ने राजस्व एकत्र करने की प्रणाली में सुधार करना था। 1786 ई. में कंपनी के. डायरेक्टरों ने कार्नवालिस को लिखा कि वह जमींदारों के साथ पहले 10 वर्ष के लिए एक समझौता करें तथा यह व्यवस्था यदि संतोषजनक सिद्ध हो तो इसे स्थायी बना दिया जाए।

कार्नवालिस ने कोई जल्दबाजी ने की। उसने बंगाल प्रशासन के एक अनुभवी सदस्य सर जान शोर को राजस्व एकत्र करने की व्यवस्था की जाँच करने का कार्य सौंपा। सर जान शोर ने 1789 ई. तक यह जाँच पूरी की तथा 10 वर्ष के लिए भूमि व्यवस्था की सिफारिश की। इसको बाद में स्थायी व्यवस्था बनाने की सिफारिश की गई थी। कार्नवालिस स्वयं इस निर्णय को स्थायी बनाने के पक्ष में था क्योंकि प्रधानमंत्री पिट तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल के प्रधान सदैव कार्नवालिस की पीठ पर थे। सर जॉन शोर की सिफारिशें स्वीकार कर ली गईं तथा 1793 ई. में स्थायी भूमि. व्यवस्था लागू कर दी गई। इससे जमींदार सरकार के समर्थक बन गए।

प्रश्न 3.
कंपनी ने जमींदारों को किस प्रकार नियंत्रित अथवा विनियमित किया?
उत्तर:
कंपनी द्वारा अपनाए गए जमींदारों को नियंत्रित एवं विनियमित करने के उपाय –

  1. यद्यपि कंपनी जमींदारों का आदर करती थी परंतु उन्हें अपने नियंत्रण में रखना चाहती थी। उसने जमींदारों की सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया और उनकी कचहरियों का निरीक्षण करने के लिए कलेक्टरों की नियुक्ति कर दी।
  2. जमींदारों से न्याय एवं स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गई।
  3. कलेक्टर कार्यालय की स्थापना करके जमींदारों के अधिकार को पूरी तरह सीमित एवं प्रतिबंधित कर दिया गया।
  4. कहीं-कहीं तो खुलेआम आदेश दिया गया कि राजा तथा उसके अधिकारियों के सम्पूर्ण प्रभाव और प्राधिकार को खत्म कर देने के लिए सर्वाधिक प्रभावशाली कदम उठाए जाएँ।

प्रश्न 4.
ब्रिटिश सरकार ने भारत में नई राजस्व प्रणालियाँ क्यों लागू की?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में नई राजस्व प्रणालियाँ लागू करने के कारण –

  1. 1810 ई. के पश्चात् कृषि की कीमत बढ़ गई। इससे उपज के मूल्य में वृद्धि हुई और बंगाल के जमींदारों की आमदनी भी बढ़ गई।
  2. राजस्व की माँग इस्तमरारी बंदोबस्त के अंतर्गत तय की गई थी इसलिए ब्रिटिश सरकार इस बढ़ी हुई आय में अपने हिस्से का कोई दावा नहीं कर सकती थी।
  3. ब्रिटिश सरकार अपने वित्तीय संसाधनों को बढ़ाना चाहती थी। इसलिए उसे. भूराजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के तरीकों पर विचार करना पड़ा।
  4. नीतियाँ निर्धारित करने वाले अधिकारी इंग्लैंड के जाने-माने अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित थे। उसके अनुसार भूस्वामी को उस समय लागू औसत लगानों को प्राप्त करने का हक होना चाहिए।

प्रश्न 5.
इंग्लैंड में ईस्ट इण्डिया कंपनी के विरुद्ध किन बातों को लेकर विरोध होता था?
उत्तर:
इंग्लैंड में ईस्ट इण्डिया कंपनी के विरुद्ध विरोध की बातें –

  1. भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी के शासन की स्थापना के साथ इंग्लैंड में उसकी आलोचना होने लगी। अनेक लोग भारत तथा चीन के साथ व्यापार पर ईस्ट इण्डिया कंपनी के एकाधिकार का विरोध करते थे। वस्तुत: कुछ अन्य समूह भी भारत तथा चीन के साथ व्यापार में हिस्सेदार बनना चाहते थे।
  2. लोग उस शाही फरमान को रद्द करने की मांग कर रहे थे जिसके अंतर्गत इस कंपनी को एकाधिकार दिया गया था।
  3. ऐसे निजी व्यापारियों की संख्या बढ़ती जा रही थी जो भारत के साथ व्यापार में रुचि ले रहे थे और ब्रिटेन के उद्योपगति ब्रिटिश विनिर्याताओं के लिए भारत का बाजार खुलवाने के लिए उत्सुक थे।
  4. कंपनी के कुशासन और अव्यवस्थित प्रशासन के विषय में प्राप्त सूचना पर ब्रिटेन में तीव्र प्रतिक्रिया हो रही थी।
  5. अधिकारियों के लोभ-लालच और भ्रष्टाचार की घटनाओं को ब्रिटेन के समाचार-पत्रों में व्यापक रूप से उछाला जा रहा था।

प्रश्न 6.
बुकानन कौन था? उसकी प्रेक्षण शक्ति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बुकानन एवं उसकी प्रेक्षण शक्ति –

  1. फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था। भारत आने के बाद बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया। उसने लार्ड वेलेज्ली की शल्य चिकित्सा भी की।
  2. बुकानन में अद्भुत प्रेक्षण शक्ति थी। उसने पत्थरों, चट्टानों और वहाँ की भूमि के भिन्न स्तरों तथा परतों को ध्यानपूर्वक देखा और उत्पादन के लिए अध्ययन किया।
  3. उसने व्यापारिक दृष्टि से मूल्यावन पत्थरों तथा खनिजों को खोजने की कोशिश की।
  4. उसने लौह खनिज, अबरक, ग्रेनाइंट तथा साल्ट-पीटर से संबंधित सभी स्थानों का पता लगाया। वह भूमि का प्रेक्षण उसकी उत्पादकता के आधार पर करता था।

