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Monday, June 27, 2022

BSEB Class 10 Hindi Godhuli Chapter 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Hindi Godhuli Chapter 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ Book Answers

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Bihar Board Class 10th Hindi Godhuli Chapter 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 10th
Subject Hindi Godhuli Chapter 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 10 Hindi अति सूधो सनेह को मारग है Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

अति सूधो सनेह को मारग है व्याख्या Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
कवि प्रेममार्ग को अति सूधों क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर-
क्रवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताए हैं। ये कहते हैं कि प्रेम मार्ग पर चलना सरल है। इस पर चलने के लिए बहुत अधिक छल-कपट की आवश्यकता नहीं है। प्रेम पथ पर अग्रसर होने के लिए अत्यधिक सोच-विचार नहीं करना पड़ता और न ही किसी बुद्धि बल की आवश्यकता होती है। इसमें भक्त की भावना प्रधान होती है। प्रेम की भावना से आसानी से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में सर्वस्व देने की बात होती है लेने की अपेक्षा लेश मात्र भी नहीं होता। यह मार्ग टेढ़ापन से मुक्त है। प्रेम में प्रेमी बेझिझक निःसंकोच भाव से सरलता से; सहजता से प्रेम करने वाले से एकाकार कर लेता है। इसमें दो मिलकर एक हो जाते हैं। दो भिन्न अस्तित्व नहीं बल्कि एक पहचान स्थापित हो जाती है।

अति सूधो सनेह को मारग Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
‘मन लेह पै देह छटाँक नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मन’ माप-तौल की दृष्टि से अधिक वजन का सूचक जबकि ‘छटाँक’ बहुत ही अल्पता का सूचक है। कवि कहते हैं कि प्रेमी में देने की भावना होती है लेने की नहीं। प्रेम में प्रेमी अपने इष्ट को सर्वस्व न्योछावर करके अपने को धन्य मानते हैं। इसमें संपूर्ण समर्पण की भावना उजागर किया गया है। प्रेम में बदले में लेने की आशा बिल्कुल नहीं होती।

अति सूधो सनेह को मारग है की व्याख्या Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 3.
द्वितीय छंद किसे संबोधित हैं और क्यों?
उत्तर-
द्वितीय छंद बादल को संबोधित है। इसमें मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना की अभिव्यक्ति है। मेघं का वर्णन इसलिए किया गया है कि मेघ विरह-वेदना में अश्रुधारा प्रवाहित करने का जीवंत उदाहरण है। प्रेमी अपनी प्रेमाश्रुओं की अविरल धारा के माध्यम से प्रेम प्रकट करता है। इसमें निश्छलता एवं स्वार्थहीनता होता है। बादल भी उदारतावश दूसरे के परोपकार के लिए अमृत रूपी जल वर्षा करता है। प्रेमी के हृदय रूपी सागर में प्रेम रूपी अथाह जल होता है जिसे इष्ट के निकट पहुँचाने की आवश्यकता है। बादल को कहा जा रहा है कि तुम परोपकारी हो। जिस प्रकार सागर के जल को अपने माध्यम से जीवनदायनी जल के रूप में वर्षा करते हो उसी प्रकार मेरे प्रेमाश्रुओं को भी मेरी इष्ट के लिए, उसके जीवन के लिए प्रेम सुधा रस के रूप में बरसाओ। विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को मेघ के माध्यम से अत्यंत कलात्मक । रूप में अभिव्यक्त किया गया है।

अति सूधो सनेह को मारग है का अर्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 4.
परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
परहित के लिए ही देह, बादल धारण करता है। बादल जल की वर्षा करके सभी प्राणियों को जीवन देता है। प्राणियों में सुख-चैन स्थापित करता है। उसकी वर्षा उसके विरह के आँसू के प्रतीक स्वरूप हैं। उसके विरह के आँसू, अमृत की वर्षा कर जीवनदाता हो जाता है। बादल शरीर धारण करके सागर के जल को अमृत बनाकर दूसरे के लिए एक-एक बूंद समर्पित कर देता है। अपने लिए कुछ भी नहीं रखता। वह सर्वस्व न्योछावर कर देता है। बदले में कुछ । भी नहीं लेता है। निःस्वार्थ भाव से वर्षा करता है। उसका देह केवल परोपकार के लिए निर्मित हुआ है।

