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Tuesday, June 21, 2022

BSEB Class 11 Political Science Peace Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Political Science Peace Book Answers

BSEB Class 11 Political Science Peace Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Political Science Peace Book Answers
BSEB Class 11 Political Science Peace Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Political Science Peace Book Answers


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Bihar Board Class 11th Political Science Peace Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 11th Political Science Peace Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 11th
Subject Political Science Peace
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 11 Political Science शांति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
क्या आप जानते हैं कि एक शांतिपूर्ण दुनिया की ओर बदलाव के लिए लोगों के सोचने के तरीके में बदलाव जरूरी है? क्या मस्तिष्क शान्ति को बढावा दें सकता है? और, क्या मानव मस्तिष्क पर केन्द्रित रहना शांति स्थापना के लिए पर्याप्त है?
उत्तर:
यह सही कहा जाता है कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं है बल्कि व्यक्ति की सोच ऐसा बताती है। इसलिए यह सोचने का ढंग ही है जिससे तनाव या शान्ति होती है। यह सोच ही किसी कार्य का कारण बनती है। सोच आत्मा की उपज है और आत्मा आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों से उत्पन्न और प्रभावित होती है। अंततः वातावरण में यदि सुधार और संशोधन किया जाए तो स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण हो सकता है जिससे सकारात्मक सोच उत्पन्न हो सकती है। व्यक्ति के व्यवहार के निर्माण में मस्तिष्क की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शान्ति से सम्बन्धित सभी अध्ययन आत्मा, मस्तिष्क और व्यक्ति के व्यवहार की आवश्यकता को मंडित किया है।

गौतम बुद्ध ने बताया, “सभी गलत कार्य मस्तिष्क से उत्पन्न होते हैं। यदि मस्तिष्क को परिवर्तित कर दिया जाए तो गलत कार्य को खत्म किया जा सकता है।” दार्शनिक रूप से ये दोनों काम हुए है अर्थात् अच्छाई और बुराई, हिंसा और अहिंसा, तनाव और शान्ति। पूर्ण शान्ति या अशान्ति या हिंसा परिवर्तनीय है। ऐसे में जरूरत है कि आत्मा और व्यक्ति का व्यवहार इस प्रकार बनाया जाय, सामाजिक, आर्थिक वातावरण को वह रूप दिया जाए कि यह शान्ति के लिए तैयार हो जाए।

विश्व दो पराकाष्ठा की स्थिति में जीवित नहीं रह सकता। वस्तुतः सामान्य वातावरण के साथ सामान्य जीवन की ही आवश्यकता होती है। केवल कुछ दार्शनिकों ने सामाजिक पराकाष्ठा के विषय में सोचा या बात की। हिंसा को रोका और नियंत्रित किया जाना चाहिए जिससे अच्छा व्यवहार और अच्छा वातावरण लाया जा सके। यदि वातावरण अच्छा है तो इससे मस्तिष्क अच्छा होगा जिससे अच्छा व्यवहार उत्पन्न होगा और अंततः शान्ति स्थापित होगी।

प्रश्न 2.
राज्य को अपने नागरिकों के जीवन और अधिकारों की रक्षा अवश्य ही करनी चाहिए। हालाँकि कई बार राज्य के कार्य इसके कुछ नागरिकों के खिलाफ हिंसा के स्रोत होते हैं। कुछ उदाहरणों की मदद से इस पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
यदि हम राज्य की प्रकृति और उत्पत्ति के इतिहास में झांके तो राज्य के विषय में विभिन्न कालों में विभिन्न विचाराकों द्वारा विभिन्न अवधारणाएँ दी गई हैं। मूलरूप से अरस्तू. राज्य को एक कल्याणकारी संस्था मानता था। सामाजिक विचारक राज्य के कानून और सम्पत्ति को कायम रखने और लोगों के जीवन तथा सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए मानते थे।

आधुनिक राज्य को भी कानून और व्यवस्था बनाये रखने वाला और आवश्यक कार्य के रूप मे जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा करना माना जाता है। इसके अलावा उसके वैकल्पिक कार्य, विकास करना और कल्याण करना है। राज्य एक प्रभुता संपन्न संस्था है जिसे लोगों की भलाई में निर्णय लेने, कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आदेश जारी करने और लोगों के जीवन की रक्षा करने का पूर्ण अधिकार और उसका अंतिम उत्तरदायित्व भी है।

अपने उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए राज्य कोई भी आवश्यक कार्य या निर्णय ले सकता है जिसे राज्य आवश्यक समझता है। कभी-कभी राज्य के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह गलत लोगों, आक्रमणकारी ओर कानून तोड़ने वालों की हिंसात्मक कार्यवाही रोकने के लिए दण्ड दे। यह माना जाता है कि अपराधियों के विरुद्ध गलत कार्यों के लिए राज्य कठोर कदम उठाए परन्तु यह वैधानिक नियमों और न्याय की. सीमा में होना चाहिए। जब राज्य नियमों का उल्लंघन करता है तो यह राज्य का अतिक्रमण कहलाता है। आधुनिक शब्दावली में यह राज्य का आतंकवाद कहलाता है। पुलिस और सेना को विभिन्न। कार्यों को करना पड़ता है जिससे कानून और व्यवस्था कायम किया जा सके।

