BSEB Class 12 Geography Land Resources and Agriculture Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Land Resources and Agriculture Book Answers |
Bihar Board Class 12th Geography Land Resources and Agriculture Textbooks Solutions PDF
Bihar Board STD 12th Geography Land Resources and Agriculture Books Solutions with Answers are prepared and published by the Bihar Board Publishers. It is an autonomous organization to advise and assist qualitative improvements in school education. If you are in search of BSEB Class 12th Geography Land Resources and Agriculture Books Answers Solutions, then you are in the right place. Here is a complete hub of Bihar Board Class 12th Geography Land Resources and Agriculture solutions that are available here for free PDF downloads to help students for their adequate preparation. You can find all the subjects of Bihar Board STD 12th Geography Land Resources and Agriculture Textbooks. These Bihar Board Class 12th Geography Land Resources and Agriculture Textbooks Solutions English PDF will be helpful for effective education, and a maximum number of questions in exams are chosen from Bihar Board.Bihar Board Class 12th Geography Land Resources and Agriculture Books Solutions
Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Geography Land Resources and Agriculture |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
How to download Bihar Board Class 12th Geography Land Resources and Agriculture Textbook Solutions Answers PDF Online?
- Visit our website - Hsslive
- Click on the Bihar Board Class 12th Geography Land Resources and Agriculture Answers.
- Look for your Bihar Board STD 12th Geography Land Resources and Agriculture Textbooks PDF.
- Now download or read the Bihar Board Class 12th Geography Land Resources and Agriculture Textbook Solutions for PDF Free.
BSEB Class 12th Geography Land Resources and Agriculture Textbooks Solutions with Answer PDF Download
Find below the list of all BSEB Class 12th Geography Land Resources and Agriculture Textbook Solutions for PDF’s for you to download and prepare for the upcoming exams:Bihar Board Class 12 Geography भू-संसाधन तथा कृषि Textbook Questions and Answers
(क) नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए
प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सा भू-उपयोग संवर्ग नहीं है?
(क) परती भूमि
(ख) निवल बोया क्षेत्र
(ग) सीमांत भूमि
(घ) कृषि योग्य व्यर्थ भूमि
उत्तर:
(ख) निवल बोया क्षेत्र
प्रश्न 2.
पिछले 40 वर्षों से वनों का अनुपात बढ़ने का निम्न में से कौन-सा कारण है।
(क) वनीकरण के विस्तृत व सक्षम प्रयास
(ख) सामुदायिक वनों के अधीन क्षेत्र में वृद्धि
(ग) वन बढ़ोतरी हेतु निर्धारित अधिसूचित क्षेत्र में वृद्धि
(घ) वन क्षेत्र प्रबधन में लोगों की बेहतर भागीदारी
उत्तर:
(ख) सामुदायिक वनों के अधीन क्षेत्र में वृद्धि
प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सा सिंचित क्षेत्रों में भू-निम्नीकरण का मुख्य प्रकार है?
(क) अवनालिका अपरदन
(ख) मृदा लवणता
(ग) वायु अपरदन
(घ) गन्ना
उत्तर:
(घ) गन्ना
प्रश्न 4.
शुष्क कृषि में निम्न में से कौन-सी फसल नहीं बोई जाती?
(क) रागी
(ख) मूंगफली
(ग) ज्वार
(घ) भूमि पर सिल्ट का जमाव
उत्तर:
(ग) ज्वार
प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-से देशों में गेहूँ व चावल की अधिक उत्पादकता की किस्में विकसित की गई थी?
(क) जापान तथा आस्ट्रेलिया
(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जापान
(ग) मैक्सिको तथा फिलीपीस
(घ) मैक्सिको तथा सिंगापुर
उत्तर:
(ग) मैक्सिको तथा फिलीपीस
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
प्रश्न 1.
बंजर भूमि तथा कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
वह भूमि जो प्रचलित प्रौद्योगिकी की मदद से कृषि योग्य नहीं बनाई सकती जैसे-बंजर पहाड़ी, भूभाग, मरुस्थल आदि। बंजर भूमि कहलाती है। वह भूमि जो पिछले पाँच वर्षों तक या अधिक समय तक परती या कृषिरहित है। भूमि को उद्धार तकनीक द्वारा इसे सुधार कर कृषि योग्य बनाया जा सकता है। कृषि योग्य व्यर्थ भूमि कहलाती है।
प्रश्न 2.
निवल बोया गया क्षेत्र तथा सकल बोया गया क्षेत्र में अंतर बताइए।
उत्तर:
वह भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती है, वह निवल वोया गया क्षेत्र कहलाता है। सभी प्रकार की परती भूमि, कृषि योग्य व्यर्थ भूमि, कृषि योग्य बंजर भूमि तथा निवल बोया गया क्षेत्र अर्थात कुल कृषि योग्य भूमि सकल बोया गया क्षेत्र कहलाता है।
प्रश्न 3.
भारत जैसे देश में गहन कृषि नीति अपनाने की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
1950 के दशक के अंत तक कृषि उत्पादन स्थिर हो गया। इस समस्या से उभरने के लिए गहन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP) तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAPP) प्रारंभ किए गए।
प्रश्न 4.
शुष्क कृषि तथा आर्द्र कृषि में क्या अंतर है?
उत्तर:
भारत में शुष्क भूमि खेती मुख्यतः उन प्रदेशों तक सीमित है जहाँ वार्षिक वर्षा 75 सेंटीमीटर से कम है। आर्द्र कृषि क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के अंतर्गत वर्षा जल पौधों की जरूरत से अधिक होता है।
(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें
प्रश्न 1.
भारत में भूसंसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ कौन-सी हैं? उनका निदान कैसे किया जाए?
उत्तर:
कृषि पारिस्थितिकी तथा विभिन्न प्रदेशों के ऐतिहासिक अनुभवों के अनुसार भारतीय कृषि की समस्याएँ भी विभिन्न प्रकार की हैं। अतः देश की अधिकतर कृषि समस्याएँ प्रादेशिक हैं तथापि कुछ समस्याएँ सर्वव्यापी हैं जिससे भौतिक बाधाओं से लेकर संस्थागत अवरोध शामिल है। भारत में कृषि का केवल एक-तिहाई भाग ही सिंचित है। शेष कृषि क्षेत्र में फसलों का उत्पादन प्रत्यक्ष रूप से वर्षा पर निर्भर है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की अनिश्चितता व अनियमितता से सिंचाई हेतु नहरी जल आपूर्ति प्रभावित होती है।
दूसरी तरफ राजस्थान तथा अन्य क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम तथा अत्यधिक अविश्वसनीय है। अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भी काफी उत्तार-चढ़ाव पाया जाता है। फलस्वरूप यह क्षेत्र सूखा व बाढ़ दोनों सुभेद्य है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखा एक सामान्य परिघटना है लेकिन यहाँ कभी-कभी बाढ़ भी आ जाती है। सूखा तथा बाढ़ भारतीय कृषि के जुड़वाँ संकट बने हुए हैं। भूमि संसाधनों का निम्नीकरण सिंचाई और कृषि विकास की दोषपूर्ण नीतियों से उत्पन्न हुई समस्याओं में से एक गंभीर समस्या है। इससे मृदा उर्वरता क्षीण हो सकती हैं। सिंचित क्षेत्रों में कृषि भूमि का एक बड़ा भाग जलाक्रांतता लवणता, तथा मृदा क्षारता के कारण बंजर हो चुका है।
प्रश्न 2.
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति तो पश्चात् कृषि विकास की महत्त्वपूर्ण नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भारतीय कृषि एक जीविकोपार्जी अथव्यवस्था जैसी थी। वीसवीं शताब्दी के मध्य तक इसका प्रदर्शन बड़ा दयनीय था। यह समय भयंकर अकाल व सूखे का साक्षी है। देश-विभाजन के दौरान लगभग एक-तिहाई सिंचित भूमि पाकिस्तान में चली गई। परिणामस्वरूप स्वतंत्र भारत में सिंचित क्षेत्र का अनुपात कम रह गया। स्वयंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार स्वतंत्र भारत ने सिंचित क्षेत्र का अनुपात कम रहा गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार का तात्कालिक उद्देश्य खाद्यानों का उत्पादन बढ़ाना था जिसमें निम्न उपाय अपनाए गए –
- व्यापारिक फसलों की जगह खाद्यान्नों का उगाया जाना
- कृषि गहनता को बढ़ाना तथा
- कृषि योग्य बंजर तथा परती भूमि को कृषि को कृषि भूमि में परिवर्तित करना।
1950 के दशक के अंत तक कृषि उत्पादन स्थिर हो गया। इस समस्या से उभरने के लिए गहन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP) तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAAP) प्रारंभ किए गए। लेकिन 1960 के दशक के मध्य में लगातार दो अकालों से देश मे अन्न संकट उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप दूसरे देशों से खाद्यानों का आयात करना पड़ा। 1960 के दशक के मध्य में गेहूँ (मैक्सिको) तथा चावल (फिलिपीस) की किस्में जो अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्में थी, कृषि के लिए उपलब्ध हुईं।
भारत ने इसका लाभ उठाया तथा पैकेज प्रोद्योगिकी के रूप में में पंजाब, हरियाण, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश तथा गुजरात के सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में, रासायनिक खाद के साथ इन उच्च उत्पादकता की किस्मों (HYV) को अपनाया। नई कृषि प्रौद्योगिकी की सफलता हेतु सिंचाई से निश्चित जल आपूर्ति पूर्व आपेक्षित थी। कृषि विकास की इस नीति से खाद्यान्नों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हरित क्रांति के नाम से भी जाना जाती है। हरित क्रांति ने कृषि में प्रयुक्त कृषि निवेश, जैसे- उर्वरक, कीटनाशक, कृषि यंत्र आदि कृषि आधारित उद्योगों तथा छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन दिया । कृषि विकास की इस नीति से देश खाद्यान्नों के उत्पादन में आत्म निर्भर हुआ।
1950 के दशक में भारतीय योजना ने वर्षा आधारित क्षेत्रों की कृषि समस्याओं पर ध्यान दिया। योजना आयोग ने 1988 में कृषि विकास में प्रादेशिक संतुलन को प्रोत्साहित करने हेतु कृषि जलवायु नियोजन प्रारंभ किया। इसने कृषि, पशुपालन तथा जलकृषि के विकास हेतु संसाधनों के विकास पर भी बल दिया।
Bihar Board Class 12 Geography भू-संसाधन तथा कृषि Additional Important Questions and Answers
अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
उर्वर मृदा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वे मृदा जिसमें पादप पोषक की पूर्ति करने की क्षमता होती है, उसे उर्वर मृदा कहते हैं। मृदा प्राकृतिक रूप से उर्वर है, परन्तु उसने खाद और उर्वरकों को मिलाकर कृत्रिम रूप से उर्वर बनाया जाता है।
प्रश्न 2.
मृदा की उर्वरता समाप्त होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
- मृदा अपरदन द्वारा।
- वनाच्छादित प्रदेशों में झूमिंग आदि स्थानान्तरित कृषि को दोषपूर्ण पद्धति द्वारा।
- वन की कटाई तथा अति चारण द्वारा।
- दोषपूर्ण प्रबन्ध तथा अति सिंचाई द्वारा।
प्रश्न 3.
