BSEB Class 11 Hindi बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर कुमार गंधर्व Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Hindi बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर कुमार गंधर्व Book Answers |
Bihar Board Class 11th Hindi बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर कुमार गंधर्व Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Hindi बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर कुमार गंधर्व |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 11th Hindi बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर कुमार गंधर्व Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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Bihar Board Hindi Book Class 11 Pdf Chapter 4 प्रश्न 1.
लता मंगेशकर की आवाज सुनकर लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
जब लेखक की रेडियों पर पहले-पहल लता मंगेशकर की आवाज सुनाई पड़ी तो उन्हें उस स्वर में एक दुर्निवार आकर्षण प्रतीत हुआ। स्वर का जादुई प्रभाव उन्हें बरबस अपनी ओर खींच ले गया। वे विस्मय-विमुग्ध हो उसके श्रवण-मनन में तन्मय-तल्लीन हो गये।
Class 11 Hindi Book Bihar Board Chapter 4 प्रश्न 2.
‘लता मंगेशकर ने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है। संगीत की लोकप्रियता, उसका प्रसार और अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को ही देना पड़ेगा।’ क्या आप इस कथन से सहमत हैं? यदि हाँ, तो अपना पक्ष प्रस्तुत करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में महान् गायक और संगीत मनीषी कुमार गंधर्व ने विलक्षण गायिका, स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर की गानविद्या के विभिन्न पक्षों पर सूक्ष्मतापूर्वक विचार किया है और संगीत क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदानों को उद्घाटित किया है। इस क्रम में उनका स्पष्ट अभिमत है कि अदभूत और अपूर्व गायिका लतामंगेशकर में नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है। उसकी लोकप्रियता, उसके प्रसार और जनरुचि के विकास का सर्वाधिक श्रेय उन्हें ही है।
लेखक का उपर्युक्त मंतव्य हमें सर्वथा सार्थक और समीचीन प्रतीत होता है। यद्यपि लता से पहले भी अनेक अच्छी गायिकाएं हुई और उनमें नूरजहाँ जैसी श्रेष्ठ चित्रपट संगीत गायिका भी हों, पर लता के आगमन से चित्रपट संगीत की लोकप्रियता में अप्रत्याशित अभिवृद्धि हुई। साथ ही इससे शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों का दृष्टिकोण भी बदला। लता के संगीत के प्रभाव से नन्हे-मुन्ने बच्चे भी अब स्वर में गाते-गुनगुनाते हैं। वास्तव में लता का स्वर ही ऐसा है, जिसे निरंतर सुनते रहने से सुननेवाला सहज रूप से अनुकरण करने लगता है।
लता मंगेशकर ने चित्रपट संगीत को काफी ऊँचाई दी है, जिससे लोगों के कनों की सुन्दर-सुन्दर स्वर लहरियाँ सुनाई पड़ रही हैं। संगीत के विविध प्रकारों से उनका परिचय और प्रेम बढ़ रहा है। साधारण लोगों में भी संगीत की सुक्ष्मता की समझ आ रही है। इन सारी बातों के लिए निस्संदिग्ध रूप से लता भंगेशकर ही श्रेय की योग्य अधिकारिणी हैं।
Class 11th Hindi Book Bihar Board Chapter 4 प्रश्न 3.
शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में क्या अंतर है? आप दोनों में किसे बेहतर प्रानते हैं, और क्यों? उत्तर दें।
उत्तर-
महान गायक एवं संगीत मनीषी कुमार गंधर्व ने शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत सष्ट पार्थक्य माना है और दोनों की पारस्परिक तुलना को निरर्थक एवं निस्सार बताया है।
शास्त्रीय संगीत का स्थायीभाव जहाँ गंभीरता है, वहीं जलदय और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुण है। चित्रपट संगीत का ताल जहाँ प्राथमिक अवस्था का ताल होता है, तहाँ शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत में विद्यमान होता है। चित्रपट में आधे तालों का उपयोग किया जाता है, उसकी लयकारी अपेक्षाकृत आसान होती है। इस प्रकार, शास्त्रीय संगीत जहाँ नियमानुरूपता में संगीत की उच्च एवं गंभीर अवस्था से संबंध रखता है, वहाँ चित्रपट संगीत की संभावित उन्मुक्तता में विचरण करता है।
बेजोड़ गायिका : लता मंगेशकर लेखक परिचय कुमार गंधर्व (1924-1992)
भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान् गायक एवं संगीतज्ञ कुमार गंधर्व का जन्म 8 अप्रैल, 1924 ई. को कर्नाटक के गेलगाँव जिलान्तर्गत सुलेभावी ग्राम में हुआ था। उनका मूल नान शिवपुत्र कोमकली था, जब से श्री गुरुकुल स्वामी ने उन्हें देवमायक गंधर्व का अवतार बताया, तब से वे कुमार गंधर्व के नये नाम से ही प्रसिद्ध हो गये। उनके पिता सिद्धरमैय्या कोमकली भी एक अच्छे गायक और कोमकली मठ के प्रधान थे। बचपन से ही अपने पिता और परिवेश से प्राप्त नैसर्गिक गायन संस्कारों के बल पर कुमार गंधर्व ने अपनी गायन प्रतिभा से संगीतज्ञों को विस्मय-विमुग्ध कर दिया था।
उन्होंने 11 वर्षों तक महाराष्ट्र के संगीताचार्य प्रो. बी. आर. देवधर तथा प्रसिद्ध गायिका एवं संगीत गुरु अंजनीबाई से संगीत की शिक्षा पाई। 1947 से 52 तक वे बुरी तरह अस्वस्थ रहे। स्वास्थ्य संबंधी कारणों से वे मध्यप्रदेश के देवास नामक स्थान पर सपरिवार रहते हुए यद्यपि औपचारिक रूप में संगीत सभाओं से कट-से गये, पर संगीत संबंधी उनकी अन्वेषी प्रतिभा ओर कल्पना रुग्णावस्था में भी निरंतर सक्रिय रही। उनका निधन 1992 ई. में हुआ।
कोई-कोई यद्यपि कुमार गंधर्व को संगीत क्षेत्र में परंपराभंजक विद्राही के रूप में देखते रहे, किन्तु वास्तव में वे एक स्वच्छंद गायक थे। उन्होंने शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में भी अनेक रे साहसपूर्ण प्रयोग किये हैं। यद्यपि औपचारिक रूप से उनका संबंध ग्वालियर घराने से था, तथा वे गायकी को संगीत घरानों में ही सीमित रखने के पक्ष में कदापि न थे। वे संगीत में स्वाभाविक रूप से सार्वभौम विशेषताओं और मूल्यों के पक्षधर थे।
वस्तुतः उनकी गायकी की अपनी विशिप.. शैली थी, जिसमें शास्त्रीय और लोक शैली का अद्भुत मिश्रण था। उनकी स्पष्ट मान्यता : कि शास्त्रीय संगीत को नित्य नूतन और स्फूर्तिमय बने रहने के लिए लोक संगीत के नैसर्गिक स्रोत में संबद्ध रहना आवश्यक है। ऐसा होकर ही वह रूढ़ और वह रूढ़ और एक रस हाने से बचा रह सकता है। लोक संगीत के आधार पर कुमार गंधर्व ने नए-नए रागों की खोज और रचना भी की यथा-अहिमोहिनी, मालवती, निंदयारी, लग्नगंधार, भावमत भैरव, सहेली, तोड़ी आदि।
वस्तुतः कुमार गंधर्व 20वीं शती के उत्तरार्द्ध में हिंदुस्तानी शैली के भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान् गायक और संगीत मनीषी थे। उनकी सर्वप्रमुखी रचना ‘अनूप राग विलास’ है। इसके अतिरिक्त उनके अनेक लेख, निबंध और टिप्पणियाँ, पत्र-पत्रिकाओं में यत्र-तत्र बिखरी हैं और अनेक म्यूजिक कंपनियों द्वारा उनके गान के रिकार्ड तथा कैसेट भी जारी किये गये हैं। उन्होंने अपनी विलक्षण संगीत-प्रतिभा के बलपर अनेक पुरस्कार, सम्मान और अलंकरण प्राप्त किये थे। वे भारत सरकार की संगीत नाटक अकादमी के सदस्य तथा ‘भारत भवन’ भोपाल के स्थानीय सदस्त थे। उन्हें राष्ट्रपति ने ‘पदनभूपण एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने डी. लिट् की उपाधि प्रदान कर सम्मानित-विभूषित किया था। इस प्रकार भारतीय संगीत संसार में कुमार गंधर्व एक अविस्मरणीय एवं आदरणीय नाग है।