प्रश्न 7.
रैयतवाड़ी व्यवस्था के दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
रैयतवाड़ी व्यवस्था के दोष:
1. व्यवस्था स्थायी न होना:
इस व्यवस्था की सबसे बड़ी कमी यह थी कि यह स्थायी न थी। इसके कारण किसानों की भूमि में रुचि उत्पन्न नहीं की जा सकी। किसानों को यह आशंका रहती थी कि उनका लगान अधिक आंका गया है अत: वे नए समझौते करने के लिए उत्साहित नहीं होते थे।

2. जमीन जब्त किए जाने की व्यवस्था:
रैयतवाड़ी व्यवस्था के अनुसार जब तक किसान अपनी भूमि का मालिक केवल लगान दिए जाने तक रहता था। यदि लगान देने में वह किसी कारणवश असमर्थ हो जाता था तो उसकी भूमि सरकार जब्त कर लेती थी।

3. सरकारी कर्मचारी द्वारा लगान अधिक आंकना:
वैज्ञानिक व्यवस्था होते हुए भी सरकारी कर्मचारी सामान्यतः ऊँची दर से लगान आँकते थे, जिससे किसान का न केवल उत्साह भंग होता था बल्कि लगान चुकाने की एक कठिन समस्या बन जाती थी।

4. लगान वसूल करने वाले कर्मचारियों के अत्याचार:
लगान वसूल करने वाले कंपनी के कर्मचारी किसानों पर घोर अत्याचार करते थे और बड़ी कड़ाई से लगान वसूल करते थे। किसान डर के मारे महाजन से ऊँची दरों पर कर्ज लेकर भी लगान चुकाते थे और भविष्य के लिए सदा कर्जदार बने रहते थे। किसान जमींदारों के चंगुल से निकलकर राज्य के चंगुल में फंस गए लेकिन बाद में सरकार ने स्पष्ट किया कि राजस्व कर नहीं बल्कि लगान है।

5. प्राकृतिक प्रकोपों के समय भी सुविधाओं का अभाव:
सरकार की ओर से कृषि उत्पादन में किसी प्रकार की सहायता प्राप्त नहीं होती थी। उपज बढ़ाने लिए किसान को ही प्रयास करना होता था। प्राकृतिक प्रकोपों-अनावृष्टि अथवा अतिवृष्टि-के समय भी उन्हें किसी प्रकार की राहत नहीं दी जाती थी। इसके विपरीत इन कठिन परिस्थितियों में भी उन्हें समय पर पूरा लगान देना होता था।

प्रश्न 8.
ब्रिटिश-शासन की भूराजस्व व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश-शासन की भू-राजस्व व्यवस्था:
यह तीन प्रकार की थी:
1. स्थाई बंदोबस्त:
लॉर्ड कार्नवालिस ने 1793 ई. में बंगाल में स्थाई बंदोबस्त आरम्भ किया। इसके अंतर्गत लगान सदा के लिए निश्चित कर दिया गया और लगान एकत्र करने वालों को जमींदार बना दिया गया।

2. रैयतवाड़ी:
मद्रास और बम्बई प्रेसिडेन्सियों में रैयतवाड़ी बंदोबस्त आरम्भ किया गया। यह कंपनी और रैयत (किसान) के मध्य लगान संबंधी सीधा इकरारनामा (ठेका) था। समय-समय पर लगान बढ़ाया जा सकता था।

3. महालवाड़ी:
इसके अंतर्गत लगान का समझौता कंपनी और गाँव या महाल के मध्य हुआ। यह उत्तर और मध्य भारत में लागू किया गया।

प्रश्न 9.
स्थाई बंदोबस्त के तीन दूरगामी परिणाम बताइये।
उत्तर:
स्थाई बंदोबस्त के दूरगामी परिणाम –

  1. कंपनी की लगान राशि निश्चित हो गई जिससे उसे बजट बनाने में सुविधा हो गई।
  2. इस व्यवस्था के कारण किसानों का शोषण बढ़ गया। जमींदारों को रैयत द्वारा दी जाने वाली लगान की राशि निश्चित की गयी थी तथापि जमींदारों ने किसान से ली जाने वाली लगान की राशि निश्चित नहीं की थी। वे किसानों से मनमानी दर पर राजस्व वसूल करने लगे।
  3. इस बंदोबस्त ने किसानों की दशा बद से बदतर बना डाली। जमींदारों के दलाल किसानों पर और अधिक अत्याचार करते थे।

प्रश्न 10.
इस्तमरारी बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
1. स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement):
इस व्यवस्था में सबसे ऊँची बोली लगाने वाले व्यक्ति को भू-राजस्व इकट्ठा करने का अधिकार दिया जाता था। इससे न तो रैयत (किसान) और न ही जमींदार, कृषि में सुधार करने का प्रयास करते थे क्योंकि वे जानते थे कि आगे लगान इकट्ठा करने का अधिकार और किसी को मिल सकता है। स्थायी बंदोबस्त की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –

  • जमींदारों और मालगुजारों को भू-स्वामी बना दिया गया।
  • काश्तकारों का दर्जा गिर गया और वे बटाईदार होकर रह रहे थे। जमींदार स्वेच्छा से किसान को भूमि जोतने के लिए देता था अन्यथा किसान हाथ पर हाथ धरे रहता था।
  • भू-राजस्व निश्चित होने के कारण सरकार की आय भी निश्चित हो गई थी।
  • अगर भू-राजस्व समय पर जमा नहीं कराया जाता था तो किसान की भूमि नीलाम कर दी जाती थी या उसे जब्त कर लिया जाता था।