प्रश्न 5.
कवि कहाँ अपने आसुओं को पहुंचाना चाहता है और क्यों ?
उत्तर-
कवि अपने प्रेयसी सुजान के लिए विरह-वेदना को प्रकट करते हुए बादल से अपने प्रेमाश्रुओं को पहुंचाने के लिए कहता है। वह अपने आँसुओं को सुजान के आँगन में पहुंचाना चाहता है। क्योंकि वह उसकी याद में व्यथित है और अपनी व्यथा की आँसुओं से प्रेयसी को भिगो देना चाहता है। वह उसके निकट आँसुओं को पहुंचाकर अपने प्रेम की आस्था को शाश्वत रखना चाहता है।

प्रश्न 6.
व्याख्या करें:
(क) यहाँ एक ते दूसरौ ऑक नहीं
(ख) कछु मेरियो पीर हिएं परसौ
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य पुस्तक के कवि घनानंद द्वारा रचित ‘अति सधो सनेह को मारग है” पाठ से उद्धृत है। इसके माध्यम से कवि प्रेमी और प्रेयसी का एकाकार करते हुए कहते हैं कि प्रेम में दो की पहचान अलग-अलग नहीं रहती, बल्कि दोनों मिलकर एक रूप में स्थित हो जाते हैं। प्रेमी निश्चल भाव से सर्वस्व समर्पण की भावना रखता है और तुलनात्मक अपेक्षा नहीं करता है। मात्र देता है, बदले में कुछ लेने की आशा नहीं करता है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हैं कि हे सुजान सुनो! – यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दूसरा चिह्न नहीं है। मेरे हृदय में मात्र तुम्हारा ही चित्र अंकित है।

(ख) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के पाठ्य-पुस्तक से कवि घनानंद-रचित “मो अॅसवानिहिं लै बरसौ” पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि परोपकारी बादल से निवेदन किये हैं कि मेरे हृदय की पीड़ा को भी कभी स्पर्श किया जाय और मेरे हार्दिक विरह-वेदना को प्रकट करने वाली आंसुओं को अपने माध्यम से मेरे प्रेयसी सुजान के आँगन तक वर्षा के रूप में पहुंचाया जाय।

प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कहते हैं कि हे घन ! तुम जीवनदायक हो, परोपकारी हो, दूसरे के हित के लिए देह धारण करने वाले हो। सागर के जल को अमृत में परिवर्तित करके वर्षा के रूप , में कल्याण करते हो। कभी मेरे लिए भी कुछ करो। मेरे लिए इतना जरूर करो कि मेरे हृदय को स्पर्श करो। मेरे दुःख दर्द को समझो, जानो और मेरे ऊपर दया की दृष्टि रखते हुए अपने परोपकारी स्वभाववश मेरे हृदय की व्यथा को अपने माध्यम से सुजान तक पहुँचा दो। मेरे प्रेमाश्रुओं को लेकर । सुजान की आँगन में प्रेम की वर्षा कर दो।

प्रश्न 7.
कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
अति सूधो सनेह को मारग है’ सवैया में कवि घनानंद स्नेह के मार्ग की प्रस्तावना करते हुए कहते हैं कि प्रेम का रास्ता अत्यंत सरल और सीधा है वह रास्ता कहीं भी टेढ़ा-मेढ़ा नहीं है और न उसपर चलने में चतुराई की जरूरत है। इस रास्ते पर वही चलते हैं जिन्हें न अभिमान होता है न किसी प्रकार की झिझक ऐसे ही लोग निस्संकोच प्रेम-पथ पर चलते हैं।

घनानंद कहते हैं कि प्यारे, यहाँ एक ही की जगह है दूसरे की नहीं। पता नहीं, प्रेम करनेवाले कैसा पाठ पढ़ते हैं कि ‘मन’ लेते हैं लेकिन छटाँक नहीं देते। ‘मन’ में श्लेष अलंकार है जिससे भाव की महनता और भाषा का सौंदर्य दुगुना हो गया है।