प्रश्न 3.
शान्ति को सर्वोत्तम रूप में तभी पाया जा सकता है जब स्वतंत्रता, समानता और न्याय कायम हो। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
उत्तर:
यह सही है कि शान्ति के आवश्यक अवयव-स्वतंत्रता, समानता और न्याय हैं। इतिहास में इस बात के अनेक प्रमाण हैं कि जब सभी स्वतंत्रता, समानता और न्याय का लोप हुआ है वहाँ शान्ति भी लुप्त हो जाती है। असमानता, अन्याय गुलामी से तनाव और संघर्ष उत्पन्न होता है जिससे स्वाभाविक रूप से आशान्त वातावरण उत्पन्न हो जाता है। परम्परागत जाति प्रथा धार्मिक शासन पर आधारित थी जिससे कुछ समूह के लोग अस्पृश्य घोषित कर दिए जाते थे और उनका सामाजिक बहिष्कार होता था और उन्हें निकृष्ट प्रकार का माना जाता था। यह गंभीर समस्या असमानताओं, अन्याय और परतंत्रता पर आधरित था। इन असमानताओं से अंततः तनाव और संघर्ष पैदा होता था। जिससे शान्ति की उपेक्षा होती थी।

इसी प्रकार महिलाएँ पुरुष प्रधानता की शिकार थीं। उससे संबधित अनेक बुराईयों का बोलबाला था जो महिलाओं के विरुद्ध व्यवस्थित अधीनता और भेदभाव उत्पन्न करती थी। महिलाओं का बुरी तरह शोषण होता था और उनकी स्वतंत्रता, न्याय और समानता की उपेक्षा की जाती थी।

उपनिवेशवाद एक अत्यन्त बुरी विचारधारा थी जिसमें लम्बी और प्रत्यक्ष गुलामी शोषण और अन्याय भरा पड़ा था। फलस्वरूप अनेक विद्रोह हुए और शान्ति भंग हुई। इसी प्रकार जातीयता और सम्प्रदायवाद से भी अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हुई और इससे सम्पूर्ण जातीय समूह या समुदाय दमन का शिकार हुआ। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सम्पन्नता का आधार समानता, न्याय और स्वतंत्रता है। यदि इनमें किसी को लुप्त कर दिया जाए तो शान्ति को खतरा उत्पन्न हो सकता है।

प्रश्न 4.
हिंसा के माध्यम से दूरगामी न्यायोचित उद्देश्यों को नहीं पाया जा सकता। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर:
यह कथन सर्वथा सत्य है। हिंसा हमें पत्राचार की ओर ले जाती है अंततः उद्देश्य से दूर ले जाती है। यह सहिष्णुता और अहिंसा है जो न्याय को प्राप्त करने में सहायता करती है। कभी-कभी यह भी कहा जाता है कि हिंसा कुछ उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करती है। हिंसा कुछ परिस्थितियों में आवश्यक हो जाती है। परन्तु यह स्थाई लक्षण. नहीं है। हिंसा से स्थायी शान्ति नहीं प्राप्त की जा सकती। केवल अहिंसा के द्वारा स्थायी शान्ति आ सकती है। यही कारण है कि अहिंसा के समर्थक शान्ति को एक सर्वोच्च मूल्य मानते हैं। वे हिंसा के विरुद्ध अन्याय में भी नैतिक मार्ग को अपनाते हैं। वे हिंसात्मक आन्दोलनों के विरोध की वकालत करते हैं। परन्तु प्रेम और सहनशीलता के प्रयोग को बढ़ावा देते हैं। वे हृदय परिवर्तन के द्वारा हिंसा को रोकना चाहते हैं। वे हिंसा को अन्तिम साधन मानते हैं।

प्रश्न 5.
विश्व में शान्ति स्थापना के जिन दृष्टिकोणों की अध्याय मे चर्चा की गई है उनके बीच क्या अंतर है?
उत्तर:
शान्ति को कायम रखने और उसके अनुभवीकरण (Realisation) के लिए अनेक उपागम किए गए हैं। इनमें तीन मुख्य उपागम निम्नलिखित हैं –
1. प्रथम उपागम:
यह राज्य पर जोर देता है और उसकी पवित्रता का सम्मान करता है। जीवन के तथ्य के रूप मे लोगों में प्रतियोगिता होती है। इसका संबन्ध प्रतियोगिता के उचित प्रबन्धन एवं शान्ति के लिये उचित संतुलन स्थापित करना है।

2. द्वितीय उपगम:
द्वितीय उपागम अति लूट वाले राज्य पर ध्यान केद्रित करता है। परन्तु सामाजिक आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है।

3. तृतीय उपागम:
इसमें इतिहास के बीते कालों पर विचार किया जाता है । यह शांति के सुनिश्चितता के रूप में समुदाय पर विचार करता है।

Bihar Board Class 11 Political Science शांति Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उस विश्व संस्था का नाम बताइए जिसका इस्तेमाल भारत विश्व शान्ति को बढ़ावा देने के लिए करता रहा है। (Name the institution by which India promote world peaces)
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ.)।