पीने के जल की व्यवस्था के लिए कौन-सी योजनाएं बनाई गई हैं?
उत्तर:
देश में ग्रामीण जनसंख्या के लिए पीने का जल प्रदान करने के लिए त्वरित ग्राम जल पूर्ति योजना बनाई गई है। इसी उद्देश्य से नगरीय जनसंख्या के लिए पीने के जल की व्यवस्था के लिए राष्ट्रीय मिशन नामक योजना बनाई गई हैं।
प्रश्न 4.
लौह खनिज क्या होते हैं?
उत्तर:
जिन खनिज पदार्थों में लौह धातु का अंश पाया जाता है, उन्हें लौह खनिज कहते है। लोहा, मैंगनीज, क्रोमाइट, कोबाल्ट आदि खनिज है।
प्रश्न 5.
जीविका के प्राकृतिक साधन क्या हैं?
उत्तर:
पशुओं और पौधों से प्राप्त पदार्थों को जीविका के प्राकृतिक साधन कहा जाता है क्योंकि मानव इन साधनों के प्रयोग से जीवित है।
प्रश्न 6.
संसाधन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वातावरण के उपयोगी तत्वों को जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, संसाधन कहलाते हैं। प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण मानव की अनेक प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
प्रश्न 7.
संसाधन की उपयोगिता किन कारकों पर निर्भर करती है?
उत्तर:
- मानव की बुद्धिमता
- मानवीय संस्कृति का विकास स्तर
- वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञान
- किसी क्षेत्र की प्रकृति
प्रश्न 8.
कृषीय भूमि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
कृषीय भूमि का अर्थ है-जोता गया क्षेत्र इसमें शुद्ध फसलगत क्षेत्र और परती भूमि शामिल है। वर्ष में फसलगत क्षेत्र को बोया गया शुद्ध क्षेत्र कहते हैं।
प्रश्न 9.
भारतीय कृषि के तीन मुख्य कार्य क्या हैं?
उत्तर:
- भारत की विशाल जनसंख्या को भोजन प्रदान करना।
- कृष आधरित उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करना।
- कृषि पदार्थों के निर्यात से विदेशी मुद्रा प्राप्त करना।
प्रश्न 10.
शस्य गहनता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
शस्य गहनता है एक ही खेत में एक कृषीय वर्ष में उगाई गई फसलों की संख्या बोए गए शुद्ध क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में सकल फसलगत क्षेत्र शस्य गहनता की माप को प्रकट करता है।
प्रश्न 11.
फसलों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
फसलों को दो भागों में बाँटा जा सकता है। खाद्य फसलें तथा गेर खाद्य फसलें । खाद्य फसलों को पुनः तीन उपवर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
- अनाज और बाजरा
- दालें, और
- फल तथा सब्जियाँ
प्रश्न 12.
कृषि ऋतुएँ कितनी हैं?
उत्तर:
देश में तीन कृषि ऋतुएँ हैं-खरीफ रबी और जायद । भारत की जलवायु दशाएँ ऐसी हैं कि यहाँ सारे साल फसलें पैदा की जा सकती है।
प्रश्न 13.
प्राकृतिक संसाधनों के भौतिक लक्षण क्या हैं?
उत्तर:
भौतिक लक्षण जैसे- भूमि जलवायु, मृदा, जल, खनिज तथा जैविक पदार्थ, जैस-वनस्पति, वन जीव, मत्स्य क्षेत्र शामिल है।
प्रश्न 14.
नवीकरण संसाधन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह प्राकृतिक संसाधन जिनका पुनरुत्पादन किया जा सके, उनका संपूर्ण रूप से विनाश न किया गया हो, नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं।
प्रश्न 15.
असमाप्य और अपरिवर्तनीय संसाधन कौन-से हैं?
उत्तर:
इसमें महासागरीय जल, और ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलवायु मृत्तिका, वायु आदि शामिल हैं।
प्रश्न 16.
भारतीय कृषि की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर:
बहुत अधिक प्रयासों के बाद भी भारतीय कृषि की उत्पादकता कम है। इस परिस्थिति के लिए अनेक कारक जिम्मेदार हैं –
- पर्यावरणीय
- आर्थिक
- संस्थागत
- प्रौद्योगिकीय
प्रश्न 17.
दालों का भोजन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भोजन में दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं। ये फलीदार हैं तथा ये अपनी जड़ों के द्वारा मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाकर उसकी उर्वरता में वृद्धि करती हैं। चना देश में दाल की प्रमुख फसल है।
प्रश्न 18.
‘खरीफ’ की मुख्य फसलें कौन-सी हैं?
उत्तर:
खरीफ की मुख्य फसलें हैं-चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, तुर, मूंग, उड़द, कपास, जूट, तिल, मूंगफली, सोयाबीन आदि। दक्षिण पश्चिम मानसून की ऋतु को खरीफ की ऋतु कहा जाता है। इस ऋतु में अधिक आर्द्रता और उच्चा तापमान चाहने वाली फसलें पैदा की जाती हैं।
प्रश्न 19.
रबी की ऋतु कौन-सी होती है?
उत्तर:
शीत ऋतु को रबी की ऋतु कहते हैं। इस ऋतु की मुख्य फसलें है गेहूँ, जौ, तोरिया और सरसों असली, मसूर, चना।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारत में प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है, व्याख्या कीजिए।
उसर:
भारत के विशाल-भू-क्षेत्र में अनेक प्राकृतिक संसाधन पाए जाते हैं। विस्तृत कृषि भूमि, बहता जल, अन्त भौम जलभृत, लम्बा वर्धन काल, विभिन्न प्रकार की वनस्पति, खनिज पशु धन तथा मानव संसाधन हमारे आर्थिक तथा प्राकृतिक संसाधन हैं। भारत में प्राचीन काल से लेकर आज तक विभिन्न आर्थिक क्रियाएँ इन संसाधनों पर निर्भर रही हैं। प्राचीन काल में भारत में लोहा, वस्त्र तांबा, उद्योग उन्नत थे। प्राचीन काल से कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार रही है। कई प्रदेशों में स्थानान्तरित कृषि, पशुचारण तथा मत्स्य पालन विकसित था। आज भी इसके प्रमाण असम में झूमिंग कृषि, कश्मीर में गुज्जर तथा बकरवाल जाति के चरवाहे तथा केरल तट पर मोपला मछुआरे हैं। इस प्रकार भारत में एक लम्बे समय से प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर प्राथमिक तथा द्वितीयक व्यवसाय उन्नत होते रहे हैं।
प्रश्न 2.
भारत में कौन से संसाधन प्रौद्योगिक विकास के कारण पिछड़े हैं? अथवा, संसाधनों की उपयोगिता बढ़ाने में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है?
उत्तर:
संसाधनों की उपयोगिता बढ़ाने में प्रौद्योगिकी का बहुत बड़ा हाथ है। संसाधनों के रूप बदलने से उनकी उपयोगिता बढ़ जाती है। इसके लिए प्रौद्योगिकी का होना आवश्यक है। प्रौद्योगिकी का विकास मानव की कार्य क्षमता, कुशलता तथा तकनीकी पर निर्भर करता है। मशीनीकरण द्वारा ही संसाधनों का उपयोग बढ़ाया जा सकता है। प्राकृतिक संसाधनों की उपस्थिति से यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि कोई प्रदेश आर्थिक दृष्टि से विकसित है। भारत में छोटा नागपुर पठार तथा बस्तर जन-जातीय खण्ड संसाधन समृद्ध है। परन्तु औद्योगिकी के अभाव में ये आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं।
प्रश्न 3.
प्राकृतिक संसाधनों को प्रकृति के उपहार क्यों कहा जाता है? ये किस प्रकार किसी देश की अर्थव्यवस्था की आधारशिला हैं?
उत्तर:
संसाधन वातावरण के उपयोगी तत्त्व हैं। प्राकृतिक वातावरण के प्रमुख तत्त्व भूमि जल, वनस्पति, खनिज, मिट्टी जलवायु तथा जीव जन्तु प्राकृतिक संसाधन हैं। मानव को ये चिर स्थायी संसाधन बिना मूल्य के प्राप्त हो जाते हैं। इसलिए इन्हे प्रकृति का उपहार कहा जाता है। ये संसाधन किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की आधारशिला है। जलाशय मत्स्य का विकास करते है। वनों से लकड़ी प्राप्त होती है तथा कई, उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है। जल तथा उपजाऊ मिट्टी की कारण कृषि का विकास होता है। मानव संसाधन के रूप में इन संसाधनों का उपयोग करता है। सभी आर्थिक क्रियाएँ प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है।
प्रश्न 4.
संसाधनों का वर्गीकरण कैसे किया गया है?
उत्तर:
संसाधनों का वर्गीकरण साधनों की विशेषताएँ, उपयोग तथा प्रकृति के आधार पर निम्न वर्गों में किया गया है –
- जीवीय तथा अजीवीय संसाधन
- समाप्य और असमाप्य संसाधन
- संभाव्य तथा विकसित संसाधन
- कच्चा माल तथा ऊर्जा के संसाधन
- कृषि तथा पशुचारणिक साधन
- खनिज तथा औद्योगिकी संसाधन
प्रश्न 5.
भारत के उत्तरी मैदान में वनों के विलुप्त होने के तीन कारण बताइए।
उत्तर:
पंजाब के लेकर पश्चिम बंगाल तक विस्तृत उत्तरी मैदान में वन आवरण नहीं है। इस क्षेत्र में वनों का विस्तार धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं –
- मैदानी भाग में कृषि के लिए भूमि प्राप्त करने के लिए वन साफ कर दिया गए हैं।
- अधिक जनसंख्या के कारण निवास स्थान के लिए तथा ईंधन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए वन काट दिए गए।
- कई उद्योगों में कच्चे माल के लिए वनों को काटा गया है। जैसे कागज उद्योग, कृत्रिम वस्त्र उद्योग एवं फर्नीचर उद्योग।
प्रश्न 6.
मृदा संरक्षण के विभिन्न उपायों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
- पर्वतीय ढलानों पर समोच्च रेखीय जुताई
- नियंत्रित पशुचारण
- उन्नत कृषि पद्धति का प्रयोग
- अवनलिकाओं की रोकथाम
- फर्मयार्ड खाद, हरी खाद तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग
- जो प्रभावित क्षेत्रों तथा मरुभूमियों की सीमा पर वनारोपण
- रक्षक-मेखला का रोपण
प्रश्न 7.
आर्थिक विकास का प्रकृति से क्या संबंध है?
उत्तर:
प्रकृति मानव को प्राकृतिक संसाधन प्रदान करती है। ये संसाधन किसी प्रदेश के आर्थिक विकास का आधार होते हैं। नदी घाटियों में जल तथा उपजाऊ मिट्टी के कारण कृषि का विकास होता है। जल संसाधनों द्वारा सिंचाई तथा जल विद्युत का विकास होता है। खनिज पदार्थों पर उद्योग निर्भर करते हैं। इस प्रकार किसी प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था उस प्रदेश के प्राकृतिक द्वारा निश्चित होती है।
प्रश्न 8.