‘मो अँसुवानिहिं लै बरसौ’ सवैया में कवि घनानंद मेघ के माध्यम से अपने अंतर की वेदना को व्यक्त करते हुए कहते हैं-बादलों ने परहित के लिए ही शरीर धारण किया है। वे अपने आँसुओं की वर्षा एक समान सभी पर करते हैं। पुनः घनानंद बादलों से कहते हैं-तुम तो जीवनदायक हो, कुछ मेरे हृदय की भी सुध ली, कभी मुझ पर भी विश्वास कर मेरे आँगन में अपने रस की वर्षा करो।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्द कविता में संज्ञा अथवा विशेषण के रूप में प्रयुक्त है। इनके प्रकार बताएँ-
सूधो, मारग, नेकु, बॉक, कपटी, निसांक, पाटी, जथरथ, जीवनदायक, पीर, हियें, बिसासी
उत्तर-
सूधो – गुणवाचक विशेषण
मारग – जातिवाचक संज्ञा
नेक – गुणवाचक विशेषण
बॉक – भाववाचक संज्ञा
कपटी – गुणवाचक विशेषण
निसॉक – गुणवाचक विशेषण
पाटी – भाववाचक संज्ञा जथारथ
जथरथ – भाववाचक संज्ञा
जीवनदायक – गुणवाचक विशेषण
पीर – भाववाचक संज्ञा
हियें – जातिवाचक संज्ञा
बिसासी – गुणवाचक विशेषण

प्रश्न 2.
कविता में प्रयुक्त अव्यय पदों का चयन करें और उनका अर्थ भी बताएं।
उत्तर-
अति – बहुत
जहाँ – स्थान विशेष
नहीं – न
तति – छोड़कर
यहाँ – स्थानविशेष
नेक – तनिक भी

प्रश्न 3.
निम्नलिखित के कारक स्पष्ट करें-
सनेह को पारग प्यारे सुजान, मेरियो पीर, हिये, आँसुवानिहि
उत्तर-
सनेह को मार्ग – संबंध कारक
प्यारे सुजान – संबंध कारक
मारया पीर – अधिकारण कारक
हियें – अधिकरण कारक
आँसुवानिहि – करण कारक
मों – कर्म कारक

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झझक कपटी जे निसाँक नहीं।
‘घनआनंद’ प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरौ आँक नहीं।
तुम कौन धौं याटी पढ़े हौ कहौ मन लेह पै देह छटाँक नहीं।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता- अति सूधो सनेह को मारग है।
कवि- घनानंद।।

(ख) रीति काल के महान प्रेमी कवि घनानंद यहाँ प्रथम छंद में प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की प्रस्तावना करता है। प्रेम की विशेषताओं को तथा प्रेममार्ग की प्रवीणता को लाक्षणिक एवं मूर्तिमत्ता के स्वरूप का वर्णन किया है।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत सवैया में रीतिकालीन काव्य धारा के प्रमुख कवि घनानंद प्रेम की पीड़ा एवं प्रेम की भावना को सरल और स्वाभाविक मार्ग का विवेचन करते हैं। कवि कहते हैं कि प्रेम मार्ग अमृत के समान अति पवित्र है। इस प्रेम, रूपी मार्ग में चतुराई और टेढ़ापन अर्थात् कपटशीलता का कोई स्थान नहीं है। इस प्रेमरूपी मार्ग में जो प्रेमी होते हैं वह अनायास ही सत्य के रास्ते पर चलते हैं तथा उनके अंदर के अहंकार समाप्त हो जाते हैं। यह प्रेम रूपी मार्ग इतना पवित्र है कि इस पर चलने वाले प्रेमी के हृदय में लेशमात्र भी झिझक, कपट और शंका नहीं रहती है। घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे सुजान, सुनो ! यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दूसरा चिह्न नहीं है। तुम क्या कोई प्रेम रूपी पुस्तक पढ़े हो? तो कहो, क्योंकि प्रेम रूपी पुस्तक पढ़ने से यही सीख मिलती है कि प्रेम दिया जाता है और उसे देने के बदले एक छटाँक भी कुछ नहीं लिया जाता है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत छंद में रीति मुक्त धारा के प्रसिद्ध कवि घनानंद प्रेम के मार्ग को अमृत के समान पवित्र बतलाया है। इसमें निष्कपट, निश्छल और अहंकार रहित प्रेम का स्वाभाविक वर्णन किया है। एक प्रेमी ही प्रेम की पवित्रता को समझ सकता है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) यह कविता सवैया छंद में रचित है।
(ii) श्रृंगार इसकी परिपक्वता के कारण माधुर्य गुण की झलक प्रशंसनीय है।
(iii) यहाँ स्वाभाविक प्रेम के वर्णन के कारण मनोवैज्ञानिकता का अच्छा दर्शन होता है।
(iv) प्रेम का वर्णन में जो भाव और भाषा होना चाहिए उसका कलात्मक रूप व्यक्त हुआ है।
(v) सवैया छन्द के कारण कविता सम्पूर्ण संगीतमयता का रूप धारण कर ली है।
(vi) अलंकार योजना की दृष्टि से रूपक और अलंकार की छटा प्रशंसनीय है।

2. परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथारथ द्वै दरसौ।
निधि-नरी सुधा की समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ।।
‘घनआनंद’ जीवनदायक हासै कळू पेरियौ पीर हिएँ परसौ।
कबहूँ वा बिसासी सुजान के आँगन मौ अँसुवानिहिं लै बरसौ॥

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखिए।
(ग) पद का सरलार्थ लिखिए।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क)कविता- मो अँसुवानिहिं लै बरसौ।
कवि-घनानंद।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत सवैये छंद में रीति कालीन काव्य धारा के प्रख्यात कवि घनानंद मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यन्त कलात्मक रूप में अभिव्यक्त करते हैं। बादल की उदारता को अपने प्रेम की पीड़ा में सहयोग देने के लिए संबोधनात्मक शैली में वर्णन करते हैं।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत छंद में कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे बादल! मेरे आँसूरूपी प्रेम के जल को बरसाओ। हे बादल तुम इतने उदारवादी हो कि तुम्हारा जीवन हमेशा दूसरों के हित के लिए समर्पित रहता है। दूसरों के लिए ही जल बरसाते हो। अपने जीवन के भंडार को अमृत के समान पवित्र करो ओर सभी प्रकार से सज्जनता के गुणों को प्रकट करो। तुम्हारी दृष्टि के जल में मेरे विरह वेदना के आँसू दिखाई पड़े। घनानंद कवि कहते हैं कि हे जीवनदायक तुम प्रेम रूपी बादल बनकर आँसू रूपी वियोग रस को बरसो जिससे मेरी प्रेम वेदना समाप्त होगी। पुनः अपनी प्रेयषी सुजान की ओर संकेत करते हुए अपने विरह वेदना को कलात्मक रूप में व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हे बादल तुम मेरे बहुत विश्वासी हो इसलिए मेरे सुजान के आँगन में जाकर मेरे आँसू रूपी जल को निश्चित रूप से बरसाओ।

(घ) भाव सौंदर्य- इस अंश में कवि घनानंद प्रेम के पीर मालूम पड़ते हैं। इसी कारण के लिए बादल को सम्बोधित करते हैं और बादल को उदार कहते हैं।
(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) इसमें सवैया, छंद पूर्ण लाक्षणिकता के साथ व्यक्त हुआ है।
(ii) वियोग का सच्चा वर्णन ब्रजभाषा की कोमलता और सरलतापूर्ण सार्थक है।
(iii) यहाँ कहीं-कहीं तत्सम और तद्भव शब्दों के प्रयोग से कविता का भाव सटीक हो गया है।
(iv) सम्पूर्ण कविता संबोधनात्मक शैली में है।
(v) वियोग का सार्थक वर्णन के कारण प्रसाद गुण इस पद में विद्यमान है।
(vi) अलंकार योजना की दृष्टि से रूपक और अनुप्रास भाव को सार्थक करने में सहायक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
‘अति सूधो सनेह को मारग’ शीर्षक सबैया किसकी रचना है ?
(क) रसखान
(ख) घनानंद
(ग) गुरु नानक
(घ) मतिराम
उत्तर-
(ख) घनानंद

प्रश्न 2.
घनानंद किस सबैया के रचयिता हैं?
(क) मो अँसुवनिहिं लै बरसौ
(ख) मानुष हों तो
(ग) करील के कुंजन ऊपर वारौं
(घ) भूषण
उत्तर-
(क) मो अँसुवनिहिं लै बरसौ