प्रश्न 11.
महालवाड़ी राजस्व व्यवस्था की विशेषतायें बताइये।
उत्तर:
महालवाड़ी राजस्व व्यवस्था की विशेषताएँ:
जिस प्रकार बंगाल में स्थायी भूमि व्यवस्था तथा दक्षिण में रैयतवाड़ी भूमि व्यवस्था लागू थी। उसी प्रकार उत्तर प्रदेश के अधिकांश भागों तथा पंजाब व मध्य प्रदेश आदि क्षेत्रों में महालवाड़ी (ग्रामानुसार) भूमि व्यवस्था प्रारंभ की गई। इस व्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

1. लगान का एक निश्चित अवधि के लिए निर्धारण:
इस व्यवस्था में लगान 30 या 20 वर्ष की निश्चित अवधि के लिए निर्धारित किया जाता था और इस अवधि के पश्चात् उसका पुनर्निर्धारण होता था।

2. समझौता सरकार व सम्पूर्ण ग्राम के साथ था:
महालवाड़ी भूमि व्यवस्था के अन्तर्गत समझौता रैयतवाड़ी के अनुसर अलग-अलग किसानों के साथ नहीं, बल्कि सारे गाँव के साथ किया जाता था। इस प्रकार लगान की अदायगी के लिए सारा गाँव सम्मिलित रूप से तथा गाँव का प्रत्येक किसान अलग-अलग, सारे ग्राम के लगान के प्रति उत्तरदायी था।

3. ग्राम के नम्बरदार की विशेष भूमिका:
ग्राम की ओर से सरकार के द्वारा दिए जाने वाले सम्पूर्ण लगान के संबंध में समझौते पर ग्राम का नम्बरदार हस्ताक्षर करता था। उसकी दोनों पक्षों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण स्थिति हो जाती थी।

4. लगान देते रहने तक किसान जमीन का मालिक:
प्रत्येक ग्रामवासी सम्पूर्ण ग्राम द्वारा जाने वाली राशि में अपनी जोत का भाग देता था तथा अन्यों को अपना-अपना भाग देने को प्रोत्साहित करता था, जिससे सम्पूर्ण ग्राम का भाग दिया जा सके। यदि कोई किसान अपना भाग नहीं दे पाता था, तो उसे बेदखल कर दिया जाता था।

5. किसानों की भूमि का ब्यौरा:
सरकारी कर्मचारी ग्राम के नम्बरदार तथा ग्राम पंचायत से परामर्श करके किसानों के लगान निश्चित करते थे। किसानों को उनकी जमीन का अधिकार-पत्र मिले हुए थे। इन पर लगान की राशि अंकित की जाती थी। सम्पूर्ण ग्राम की जमीन के नक्शे में इस बात का विवरण होता था कि किस व्यक्ति के पास कितनी भूमि है तथा उससे कितना लगान प्राप्त होना है।

6. जमीन की उत्पादकता की जानकारी:
चूँकि सरकार को एक निश्चित समय के पश्चात् लगान की राशि निर्धारित करनी होती थी। इस कारण समय-समय पर जमीन की उत्पादकता की जाँच करने का अवसर भी सरकार को प्राप्त हो जाता था। एक बार निर्धारित की गई राशि उस सम्पूर्ण अवधि भर चलती थी।

प्रश्न 12.
अंग्रेजों ने जमींदारों के साथ समझौता करके और कृषकों के अधिकारों की अवहेलना करके भयंकर भूल की। क्यों?
उत्तर:
अंग्रेजों की भयंकर भूल-अंग्रेजों ने भिन्न:
भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न भू-राजस्व प्रणालियाँ लागू कर रखी थीं। पूरे साम्राज्य में एक जैसी भू-राजस्व प्रणाली न थी। बंगाल, बिहार और उड़ीसा में स्थायी बंदोबस्त था परंतु दक्षिणी-पश्चिमी भारत में रैयतवाड़ी प्रथा थी, जबकि उत्तरी भारत के कुछ क्षेत्रों में महालवाड़ी प्रथा थी। इन तीनों प्रथाओं से कंपनी और जमींदारों के हित साधन तो होते थे परंतु किसान शोषण की चक्की में पिसता जाता था। भूमि सुधारों की ओर किसी का भी ध्यान न था। वे अपना काम केवल कर वसूल करना समझते थे।

अंग्रेज अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए चाय, जूट, अफीम, कहवा, नील आदि की खेती पर जोर देते थे। जमींदार भी बड़े-बड़े शहरों में सुंदर बंगलों में रहकर क्लिासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। उनके कारिंदे किसानों से बड़ी बेरहमी से कर वसूल करते थे। समय पर कर देने के लिए किसान अपने पशु, घर, गहने आदि गिरवी रख देता या। बेच देता था गाँव का महाजन ऊँची दर पर कर्ज देता था। अकाल आदि प्राकृतिक विपदाओं में भी किसानों को सरकार की ओर से कोई सहायता न मिलती थी। उन्हें सिंचाई जैसी मूल आवश्यकता को पूरा करने में भी सरकार की ओर से कोई सहायता न दी जाती थी।

प्रश्न 13.
स्थायी बंदोबस्त या इस्तमरारी बंदोबस्त से क्या लाभ हुए?
उत्तर:
स्थाई बन्दोबस्त से लाभ (Benefit of Permanent Settlement):

  1. कंपनी को एक निर्धारित समय पर एक निश्चित धन राशि मिल जाती थी।
  2. अंग्रेज वफादार जमींदारों से लाभ कमाते थे और बेईमान जमींदारों की भूमि नीलाम कर देते थे।
  3. कंपनी भू-राजस्व की वसूली से संबंधित बेकार के खर्चों से बच गई।
  4. जमींदारों को भी काफी लाभ पहुँचा, क्योंकि इस व्यवस्था के अनुसार इन्हें सरकारी कोष में एक निश्चित धनराशि ही जमा करवानी पड़ती थी लेकिन वे किसानों से मनमानी धनराशि लेते थे।
  5. भूमि जमींदारों की बपौती बन गई।
  6. जमींदार पूँजीपति बन गये। उनके पास बड़े-बड़े बंगले और विलास सामग्री आ गई।