“मानव और पर्यावरण का सहसम्बन्ध स्थिर नहीं है।” उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर:
मानव और पर्यावरण का घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रारम्भ में मानव संसाधनों का संग्राहक मात्र था, क्योंकि तब संसाधनों की बहुलता थी और मानव की आवश्यकताएँ कम थी। वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ मानव ने संसाधनों का शोषण आरम्भ कर दिया। मनुष्य का आर्थिक विकास पर्यावरण के अनुसार पनपता है। प्राकृतिक संसाधनों का विकास प्रकृति मानव और संस्कृति के संयोग पर निर्भर करता है। प्रकृति लगभग स्थिर है। मानव तथा संस्कृति परिवर्तनशील है। प्राचीन काल में आदि मानव संसाधनों के उपयोग से अनभिज्ञ था। परन्तु आधुनिक युग में मानव प्रौद्योगिकी की सहायता से नवीन खोजों में लगा हुआ है। इसलिए मानव तथा पर्यावरण का सम्बन्ध सदा परिवर्तनशील है।
प्रश्न 9.
सतत् पोषणीय विकास की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सतत् पोषणीय विकास का तात्पर्य की उस प्रक्रिया से है, जिसमें पर्यावरण की गुणवत्ता के बनाए रखा जाता है। इसमें समाप्य संसाधनों का उपयोग इस तरह से किया जाए कि सभी प्रकार की संपदा के कुल भंडार कमी खाली नहीं होने पाए। विकास के अनेक रूप, पर्यावरण के उन्हों संसाधनों का ह्रास कर देते हैं। जिन पर वे आश्रित होते हैं। इससे आर्थिक विकास धीमा हो जाता है। अतः सतत् पोषणीय विकास में पारितंत्र के स्थायित्व का सदैव ध्यान में रखना पड़ता है। अतः पालन पोषण करने वाले पारितंत्र की निर्वाह क्षमता के अनुसार जीवन यापन करते हुए मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार ही सतत् पोषणीय विकास है। सतत् पोषणीयता के साथ-साथ जीवन की अच्छी गुणवत्ता भी जरूरी है।
प्रश्न 10.
मानव में संसाधनों के विकास की सामान्य स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जैव-भौतिक पर्यावरण का उपयोग करते रहे हैं। इस प्रक्रिया को ‘संसाधन उपयोग’ कहते हैं। जैसे-जैसे संस्कृति विकसित होती है, नए-नए संसाधनों की खोज होती जाती है। तथा उनके उपयोग के बेहतर तरीके भी ढूंढ लिये जाते हैं। इसे संसाधन विकास कहते हैं। लोगों की संख्या और गुणवत्ता संसाधनों का निर्माण करते हैं। प्राकृतिक संसाधनों तब तक संसाधन नहीं बनते जब तक उन्हें संसाधनों के रूप में नहीं पहचाना जाता है। मनुष्य की योग्यताओं के अनुसार संसाधनों का विस्तार और संकुचन होता है। भारतीय संस्कृति में पारितंत्रिक सीमा में संसाधनों के उपयोग की एक अतर्निहित व्यवस्था है । जिसमें प्रकृति को अपनी हानि को फिर से पूरा करने का समय मिल जाता है। भारत में प्राकृतिक संसाधनों के विशाल भण्डार हैं।
प्रश्न 11.
मानव सभ्यता के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। व्याख्या करो।
उत्तर:
वातावरण के उपयोगी तत्त्वों को प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। संसाधन मानव की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति करते है। मानव जीवन जल, भूमि, पवन, वनस्पति आदि संसाधनों पर निर्भर हैं। प्राकृतिक संसाधन वह सम्पति है जो हमारे भावी पीढ़ियों की धरोहर है। आधुनिक युग में प्रौद्योगिकी विकास से संसाधनों का दोहन बड़े पैमाने पर होने लगा है। दिन प्रतिदिन संसाधनों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। संसाधनों के समाप्त होने से आधुनिक सभ्यता व मानव अस्तित्त्व भी समाप्त हो जाएगा। इसलिए संसाधनों का उपयोग योजनाबद्ध तरीके से करना चाहिए। ताकि ये संसाधन नष्ट न हो।
और इनका एक लम्बे समय तक मानव हित के लिए उपयोग किया जा सके। प्राकृतिक संसाधनों का अवशोषण तीव्र गति से हो रहा है। विकासित देशों में अति उपयोग से संसाधन लगभग समाप्त होने को है। भविष्य के भण्डार बहुत कम मात्रा में बचे हैं। परन्तु विकासशील देशों में प्रौद्योगिकी अभाव के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उत्पादन नहीं हुआ है। विदेशी मुद्रा कमाने के लिए खनिज पदार्थों का निर्यात किया जा रहा है। मानव संभ्यता को निरन्तरता प्रदान करने के लिए संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। सभी आर्थिक विकास संसाधनों पर आधारित है। इसलिए मानव सभ्यता को कायम रखने के लिए संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है।
प्रश्न 12.
“प्राकृतिक संसाधनों की संकल्पना संस्कृतिबद्ध है।” चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जल, वायु, वन, खनिज तथा शक्ति के साधन प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए निःशुल्क उपहार हैं। इन संसाधनों का सांस्कृतिक विकास के स्तर से गहरा सम्बन्ध है। आदि मानव प्रौद्योगिकी के अभाव के कारण खनिज पदार्थों तथा जल विद्युत के उपयोग से अनभिज्ञ था। चीन में कोयला एक कठोर शैल ही था। असम में तेल स्रोतों का कोई महत्व नहीं था परन्तु आधुनिक युग में मानव अपनी बद्धिमता तथा कौशल से जल विद्युत तथा खनिज संसाधनों को विकसित करने में सफल हुआ है।
संयुक्त राज्य, जापान, रूस आदि सांस्कृतिक विकास के कारण उत्पन्न हैं, परन्तु अफ्रीका तथा एशिया के विकासशील देश पिछड़े हुए हैं। इस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों की उपयोगिता किसी समाज द्वारा प्राप्त प्रौद्योगिकी के स्तर पर निर्भर करती है। प्राकृतिक संसाधनों का विकास प्रकृति, मानव तथा संस्कृति पर निर्भर करता है। प्राकृतिक संसाधनों को मानव क्षमता द्वारा ही आर्थिक संसाधनों में बदला जा सकता है। संसाधन वही है जिनका उपयोग किया जा सके। इस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों की संकल्पना संस्कृतिबद्ध है।
प्रश्न 13.
परती भूमि से क्या अभिप्राय है? परती भूमि की अवधि को किस प्रकार घटाया जा सकता है?
उत्तर:
एक ही खेत पर लम्बे समय तक लगातार फसलें उत्पन्न से मृदा के पोषक तत्त्व समाप्त हो जाते हैं। मृदा की उपाजऊ शक्ति को पुनः स्थापित करने के लिए भूमि को एक मौसम या पूरे वर्ष बिना कृषि किये खाली छोड़ दिया जाता है। इस भूमि को तरती भूमि कहते हैं। इस प्राकृतिक क्रिया द्वारा मृदा का उपजाऊपन बढ़ जाता है। जब भूमि को एक मौसम के लिए खाली छोड़ा जाता है तो उसे चालू परती भूमि कहते हैं। एक वर्ष से अधिक समय वाली भूमि को प्राचीन परती भूमि कहते हैं। इस भूमि में उर्वरक के अधिक उपयोग से परती भूमि की अवधि को घटाया जा सकता है।
प्रश्न 14.
शुष्क प्रदेश से क्या अभिप्राय है? उन प्रदेशों में उत्पादन बढ़ाने के क्या उपाय किए जा रहे हैं?
उत्तर:
30 सेमी. से अधिक वर्षा वाले उप-आर्द्र तथा आर्द्र क्षेत्रों में कृषि की जा सकती है। 30 सेमी. वार्षिक वर्षा से कम वर्षा वाले प्रदेश शुष्क प्रदेश कहलाते हैं जहाँ लगभग सारा वर्ष नमी का अभाव रहता है, जैसे पश्चिमी राजस्थान दक्षिणी पठार का वृष्टि छाया क्षेत्र, गुजरात तथा दक्षिण-पश्चिम हरियाणा। इन भागों में उत्पादकता कम होती है। मोटें अनाज, दालें, तिलहन प्रमुख फसलें है। इन्टरनेशनल क्राप रिसर्च इन्स्टीट्यूट फार सेमीऐरि ट्रापिक्स (I.C.R.I.S.A.T) हैदराबाद तथा सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इन्स्टीट्यूट (C.A.Z.R.I) जोधपुर में तकनीकी अनुसंधान और विकास का कार्य किया जा रहा है जिनके द्वारा शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई के बिना शुष्क कृषि की जा सके।
प्रश्न 15.
फसलों की गहनता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
फसलों की गहनता से अभिप्राय यह है कि एक खेत में एक कृषि वर्ष में कितनी फसलें उगाई जाती हैं। यदि वर्ष में केवल एक फसल उगाई जाती है तो फसल का सूचकांक 100 है यदि दो फसलें उगाई जाती है तो यह सूचकाँक 200 होगा। अधिक फसल अधिक भूमि उपयोग की क्षमता प्रकट करती है। शस्य गहनता को निम्नलिखित सूत्र की मदद से निकाला जा सकता है।
पंजाब राज्य में शस्य गहनता 166 प्रतिशत, हरियाण में 158 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 147 तथा उत्तर प्रदेश में 145 प्रतिशत है। उच्चतर शस्य गहनता वास्तव में कृषि के उच्चतर तीव्रीकरण को प्रदर्शित करती है।
प्रश्न 16.
‘भारतीय कृषि का मुख्य उद्देश्य भोजन प्रदान करना है।’ व्याख्या करो।
उत्तर:
भारतीय कृषि का मुख्य उद्देश्य देश की लगभग 100 करोड़ जनसंख्या को भोजन प्रदान करना है। स्वाधीनता के पश्चात् भारत में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। देश की लगभग 3/4 कृषि भूमि पर खाद्यान्नों की कृषि की जाती है। भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर है। स्वाधीनता के पश्चात् लगभग 50 वर्षों में खाद्यान्न उत्पादन में तीन गुणा वृद्धि हुई है जबकि जनसंख्या 2.5 गुना गढ़ गई है।
भारत में खाद्यान्न उत्पादन (लाख टन)
1950 में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उत्पादन 395 ग्राम प्रतिदिन था जो 1995-96 में बढ़कर 680 ग्राम प्रतिदिन हो गया।
प्रश्न 17.
शस्य गहनता को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करो।
उत्तर:
शस्य गहनताक को बढ़ाने से ही खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। निम्नलिखित कारक शस्य गहनता पर प्रभाव डालते हैं –
- एक बार से अधिक बोये क्षेत्र के विसतार के कारण शस्य गहनता का सूचकांक अधिक होता है तथा प्रति इकाई क्षेत्र उत्पादकता भी बढ़ जाती है।
- सिंचाई क्षेत्र के विस्तार से वर्षों की कमी पूरी हो जाती है तथा वर्ष में एक से अधिक फसलें बोई जा सकती हैं।
- उर्वरक के प्रयोग से शस्य गहनता अधिक होती है। इस प्रकार भूमि को परती नहीं छोड़ा जाता।
- शीघ्र पकने वाली किस्मों से एक कृषि वर्ष में एक खेत एक से अधिक फसलें प्राप्त करता है। कीटनाशक दवाइयों के उपयोग से पौधों की रक्षा करके शस्य गहनता को बढ़ाया जा सकता है।
- यन्त्रीकरण जैसे ट्रेक्अर पम्प सैट के प्रयोग से शस्य गहनता सूचक बढ़ जाता है।
प्रश्न 18.