प्रश्न 3.
घनानंद किस काल के कवि थे?
(क) भक्ति काल
(ख) आदि काल
(ग) रीति काल
(घ) आधुनिक काल
उत्तर-
(ग) रीति काल

प्रश्न 4.
घनानंद किस भाषा के कवि थे ?
(क) अवधी
(ख) खड़ी बोली
(ग) ब्रज भाषा
(घ) मैथिली
उत्तर-
(ग) ब्रज भाषा

प्रश्न 5.
‘सुजान सागर किसकी कृति है?
(क) रसखान
(ख) प्रेमधन
(ग) सुमित्रानंदन पंत
(घ) घनानंद
उत्तर-
(घ) घनानंद

प्रश्न 6.
‘घनानंद’ किस बादशाह के ‘मीर मंशी’ थे?
(क) जहाँगीर
(ख) शाहजहाँ
(ग) मुहम्मदशाह रंगीले
(घ) औरंगजेब
उत्तर-
(ग) मुहम्मदशाह रंगीले

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
घनानंद के सवैये और ……. बहुत प्रसिद्ध हैं।
उत्तर-
धनाक्षरी

प्रश्न 2.
घनानंद रीतिकाल के …………. कवि थे।
उत्तर-
उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छन्द

प्रश्न 3.
प्रेम का मार्ग अत्यन्त ……….. है।
उत्तर-
सरल

प्रश्न 4.
‘नरकाजहि देह को धारि’ का अर्थ दूसरों के लिए ……..धारण करता है।
उत्तर-
शरीर

प्रश्न 5. घनानंद प्रेम की ……….. के गायक थे।
उत्तर-
पीर

प्रश्न 6.
घनानंद का जन्म सन् ……. के आस-पास हुआ था।
उत्तर-
1689

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
किस कवि को साक्षात् रसमूर्ति कहा जाता है ?
उत्तर-
घनानंद को साक्षात् रसमर्ति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
घनानंद काव्य-रचना के अतिरिक्त किस कला में प्रवीण थे?
उत्तर-
घनानंद काव्य-रचना के अतिरिक्त गायन-कला में प्रवीण थे।

प्रश्न 3.
घनानंद किस मुगल बादशाह के मीर मुंशी थे?
उत्तर-
घनानंद मुगल बादशाह मुहम्मदशाह रंगीले के मीर मुंशी थे।

प्रश्न 4.
घनानंद की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर-
धनानंद को नादिरशाह के सैनिकों ने मार डाला।

प्रश्न 5.
घनानंद की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृति कौन-सी है?
उत्तर-
घनानंद की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृति है-‘सुजान सागर’

प्रश्न 6.
घनानंद की भाँति रीति मुक्तधारा के और कौन-कौन कवि हैं ?
उत्तर-
घनानंद की तरह रीति मुक्तधारा के अन्य कवि हैं-रसखान एवं भूषण आदि।

प्रश्न 7.
कवि सुजान कहकर किसे सम्बोधित करता है ?
उत्तर-
कहते हैं कवि घनानंद का ‘सुजान’ नामक नर्तकी से स्नेह था। अत: यह सम्बोधन उसे ही प्रतीत होता है।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
अति सुधौ सनेह को मारग है, जहाँ नेक सयानप बॉक नहीं।
तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झझुकै कपटी जे निसॉक नहीं।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक “अति सुधो सनेह को मारग है” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग सुजान और धनानंद के बीज के प्रेम प्रसंग से जुड़ा हुआ हैं। कवि करता है कि अति सरलता स्नेह का मार्ग है। पंथ है। यहां जरा-सी भी ठगई या चतुराई नहीं है, टेढ़ापन नहीं है। ओछी होशियारी नहीं है। यहाँ सत्य मार्ग पर चलना पड़ता है। यहाँ अपनों का भी त्याग करना पड़ता है। बिना शंका के यहाँ चलना पड़ता है। कहने का मूल भाव यह है कि प्रेम का, स्नेह का मार्ग छल छद्म मुक्त होता है। यहाँ बनावटीपन, सयानापन, टेढ़ापन, अहंकार या चतुराई नहीं रहती। यहाँ तो प्यार, प्रेम, अंतरंगता दिखायी पड़ती है, इस प्रकार स्नेह का मार्ग सदा से ही सरलता कर रहा है। निष्कपटता और सहजता का रहा है।