प्रश्न 14.
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी? उसके सामाजिक और आर्थिक प्रभाव क्या थे?
उत्तर:
रैयतवाड़ी व्यवस्था:
दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम भारत में लागू की गई इस व्यवस्था के अन्तर्गत किसान भू-राजस्व का भुगतान करते रहने तक ही भूमि का स्वामी था। इस व्यवस्था के समर्थकों का कहना था कि यह वही व्यवस्था है, जो भारत में पहले से प्रचलित थी। बाद में यह व्यवस्था मद्रास और बम्बई प्रेसिडेंसियों में भी लागू कर दी गई। इस व्यवस्था में 20-30 वर्ष बाद संशोधन कर दिया जाता था तथा राजस्व की राशि बढ़ा दी जाती थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था में निम्नलिखित ‘त्रुटियाँ थीं –

  • भू-राजस्व 45 से 55 प्रतिशत था, जो बहुत अधिक था।
  • भू-राजस्व बढ़ाने का अधिकार सरकार ने अपने पास रखा था।
  • सूखे अथवा बाढ़ की स्थिति में भी पूरा राजस्व देना पड़ता था। इससे भूमि पर किसान का प्रभुत्व कमजोर पड़ गया।

प्रभाव (Effect):

  • इससे समाज ने असंतोष और आर्थिक विषमता का वातावरण छा गया।
  • सरकारी कर्मचारी किसानों पर अत्याचार करते रहे तथा किसानों का शोषण पहले जैसा ही होता रहा।

प्रश्न 15.
पहाड़िया लोगों के जीवन की मुख्य विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
पहाडिया लोगों के जीवन की विशेषतायें –

  1. पहाड़िया लोग पूरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे।
  2. वे इमली के पेड़ों के नीचे झोपड़ियाँ बनाकर रहते थे और आम की छाया में आराम करते थे।
  3. वे अपने प्रदेश में बाहरी लोगों के प्रवेश पर विरोध करते थे।
  4. उनके मुखिया अपने-अपने समूह में एकता बनाये रखते थे और उनके आपसी लड़ाई-झगड़े निपटाते थे। जनजातियों तथा मैदानी लोगों से लड़ाई छिड़ने पर वे अपने-अपने कबीले का नेतृत्व करते थे।
  5. वे जंगलों में शिकार करते थे और झूम खेती करते थे। जंगल से वे खाद्य पदार्थ, रेशम का कोया तथा लकड़ी भी एकत्र करते थे।

प्रश्न 16.
जमींदार रैयत (किसान) से भूराजस्व की वसूली कैसे करते थे? उनके लिए भूराजस्व वसूली एक समस्या क्यों थी?
उत्तर:
जमींदारों द्वारा रैयत से भूराजस्व की वसूली –

  1. रैयत से भूराजस्व की वसूली के लिए जमींदार अपने एक अधिकारी को भेजता था जिसको ‘अमला’ कहा जाता था।
  2. राजस्व वसूली में कई परेशानियाँ होती थीं। खराब फसल तथा उपज की निम्न कीमत होने पर रैयत भूराजस्व नहीं देता था।
  3. रैयत भूराजस्व देने में जानबूझकर विलम्ब करता था।
  4. धनी किसान और गाँव का मुखिया किसान को भूराजस्व न देने के लिए बहका देता था। वे जमींदार को परेशान देखकर खुश होते थे।
  5. कभी-कभी वे जमींदार को मिलने वाले भूराजस्व के भुगतान में जानबूझ कर देरी का देते थे।

प्रश्न 17.
दक्कन दंगम आयोग के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
दक्कन दंगा आयोग –

  1. अंग्रेजी सरकार 1857 के विद्रोह के बाद से चितित थी। उसने बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक जाँच आयोग की स्थापना की जाए।
  2. उसे विशेष रूप से यह जाँच करने के लिए कहा गया था कि क्या सरकारी राजस्व की माँग भी स्तर विद्रोह का कारण था।
  3. इसमें सभी साक्ष्य यह प्रमाणित करने के लिए पेश किये गये थे कि सरकार की राजस्व मांग विद्रोह का कारण नहीं थी।
  4. दक्कन दंगा रिपोर्ट इतिहासकारों को उन दंगों का अध्ययन करने की आधार सामग्री उपलब्ध कराती है।
  5. आयोग ने दंगा पीड़ित जिलों में जाँच पड़ताल कराई। रैयत वर्गों, साहूकारों और चश्मदीद गवाहों के बयान लिए, भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में राजस्व की दरों, कीमतों और ब्याज के बारे में आँकड़े एकत्र किये और जिला कलेक्टरों द्वारा भेजी गई रिपोर्टों का संकलन किया।

प्रश्न 18.
1770-80 में पहाड़ियों के प्रति ब्रिटिश अधिकारियों की नीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1770-80 में पहाड़ियों के प्रति ब्रिटिश अधिकारियों की नीति –