भारत की मुख्य फसलों के नाम लिखो।
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है यहाँ 70% लोग खेती करते हैं। इसलिए भारत को कृषिकों का देश भी कहा जाता है। देश की कुल भौगोलिक क्षेत्र के 42% भाग पर कृषि की जाती है। देश की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार अनेक प्रकार की महत्त्वपूर्ण फसलें उत्पन्न की जाती हैं। इनमें से खाद्य पदार्थ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। कुल बोई हुई भूमि का 80% भाग खाद्य पदार्थों के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत की फसलों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जाता है।
- खाद्यान्न – चावल, गेहूँ, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का, चना, डालें आदि।
- पेय पदार्थ – चाय तथा कहवा।
- रेशेदार पदार्थ – कपास तथा पटसन।
- तिलहन – मूंगफली, तिल, सरसों, असली आदि।
- कच्चे माल – गन्ना, तम्बाकू, रबड़ आदि।
प्रश्न 19.
पंजाब तथा हरियाणा में 100 से.मी.से कम वार्षिक वर्षा होते हुए भी चावल एक मुख्य फसल क्यों है?
उत्तर:
पिछले कुछ वर्षों से पंजाब तथा हरियाणा में चावल के कृषि क्षेत्र में विशेष वृद्धि हुई है। यहाँ वार्षिक वर्षों 100 से.मी. से भी कम है, फिर भी इन राज्यों में उच्च उत्पादकता है। इन राज्यों में प्रति हेक्टेयर उपज 15 क्विटल से भी अधिक है। ये राज्य भारत में चावल की कमी वाले प्रदशों को चावल भेजते हैं। इसलिए इन्हें भारत का चावल का कटोरा भी कहते हैं। यहाँ वर्षा की कमी को जल-सिंचाई सांधनों द्वारा पूरा किया जाता है। यहाँ उपजाऊ मिट्टी, उच्च तापमान तथा उत्तम बीजों के प्रयोग के कारण प्रति हेक्टेयर उपज अधिक है।
प्रश्न 20.
भारत में पारम्परिक कृषि तथा आधुनिक कृषि पद्धति में क्या अन्तर है? स्पष्ट करो।
उत्तर:
पारम्परिक कृषि –
- जोतों का आकार-इस पद्धति में जोतों का आकार छोटा होता है।
- निवेश-कृषक प्रायः निर्धन होते हैं। इसलिए निवेश की मात्रा कम है। उर्वरक का प्रयोग कम है। आधुनिक विधियों तथा जल सिंचाई साधनों की कमी है।
- आधुनिक कृषि-इस पद्धति में जोतों का आकार चकबन्दी के करण मध्यम होता है।
- कृषक प्रायः धनी हैं तथा अधिक निवेश करने में समर्थ हैं। रासायनिक उर्वरक, मशीनरी, ट्यूबवैल तथा आधुनिक यंत्रों का अधिक प्रयोग होता है।
प्रश्न 21.
भारत में कपास उत्पादन में अग्रणी राज्य का नाम बताएँ। अच्छी फसलो के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतवर्ष से कपास का उत्पादन गुजरात राज्य में सबसे अधिक होता है। उपज की भौगोलिक दशाएँ-कपास उष्ण प्रदेशों की उपज है तथा खरीफ की फसल है।
- तापमान: तेज धूम तथा उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। पाला इसके लिए हानिकारक है। अतः इसे 200 दिन पाला रहित मौसम चाहिए।
- वर्षा: कपास के लिए 50 से.मी. वर्षा चाहिए। चुनते समय शुष्क पाला रहित मौसम चाहिए।
- जल सिंचाई: कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल सिंचाई के साधन प्रयोग किए जाते हैं जैसे पंजाब।
- मिट्टी: कपास के लिए लावा की काली मिट्टी सबसे अधिक उचित है। लाल मिट्टी तथा नदियों की कांप की मिट्टी (दोमट मिट्टी) में भी कपास की कृषि होती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
अन्तर स्पष्ट कीजिए –
- मानवीय तथा सांस्कृतिक संसाधन।
- निधि ऊर्जा संसाधन तथा प्रवाह ऊर्जा संसाधन।
- संसाधन संरक्षण और संसाधन प्रबंधन।
उत्तर:
1. मानवीय तथा सांस्कृतिक संसाधन में अन्तरः
मानवीय संसाधन:
- लोगों की संख्या और गुणवत्ता मानव-संसाधन का निर्माण करते हैं।
- लोगों की निर्धारित संख्या और गुणवत्ता घटने पर विकास की गति धीमी भी पड़ जाती है।
- निरक्षर और कुपोषित जनसंख्या तथा विरल जनसंख्या से विकास के मार्ग में बाधाएं खड़ी हो जाती हैं।
- मनुष्य एक संसाधन नहीं, उद्देश्य है।
सांस्कृतिक संसाधन:
- प्राकृतिक संसाधन तब तक संसाधन नहीं बनते, जब तक मानव उन्हें संसाधनों के रूप में नहीं पहचानते।
- मनुष्य की आवश्यकताओं और योग्यताओं के अनुसार संसाधनों का विस्तार और संकुचन होता है।
- प्राकृतिक परिघटनाओं का संसाधनों के रूप में ज्ञान, सांस्कृतिक विरासत जैसे-ज्ञान, अनुभव, कौशल, संगठन प्रौद्योगिकी आदि पर निर्भर करता है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्कृति के उत्पाद हैं।
2. निधि ऊर्जा संसाधन तथा प्रवाह ऊर्जा संसाधन में अन्तर:
निधि ऊर्जा संसाधन:
- एक लम्बे समय से इनका प्रयोग किया जा रहा है।
- कोयला, तेल तथा विद्युत ऊर्जा इस प्रकार के साधन हैं।
प्रवाह ऊर्जा संसाधन:
- ऊर्जा के वैकल्पिक साधन हैं।
- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायो गैस, भू-ज्वरीय ऊर्जा इस प्रकार के साधन हैं।
- संसाधन संरक्षण और संसाधन प्रबंधन में अन्तर:
3. संसाधन संरक्षण और संसाधन प्रबंधन।
संसाधन संरक्षण:
- संसाधन संरक्षण का अर्थ है, मितव्यता और बिना बर्बादी के उपयोग।
- लोगों को संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए तथा उनके अत्यधिक उपयोग, दुरुपयोग और असामयिक उपयोग को छोड़ने के लिए प्रेरित करता है।
- संरक्षण को संसाधनों के प्रति दायित्वपूर्ण व्यवहार से देखा जाता है।
- संरक्षण अनेक अंतक्रियात्मक विषयों का सम्मिश्रण है।
संसाधन प्रबंधन:
- संसाधन प्रबंधन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर बल देता है।
- इसका उद्देश्य वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करना है जिससे पारितंत्रीय संतुलन भी बना रहे तथा भावी पीढ़ियों की आवश्यकताएँ भी पूरी होती रहें।
- इसमें विकास के लिए निश्चित दशाओं में संसाधनों के आंबटन संबंधी नीतियाँ और प्रथाएँ शमिल हैं।
- संसाधन प्रबंधन को न्याय पसंद और वचनबद्धता को ध्यान में रखकर निर्णय लेने की सोची समझी प्रक्रिया है।
प्रश्न 2.
भारत में आर्थिक विकास कम क्यों है, जबकि संसाधन पर्याप्त हैं?
उत्तर:
भारत में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। ये संसाधन भारत की आर्थिक व्यवस्था का आधार है। भारत का उत्तरी मैदान कृषि के लिए एक उपहार है। देश के 2/3भाग पर उपजाऊ मिट्टी मिलती है जो कृषि का आधार हैं। सारा साल जैसे तापमान मिलने के कारण यह देश फसलों के लिए एक लंबे वर्धन काल का क्षेत्र हैं। उत्तरी मैदान में बहने वाली नदियों जल सिंचाई तथा जल विद्युत उत्पादन में बहुत सहायक हैं। देश में खनिज पदार्थों का विशाल भण्डार है। इसलिए यह सत्य है कि भारत प्राकृतिक संसाधनों में एक धनी देश है।
भारत में यहाँ उपस्थित संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं किया गया है। इसका कारण प्रौद्योगिक विकास की कमी है। भारत एक लम्बे समय से कृषि उद्योग तथा परिवहन क्षेत्र की प्रोद्योगिकी में पिछड़ा है। इसी कारण भारत में कृषि क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर उत्पादन तथा उद्योगों में प्रति श्रमिक उत्पादन बहुत कम है। प्रौद्योगिकी का स्तर अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। पूँजी की कमी तथा आर्थिक विकास की कमी के कारण नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत में कम है।
हरित क्रान्ति के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग का ही परिणाम है। भारत में कुशल तकनीक तथा कुशल श्रमिकों की कमी है। देश में लगभग 25 लाख कुशल श्रमिक है, परन्तु भारत की विशाल जनसंख्या की तुलना में यह कम है। भारत में वैज्ञानिकों तथा इंजीनियरों की औसत संख्या 22 प्रति 10,000 है जबकि संयुक्त राज्य में 456 तथा रूस में 311 प्रति हजार है। भारत में अधिकतर विदेशी प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जा रहा है। परन्तु अब विज्ञान, खनन, तेल, शोधन, अन्तरिक्ष विज्ञान, परिवहन आदि क्षेत्रों में भारत में निर्मित प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जा रहा है। अतः भारत में प्रौद्योगिकीय विकास का निम्न स्तर होने के कारण ही उत्पादकता कम है।
प्रश्न 3.
- प्राकृतिक संसाधनों के विकास के लिए उपाय सुझाइए।
- अपने राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:
1. प्राकृतिक संसाधनों के विकास के उपाय:
- संसाधनों का योजनाबद्ध तरीके के प्रयोग किया जाना चाहिए।
- संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है।
- संसाधनों का सतत् पोषण होना चाहिए।
- जनसंख्या वृद्धि तथा संसाधन के दोहन में संतुलन रखना चाहिए।
- खनिज धातुओं का पुनः प्रयोग किया जा सकता है जैसे-लोहा टिन, तांबा आदि।
- विद्युत उद्योग में तांबे के स्थान पर एल्यूमिनियम को उपयोग किया जाने लगा।
- खनिज तेल अथवा कोयले के स्थान पर विद्युत तथा अन्य अपारम्परिक ऊर्जा संसाधन उपयोग किए जा रहे हैं।
- संश्लेषित उत्पादों के प्रयोग से प्राकृतिक पदार्थ कम से कम प्रयोग किए जाते हैं।
2. राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की सूची:
प्रश्न 4.