बेजोड़ गायिका : लता मंगेशकर पाठ का सारांश
हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘बेजोड़ गायिका : लता मंगेशकर’ के लेखक प्रख्यात गायक और संगीत मनीषी कुमार गंधर्व है। उन्होने इस पाठ में हमारे समय की अप्रतिम गायिका लता मंगेशकर की गायन-कला का बड़ी बारीकी से विवचेन-विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इस प्रकार यह पाठ एक महान् गायक द्वारा दूसरी महान गायिका पर लिखित होने के कारण विशेष महत्वपूर्ण है।
पाठ का आरंभ बड़ा ही रोचक, आकर्षक और जिज्ञासावर्द्धक है। लेखक एक दिन रेडियों सुन रहे थक कि अचानक उन्हें एक अद्वितीय स्वर सुनाई पड़ा। यह स्वर उनके मर्म को छू गया। वे मंत्रमुग्ध हो उस स्वर को सुनते रहे। गाना सामाप्ति पर जब गायिका का नाम घोषित हुआ तो वे दंग रह गये। वह जादुई स्वर लता मंगेशकर का था। लेखक को स्वाभाविक रूप से लता के पिता सुप्रसिद्ध दीनानाथ मंगेशकर याद आ गये।
लेखक ने आगे बताया है कि वह गाना ‘बरसात’ फिल्म के पहले की किसी फिल्म का था। तब से लता निरंतर गाती चली आ रही हैं और आज तो वे इस क्षेत्र में शीर्ष पर विराजमान हैं। यद्यपि उनसे पूर्व प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ का चित्रपट संगीत में अपना विशिष्ट स्थान था, पर बाद में आकर भी लता उनसे कहीं आगे निकल गई। लेखक की निभ्रांत स्थापना है कि भारतीय गायिकाओं में लता अद्वितीय हैं, उनके समान कोई दूसरी गायिका नहीं हुई। अपनी इस स्थापना की पुष्टि में लेखक बड़ी बारीकी से और विस्तारपूर्वक लता मंगेशकर की गायन-कला की विशिष्टताओं को उद्घाटित किया है और संगीत क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदानों को मूल्यांकित करने का प्रयास किया है।
लेखक के अनुसार लता मंगेशकर के कारण चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई। इतना ही नहीं, लोगों का शास्त्रीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण भी परिवर्तित हुआ है। उनके जादुई प्रभाव से छोटे-छोटे बच्चे भी अब स्वर में गुनगुनाते हैं। संक्षेप में कहें तो लता ने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है और साधारण मनुष्य की संगीत विषयक अभिरुचि में अभिवृद्धि की है।
लेखक ने लता. की लोकप्रियता के कारणों की चर्चा के क्रम में उनके गीतों में मौजूद गानपन को सर्वप्रमुख माना है। दूसरी विशेषता के रूप में उनके स्वरों की निर्मलता की बात कही गई है। इसके अतिरिक्त नादमय उच्चारण भी लता के गाने की एक मुख्य विशेषता है। इसी क्रम में लेखक द्वारा यह बात उठायी गई कि प्रायः लोग लता के गाने में करुण रस का प्रभावशाली प्रकटीकरण पाते हैं, पर सच यह है कि उन्होने उस रस के साथ उतना न्याय नहीं किया है। लेखक की दृष्टि में लता के गायन में एक और भारी कमी यह है कि उनका गाना सामान्यतः ऊँची पट्टी में रहता है।
लेखक के अनुसार यह प्रश्न बेतूका है कि शास्त्रीय गायन में लता का क्या स्थान है? इसी क्रम में उन्होंने शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत के वैषम्यों को स्पष्ट किया है। वे मानते हैं कि संगीत चाहे जिस प्रकार का हो, उसका महत्व रसिकों को आनंद प्रदान करने की सामर्थ्य पर निर्भर है। आगे लेखक ने चित्रपट तों के कारण संगीत क्षेत्र में आये परिवर्तनों और उसके सामयिक महत्व के बिन्दुओं को भरसक स्पष्ट करने का प्रयास किया है। वे स्पष्ट मानते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है।
वस्तुत: संगीत का क्षेत्र अत्यंत विस्तीर्ण हैं, जिसमें नित्य नयी-नयी बातों की अन्वेषण और उद्भावना की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। निष्कर्ष रूप में लेखक का यह अभिमत स्थापित हुआ है कि लता मंगेशकर चित्रपट संगीत के क्षेत्र में वास्तव में अनभिषिक्त साम्राज्ञी हैं। अन्य गायक-गायिकाओं से विलग एवं विशिष्ट लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर विरजमान हैं। देश ही नहीं, विदेशों में भी लोग उनका गाना सुनकर विमुग्ध हो उठते हैं। यह हमारा परम सौभाग्य है कि वे हमारे अपने हैं, अपने देश के हैं।