  1. 1770 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने पहाड़ियों को खत्म कर देने की क्रूर नीति अपना ली और उनका संहार करने लगे।
  2. 1780 के दशक में भागलपुर के कलेक्टर आगस्टस क्लीवलैंड ने शांति स्थापना की नीति अपनायी।
  3. शाति नीति के अंतर्गत पहाड़िया मुखियाओं को एक वार्षिक भत्ता दिया गया। बदले में उन्हें अपने आदमियों को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी लेनी थी।
  4. मुखियाओं से यह आशा भी की गयी कि वे अपनी बस्तियों में शांति व्यवस्था बनाए रखेंगे और अपने जाति के लोगों को अनुशासन में रखेंगे।
  5. इस नीति के अपनाने से मुखियाओं की शक्ति क्षीण हो गयी और अपने समुदाय में सम्मान कम हो गया। उन्हें अंग्रेजों के अधीनस्थ कर्मचारी के रूप में समझा जाने लगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
ब्रिटिश शासन काल में भारतीय किसानों की दरिद्रता के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारतीय कृषकों की दरिद्रता के कारण भारतीय किसानों की दरिद्रता को समझने के लिए निम्नलिखित बातों को समझना आवश्यक है –
1. भूमि की नई-नई व्यवस्थाएँ:
बंगाल, बिहार व उड़ीसा की दीवानी पर अधिकार हो जाने के पश्चात् अंग्रेजों ने राजस्व के माध्यम से अधिकाधिक धन प्राप्त करने के उपाय किए। इनमें उनके द्वारा प्रचलित विभिन्न भूमि व्यवस्थाएँ थीं। इन व्यवस्थाओं में नीलामी के द्वारा कई प्रकार के पट्टों पर भूमि दिए जाने की व्यवस्था तथा स्थायी भूमि प्रबंध आदि सम्मिलित थीं। प्रत्येक व्यवस्था में राजस्व वसूल करने वाले नये व्यक्ति होते थे और वे एक बार में किसानों से अधिकाधिक धन वसूल करने का प्रयास करते थे। किसान के सामने समर्पण करने के अतिरिक्त और कोई मार्ग न था। इन व्यवस्थाओं ने भारतीय किसान की स्थिति को दयनीय बना डाला।

2. किसानों में असुरक्षा की भावना:
भूमि की विभिन्न व्यवस्थाओं के कारण भारतीय किसान को सदा भय बना रहता था कि उसकी भूमि उसके पास रहेगी भी या नहीं। नीलामी में किसानों को अपनी भूमि अपने पास रखने के लिए ऊँची बोली लगानी पड़ती थी। कई बार तो यह बोली इतनी ऊँची हो जाती थी कि किसान को राजस्व देना असंभव हो जाता था। स्थायी समझौते के अंतर्गत पुराना पट्टा और किसान को जमीन की गारंटी देने वाला कबूलियत का तरीका बनाए रखा गया किन्तु व्यवहार में जमींदार अपने पट्टेदार को किसी न किसी बहाने से बेदखल करने का अधिकार रखता था। जमींदारों की उसके ऊपर कृपा बनी रहे और उसकी भूमि न छिन जाए, इसके लिए किसान को भारी मूल्य चुकाना पड़ता था।

3. किसानों ने भी भूमि की उपेक्षा की:
असुरक्षा की भावना के कारण किसानों ने भूमि की उपेक्षा की और पैदावार बढ़ाने की ओर ध्यान नहीं दिया। उन्हें भय रहता था कि उनके द्वारा तैयार की गई भूमि को जमींदार कहीं किसी दूसरे किसान को न दे। इससे उपज में कमी हुई और इसका प्रभाव अंततः किसानों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा। सरकार द्वारा किए गए अस्थायी समझौते से भी किसान को भय रहता था कि अगली बार उसका किराया बढ़ सकता है।

4. जमींदारों ने भरपूर शोषण किया:
स्थायी भूमि प्रबंध में जिन जमींदारों को भूमि प्राप्त हुई उनको शासकों का संरक्षण प्राप्त था। वे इस स्थिति का लाभ उपायों से भी उनका शोषण करने लगे। किसान को भूमि छिन जाने का भय तो था ही, साथ ही शासन के भय के कारण भी उनकी असहाय स्थिति थी और उन्हें जमींदार की दया पर ही जीवन व्यतीत करने को मजबूर होना पड़ा था।

5. खेतों का छोटे:
छोटे भागों में बंट जाना-नगरों में उद्योगों के नष्ट हो जाने के कारण कारीगर ग्रामों में चले गए और इससे कृषि पर बोझ बढ़ गया। किसान की भूमि छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गई। जनसंख्या वृद्धि ने खेतों के छोटे होने की प्रक्रिया को और अधिक तेज कर दिया। खेतों के इतने छोटे-छोटे टुकड़े हो गये कि ये जोतें आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी बन गईं। इससे किसानों की दरिद्रता बढ़ना स्वाभाविक ही था।

6. ग्रामोद्योगों का पतन:
अंग्रेजों के आगमन का दुष्परिणाम न केवल नगरों के उद्योगों पर हुआ बल्कि ग्रामों के उद्योग भी धीरे-धीरे नष्ट हो गये। इन उद्योगों के समाप्त होने से ग्रामों में बड़ी संख्या में लोग बेकार हो गए और मजबूरन उन्हें कृषि पर निर्भर होना पड़ा। ये लोग भूमिहीन किसान बन गए और अपने जीविकोपार्जन के लिए किसानों की भूमि पर मजदूरों के रूप में खेती का काम करने लगे। इन भूमिहीन किसानों की दशा और अधिक खराब हो गई।

7. सरकार की उपेक्षा:
कृषकों की आर्थिक स्थिति बिगड़ रही थी किन्तु विदेशी सरकार ने उनकी दशा सुधारने का कभी प्रयास नहीं किया। वे परम्परागत तरीकों से ही कृषि करते थे। खेती के सुधरे हुए तरीके, नए औजारों का प्रयोग तथा अच्छे बीज व खाद का प्रयोग उन्हें नहीं आता था। सरकार ने इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया। कृषि पर बोझ बढ़ता गया, राजस्व व अन्य उपायों से कृषक का शोषण होता रहा, उपज घटती रही और सरकार की उपेक्षा की बनी रही, परिणामस्वरूप किसान की आर्थिक दशा बहुत बिगड़ गई।