प्रौद्योगिकीय विकास और संसाधनों की उपलब्धता, शोषणीय और नवीकरणीयता के अन्तर्सम्बन्धों को विस्तार से समझाइए अपने उत्तर की व्याख्या के लिए उपयुक्त उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रौद्योगिकीय विकास और संसाधनों की उपलब्धता-आर्थिक तंत्र के बाहर से प्राप्त होने वाले जैव और अजैव पदार्थ ही प्राकृतिक संसाधन हैं, जिन्हें मानव अपनी आवश्यकताओं को परा करने के लिए कच्चे माल से रूप में उपयोग करता है। प्राकृतिक सांधन कहलाते हैं। किसी निश्चित पर्यावरण में कुछ संसाधनों का उपयोग नहीं किया जा सकता। विशेष रूप से प्रौद्योगिकी की कमी के कारण कुछ संसाधनों का उपयोग नहीं किया जा सकता। प्रौद्योगिकी की कमी के कारण कुछ संसाधनों का उपयोग नहीं किया जा सकता। प्रोद्योगिकी का विकास संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। खनिज, वनोत्पादन आदि का दोहन ऐसे संसाधन हैं जिन पर औद्योगिक विकास निर्भर करता है। जिनमें से प्राकृतिक संसाधन भी एक कारक है।
भारत में प्राकृतिक संसाधनों के विशाल भण्डार है परन्तु आर्थिक विकास कम है। जापान, यूनाइटेड किंगडम और स्विट्जरलैण्ड में प्राकृतिक साधनों के न होते हुए भी आर्थिक विकास अत्यधिक है। अतः आर्थिक विकास की प्रारम्भिक अवस्था में स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता को बहुत महत्त्व होता है। शोषणीय तथा नवीकरणीयता-प्राकृतिक संसाधन मानव को विकास के लिए पदार्थ, ऊर्जा और अनुकूल दशाएँ प्रदान करते हैं। दूसरे, इनसे पर्यावरण का निर्माण होता है। कुछ संसाधन नवीकरणीय है और कुछ अनवीकरणीय। जैसे-जैसे मानव संख्या में वृद्धि हुई, उन्हें उन्नतम किस्म के औजार तथा तकनीक मिल गई, जिससे संसाधनों का शोषण बढ़ने लगा। मनुष्य की आवश्यकताओं और योग्यताओं के संसाधनों का विस्तार और संकुचन होता है। संसाधनों की शोषणीयता वैज्ञानिक खोजों और प्रौद्योगिकी पर निर्भर करती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्कृति के उत्पाद है। संस्कृति की उपलब्धता,नवीकरणीयता और विशेषताओं का विस्तार संसाधनों के आपूर्ति-आधार को व्यापक बनाता है।
नवीकरणीय-संसाधन प्राकृतिक रूप से अपना पुनरुत्पादन कर लेते हैं, यदि उनका संपूर्ण विनाश न किया जाए। वन और मछलियां इनके उदाहरण हैं। कुछ संस्कृतियों में पारितंत्रीय सीमाओं में संसाधनों के उपयोग की ऐसी व्यवस्था होती है। जिसमे प्रकृति अपनी हानि को फिर से पूरा कर लेती है। कुछ संस्कृतियाँ प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस सीमा तक करती हैं कि उनकी पुनः पूर्ति नहीं हो सकती। आधुनिक यूरोपीय संस्कृति इसी वर्ग की देन है। पहले प्रकार की संस्कृति पारितंत्र के संतुलन को बना कर संसाधनों का सरंक्षण करती है।
कुछ नवीकरणीय संसाधनों तभी तक नवीकरणीय है, जब तक उनका प्रकृति द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्दर विवेकपूर्ण ढंग से शोषण किया जाता है। कुछ नवीकरणीय संसाधन ऐसे भी हैं जो क्रियाकलापों से निरपेक्ष रहते हुए सतत् उपलब्ध है। सौर ऊर्जा और ज्वारीय ऊर्जा ऐसे ही संसाधन हैं। नवीकरणीय संसाधनों का तंत्र जटिल है इस तंत्र के घटक परस्पर किया करते हैं। एक संसाधन का उपयोग दूसरे को प्रभावित कर सकता है। अतः इनका विकास नियोजित होना चाहिए।
प्रश्न 5.
संसाधनों और आर्थिक विकास के अंतर्सम्बंधों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक विकास एक जटिल प्रक्रिया है। यह अनेक कारकों पर निर्भर करती है, और प्राकृतिक संसाधन उनमें से एक हैं। संभावित संसाधनों और आर्थिक विकास के मध्य सम्बन्ध इतने सरल नहीं है। पूरे संसार में पाई जाने वाली तीन परिस्थितियों से इस बात को बल मिलता है –
- अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकतर देशों और भारत में भी संसाधनों के विशाल भण्डार होते हुए भी आर्थिक विकास कम है।
- प्राकृतिक संसाधनों में सम्पन्न न होते हुए भी जापान, यूनाइटेड किंगडम और स्विट्जरलैण्ड अत्यधिक विकसित देश हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और दक्षिण अफ्रीका आदि देश संसाधनों में संपन्नता तथा अत्यधिक विकसित अर्थव्यवस्था के उदाहरण हैं।
आर्थिक तथा प्रारम्भिक अवस्था में स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता का बहुत महत्त्व होता है। संसाधनों का दोहन और निर्यात आर्थिक विकास के अनिवार्य कारक हैं। अतः विकास के लिए संसाधन अनिवार्य हैं। संपन्न प्रदेश और देश बाहर से संसाधनों का आयात करने में समर्थ होते हैं। इस दृष्टि से संसाधनों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। हस्तांतरणीय और अहस्तांतरणीय। भूमि का उपयोग अहस्तांतरणीय संसाधन है। इसलिए कृषि का विकास अच्छी और बहुत अच्छी भूमि वाले प्रदेशों में ही हुआ है।
इसके विपरीत हस्तांतरणीय संसाधनों जैसे-खनिज, वनोत्पादन आदि का दोहन होने के बाद औद्योगिक प्रसंस्करण और अंतिम उपयोग के लिए प्रायः निर्यात कर दिया जाता है। प्राकृतिक संसाधन विकास के लिए कच्चा माल और ऊर्जा प्रदान करते हैं। ये स्वास्थ्य और जीवन शक्ति पर भी प्रभाव डालते हैं। इसलिए मानव जीवन और विकास के संसाधनों का बुद्धिमतापूर्ण उपयोग होना चाहिए। इसके लिए सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता है। विकास के अनेक रूप संसाधनों का ह्रास कर देते हैं, जिन पर वे आश्रित होते हैं। इससे वर्तमान आर्थिक विकास धीमा हो जाता है तथा भविष्य की संभावनाएँ काफी हद तक घट जाती है। अतः सतत् विकास में पारितंत्र के स्थायित्व को सदैव ध्यान में रखना चाहिए।
प्रश्न 6.
उन कृषीय तकनीकी विधियों का उल्लेख करो जिनसे कृषि भूमि उत्पादकता की वृद्धि में सहायता मिल सकती है।
उत्तर:
कृषि उत्पादकता में दूसरे देशों की तुलना में भारत बहुत पीछे है। खाद्यान्नों तथा दूसरी फसलों की प्रति हेक्टेयर उपज दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम है। भारत के अधिकतर भागों में कृषि उत्पादकता सामान्य है।
अन्य देशों की तुलना में भारत में उत्पादकता निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट है –
कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित तकनीकी विधियों को अपनाया गया है। जहाँ जल सिंचाई के विकसित सांधन उपलब्ध हैं, वहाँ फसलों की गहनता में वृद्धि की गई है।
- शुष्क कृषि-भारत में कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। कई प्रदेशों में वर्षा की मात्रा बहुत कम है तथा जल सिंचाई के सांधन भी बहुत कम हैं। ऐसे क्षेत्रों में शुष्क सिंचाई द्वारा कृषि की जाती है। अधिक समय तक नमी कायम रखने वाली मिट्टियों में कृषि की जाती है।
- अधिक उपज देने वाली नई किस्मों का प्रयोग-देश में गेहूँ, चावल, बाजरा आदि खाद्यान्न तथा अन्य फसलों में अधिक उपज देने वाली नई किस्सों की कृषि का विकास किया गया है। इसमें प्रति हेक्टेयर उपज कई गुना बढ़ गई है।
- हरित क्रान्ति-उत्तम बीजों, उर्वरकों, तथा यान्त्रिक कृषि की सहायता से हरित क्रान्ति को सफल बनाया गया है जिससे खाद्यान्नों के उत्पादन में विशेष वृद्धि हुई है।
- यान्त्रिक कृषि-पुरोने औजारों के स्थान पर आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जा रहा है। जल विद्युत के विकास के कारण ही ऐसा सम्भव हो सका है। कई सरकारी संस्थाएं इन यन्त्रों के खरीदने के लिए निर्धन किसानों को सहायता प्रदान सरकारी करती है।
- फसलों का हेर-फेर-कई क्षेत्रों में फसलों की गहनाता को बढ़ाया गया है तथा खेतों के उपजाऊपन को कायम रखने के लिए फसलों को हेर-फेर के साथ बोया जाता है। इससे खेतों में उपजाऊपन बढ़ता है।
- जल सिंचाई-इसके विस्तार से सारा साल जल की पूर्ति का लाभ उठाया जाता है। इससे उत्तर-पश्चिमी भारत में चावल की कृषि का विस्तार किया गया है तथा कई फसलों के प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हुई है।
- अन्य विधियाँ-इसके अतिरिक्त उत्तम बीज, उर्वरक, कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से कृषि उत्पादकता बढ़ी है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दीजिए:
- मनुष्य कितने प्रकार से अपने पर्यावरण का उपयोग करता है?
- संसाधन की परिभाषा दीजिए।
- संसाधन के प्रकार्यात्मक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- जैव-भौतिक के ‘उदासीन उपादान’ संसाधन कैसे बन जाते हैं?
- यह कहना कहाँ तक सही है कि संसाधन केवल प्राकृतिक पदार्थ हैं?
उत्तर:
1. संसाधन:
प्राकृतिक भंडार का यह अंश, जिसका विशिष्ट तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक दशाओं में उपयोग किया जा सकता है। संसाधन सुरक्षा और संपदा दोनों के ही आधार हैं। विकास और संसाधन एक-दूसरे पर आश्रित हैं।
2. प्रकार्यात्मक सिद्धान्त:
मनुष्य को एक संसाधन नहीं मानना चाहिए। वे तो स्वयं उद्देश्य लक्ष्य हैं। जिनके चारों ओर विकास के कार्य चलते रहते हैं। लोगों की संख्या और गुणवत्ता मानव संसाधनों का निर्माण करते हैं। लोगों की एक निर्धारित संख्या और गुणवत्ता घटने पर विकास की गति धीमी भी पड़ जाती है। निरक्षर और कुपोषित जनसंख्या तथा विरल जनसंख्या से विकास के मार्ग में बाधाएं खड़ी संसाधनों के रूप में नहीं पहचानते।
3. उदासीनता उपादान:
लोग अपनी मांगों को संतुष्ट करने के लिए अपने जैव-भौतिक पर्यावरण का उपयोग करते आ रहे हैं। इस प्रक्रिया को संसाधन उपयोग कहते हैं। जैसे-जैसे संस्कृति विकसित होती है नए-नए संसाधनों की खोज होती जाती है और उनके उपयोग के बेहतर तरीके भी। इसे संसाधनों की खोज होती जाती है और उनके उपयोग के बेहतर तरीके भी। इसे “संसाधन विकास कहते हैं। मानवीय आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए “उदासीन उपादानों’ को वस्तुओं और सेवाओं के रूप में परिवर्तित करके प्राकृतिक संसाधनों के रूप में उपयोग करना संसाधन उपयोग कहलाता है।
4. संसाधनों की प्रायः
पहचान मूर्तरूप में विद्यमान प्राकृतिक पदार्थों के रूप में की जाती है। संसाधन जैव-भौतिक पर्यावरण के तत्त्व हैं, लेकिन वे तब तक निष्किय रहते हैं, जब तक मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उनकी उपयोगिता का ज्ञान नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए कोयला सदैव विद्यमान था, लेकिन यह संसाधन तभी बना जब मानव ने ऊर्जा के स्रोत के रूप में इसका उपयोग करना प्रारम्भ किया। पर्यावरण के समग्र पदार्थों के घटक प्राकृतिक संसाधन हैं। अतः स्पष्ट है कि संसाधन प्राकृतिक पदार्थ हैं, इनका उपयोग मानव के हाथ में है।
5. संसाधन वास्तविक वस्तुएँ हैं। ये प्रकृति के भण्डार का वह भाग है जो मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग किया जा सके। इन संसाधनों का विशिष्ट तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक दशाओं में उपयोग किया जा सकता है। मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ जैव भौतिकी पर्यावरण के तत्त्वों को प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। “वस्तुओं के उत्पादन और उपयोग के कारकों के रूप में आसानी से उपयोग के योग्य प्रकृति के लक्षण और उत्पाद प्राकृतिक संसाधन है।” प्राकृतिक संसाधन तब तक संसाधन नहीं बनते, जब तक मानव उन्हें संसाधनों के रूप में नहीं पहचानते। लोगों की संख्या और गुणवत्ता मानव संसाधनों का निर्माण करते हैं। अतः संसाधन प्राकृतिक वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग मानव द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दीजिए:
- क्या संसाधन केवल वास्तविक वस्तुएँ हैं? यदि नहीं, तो क्यों?