प्रश्न 2.
शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद कौन सा देश विश्व में शक्तिशाली रूप में उभरा? (Which country emerged as powerful after the end of cold war?)
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 3.
उस संस्था का नाम लिखिए जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शान्ति बनाए रखने के लिए दंड की व्यवस्था करती है। (Name the organ of the UN that punished a country who violate the world peace)
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद्।

प्रश्न 4.
अंतर्राष्ट्रीय शान्ति की स्थापना कैसे की जा सकती है? (In which manner the world peace established?)
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय शान्ति की स्थापना सहयोग, समानता तथा स्वतन्त्रता के आधार पर की जा सकती है।

प्रश्न 5.
शान्ति क्या है? (Define peace)
उत्तर:
साधारण शब्दों में शान्ति का अर्थ है “युद्ध रहित अवस्था”। युद्ध या किसी अप्रिय स्थिति की आशंका को शान्ति नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 6.
एक दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता के सम्मान से आप क्या समझते हैं? (What do you know about regional integrity of each other?)
उत्तर:
प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक अस्तित्व होता है जिसे दूसरे राष्ट्रों द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। इस शर्त की पूर्ति शान्ति स्थापना के लए आवश्यक है।

प्रश्न 7.
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व क्या है? (What is peaceful co-existance?)
उत्तर:
‘जियो और जीने दो’ का वाक्य शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व है जिसमें युद्ध का कोई स्थान – नहीं है।

प्रश्न 8.
युद्ध की आवश्यकता क्यों पड़ती है? कोई दो कारण बताइए। (why are the wars necessary? Explain any two causes)
उत्तर:

  1. आत्मरक्षा के लिए
  2. शान्तिवार्ता असफल होने पर।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
क्या शान्ति बनाए रखने के लिए हिंसा की आवश्यकता है? (Are violence is necessary for peace?)
उत्तर:
इस मत को मानने वाले राजनीतिज्ञों का मानना है कि विश्व में शान्ति बनाए रखने के लिए हिंसा की आवश्यकता होती है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून ने सभी राज्यों को अन्य राज्य के आक्रमण के विरुद्ध आत्मरक्षा का अधिकार दिया है। इस अधिकार के अंतर्गत हर राज्य हर समय अपनी आत्मरक्षा करने के लिए तैयार रह सकता है। सभी राष्ट्रों को सशक्त आक्रमण के विरुद्ध व्यक्तिगत अथवा सामूहिक आत्मरक्षा का अधिकार है। सशक्त आक्रमण को रोकने के लिए किसी भी राष्ट्र को चाहे वह कमजोर हो अथवा सबल, हिंसा का सहारा लेना ही पड़ता है।

व्यवहार में आत्म-संरक्षण में की जा रही कार्यवाही की कोई सीमा नहीं होती। परन्तु आत्मरक्षा का अधिकार किसी राज्य को भी मिलता है जब उस पर सशस्त्र बलों द्वारा आक्रमण किया गया हो और किसी भी राष्ट्र को अपनी आत्मरक्षा करने के लिए आक्रामक राष्ट्र से अधिक शस्त्रों को एकत्र करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में आक्रामक राष्ट्र की शक्ति का अनुमान लगाना कठिन है और क्या वह राज्य आक्रामक राज्य बन सकता है, की भविष्यवाणी करना कठिन है। इसलिए हर हालत में हर राज्य को हर दूसरे राज्य के विरुद्ध आत्मरक्षा के लिए अधिक-से-अधिक हिंसा के लिए तैयार रहना होगा जिससे शान्ति स्थापना संभव हो।

प्रश्न 2.
युद्ध करना अब न्यायसंगत होता है? (In which circumstances the war is justiflable?)
उत्तर:
विवादों के शान्तिपूर्ण तरीकों से निपटारा न होन के कारण ही युद्ध की परिस्थिति उत्पन्न होती है। युद्ध अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को निपटाने का अन्तिम साधन मात्र है। युद्ध शस्त्र चलों के प्रयोग के माध्यम से हिंसात्मक संघर्ष है। आक्रमण अथवा युद्ध किन अवस्थाओं में न्यायसंगत होते हैं, यह प्रश्न आज भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना पूर्व में था। युद्ध के न्यायसंगत होने के कई तर्क दिए जाते हैं। जैसा कि पहला तर्क यह दिया जाता है कि शान्ति वार्ताओं के असफल होने के कारण युद्ध जरूरी हो जाता है। कुछ मामलों में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रावधानों के अंतर्गत राज्य द्वारा बल का प्रयोग विधिपूर्ण है व न्यायसंगत है।

1. आत्मरक्षा (Self Defence):
“आत्मरक्षा में बल प्रयोग करने के लिए राज्य के अधिकारों को बहुत पहले से ही अन्तर्राष्ट्रीय विधि से मान्यता दी गई है।” ग्रोशियस के अनुसार जीवन, स्वतंत्रता व सम्पत्ति की रक्षा तथा सुरक्षा के लिए आत्मरक्षा का अधिकार सहज प्रकृति पर आधरित है। इस आत्मरक्षा के लिए राज्यों को युद्ध करने का पूरा अधिकार है।