8. साहूकारों द्वारा शोषण:
कृषक की दुर्बल स्थिति का साहूकार ने भी लाभ उठाया। वह साहूकार से कर्ज लिए बिना खेती की व्यवस्था नहीं कर सकता था। आमतौर से साहूकार थोड़े से कर्ज के लिए भी किसान की भूमि अपने पास रख लेते थे। ऊँची ब्याज दर के कारण किसान के लिए ब्याज देना भी कठिन हो जाता था, मूल धन लौटाना तो दूर की बात थी। अन्ततः किसान को अपनी भूमि से हाथ धोना पड़ता था। साहूकारों व महाजनों के इन कार्यों से सरकार भली-भाँति परिचित थी, किन्तु उसने भी किसानों की सहायता का प्रयास नहीं किया।

प्रश्न 2.
इस्तमरारी बंदोबस्त के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इस्तमरारी बंदोबस्त के गुण या विशेषताएँ:
1. कंपनी की प्रशासन क्षमता में वृद्धि:
किसानों से मिलने वाली मालगुजारी कंपनी की आमदनी का मुख्य स्रोत थी। कंपनी के योग्यतम् कर्मचारियों को इस राजस्व को एकत्र करने के लिए लगाना पड़ता था। फलस्वरूप दूसरे विभागों का कार्य ठीक से नहीं हो पाता था। इस व्यवस्था के कारण सरकार योग्य व्यक्तियों को अन्य विभागों में लगाने की सुविधा प्राप्त कर पाई। इस प्रकार प्रशासनिक व्यवस्था की क्षमता बढ़ना स्वाभाविक था।

2. कंपनी के व्यय में कमी:
भूमि के बार-बार प्रबंध करने में सरकार का बहुत अधिक धन खर्च होता था। अनेक अतिरिक्त कर्मचारियों और अधिकारियों को इस कार्य में लगाया जाता था और अतिरिक्त भत्ता देना पड़ता था। सरकार इस काम से अलग हो इसलिए उसकी बचत बढ़ गयी।

3. जमींदारों के हितों में वृद्धि:
जमींदारों को कानूनी रूप से भूमि का स्थायी मान लिया गया। उन्हें इस व्यवस्था से सर्वाधिक लाभ हुआ । अब वे भूमि में रुचि लेने लगे तथा उपज को बढ़ाने का प्रयत्न करने लगे। राज्य का भाग तो निश्चित ही था। अतिरिक्त उपज जमींदारों के हाथ में ही रहनी थी। इसके कारण वे समृद्ध हो गये। इस प्रकार इस व्यवस्था ने उनके हितों में वृद्धि की।

4. किसानों को प्रोत्साहन:
इस व्यवस्था से कृषक वर्ग को बहुत प्रोत्साहन मिला। उन्हें अपने खेत का पट्टा मिल गया था जिस पर भूमि की माप और लगान लिखा होता था। उन्हें तब तक बेदखली का भय नहीं रहता था जब तक कि वे लगान अदा करते रहते थे। इस प्रकार वे लगान देकर मन से खेती करने लगे।

5. उद्योग और व्यापार में उन्नति:
भूमि के स्थायी प्रबंध से व्यापार के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई। इस व्यवस्था से जमींदारों की आमदनी बढ़ गयी। उन्होंने अपने अतिरिक्त धन को उद्योग तथा व्यापार में लगाया। फलस्वरूप बंगाल में अनेक उद्योगों की स्थापना की गयी।

6. बंगाल प्रान्त की समृद्धि:
इस व्यवस्था से बंगाल में कृषि की पर्याप्त उन्नति हुई और कृषि उत्पादन बढ़ गया। बंगाल में खाने-पीने की वस्तुओं की कमी नहीं रही। उद्योग और व्यापार की उन्नति से भी बंगाल में समृद्धि आ गयी।

7. अंग्रेज समर्थक वर्ग का उदय:
राजनैतिक दृष्टि से अंग्रेजों को इस व्यवस्था से बहुत अधिक लाभ हुआ। जमींदार भूमि के स्वामी बन गये थे। इसके फलस्वरूप वे बहुत अधिक धनी हो गये। उन्हें यह सम्मान और सम्पत्ति अंग्रेजों के कारण प्राप्त हुई थी। वे अंग्रेजों के समर्थक और विश्वासपात्र बन गये। अंग्रेजों के राज्य को स्थायी बनाने में जुट गये। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में इन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया।

इस्तमरारी बंदोस्बत के दोष:

1. जमींदारों पर विपरीत प्रभाव:
यद्यपि स्थायी व्यवस्था अन्ततः जमींदारों के लिए लाभदायी सिद्ध हुई तथापि इसके उस समय के प्रभाव उनके लिए विनाशकारी सिद्ध हुए। इस व्यवस्था के द्वारा निश्चित भू-राजस्व की दरें बहुत ऊँची थीं। उस समय उपज बहुत कम थी। बहुत से जमींदार धन की अदायगी समय पर न कर सके और राज्य ने उनकी भूमि तथा जायदाद बेचकर यह धन पूरा कर लिया। बहुत से जमींदार अपनी जमींदारी से ही वंचित हो गये। उस समय यह व्यवस्था जमींदारों के हितों के प्रतिकूल सिद्ध हुई।

2. राज्य की भविष्य की आय वृद्धि पर प्रतिबंध:
इस स्थायी व्यवस्था ने राज्य के भावी हितों की अवहेलना कर दी। कुछ समय के पश्चात् भूमि की उपज बढ़ गई क्योंकि जमींदारों ने भूमि में रुचि लेना तथा उपज बढ़ाने के लिए इस पर धन खर्च करना प्रारंभ कर दिया था। सरकार अपने निर्धारित हिस्से से अधिक राजस्व की मांग नहीं कर सकती थी।

3. कृषकों के हितों की उपेक्षा:
कार्नवालिस का उद्देश्य वास्तव में कंपनी की आय को बढ़ाने तथा न्यूनतम खर्च पर अधिकतम लगान वसूल करने का था। उसे किसानों के हितों से कोई सहानुभूति न थी। उनके अधिकारों तथा हितों की अवहेलना करके उन्हें जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया। जमींदार किसानों से मनमाना व्यवहार करने लगे और विभिन्न प्रकार से धन वसूल करने लगे।