- संसाधनों की संकल्पना में आए नवीन परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
- संसाधन संरक्षण की संकल्पना की व्याख्या कीजिए।
- संसाधन प्रबंधन को संरक्षण का नवीन रूप क्यों मानना चाहिए?
उत्तर:
1. संसाधन जैव:
भौतिक पर्यावरण के तव हैं, लेकिन वे तब तक निष्क्रिय रहते हैं, जब तक मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उनकी उपयोगिता का ज्ञान नहीं हो जाता। उदाहरण-कोयला सदैव विद्यमान था, लेकिन यह संसाधन तभी बना जब मानव ने ऊर्जा के स्रोत के रूप में इसका उपयोग करना प्रारम्भ किया। संसाधनों में जैव और अजैव दोनों ही प्रकार के पदार्थ शामिल हैं।
2. प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में है फिर भी ऊर्जा के विशाल भण्डार में से बहुत कम भाग ही उपयोग हो सका, क्योंकि या तो पूरी तरह से अगम्य है या ऐसे रूप में हैं कि उनका उपयोग नहीं किया जा सकता। इस प्रकार संसाधन प्राकृतिक भण्डार का वह अंश है, जिसका विशिष्ट तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक दशाओं में उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार संसाधन मानव संस्कृति और भौतिक पर्यावरण की अतक्रियाओं द्वारा ही बनाए जाते हैं।
3. मितव्ययता और बिना बर्बादी के उपयोग को संरक्षण कहा जाता है। संरक्षण को संसाधनों के प्रति दायित्वपूर्ण व्यवहार के रूप में देखा जाता है। संरक्षण अनेक अन्तक्रियाओं का सम्मिश्रण है। संरक्षण का उद्देश्य एक तरफ तो सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक तंत्रों को नियोजित करना है तथा दूसरी ओर प्राकृतिक तंत्रों का संरक्षण।
4. क्योंकि, संसाधन प्रबंधन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर बल देता है। इसका उद्देश्य वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करना है तथा यह भी ध्यान रखना है कि पारितंत्रीय संतुलन बना रहे। संसाधन प्रबन्धन निर्णय लेने की प्रक्रिया है इसमें मनुष्य की आवश्यकताओं, आकांक्षाओं और इच्छाओं को ध्यान से रखकर उनकी कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्थाओं के दायरे में स्थान और समय के अनुसार संसाधनों का आबंटन किया जाता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विविध प्रकार के प्रबंधकीय, तकनीकी और प्रशासनिक विकल्पों का सहारा लिया जाता है।
प्रश्न 9.
- अपने घर में उपयोग की महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के नाम लिखिए।
- उन फसलों के नाम बताइए, जिनसे ये वस्तुएँ ली गई हैं।
- उपयोग की प्रत्येक वस्तु के विकल्प का नाम बताइए।
- इन वस्तुओं के उत्पादक राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर:
घर में उपयोग की वस्तुएँ निम्न हैं –
- खाद्यान्न-चावल, गेहूँ, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का, चने, दालें आदि।
- पेय पदार्थ-चाय, कॉफी
- रेशेदार पदार्थ-कपास तथा पटसन।
- तिलहन-मूंगफली, तिल, सरसों, अलसी इत्यादि।
- कच्चे माल- गन्ना, तम्बाकू, रबड़ आदि।
1. चावल:
चावल गर्म, आर्द्र मानसूनी प्रदेशों की उपज है। विकल्प: भारत में चावल की कृषि प्राचीन काल से हो रही है। भारत को चावल की जन्म भूमि माना जाता है। चावल भारत का मुख्य खाद्यान्न है। भारत संसार का 21% चावल उत्पन्न करता है। उत्पादक राज्य: पं. बंगाल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब व .हरियाणा।
2. गेहूँ: यह शीतोषण कटिबंध का पौधा है। भारत में यह रबी की फसल है। विकल्प: भारत में प्राचीन काल में सिन्धु घाटी में गेहूँ की खेती के चिन्ह मिले हैं। गेहूँ संसार का सर्वश्रेष्ठ तथा मुख्य खाद्य पदार्थ है। उत्पादक राज्य: उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान।
3. बाजरा:
हल्की मिट्टी और शुष्क क्षेत्रों में पैदा किया जाता है। विकल्प: देश के कुल क्षेत्र के 98 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बाजरे की खेती की जाती है। राजस्थान की मरुस्थली और अरावली की पहाड़ियाँ, दक्षिणी-पश्चिमी हरियाणा, चंबल द्रोणी, दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बाजरा खरीफ की फसल होती है।
4. मक्का:
मक्का की खेती पूरे भारत में की जाती है। विकल्प: मक्का का उत्पादन (2000-01) में 12 करोड़ टन था। मक्का के क्षेत्रफल तथा उत्पादन दोनों में वृद्धि हुई है। संकर जाति व उपज बढ़ाने वाले बीजों, उर्वरकों और सिंचाई के सांधनों ने इसकी उत्पादकता बढ़ाने में सहायता की है। उत्पादक राज्य: मध्यम प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और हिमाचल प्रदेश
5. दालें:
ये फलीदार फसलें हैं। विकल्प: ये अपनी जड़ों द्वारा मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाकर उसकी उर्वरता में वृद्धि करती है। (2000-01) में दालों का उत्पादन 84 लाख टन से बढ़कर 1.07 करोड़ टन हो गया। उत्पादक राज्य: ये सभी राज्यों में उगाई जाती हैं।
6. चना:
दाल की मुख्य फसल है। विकल्प: उत्तर प्रदेश में 22 टन (20.3%) दालों का उत्पादन होता है। मध्य प्रदेश (19.5%) और महाराष्ट्र (15.3%) दालों के अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य है।
7. गन्ना:
एक उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्ण कटिबंधीय फसल है। यह एक सिंचित फसल है। विकल्प: भारत को गन्ने का मूल स्थान माना जाता है। भारत संसार में गन्ने को दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। उत्पादक राज्य: कर्नाटक आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य है।
8. तिलहन:
भारत में नौ तिलहनों की खेती की जाती है। तोरिया और सरसों रबी की फसलें हैं। विकल्प: 1950-51 में 1.07 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर तिलहनों की खेती की जाती थी। विगत 50 वर्षों में तिलहनों का उत्पादन 516 लाख से बढ़कर 1.84 करोड़ टन हो गया है। उत्पादक राज्य: तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा राज्य हैं।
9. चाय:
रोपण फसल है। विकल्प: असम की ब्रह्मपुत्र घाटी का आधे से अधिक क्षेत्र चाय उत्पादक है। अधिक वर्षा तथा उच्च तापमान चाय बागानों के लिए अनुकूल दशाएँ हैं। 1950-51 में चाय का उत्पादन 3 लाख टन था जो 2000-01 में 8 लाख टन हो गया। उत्पादक राज्य: तमिलनाडु असम, केरल तथा हिमाचल प्रदेश प्रमुख चाय उत्पादक राज्य हैं।
10. कॉफी: रोपण की फसल है। विकल्प: 1950-51 में इसका उत्पादक 24.6 हजार टन था, जो 2000-01 में 3.01 लाख टन हो गया। 1990-91 में भारत ने 1 लाख टन कॉफी का निर्यात किया था।
11. रबड़: रोपण की फसल है। विकल्प: संसार में कुल रबड़ उत्पादन का कुल उत्पादन 6.3 लाख टन था। संसार के रबड़ उत्पादक देशों में भारत का चौथा स्थान है। उत्पादक राज्य: वनकोर ओर मालाबार तट।
12. कपास: विकल्प: भारत संसार का तीसरा बड़ा कपास उत्पादक है। उत्पादक राज्य: गुजरात के काठियावाड तथा महाराष्ट्र प्रमुख कपास उत्पादक हैं।
प्रश्न 10.
भारत में गन्ने के उत्पादन का प्रतिरूप दीजिए।
उत्तर:
1. उत्तर प्रदेश:
यह राज्य भारत का सबसे अधिक गन्ना उत्पन्न करता है। यहाँ पर गन्ना उत्पन्न करने के तीन क्षेत्र हैं –
- दोआब क्षेत्र-रूड़की से मेरठ तक।
- तराई क्षेत्र – बरली, शाहजहाँपुर।
- पूर्वी क्षेत्र – गोरखपुर।
गोरखपुर को भारत का जावा भी कहते हैं। यहाँ गन्ने की कृषि के लए कई सुविधाएँ हैं –
- 100-200 सेंमी. वर्षा।
- उपजाऊ मिट्टी।
- जल-सिंचाई के साधन।
- खांड मिलों का अधिक होना।
2. दक्षिणी भारत:
दक्षिणी भारत में अनुकूल जलवायु तथा अधिक प्रति हेक्टेयर उपज के कारण गन्ने की कृषि महत्त्वपूर्ण हो रही है।
- आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा व गोदावरी डेल्टा
- तमिलनाडु में कोयम्बटूर क्षेत्र
- महाराष्ट्र में गोदावरी घाटी का नासिक क्षेत्र
- कर्नाटक में कावेरी घाटी
3. अन्य क्षेत्र:
- पंजाब में गुरदासपुर, जालन्धर क्षेत्र
- हरियाणा में रोहतक, गुडगाँव क्षेत्र
- बिहार में तराई का चम्पारण क्षेत्र
प्रश्न 11.