2. चार्टर पर हस्ताक्षरित सदस्यों के दुश्मन (Enemy of the Signatories of the charter):
अनुच्छेद 10 संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर) के तहत संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों के विरुद्ध युद्ध अवैध नहीं होगा।

प्रश्न 3.
हम कैसे कह सकते हैं कि भारत का शान्ति का दृष्टिकोण व्यापक है? (India’s veiw of peace is comprehensive. How?)
उत्तर:
1. भारत की विदेश नीति का दुष्टिकोण (नजरिया) व्यापक है। भारत की विदेश नीति विश्व-शान्ति के लिए लगातार प्रयासरत है। भारत अन्य देशों की अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर सकारात्मक भूमिका निभाता रहा है। देश की विदेश नीति के उद्देश्य और सिद्धान्त हैं-हर तरह का साम्राज्यवाद (Imperialism) का विरोध करना तथा सभी देशों को उपनिवेशी मामलों से स्वतंत्रता रंग-भेद नीति का बहिष्कार, भुखमरी तथा बीमारी को जड़ से उखाड़ना, सभी देशों के साथ मित्रता का संबन्ध स्थापित करना व संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य संगठनों और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी की भूमिका निभाना।

2. भारत की शान्ति नीति का दृष्टिकोण नकारात्मक या युद्ध विरोधी नहीं है, किन्तु हम यह मानते हैं कि युद्ध के कारणों को समाप्त किए बिना विश्व में चिरकालीन स्थायी शान्ति की स्थापना नहीं की जा सकती। भारत चाहता है सभी देश अपने अनावश्यक विनाशकारी हथियारों का विनाश कर दें तथा सभी राष्ट्र स्वेच्छा से निः शस्त्रीकरण संबंधी संधियों पर सच्चे मन से हस्ताक्षर कर दें।

प्रश्न 4.
शीत युद्ध को कम करने में भारत के योगदान का परिक्षण कीजिए। (Examine India’s role in reducing the cold war)
उत्तर:
1. दूसरे विश्व युद्ध के बाद विश्व दो प्रमुख गुटों में बंटने लगा। एक गुट पश्चिमी देशों (शक्तियों) का था जिसका नेता संयुक्त राज्य अमेरिका था तो दुसरा गुट साम्यवादी देशों का था जिसका नेता पूर्व सोवियत संघ था।

2. पश्चिम के देश एक-दूसरे के साथ उचित और मैत्रिपूर्ण संबन्ध बनाने के इच्छुक थे। शीतकाल के इस वातावरण में भारत का आग्रह बातचीत के लिए था। हमारे नेताओं ने दोनों गुटों के मतभेदों को वाकयुद्ध तथा हथियारों का इस्तेमाल किए बिना स्वतंत्र तथा सीधी बातचीत के द्वारा सुलझाने का प्रयास किया। भारत ने एक अद्भुत नीति की खोज की, जिसे बाद में गुटनिरपेक्षता की नीति के नाम से जाना गया। इस नीति का अर्थ तटस्थता नहीं है (तटस्थता का अर्थ है कि दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच युद्ध के दौरान समान दूरी बनाए रखना) इसका अर्थ है अन्तर्राष्ट्रीय विषयों से संबंधित सभी मामलों पर स्वतंत्रतापूर्वक निडर होकर निर्णय लेना।

3. इस नीति में सैनिक मुकाबले को प्रोत्साहन देने की अपेक्षा सभी शान्तिपूर्ण तरीकों को अपनाया गया। इस नीति की लोकप्रियता का यह लाभ मिला कि नए स्वतंत्र राष्ट्रों ने शीत युद्ध के दो गुटों का सदस्य बनने की अपेक्षा गुटनिरपेक्ष नीति को अपनाने को प्राथमिकता दी। इस प्रकार गुटनिरपेक्ष आन्दोलन 1960 ई. मे जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो और मिस्र के नासिर के नेतृत्व में शुरू हुआ। इस आन्दोलन का स्वागत विश्व शान्ति की स्थापना करने वाले सबसे बड़े आन्दोलन के रूप में किया गया। भारत शीत युद्ध के प्रतिद्वंद्वियों को स्वतंत्र तथा नए स्वतंत्र देशों के बीच तनाव पैदा नहीं करने देना चाहता था। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय शान्ति, सुरक्षा तथा विकास के लिए प्रतिस्पर्धियों में शीत युद्ध समाप्त करने की वकालत की।

प्रश्न 5.
शांति के खोज के विभिन्न उपाय क्या हैं?
उत्तर:
शान्ति के खोज के विभिन्न उपाय:
शान्तिवादियों की यह मान्यता है कि हिंसा किसी भी स्थिति में उचित नहीं है। शान्तिवादी और व्यवहारिक राजनीतिक शान्ति स्थापना के सम्बन्ध में अनेक उपायों का सुझाव देते हैं – सर्वप्रथम वे शान्ति संतुलन स्थापित करने का सुझाव देते हैं, जबकि प्रमुख राष्ट्रों का सैनिक और राजनीतिक शक्ति समान हो तो शान्ति की संभावना अधिक होती है दुसरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से भी शान्ति के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। तीसरे वैश्विक शासन भी इसका आधार बन सकता है और चौथे संयुक्त राष्टसंघ विश्व में शान्ति स्थापित करने की जिससे शान्ति के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सके।