4. जमींदारों के कारकूनों द्वारा किसानों पर अत्याचार:
इस व्यवस्था का एक अन्य दोष यह था कि धीरे-धीरे सम्पूर्ण अधिकार जमींदारों के नौकरों के हाथों में आ गए। वास्तव में उपज के बढ़ जाने से जमींदार बहुत धनवान हो गए। अब उन्होंने ग्रामों में रहना बंद कर दिया तथा बड़े-बड़े नगरों में जाकर शाही जीवन व्यतीत करने लगे। उनके कारकून (नौकर) कृषकों पर खूब अत्याचार करते थे।

5. अन्य प्रान्तों पर बोझ:
बंगाल का प्रान्त धीरे-धीरे कम आय देने वाला प्रान्त बन गया जबकि राज्य सरकार का खर्च दिन प्रतिदिन बढ़ रहा था। ऐसी दशा में इस खर्च का भार अन्य प्रान्तों पर डाला गया।

प्रश्न 3.
ब्रिटिश नीतियों का भारत के किसानों पर क्या असर पड़ा, इसका विवेचन कीजिए। उन कारकों को स्पष्ट कीजिए जिनके कारण ग्रामीण दरिद्रता पैदा हुई तथा भारत में बहुधा अकाल पड़े।
उत्तर:
ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों के कारण किसानों की दशा अत्यन्त शोचनीय हो गई। कृषि की दशा भी खराब हो गई जिसके कारण किसान निर्धन हो गये। संक्षेप में, कृषि तथा किसानों पर ब्रिटिश शासन के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

1. भूमि का स्वामित्व:
अंग्रेजों से पूर्व भारत में भूमि आजीविका कमाने का साधन थी। इसे न तो खरीदा जा सकता था और न बेचा जा सकता था। भूमि पर कृषि करने वाले, उपज का एक निश्चित भाग भूमि-कर के रूप में सरकार को दे दिया करते थे परंतु अंग्रेजों ने इस आदर्श प्रणाली को समाप्त कर दिया। लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में भूमि का स्थायी बंदोबस्त लागू किया। इसके अनुसार भूमि सदा के लिए जमींदारों को दे दी गई। उन्हें सरकारी खजाने में निश्चित कर जमा करना होता था। वे यह जमीन अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को दे सकते थे। इस तरह भूमि पर कृषि करने वालों का दर्जा एक नौकर जैसा हो गया। स्वामी सेवक बन गये और राजस्व की वसूली करने वाले जमींदारों के सेवक स्वामी बन गये।

2. कृषकों का शोषण:
अंग्रेजी शासन के अधीन भूमि की पट्टेदारी की तीन विधियाँ आरम्भ हुई-स्थायी प्रबंध, रैयतवाड़ी प्रबंध तथा महलवाड़ी प्रबंध। इन तीनों विधियों के परिणामस्वरूप किसानों को ऐसे अनेक कष्ट करने पड़े, जिन्हें सुनकर मन दहल जाता है। भूमि का स्वामी अपने-आपको गाँव का भाग नहीं समझता था। उसे अपनी रैयत अथवा खेतिहर किसान से कोई सहानुभूति नहीं थी। वह किसानों को जब चाहे बेदखल कर सकता था। इस नियम का सहारा लेकर वह किसानों से मनचाही रकम ऐंठने लगा। भूमि की सारी अतिरिक्त उपज वह स्वयं हड़प जाते थे और किसानों के पास बस इतना माल रह जाता था जिससे उनके प्राण बचे रह सकें।

रैयतवाड़ी प्रथा के अनुसार किसानों के कष्ट और अधिक बढ़ गए। किसान भूमि के स्वामी तो मान लिए थे, परंतु कर की दर इतनी अधिक थी कि उनके लिए कर अदा करना बड़ा कठिन था। कर जमा कराने के नियम बड़े कठोर तथा अमानवीय थे। निश्चित तिथि को सूर्यास्त होने से पूर्व यदि किसान अपना लगान नहीं चुका पाता था तो उसकी भूमि नीलाम कर दी जाती थी। कर चुकाने के लिए मजबूर किसान साहूकारों से ऋण लिया करते थे। बस, एक बार ऋण लेने पर किसान साहूकार के चंगुल में बुरी रह फंस जाते थे। साहूकार सूद तथा किसानों की निरक्षता का सहारा लेकर उनकी जमीन हड़प लेते थे। किसान से अधिक पैसे ऐंठने के लिए तरह-तरह के प्रपंच रचे जाते थे। वास्तव में, वह किसान जो भू-स्वामी हुआ करता था, अंग्रेजी राज्य की छाया में मजदूर बनकर रह गया।

3. कृषि का पिछड़ापन:
अंग्रेजी शासन के अधीन कृषक के साथ-साथ कृषि की दशा भी बिगड़ने लगी। कृषक पर भारी कर लगा दिये गए। जमींदार उससे बड़ी निर्दयता से रकम ऐंठता था। जमींदार स्वयं तो शहरों में रहते थे। उनके मध्यस्थ किसानों की उपज का अधिकतर भाग ले जाते थे। जमींदार की दिलचस्पी पैसा कमाने में थी। वह भूमि सुधारने में विश्वास नहीं रखता था। इधर किसान दिन-प्रतिदिन निर्धन तथा निर्बल होता जा रहा था, अतः वह भूमि में धन तथा श्रम दोनों ही नहीं लगा पा रहा था। उसे एक और हानि हुई। इंग्लैंण्ड का मशीनी माल आ जाने से ग्रामीण उद्योग-धन्धे नष्ट हो गये, अत: खाली समय में वह औद्योगिक गतिविधियों से जो पैसे कमाया करता था, अब बंद हो गया। भूमि के अधिकार सिद्धांत ने उनके जीवन में मुकद्दमेबाजी का नवीन अध्याय आरम्भ किया। मुकद्दमों पर उसका समय तथा धन दोनों ही नष्ट होने लगे और कृषि पिछड़ने लगी। संक्षेप में, अंग्रेजों की भूमि नीति ने कृषक के उत्साह को बड़ी ठेस पहुंचाई जो अन्ततः कृषि के लिए हानिकारक सिद्ध हुई।