बेजोड़ गायिका : लता मंगेशकर कठिन शब्दों का अर्थ
अद्वितीय-अनुपम। चित्रपट-सिनेमा। विलक्षण-अद्भूत, अपूर्व। हुकमुशाही-एकाधिकार। अभिजात संगीत-शास्त्रीय संगीत। चौकस वृत्ति-सावधानी। अनभिषिक्त-जिसका अभिषेक अभी नहीं हुआ हो, बेताज। अलक्षित-जिसे देखा-परख न गया हो। तन्मयता-लीन होने का भाव। सितारिए-सितार बजाने वाला। कोकिला-कोयल जैसी मीठे स्वर वाली। अभिरुचि-पसंद। दिग्दर्शक-दिशा दिखाने वाला, डायरेक्टर। रंजक-प्रसन्न करने वाला। अवलंबित-आश्रित। सुसंगत-संगतिपूर्ण, मेल का। अव्वल दर्जे का-ऊँचे या प्रथम स्तर का। रसोत्कटता-रस की प्रधानता, तीव्र रसमयता। कौतुक-कुतूहल। निर्जल-बिना जल के, रूखा। असंशोधित-संशोधन के। अदृष्टपूर्व-जो पहले नहीं देखा गया हो। शताब्दी-सौ वर्ष।
महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या
1. जिस प्रकार मनुष्यता हो तो मनुष्य वैसे ही गानपन हो तो वह संगीत है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्ति कुमार गंधर्व रचित आलेख से ली गयी है। इस सूक्ति वाक्य में कुमार गन्धर्व ने कहना चाहा है कि मानवीय गुणों की वह विशेषता जो दूसरों को प्रभावित करती है या दूसरों के काम आती है व मनुष्यता कहलाती है। इस मनुष्यता से जो युक्त है वही मनुष्य है शेष लोग तन से मनुष्य हैं गुण से पशु। इसी तरह संगीत की पहचान गानपन है। गानपन से तात्पर्य गाने का वह अंदाज जो एक सामान्य आदमी को भी आकृष्ट करके भाव विभोर कर दे, झूमा दे। इस गान-पन के नहीं होने पर संगीत नीरस और रचना का कंकाल भर होता है।
कंकाल पर ही शरीर खड़ा होता है लेकिन कंकाल के ऊपर चढ़े माँस और सुडौल आकार प्रकार से सुन्दरता का बोध होता कंकाल से नहीं। अतः गाने का अंदाज और श्रोता को विभोर करने की क्षमता ही गानपन है और इसी से संगीत की पहचान होती है, ताल, लय, मात्रा, स्वर और राग-रागिनियाँ संगीत का कंकाल है संगीत का सौन्दर्य नहीं। संगीत का सौन्दर्य तो भाव विभोर करने की क्षमता ही है।
2. जहाँ गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायी भाव है, वहीं जलद लय और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म है।
व्याख्या-
लता मंगेशकर पर लिखित कुमार गंधर्व के लेख से यह पंक्ति ली गयी है। इसमें लेखक ने शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत के एक अन्तर की ओर संकेत किया है। लेखक के अनुसार राग-रागिनियों के अनुसार स्वर लिपि में आबद्ध तथा ताल, लय, मात्रा आदि से युक्त होने के कारण शास्त्रीय संगीत पूरी तरह अनुशासित होता है। इस अनुशासन के कारण और केवल पारखी लोगों के ही मन पर प्रभाव डालने की सीमा के कारण लेखक ने गंभीरता को शास्त्रीय संगीता का विशिष्ट लक्षण माना है। चूंकि यह लक्षण अपरिवर्तनशील होता है इसलिए इसे स्थायी भाव कहा है।
इसके विपरीत चित्रपट संगीत की दो विशेषताओं की ओर संकेत किया है। प्रथम उसमें जलद की सत्ता होती है। जलदलय का अर्थ होता है द्रुत या तेज लय। संगीत में तीन लय होती है। प्रथम विलम्बित अर्थात् धीमी, द्वितीय द्रुत अर्थात् तेज और तृतीय मध्यम अर्थात् द्रुत और धीमी के बीच की स्थितवाली। चित्रपट संगीत में तेज लय वाले गाने होते हैं जो अपनी आवेशपूर्ण शक्ति से श्रोता को बहा ले जाते हैं।
दूसरी विशेषता है चपलता। इसके कारण तरह-तरह के भाव तुरंत-तुरंत परिवर्तित होकर श्रोता को हल्केपन की मिठास से कभी गुदगुदाते है, कभी चंचलता पैदा करते हैं और कभी मनोदशा में परिवर्तन लाते है। दूसरे शब्दों में कह सकते है कि गंभीरता दो कारण शास्त्रीय संगीत सर्व स्वीकृत नहीं होता जबकि तीव्र गति और चंचलता के कारण चित्रपट संगीत अधिक पसन्द किया जाता है।
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