प्रश्न 6.
क्या हथियार वैश्विक शान्ति को बढ़ावा देते हैं?
उत्तर:
नाभिकीय शक्ति से लैस देश परमाणु बम की विनाशलीला को स्वीकार करते हैं। लेकिन यह तर्क भी देते हैं कि इससे शान्ति स्थापना का उद्देश्य पुरा हो सकता है यानि महाविनाशकारी संभावना उसे शान्ति स्थापना के लिए प्रेरित करता है। वर्तमान परमाणु संपन्न राष्ट्र अमेरिका, फ्रांस, चीन, रूस नाभकीय युद्ध से बचना चाहते हैं। यह माना जाने लगा है कि परमाणु नामक राक्षस ने ही विश्व में शान्ति स्थापित की है। लेकिन यह अस्थायी एवं संदिग्ध है क्योंकि तानाशाही प्रकृति के लोगों के पास परमाणु शक्ति आ जाय तो शान्ति नहीं बल्कि विनाश होगा।

प्रश्न 7.
शान्ति एवं हिंसा में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
समय और परिस्थिति के अनुसार शांति और हिंसा एक दूसरे से सम्बन्धित है। कभी-कभी शांति लाने के लिए हिंसा अपरिहार्य हो जाती है। उदाहारणस्वरूप-हिंसा का सहारा लेना पड़ता है। ऐसी स्थिति में हिंसा उचित और न्यायपूर्ण है। अनेक.ऐसे उदाहरण हैं जब शान्ति के लिए हिंसा का प्रयोग किया गया। 1960 में मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में काले लोगों के साथ भेद-भाव के विरुद्ध हिंसक संघर्ष किया। 1991 में निरंकुश सोवियत व्यवस्था का विघटन। यही कारण है जिसके चलते शान्तिवादी किसी न्यायपूर्ण संघर्ष में भी हिंसा के इस्तेमाल के विरुद्ध नैतिक रूप से खड़े होते हैं तथा शोषकों का दिल-दिमाग जीतने के लिए प्रेम और सत्य की बात करते हैं।

प्रश्न 8.
शान्ति क्या है? किन दो तरीकों से विश्व मे शान्ति स्थापित की जा सकती है? (What is peace? In which two methods the world peace established?)
उत्तर:
सरल शब्दों में शान्ति से आशय है “युद्ध रहित अवस्था”। शान्ति एक ऐसी अवस्था है जिसमें सभी लोग एक साथ मिलकर रहते हैं तथा एक-दूसरे को सहयोग प्रदान करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी शान्ति का यही अर्थ निकालता है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शान्ति से आशय है विश्व के सभी राष्ट्र-राज्य एक-दूसरे की सत्ता व स्वतन्त्रता का सम्मान करें तथा आपसी सहयोग को बढ़ावा दें जिससे समानता का अस्तित्व बना रहे। इसी सिद्धान्त को दूसरे शब्दों में ‘जियो और जीने दो’ (Live and Let Live) के नाम से जाना जाता है। सह-अस्तित्व के आधार पर जीने की कला व राष्ट्रों के आपस में होने वाले कार्यकलापों के द्वारा शान्ति को स्थापित किया जाता है।

विश्व में शान्ति-स्थापना के अनेक तरीके हैं जिन्हें निम्नलिखित रूप से वर्णित किया सकता है –

1. दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता व प्रभुसत्ता के लिए पारस्परिक सम्मान (Mutual respect for each other’s territorial integrity):
विश्व में शान्ति स्थापित करने का सर्वप्रथम सिद्धान्त है कि विश्व के प्रत्येक राष्ट्र-राज्य का कर्तव्य है कि वह अपनी अखण्डता व प्रभुसत्ता को उस राज्य के लिए आवश्यक समझे। प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक अस्तित्व होता है जिसे दूसरे राष्ट्रों द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। इस शर्त की पूर्ति शान्ति स्थापना के लिए अत्यन्त आवश्यक है। किसी भी राज्य को दूसरे राज्यों कि विरुद्ध अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।

2. आक्रमण न करना (Non-Aggression):
एक दूसरे के प्रति क्षेत्रीय अखण्डता व प्रभुसत्ता के प्रति पारस्परिक सम्मान की दशा में संभव है जब एक राष्ट्र-राज्य स्वयं जीवित रहने के साथ-साथ दूसरे राष्ट्रों को भी जीवित रहने व विकसित होने का अवसर प्रदान करे। किसी भी राज्य को यह अधिकार बिल्कुल नहीं दिया जा सकता कि वह स्वयं की क्षेत्रीय सीमा का विस्तार करने के लिए अन्य राज्यों पर आक्रमण करे अथवा जोर-जबरदस्ती द्वारा अन्य राज्य की भूमि को हड़प ले।

एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण करके अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेना एक सभ्य देश का कार्य नहीं है। ऐसा व्यवहार सम्पूर्ण विश्व के शान्तिपूर्ण माहौल में बाधा पहुँचाता है। राज्यों के मध्य मतभेद अवश्य होते हैं परन्तु ऐसे मतभेदों को शान्तिपूर्ण तराकों से ही निपटारा करना चाहिए, हिंसात्मक रूप से नहीं। यह सभ्य समाज व राज्य की मुख्य निशानी है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
क्या शस्त्रों की होड़ से विश्व शान्ति स्थापित हो सकती है चर्चा कीजिए। (Is the armament is helpful in World peace. Discuss)
उत्तर”
क्या शस्त्रीकरण वैश्विक शान्ति को जन्म दे सकता है? (Can armament Promote Global peace):
इस प्रश्न को लेकर कि क्या शस्त्रीकरण द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति स्थापित की जा सकती है अथवा नहीं, राजनीतिक दार्शनिकों के मतों में मतभेद है। कुछ लोगों का मानना है कि शान्ति स्थापित हो सकती है क्योंकि शस्त्रीकरण, आक्रमणकारी राज्य के मन में भय उत्पन्न कर देगा और वह युद्ध नहीं करेगा या किसी भी प्रकार से शान्ति भंग नहीं करेगा। परन्तु इस धारणा को अन्य दार्शनिक ठीक नहीं मानते हैं। उनका मानना है कि अन्तर्राष्ट्रीय अशान्ति का कारण ही शस्त्रीकरण है।

शस्त्रीकरण न केवल युद्ध के कारणों को प्रभावित करता है वरन् अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के लिए भी खतरा है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी नि:शास्त्रीकरण (Disarmament) की ओर जोर दिया है। शीत युद्ध (Cold War) में पैदा हुए डर के माहौल को कोई भी आज तक भूल नहीं पाया है। अनेक बार ऐसा सोचा जाता है कि शान्ति स्थापित करने के लिए युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए या शस्त्रीकरण करना चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि संभी राष्ट्र अपनी सैनिक शक्ति को अधिक बढ़ाएँ। परन्तु ऐसा करने से विश्व में तनाव बना रहेगा और प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे के साथ मैत्री सम्बन्ध जोड़ने के स्थान पर एक-दूसरे को डराने व धमकाए. रखने का माहौल तैयार कर लेगा।

इससे शान्ति, विश्वास व प्रेम के स्थान पर भय, डर, अविश्वास आदि का वातावरण उत्पन्न होगा। शान्ति बनाए रखने का पहला कार्य यदि कुछ हो सकता है तो वह है नि:शस्त्रीकरण (disarmament) न कि शस्त्रीकरण। वास्तविक अर्थों में देखा जाए तो शस्त्रीकरण साधन है, साध्य नहीं। साध्य मनुष्य के निजी स्वार्थ से उत्पन्न क्लेश व कलह है। मनुष्य अपने स्वार्थ-सिद्धि के लिए दूसरे को अपने वशीभूत करना चाहता है। इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए हथियारों को जन्म देता है और युद्धों का अकस्मात् स्वरूप होने के कारण अस्त्र-शस्त्रों के होते हुए युद्धों को कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता है। युद्ध की समाप्ति के लिए निःशस्त्रीकरण को व्यापक पैमाने में प्रेरित करना होगा। विश्व में लोगों को शान्ति का पाठ पढ़ाना होगा तभी वैश्विक शान्ति सम्भव है।

प्रश्न 2.
विश्व शांति को बढ़ावा देने की दिशा में भारत की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत तथा संयुक्त राष्ट्र (India $ UN):
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों को भारतीय संविधान में भी स्थान दिया गया है तथा भारत शुरू से इसका सदस्य रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्तिशाली बनाना और उसके कार्यों में सहयोग देना भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धान्त रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए शान्ति प्रयासों में भारत ने हर प्रकार से सहायता प्रदान की है। भारत कई बार सुरक्षा परिषद् (संयुक्त राष्ट्र संघ का एक अंग) का सदस्य रहा है। 1952 ई० में भारत की श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित साधारण सभा की अध्यक्षा चुनी गई थीं।

संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य के रूप में भारत ने हमेशा दूसरे देशों के साथ झगड़ों का निपटारा शान्तिपूर्वक करने का प्रयत्न किया है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत का कश्मीर मामले पर पाकिस्तान से झगड़ा हुआ। भारत ने इस झगड़े का हल करने के लिए इस समस्या को संयुक्त राष्ट्र संघ के पास भेजा। सन् 1962 ई. में चीन ने सीमा विवाद को लेकर भारत पर अचानक ही आक्रमण कर दिया और नेफा तथा लद्दाख के बहुत बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।

भारत ने शान्तिपूर्ण ढंग से इस समस्या का समाधान करने का भरसक प्रयत्न किया। 1965 ई. में पाकिस्तान ने भारत पर फिर आक्रमण कर दिया, परन्तु भारत ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया और पाकिस्तान को बुरी तरह पराजित किया। अन्त में तत्कालीन सोवियत संघ के माध्यम से दोनों देशों में ताशकन्द समझौता हुआ जिसके परिणामस्वरूप भारत ने पाकिस्तान के जीते हुए क्षेत्र उसे वापस लौटा दिए। इसके बाद भी भारत पाकिस्तान में युद्ध हुआ और पाकिस्तान की पराजय हुई परन्तु भारत ने विश्व में शान्ति बनाए रखने के लिए उससे संधि की।