प्रश्न 2.
धन आनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तें दूसरी आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो कहौ मनलेह पैदेह छटाँक नहीं।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “अति सुधो सनेह को मारग है” नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग सुजान घनानंद के बीच के प्रेम प्रसंग है। कवि कहता है कि ऐ सुजान ! सुनो हमारे दिल में तो सिवा किसी दूसरे का स्थान ही नहीं है। केवल तुम ही तन-मन में बसी हुयी हो। लेकिन मैं तो तुम्हारी चतुरायी पर आश्चर्यचकित हूँ। तुमने कैसा पाठ पढ़ा है कि लेने को तो मन भर लेती हो और देने के वक्त छटांक का भी त्याग नहीं करती हो। इन पंक्तियों में , द्विअर्थ छिपा हुआ है। मन का ऐंद्रिय मन से भी संबंध है और मन से वजन वाले मन से भी है। इन पंक्तियों में सुजान की चतुराई और घनानंद की सरलता, सहजता का वर्णन मिलता है। सुजान के रूप-लावण्य पर कवि रीझ कर अपना सर्वस्व लुटा देता है, किन्तु सुजान की थाह नहीं मिलती अर्थात् उसके मन की गहरायी नहीं ज्ञात हो जाती है। यहाँ लौकिक प्रेम के साथ अलौकिक प्रेम का भी वर्णन किया गया है।

प्रश्न 3.
परकाजहि देह को धरि फिरौ पराजन्य जयारथ है दरसौ।
निधि-नीर सुधा की समान करौ सबही विधि सजनता सरसौ॥
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मौ असुवानिहिं लै बरसौ” काव्य पाठ से ली गाया से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग सुजान और घनानंद के बीच के प्रेम-प्रसंग से है।
कवि कहता है कि बादल परहित के लिए ही जल से वाष्प-वाष्प से बादल का रूप धरकर इधर-उधर फिरता है। इसमें उसकी यथार्थता झलकती है। जैसे सागर या नदियाँ अपने सुधारूपी जल से लोक, कल्याण के लिए बहती रहती है। इसमें सब तरह से सज्जनता ही दिखायी पड़ती है। सज्जनों का भी काम परहित करना ही है। इन पंक्तियों में घनानंदजी ने अपने जीवन के प्रेम-प्रसंग को प्रकृति के लोककल्याण रूपों से तुलना करते हुए उसके उपकार का वर्णन किया है। प्रकृति का रूप ही लोकहितकारी है ठीक उसी प्रकार सज्जन का भी जीवन होता है।

प्रश्न 4.
‘घनआनंद’ जीवनदायक हो कछु मेरियो पीर हिएँ परसौ।
कबहुँ वा बिसासी सजान के आँगन मो अॅसुवानिहि लै वरसौ॥
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के मौ अँसुवानिहिं ले बरसौ’ नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों के प्रसंग सुजान और घनानंद के प्रेम-प्रसंग में दिए गए उदाहरणों से है। कवि कहता है कि हे सुजान! तुम जीवनदायिनी शक्ति हो, कुछ मेरे हृदय की पीड़ा का भी स्पर्श करो। मेरी भी संवेदना को जानो, समझो। मेरे अन्तर्मन में तुम्हारे लिए जो प्रेम है, चाह है, भूख है, उसे भी तुम यथार्थ रूप में जानो। इन पंक्तियों में सुजान के प्रति अनन्य प्रेम-भावना प्रकट की गयी है। घनावेद जो सुजान के लिए अपनी सुध-बुध खो चुके हैं और सुजान को विश्वास ही नहीं होता।
कवि कहता है कि कभी भी उस विश्वासी सुजान के आँगन में मेरे आँसू बरसने लगेंगे और अपने अन्तर्मन की व्यथा को प्रकट करने लगेंगे।