किसानों की दरिद्रता के कारण:
ब्रिटिश शासनकाल में किसानों की दशा बड़ी ही शोचनीय थी। उनकी निर्धनता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। उनकी निर्धनता के कारणों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है –

  • ब्रिटिश शासनकाल में जमींदारी प्रथा प्रचलित थी। भूमि के स्वामी बड़े-बड़े जमींदार होते थे। किसानों का वे शोषण करते थे। वे उनसे बेगार भी लेते थे।
  • किसानों के खेती करने के ढंग बहुत पुराने थे। कृषि के लिए अच्छे बीज तथा खाद की कोई व्यवस्था नहीं थी। सिंचाई के उपयुक्त साधन उपलब्ध न होने के कारण किसानों को केवल वर्षा
    पर निर्भर रहना पड़ता था।
  • ब्रिटिश सरकार ने किसानों की दशा सुधारने की ओर कोई ध्यान, नहीं दिया।
  • किसान प्रायः साहूकारों से ऋण लेता था जिस पर उसे भारी ब्याज देना पड़ता था। सरकार की ओर से उन्हें ऋण देने का कोई प्रबंध नहीं था।
  • किसानों को भारी भूमि-कर देना पड़ता था। यह भी इनकी निर्धनता का एक बहुत बड़ा कारण था।

अकाल पड़ने के कारण:
भारत में अंग्रेजी काल में अनेक बार अकाल पड़े जिनमें हजारों लोग मारे गये। भारत में अकाल पड़ने के निम्नलिखित कारण थे –

  • जमींदारी प्रथा आरम्भ होने से कृषकों की भूमि में कोई रुचि न रही। जमींदार भी भूमि को सुधारने के लिए पूँजी लगाने को तैयार नहीं थे। परिणामस्वरूप अन्न का उत्पादन बहुत कम हो गया जो अकाल का कारण बना।
  • अंग्रेज भारत में किसानों को ऐसी फसलें बोने के लिए विवश करते थे जिनसे उन्हें केवल कच्चा माल प्राप्त हो।
  • कंपनी के अनेक कर्मचारी मुनाफाखोरी के लिए अन्न का संग्रह कर लेते थे जिससे अनाज का कृत्रिम अभाव उत्पन्न हो जाता था।
  • यातायात के साधनों का अभाव और सरकारी उदासीनता भी अकाल का कारण बनती थी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक शासन भारत में कब से शुरू हुआ?
(अ) 1757 ई.
(ब) 1857 ई.
(स) 1919 ई.
(द) 1947 ई.
उत्तर:
(अ) 1757 ई.

प्रश्न 2.
1793 ई. में इस्तमरारी बंदोबस्त किसने लागू किया था?
(अ) लार्ड क्लाइव
(ब) वारेन हेस्टिंग्स
(स) लार्ड कार्नवालिस
(द) लार्ड वैलेजलि
उत्तर:
(स) लार्ड कार्नवालिस

प्रश्न 3.
जमींदार क्या थे?
(अ) भूमि के स्वामी थे
(ब) राजस्व समाहर्ता थे
(स) ग्राम पंचायत के मुखिया थे
(द) किसानों को नियंत्रित करते थे
उत्तर:
(ब) राजस्व समाहर्ता थे

प्रश्न 4.
अंमला कौन था?
(अ) जोतदार का अधिकारी था
(ब) किसानों का स्वामी था
(स) गाँव का प्रभावशाली व्यक्ति था
(द) जमींदार का एक अधिकार था
उत्तर:
(द) जमींदार का एक अधिकार था

प्रश्न 5.
जोतदार कौन-सा कार्य नहीं करता था?
(अ) जोतदार जमींदार को परेशान करते थे
(ब) वे शहरों में रहते थे
(स) वे गाँवों में रहते थे
(द) रैयतों को एकजुट करके रखते थे
उत्तर:
(ब) वे शहरों में रहते थे

प्रश्न 6.
भू-सम्पदा की नीलामी से बचने के लिए जमींदार कौन-सी तरकीब अपनाते थे?
(अ) जमीन की फर्जी बिक्री करते थे
(ब) जमीन पर खेती नहीं करते थे
(स) जोतदारों से कर्ज लेते थे
(द) जमीन का लगान बढ़ा देते थे
उत्तर:
(अ) जमीन की फर्जी बिक्री करते थे

प्रश्न 7.
पाँचवीं रिपोर्ट कितने पृष्ठों की है ?
(अ) 1000
(ब) 1002
(स) 2002
(द) 3002
उत्तर:
(ब) 1002

प्रश्न 8.
विलियम होजेज कौन था?
(अ) एक ब्रिटिश कलाकार
(ब) एक ब्रिटिश कवि
(स) एक ब्रिटिश इतिहासकार
(द) एक धर्म प्रचारक
उत्तर:
(अ) एक ब्रिटिश कलाकार

प्रश्न 9.
ऑगस्टस क्लीवलैंड ने शांति के लिए पहाड़ियों को क्या देना चाहा?
(अ) सभी किसानों को वार्षिक भत्ता
(ब) जमींदारों को वार्षिक भत्ता
(स) पहाड़िया मुखियाओं को वार्षिक भत्ता
(द) कठोर दंड
उत्तर:
(स) पहाड़िया मुखियाओं को वार्षिक भत्ता

प्रश्न 10.
दामिन-इ-कोर किसका इलाका था?
(अ) बंगाल के जमींदारों
(ब) संथालों
(स) पहाड़ियों
(द) बंगाल के जोतदारों
उत्तर:
(ब) संथालों


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