संयुक्त राष्ट्र ने नि:शस्त्रीकरण के प्रश्न को अधिक महत्त्व दिया है तथा इस समस्या को हल करने के लिए बहुत ही प्रयास किए हैं। भारत ने इस समस्या का समाधान करने के लिए हमेशा संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता की है क्योंकि भारत को यह विश्वास है कि पूर्ण निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही संसार में शान्ति की स्थापना हो सकती है। सातवें गुट-निरपेक्ष शिखर को सम्बोधित करते हुए श्रीमती गाँधी ने कहा था-विकास, स्वतन्त्रता, निःशस्त्रीकरण और शान्ति परस्पर एक दूसरे से सम्बन्धित हैं।

एक नाभिकीय विमानवाहक पर जो खर्च होता है वह 53 देशों के सकल राष्ट्रीय उत्पादन से अधिक है। नाग ने अपना फन फैला दिया है। समूची मानव जाति भयाक्रांत है और भयभीत निगाहों से इस झूठी आशा के साथ देख रही है कि उसे काटेगी नहीं। इस समय विश्व में बहुत से सैनिक गुट बना रहे हैं। जैसे-नाटो, सैन्टो आदि। भारत का हमेशा यह विचार है कि ये सैनिक गुट विश्व शान्ति मे बाधक हैं। अतः भारत ने इस सैनिक गुटों की केवल आलोचना ही नहीं की अपितु इनका पूरी तरह से विरोध भी किया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने के लिए भारत ने विश्व के प्रत्येक देश को कहा है भारत ने चीन, बांग्लादेश, हंगरी, श्रीलंका, आयरलैंड और रूमानिया आदि देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत की सक्रियता का प्रमाण यह है कि श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित को महासभा की अध्यक्ष चुना गया। इसके अतिरिक्त मौलाना आजाद यूनेस्को के प्रधान बने, श्रीमती अमृतकौर विश्व स्वास्थ्य संघ की अध्यक्षा बनीं।

डॉ. राधाकृष्णन आर्थिक व सामाजिक परिषद् के अध्यक्ष बनाए गए। भारत को 1950 ई० में सुरक्षा परषिद् का अस्थायी सदस्य चुना गया। अब तक भारत सुरक्षा परिषद् का 6 बार अस्थायी सदस्य रह चुका है। डॉ. नागेन्द्र सिंह अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे हैं। विश्व शान्ति की स्थापना के सम्बन्ध में भारत का मत है कि जब तक संसार के सभी देशों का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र संघ में नहीं होगा वह प्रभावशाली कदम नहीं उठा सकता।

प्रश्न 3.
शान्ति से क्या आशय है? किन तरीकों से विश्व में शान्ति बनाए रखी जा सकती है? (What is peace? Which methods the World peace established?)
उत्तर:
शान्ति क्या है? (What is peace?):
“युद्ध रहित अवस्था” को शन्ति कहा जाता है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें सभी लोग मिल-जुल कर रहते हैं तथा एक-दूसरे को सहयोग देते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शान्ति का तात्पर्य है विश्व के सभी राष्ट्र-राज्य एक-दूसरे की सत्ता व स्वतन्त्रता का सम्मान करें तथा पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा दें ताकि समानता का अस्तित्व बना रहे। सह-अस्तित्व के आधार पर जीने की कला व राष्ट्रों के आपस में होने वाले क्रिया-कलापों के द्वारा शान्ति स्थापित की जा सकती है। विश्व में शान्ति-स्थापना के अनेक तरीके हैं जिन्हें निम्नलिखित रूप में वर्णित किया जा सकता है –

1. एक दुसरे की क्षेत्रीय अखण्डता बनाए रखना:
विश्व में शान्ति स्थापित करने का सबसे पहला सिद्धान्त है कि विश्व के प्रत्येक राष्ट्र-राज्य का कर्तव्य हो कि वह जिस प्रकार अपनी अखण्डता व प्रभुसत्ता को आवश्यक समझता है उसी प्रकार दूसरे राष्ट्रों की अखण्डता व प्रभुसत्ता को उस राज्य के लिए आवश्यक समझे। हर राष्ट्र का अपना एक अस्तित्व होता है जिसे दूसरे राष्ट्रों द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। इस शर्त की पूर्ति शान्ति स्थापनों के लिए अति आवश्यक है। किसी भी राज्य को दूसरे राज्य के विरुद्ध अपनी शक्ति का दुरुपयोग या उसको अनावश्यक लाभ नहीं उठाना चाहिए।