भारत में कृषि के नवीनतम विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में कृषि में प्रौद्योगिकीय परिवर्तन 1960 के दशक में प्रराम्भ हुए। अधिक उपज देने वाले बीजों के अलावा, रासायनिक उर्वरक और पीड़कनाशियों का उपयोग भी शुरू किया गया तथा सिंचाई की सुविधाओं में सुधार और विस्तार किया गया। इन सबके संयुक्त प्रभाव को हरित क्रान्ति कहा जाता है।
हरित क्रान्ति एक महत्त्वपूर्ण कृषि योजना है। जिसका मुख्य उद्देश्य खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा कर देश में खाद्यान्नों में कमी को दूर करना है। देश के विभाजन के पश्चात् खाद्यान्नों में कमी आ गई थी। सन् 1964-65 में खाद्यान्नों का कुल उत्पादन केवल 9 करोड़ टन था। इस कमी को पूरा करने के लिए विदेशों से खाद्यान्न आयात किये जाते थे। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण कृषि क्षेत्र को एक नया मोड़ दिया गया, जिसके कारण खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि हुई है। देश से खाद्यान्नों का कुल उत्पादन लगभग 20 करोड़ टन हो गया है।
हरित क्रान्ति वास्तव में खाद्यान्न क्रान्ति है। इसके लिए जल सिंचाई के सांधनों में विस्तार किया गया है। उर्वरक का अधिक मात्रा में उपयोग करके प्रति हेक्टेयर उपज को बढ़ाया गया। अधिक उपज देनेवाली फसलों की कृषि पर जोर दिया गया। चुने हुए क्षेत्रों में गेहँ तथा चावल की नई विदेशी किस्मों का प्रयोग किया गया। गेहूँ की नई किस्में कल्याण, S-308; चावल की किस्में रत्ना, जया आदि का प्रयोग किया गया। इसके फलस्वरूप खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ गया।
पंजाब के लुधियाना क्षेत्र में गेहूँ प्रति हेक्टेयर उत्पादन 13 क्विटल से बढ़कर 33 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा जा पहुंचा है। गोदावरी डेल्टा में चावल प्रति हेक्टेयर उत्पादन लगभग दुगुना हो गया है। उत्तम बीज, कृषि अनुसन्धान, गहन कृषि फसलों की बीमारियों की रोकथाम तथा कृषि यंत्रों के अधिक प्रयोग द्वारा हरित क्रान्ति को सफल बनाया गया। इस प्रकार कृषि योग्य भूमि के विस्तार नहीं अपितु प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ा कर ही खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि के लक्ष्य को पूरा किया गया है।
प्रश्न 12.
भारतीय कृषि पर भूमंडलीकरण के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भूमंडलीकरण के द्वारा भारतीय बाजार संसार के लिए खुल गए हैं। इसके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सरकारी नियंत्रण कम हुआ है तथा आयात और निर्यात से संबंधित नीतियों में उदारता आई है। अब कृषि उत्पादों समेत अन्य विदेशी उत्पादों का भारत में आयात किया जा सकता है।
बंधन मुक्त व्यापार में वस्तु की कीमत और गुणवत्ता प्रतिस्पर्धात्मक हो जाती है। यदि किसी फसल की लागत ऊँची है, तो व्यापरी इसे कम कीमत पर अन्य देशों से आयात करके राष्ट्रीय बाजार में बेच सकते हैं। इससे भारतीय कृषि में गतिहीनता आ सकती है तथा यह पिछड़ भी सकती है या अवनति भी हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अनेक उत्पादों की कीमतें गिर रही हैं, जबकि भारतीय बाजारों में ये बढ़ रही हैं। इसके दो कारण हैं
1. जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तीव्र विकास, जिसके परिणामस्वरूप विकसित देशों में किसानों को अत्यधिक उपज देने वाले बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
2. परिष्कृत कृषि यंत्रों के उपयोग के द्वारा लागत काफी घट गई है। विश्व व्यापार समझौते के अनुसार सभी देशों की कृषि क्षेत्र में दिए जाने वाले अनुदान बन्द करने पड़ेंगे।
विश्व बाजार की प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए भारत को अपनी कृषि की विशाल संभावनाओं का व्यवस्थित और नियोजित तरीके से उपयोग करना होगा। देश में कृषि उत्पादों के लिए एक बंधन मुक्त और एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने का कार्य सही दिशा में उठाया गया कदम होगा।
प्रश्न 13.
‘उल्लेखनीय विकास’ के बावजूद, भारतीय कृषि अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में कृषि के विकास के लिए बहुत अधिक प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन संसार के विकसित देशों की तुलना में हमारी कृषि की उत्पादकता अभी कम है। इसके लिए अनेक कारक जिम्मेदार हैं –
1. पर्यावरणीय कारक:
भारतीय कृषि की गम्भीर समस्या मानसून का अनिश्चित स्वरूप है। तापमान तो सारे साल ही ऊंचे रहते हैं। देश के अधिकतर भागों में वर्षा केवल 3 या 4 महीनों में ही होती है। यही नहीं वर्षा की मात्रा तथा ऋतुनिष्ठ और प्रादेशिक वितरण अत्यधिक परिवर्तनशील है। इस परिस्थिति का कृषि के विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। देश के अधिकतर भाग, उपार्द्र, अर्धशुष्क और शुष्क हैं। इन क्षेत्रों में अक्सर सूखा पड़ता रहता है। सिंचाई की सुविधाओं के विकास और वर्षा जल संग्रहण के द्वारा इन प्रदेशों की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
2. आर्थिक कारक:
कृषि ने निवेश जैसे अधिक उपज देनेवाले बीज, उर्वरक आदि, और परिवहन की सुविधाएँ आर्थिक कारक हैं। विपणन सुविधाओं की कमी या उचित ब्याज पर ऋण न मिलने के कारण किसान कृषि के विकास के लिए आवश्यक संसाधन नहीं जुटा पाता है।
3. संस्थागत कारक:
जनसंख्या वृद्धि के कारण जोतों का उपविभाजन और छितराव हो रहा है। 1961-62 में कुल जोतों में से 52% जोतें सीमान्त अकार में और छोटी थीं। जोतों का अनार्थिक होना कृषि के आधुनिकीकरण की प्रमुख बाधा है। भूमि के स्वामित्व की व्यवस्था बड़े पैमाने पर निवेश के अनुकूल नहीं है, क्योंकि काश्तकारी की अवधि अनिश्चित बनी रहती है।
4. प्रौद्योगिकीय कारक:
कृषि के तरीके पुराने और अक्षम हैं। मशीनीकरण बहुत सीमित है। उवरकों और अधिक उपज देने वाले बीजों का उपयोग भी सीमित है। फसलगत क्षेत्र के केवल एक तिहाई क्षेत्र के लिए ही सिंचाई की सुविधाएँ जुटाई जा सकी हैं। इसका वितरण वर्षा की कमी और परिवर्तनशीलता के अनुरूप नहीं है। इन दशाओं के कारण कृषि उत्पादकता निम्न स्तर पर है।
प्रश्न 14.
भारत में गेहूँ के महत्त्व, वितरण, उत्पादन तथा उपज की दशाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
महत्त्व:
भारत में प्राचीन काल में सिन्धु घाटी में गेहूँ की खेती के चिन्ह मिले हैं। गेहूँ संसार का सर्वश्रेष्ठ तथा मुख्य खाद्य पदार्थ है। भारत संसार का 8 प्रतिशत गेहूँ उत्पादन करता है तथा इसका पाँचवा स्थान है।
उपज की दशाएँ:
गेहूँ शीतोषण कटिबंध का पौधा है। भारत में यह रबी की फसल है।
1. तापमान-गेहूँ बोते समय कम तापक्रय (15°C) तथा पकते समय ऊँचा तापमान 20°C आवश्यक है।
2. वर्षा-गेहूँ के लिए साधारण वर्षा (50cm) चाहिए। शीतकाल में बोते समय साधारण वर्षा तथा पकते समय वर्ग शुष्क मौसम जरूरी है। तेज हवाएं तथा बादल हानिकारक हैं। भारत में गेहूँ बोते समय आदर्श जलवायु मिलती है परन्तु पकते समय कई असुविधाएँ होती हैं।
चित्र: भारत-गेहूँ का वितरण
3. जल सिंचाई-कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल सिंचाई आवश्यक है, जैसे पंजाब तथा उत्तर प्रदेश गेहूँ की खेती के लिए समतल मैदानी भूमि चाहिए।
उत्पादन:
पिछले कुछ सालों में हरित क्रांति के कारण देश में गेहूँ की पैदावार में वृद्धि हुई है। देश में लगभग 240 लाख हेक्टेयर भूमि पर 708 लाख टन गेहूँ उत्पादन होता है।
उपज के क्षेत्र:
भारत में अधिक वर्षा वाली रेतीली भूमि तथा मरुस्थलों को छोड़ कर सभी राज्यों में गेहूँ की खेती होती है। पहाड़ी क्षेत्रों में शीत के कारण गेहूँ नहीं होता। पंजाब को भारत का अन्न भंडार कहते हैं। अन्य क्षेत्र हैं-हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार।
प्रश्न 15.
निम्नलिखित के संक्षेप में उत्तर दीजिए –
- भारत में उद्यान कृषि की फसलों के वितरण प्रतिरूप का वर्णन कीजिए।
- भारत में चाय और कॉफी के वितरण का वर्णन कीजिए।
- हरित क्रांति की उपलब्धियाँ क्या हैं?
- कारण सहित भारत के पाँच बड़े गेहूँ उत्पादक राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर:
1. उद्यान कृषि फसलों का वितरण-जलवायु की विभिन्न दशाओं के कारण भारत में विभिन्न प्रकार की उद्यान कृषि कीफसलें उगाई जाती हैं। ऐसी फसलों में प्रमुख हैं-फल, सब्जियाँ, कंद फसलें, शोभाकारी फसलें, औषधीय पौधे और सुगन्धित पौधे तथा मसाले। भारत संसार में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बडा उत्पादक देश है। संसार में आम,केले, चीकू और नींबू के उत्पादन में भारत अग्रणी है। आम के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का मुख्य स्थान है। नागपुर के संतरे बहुत प्रसिद्ध हैं।
तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्य केलों के लिए प्रसिद्ध हैं। महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश में अंगूर का उत्पादन बहुत बढ़ा है। कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के सेब, नाशपाती, खूबानी, अखरोट और अन्य फलों की बड़ी भारी माँग है। मसालों में काली मिर्च केरल के पश्चिमी घाट में सीमित हैं, लेकिन अदरक पूर्वी राज्यों में भी पैदा होता है। भारत काजू का सबसे बड़ा निर्यातक है। संसार के कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत काजू भारत में होता है। केरल, तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश काजू के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं । भारत संसार का सबसे बड़ा नारियल उत्पादक देश है। आन्ध्र प्रदेश मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। तोरिया
ओर सरसों उत्पादन में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा प्रमुख हैं।
2. चाय और कॉफी का वितरण:
भारत संसार में चाय का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता है। यहाँ संसार की 28 प्रतिशत चाय पैदा होती है। चाय के बागान लगाने का प्रारम्भ असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में सन् 1840 के दशक में हुआ। असम आज भी चाय का प्रमुख उत्पादक बना हुआ है। आजकल चाय मुख्य रूप से उत्तर-पूर्वी भारत और दक्षिण में पैदा की जाती है। ब्रह्मपुत्र घाटी में चाय बागानों के अनुकूल दशाएँ हैं। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और कूच बिहार प्रमुख चाय उत्पादक जिले हैं। दक्षिण भारत में चाय तमिलनाडु और केरल में पश्चिम घाट के निचले ढालों पर नीलगिरी और कार्डामम पहाड़ियों पर उगाई जाती है। हिमाचल प्रदेश में शिवालिक की पहाड़ियों के ढालों पर उत्तरांचल की दून घाटी में चाय पैदा की जाती है।
कॉफी:
भारत में कॉफी का व्यापारिक उत्पादन 1820 टन के आस-पास हुआ था। 1950 51 में इसका उत्पादन 24.6 हजार टन था जो 2000-01 में 3.01 लाख टन हो गया देश में पैदा की गई रोबस्ता और अरेबिका किस्मों की सारे संसार में भारी मांग है। केरल में देश का 23.6 प्रतिशत और तमिलनाडु में 5.6 प्रतिशत कॉफी का उत्पादन हुआ । कर्नाटक में देश के कुल उत्पादन का 58 प्रतिशत भाग में कॉफी के बागान थे।
3. हरित क्रान्ति की उपलब्धियाँ:
- खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि।
- रासायनिक उर्वरक और पीड़कनाशियों का उपयोग शुरू हुआ।
- सिंचाई की सुविधाओं में सुधार और विस्तार किया गया।
- अधिक उपज देने वाले गेहूँ के बीज तथा फिलीपिन्स में विकसित चावल के बीज भारत लाए गये थे।
- बीजों की अधिक उपज देने वाली किस्में उर्वरक, मशीनीकरण, ऋण और विपणन की सुविधाएँ।
- कृषि के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि।
4. गेहूँ उत्पादक राज्य:
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाण पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश के पश्चिमी ओर मध्यवर्ती भाग प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य हैं।
प्रश्न 16.