2. अन्य देश पर आक्रमण न करना:
एक-दूसरे देश के प्रति अखण्डता व प्रभुसत्ता के प्रति पारस्परिक सम्मान तभी सम्भव है जब एक राष्ट्र-राज्य स्वयं जीवित रहने के साथ-साथ दूसरे राष्ट्रों को भी जीवित रहने व विकसित होने का अवसर प्रदान करे। किसी भी राज्य को यह अधिकार कतई नहीं दिया जा सकता कि वह स्वयं क्षेत्रीय सीमा का विस्तार करने के लिए दूसरे राज्यों पर आक्रमण करे अथवा जोर-जबर्दस्ती द्वारा उस राज्य की भूमि को हथिया ले। एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण करके अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेना एक सभ्य देश की निशानी नहीं है। ऐसा व्यवहार पूरे विश्व के शान्तिपूर्ण माहौल में बाधा पहुँचाता है। राज्यों के मध्य मतभेद अवश्य होते हैं परन्तु ऐसे मतभेदों का शान्तिपूर्ण तरीकों से ही निपटारा करना चाहिए, हिंसात्मक रूप से नहीं। यही सभ्य समाज व राज्य की मुख्य निशानी है।

3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना:
शान्ति स्थापना के लिए स्वतन्त्र राष्ट्रों का उत्तरदायित्व न केवल अन्य राष्ट्रों के विरुद्ध आक्रमण करने से है परन्तु उनका यह भी दायित्व है कि वे अन्य राष्ट्र-राज्यों के आन्तरिक गतिविधियों में बिल्कुल भी दखल न दें। निर्बल राष्ट्रों की भी अपनी प्रभुसत्ता व अखण्डता होती है और अन्य राष्ट्रों का यह दायित्व बन जाता है कि वे उन्हें सम्मानित करें। प्रायः यह देखा गया है कि अपने-अपने गुटों की शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से बड़े शक्तिशाली राष्ट्र कमजोर और निर्बल राष्ट्रों को आर्थिक सहायता देकर उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करते हैं। वियतनाम, कोरिया आदि देशों को शक्तिशाली देशों ने आर्थिक सहायता देकर आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप किया है। इस कारण से न केवल अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व्यवस्था को खतरा उत्पन्न होता है अपितु साम्राज्यवाद के फैसले को भी बल मिलता है। इसी कारण राष्ट्रों के आन्तरिक मामलों में अन्य राष्ट्र हस्तक्षेप न करे।

4. समानता तथा पारस्परिक लाभ:
जब तक राष्ट्र, चाहे वह दुर्बल हो अथवा सबल, जब वह दूसरे राज्यों पर आक्रमण नहीं करता है और हर प्रकार के मतभेदों को, अन्तिम रूप से शान्तिपूर्ण तरीकों से सुलझाने का प्रयत्न करता है तो इसका तात्पर्य है कि वह सब राष्ट्रों को समान समझता है। इस व्यवहार से अन्य सभी राष्ट्रों के मध्य समानता का वातावरण उत्पन्न होता है और सभी एक-दूसरे को सहयोग देकर विकास करने का अवसर मिलता है।

5. शान्तिमय सह-अस्तित्व:
सह-अस्तित्व के होने की सम्भावना केवल शान्तिपूर्ण वातावरण पर निर्भर है। अनेक राजनीतिक दार्शनिकों का मानना है कि शान्ति और व्यवस्था स्थापित करने के लिए युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए परन्तु यह वक्तव्य केवल सभी राष्ट्रों को हथियारों के निर्माण व होड़ करने के लिए प्रेरित करेगा। ऐसी स्थिति में शान्ति तो होगी परन्तु इस शान्ति का आधार भय और शंका होगा, एक-दूसरे राज्य के प्रति विश्वास और मैत्री का नहीं। ऐसी स्थिति में सभी राष्ट्र अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाएँगे।

ऐसा करने से ऊपरी तौर से शान्ति तो होगी परन्तु भीतर-ही-भीतर विश्व में तनाव की स्थिति होगी जो किसी भी समय विस्फोटक रूप धारण कर सकती है। मनुष्य युग-युगांतर तक अनेक युद्धों को देख चुका है। अब युद्ध का स्वरूप इतना भयानक हो चुका है कि झेलने, की हिम्मत व सामर्थ्य सभी में नहीं है। इसलिए आज सभी राष्ट्र निःशस्त्रीकरण (disarmament) चाहते हैं। यही नीति उत्तम है। इसी राह पर चलकर हम अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को स्थापित कर सकेंगे जो सह-अस्तित्व व विकास के लिए अतिआवश्यक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मूवमेंट फॉर सखाइवल ऑफ ओगोनी पीपल (ओगोनी लोगों के अस्तित्व के लिए आन्दोलन) 1990 नामक आन्दोलन किसने चलाया?
(क) नेल्सन मंडेला
(ख) आँग-सान सू की
(ग) केन सारो वीवा
(घ) महात्मा गाँधी
उत्तर:
(ग) केन सारो वीवा

प्रश्न 2.
2005 का गाँधी शान्ति पुरस्कार दिया गया –
(क) रोबर्ट मुंगावे
(ख) आर्चविशप डेसमंड टूटू
(ग) फिडेल
(घ) नेलसन मंडेला
उत्तर:
(ख) आर्चविशप डेसमंड टूटू

प्रश्न 3.
शीत युद्ध का प्रारंभ कब हुआ –
(क) 1945
(ख) 1960
(ग) 1978
(घ) 1980
उत्तर:
(क) 1945


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