अंतर स्पष्ट कीजिए –
- आर्द्र भूमि और शुष्क भूमि कृषि।
- खरीफ और रबी की फसलें।
- खाद्यान्न और खाद्य फसलें।
उत्तर:
आर्द्र भूमि कृषि और शुष्क भूमि कृषि –
प्रश्न 17.
निम्नलिखित के संक्षेप में उत्तर दीजिए
- भारत में कृषि का क्या महत्त्व है?
- शस्य गहनता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- कारण सहित पाँच प्रमुख चावल उतपादक राज्यों के नाम बताइए।
- भारत में गन्ने के वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. कृषि का महत्त्व-भारत. में 70 प्रतिशत लोग अपनी जीविका के लिए कृषि पर आश्रित हैं। सकल घरेलू उत्पादक में कृषि की 26 प्रतिशत की भागीदारी है। यह देश का खाद्य सुरक्षा प्रदान करती है तथा उद्योगों के लिए अनेक प्रकार के कच्चे माल का उत्पादन करती है। राष्ट्रीय सुरक्षा और संपन्नता का भूमि के साथ बहुत निकटता का संबंध है। भारत का आधे से अधिक क्षेत्र कृषि के अन्तर्गत है।
2. शस्य गहनता-शस्य गहनता का अर्थ है एक ही खेत में एक कृषीय वर्ष में उगाई फसलों की संख्या। बोए गए शुद्ध क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में सकल फसलगत क्षेत्र में शस्य गहनता की माप को प्रकट करता है। शस्य गहनता ज्ञात करने का सूत्र है –
बोया गया शुद्ध क्षेत्र शष्य गहनता मिजोरम की 100 प्रतिशत से लेकर पंजाब की 189 प्रतिशत के मध्य बदलती रहती है। सिंचाई शस्य गहनता का प्रमुख निर्धारक तत्त्व है। जनसंख्या का दबाव भी शस्य गहनता
को प्रभावित करता है।
3. पाँच प्रमुख चावल उत्पादक राज्य:
पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तरांचल (उत्तर प्रदेश) प्रमुख चावल उत्पादक राज्य हैं।
4. गन्ने का वितरण:
भारत गन्ने का मूल स्थान माना जाता है। गन्ना एक सिंचित फसल है। प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य ये हैं-महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश। इन राज्यों में गन्ने की खेती के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 15.5 लाख हेक्टेयर है। दक्षिणी राज्यों में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज उत्तरी राज्यों की अपेक्षा अधिक है। तमिलनाडु में यह 106 टन तथा कर्नाटक में 101 टन है। बिहार में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज 41.7 टन तथा उत्तर प्रदेश में 57.4 टन है।
इसी के परिणामस्वरूप गन्ने का उत्पादन 5.02 करोड़ टन होते हुए भी महाराष्ट्र में गन्ने के उत्पादन में दूसरे स्थान पर और कर्नाटक तीसरे स्थान पर है। उत्तर भारत के प्रमुख गन्ना उत्पादक क्षेत्र सतलुज यमुना मैदान और ऊपरी व मध्य गंगा के मैदान में स्थित पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार हैं। उत्तर भारत में गुजरात, उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है। वहाँ गन्ने का कुल उत्पादन 42% है। भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारत में चावल के उत्पादन में 1950-51से 1993-94 की अवधि में कितनी अनुपातिक वृद्धि हुई?
(a) 383%
(b) 283%
(c) 285%
(d) 380%
उत्तर:
(b) 283%
प्रश्न 2.
अरब सागर में भारत के महाद्वीपीय मग्न तट जहाँ से तेल मिलता है, मुंबई से कितनी दूरी पर है?
(a) 120 किमी
(b) 20 किमी
(c) 12 किमी
(d) 200 किमी
उत्तर:
(a) 120 किमी
प्रश्न 3.
भौतिक पर्यावरण के तत्वों को क्या कहते हैं?
(a) मानवीय संसाधन
(b) प्राकृतिक संसाधन
(c) सांस्कृतिक संसाधन
(d) आर्थिक संसाधन
उत्तर:
(b) प्राकृतिक संसाधन
प्रश्न 4.
जिन संसाधनों का पुनरुत्पादन किया जा सके, उन्हें क्या कहते हैं?
(a) नवीकरणीय संसाधन
(b) अनवीकरणीय संसाधन
(c) प्राकृतिक संसाधन
(d) प्रौद्योगिक संसाधन
उत्तर:
(a) नवीकरणीय संसाधन
प्रश्न 5.
किस प्रकार के संसाधनों का पुनरुत्पादन नहीं किया जा सकता?
(a) अनवीकरण संसाधन
(b) प्राकृतिक संसाधन
(c) आर्थिक संसाधन
(d) सांस्कृतिक संसाधन
उत्तर:
(a) अनवीकरण संसाधन
प्रश्न 6.
सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलवायु आदि किस प्रकार के संसाधन हैं?
(a) असमाप्य
(b) समाप्य
(c) संतोषणीय
(d) नवीकरणीय
उत्तर:
(a) असमाप्य
प्रश्न 7.
किस देश में संसाधन अधिक तथा प्रौद्योगिक विकास कम है?
(a) जापान
(b) अमेरिका
(c) भारत
(d) स्विट्जरलैण्ड
उत्तर:
(c) भारत
प्रश्न 8.
किस देश में संसाधन कम तथा विकास अधिक है?
(a) भारत
(b) लैटिन अमेरिका
(c) जापान
(d) रूस
उत्तर:
(c) जापान
प्रश्न 9.
नियोजित तरीके से संसाधनों का उपयोग क्या कहलाता है?
(a) संसाधन संरक्षण
(b) संसाधन प्रबन्धन
(c) संसाधन विकास
(d) संसाधन उपयोग
उत्तर:
(a) संसाधन संरक्षण
प्रश्न 10.
उत्तर प्रदेश की प्रमुख फसल है?
(a) कहवा
(b) रेशम
(c) गेहू
(d) चावल
उत्तर:
(c) गेहू
प्रश्न 11.
भारत में 1999-2000 में कुल खाद्यान्न उत्पादन कितना था?
(a) 1084टन
(b) 2000 टन
(c) 1760 टन
(d) 820 टन
उत्तर:
(b) 2000 टन
प्रश्न 12.
50 से.मी. से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में या जल सिंचाई रहित प्रदेशों में किस प्रकार की कृषि की जाती है?
(a) नम कृषि
(b) शुष्क कृषि
(c) आधुनिक कृषि
(d) पारम्परिक कृषि
उत्तर:
(b) शुष्क कृषि
प्रश्न 13.
भारतीय कृषि अधिकतर किस पर निर्भर करती है?
(a) शस्य
(b) वर्षा
(c) मिट्टी
(d) उद्योगों
उत्तर:
(b) वर्षा
प्रश्न 14.
एक खेत में एक कृषि वर्ष में उगाई जाने वाली फसल को क्या कहते हैं?
(a) शस्य गहनता
(b) खाद्यान्न
(c) खाद्य शस्य
(d) कुछ भी नहीं
उत्तर:
(a) शस्य गहनता
प्रश्न 15.
वर्षा ऋतु के पश्चात् शीतकाल में बोई जाने वाली फसलों को क्या कहते हैं?
(a) रबी की फसल
(b) खरीफ की फसल
(c) जायद की फसल
(d) कोई भी नहीं
उत्तर:
(a) रबी की फसल
प्रश्न 16.
चावल, मक्का, कपास, तिलहन कौर-सी फसलें हैं?
(a) रबी
(b) खरीफ
(c) जायद
(d) कोई भी नहीं
उत्तर:
(b) खरीफ
प्रश्न 17. भारत का जावा किस क्षेत्र को कहा जाता है?
(a) रुड़की
(b) गोरखपुर
(c) शाहजहाँपुर
(d) बरेली
उत्तर:
(b) गोरखपुर
प्रश्न 18.
चाय उत्पादन के लिए कितने तापमान की आवश्यकता है?
(a) 25°C से 30°C
(b) 30°C से 40°C
(c) 50°C से 60°C
(d) 5°C से 15°C
उत्तर:
(a) 25°C से 30°C
प्रश्न 19.
“बीटल’ नामक कीड़ा किस फसल के बागान में लगता है?
(a) रबड़
(b) कपास
(c) गन्ना
(d) कहवा
उत्तर:
(d) कहवा
BSEB Textbook Solutions PDF for Class 12th
- BSEB Class 12 Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Human Geography Nature and Scope Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Human Geography Nature and Scope Book Answers
- BSEB Class 12 Geography The World Population Distribution Density and Growth Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography The World Population Distribution Density and Growth Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Population Composition Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Population Composition Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Human Development Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Human Development Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Primary Activities Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Primary Activities Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Secondary Activities Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Secondary Activities Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Tertiary and Quaternary Activities Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Tertiary and Quaternary Activities Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Transport and Communication Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Transport and Communication Book Answers
- BSEB Class 12 Geography International Trade Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography International Trade Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Human Settlements Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Human Settlements Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Population Distribution Density Growth and Composition Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Population Distribution Density Growth and Composition Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Migration Types Causes and Consequences Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Migration Types Causes and Consequences Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Human Development Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Human Development Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Human Settlements Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Human Settlements Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Land Resources and Agriculture Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Land Resources and Agriculture Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Water Resources Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Water Resources Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Mineral and Energy Resources Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Mineral and Energy Resources Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Manufacturing Industries Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Manufacturing Industries Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Planning and Sustainable Development in Indian Context Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Planning and Sustainable Development in Indian Context Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Transport And Communication Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Transport And Communication Book Answers
- BSEB Class 12 Geography International Trade Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography International Trade Book Answers
- BSEB Class 12 Geography Geographical Perspective on Selected Issues and Problems Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Geography Geographical Perspective on Selected Issues and Problems Book Answers
0 Comments:
Post a Comment