अति सूधो सनेह को मारग है कवि परिचय

रीतियुगीन काव्य में घनानंद रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि हैं । इनका जन्म 1689 ई० के आस-पास हुआ और 1739 ई० में वे नादिरशाह के सैनिकों द्वारा मारे गये । ये तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले के यहां मीरमुंशी का काम करते थे। ये अच्छे गायक और श्रेष्ठ कवि थे । किवदंती है कि सुजान नामक नर्तकी को वे प्यार करते थे । विराग होने पर ये वृंदावन चले गये और वैष्णव होकर काव्य रचना करने लगे । सन् 1939 में जब नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तब उसके सिपाहियों ने मथुरा और वृंदावन पर भी धावा बोला । बादशाह का मीरमुंशी जानकर घनानंद को भी उन्होंने पकड़ा और इनसे जर, जर, जर (तीन बार सोना, सोना, सोना) माँगा । घनानंद ने तीन मुट्ठी धूल उन्हें यह कहते हुए दी, ‘रज, रज, रज’ (धूल, धूल, धूल) । इस पर क्रुद्ध होकर सिपाहियों ने इनका वध कर दिया।

घनानंद ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं। उनकी कविताओं में प्रेम की पीड़ा, मस्ती और वियोग सबकुछ है । आचार्य शुक्ल के अनुसार, “प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबाँदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ है।” वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदना सहता है, उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगे उठती हैं, उनका चित्रण घनानंद ने किया है। घनानंद वियोग दशा का चित्रण करते समय अलंकारों, रूढ़ियों का सहारा लेने नहीं दौड़ते, वे बाह्य चेष्टाओं पर भी कम ध्यान देते हैं । वे वेदना के ताप से मनोविकारों या वस्तुओं का नया आयाम, अर्थात् पहले न देखा गया उनका कोई नया रूप-पक्ष देख लेते हैं। इसे ही ध्यान में रखकर शुक्ल जी ने इन्हें ‘लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग वैचित्र्य’ का ऐसा कवि कहा जैसे कवि उनके पौने दो सौ वर्ष बाद छायावाद काल में प्रकट हुए।

घनानंद की भाषा परिष्कृत और शुद्ध ब्रजभाषा है । इनके सवैया और घनाक्षरी अत्यंत प्रसिद्ध हैं । घनानंद के प्रमुख ग्रंथ हैं – ‘सुजानसागर’, ‘विरहलीला’, ‘रसकेलि बल्ली’ आदि।

रीतिकाल के शास्त्रीय युग में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद पथ पर चलने वाले महान प्रेमी कवि घनानंद के दो सवैये यहाँ प्रस्तुत हैं । ये छंद उनकी रचनावली ‘घनआनंद’ से लिए गए हैं। प्रथम छंद में कवि जहाँ प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की प्रस्तावना करता है, वहीं द्वितीय छंद में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यंत कलात्मक रूप में अभिव्यक्ति देता है । घनानंद के इन छंदों से भाषा और अभिव्यक्ति कौशल पर उनके असाधारण अधिकार को भी अभिव्यक्ति होती है ।

अति सूधो सनेह को मारग है Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

रीतियुगीन काव्य में धनानंद रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि हैं। इनकी कविताओं में प्रेम की पीड़ा, मस्ती और वियोग सबकुछ है। वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदन सहता है, उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगे उठती हैं, उनका चित्रण धनानंद ने किया है। धनानंद ने वियोग दशा का चित्रण करते समय ‘अलंकारों रूढ़ियों का सहारा न लेकर मनोविकारों या वस्तुओं का नया आयाम दिया है। वस्तुतः धनानंद ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं।

रीतिकाल के शास्त्रीय युग में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद पथ पर चलने वाले महान प्रेमी कवि धनानंद के दो सवैये पस्तुत पद में है। प्रथम छंद में कवि जहाँ प्रेम के सीधे सरल और निश्चय मार्ग की प्रस्तावना करता है। प्रेम एक ऐसा अमृतमय मार्ग है जहाँ चातुर्य की टेढ़ी-मेढ़ी रूपरेखा नहीं है। इसमें छल उपर श्लेष-मात्र भी नहीं है। मन के मनभावों को अनायास प्रदर्शित करने में सहजभाव उत्पन्न हो जाता है।

दूसरे पद में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यन्त कलात्मक रूप में अभिव्यक्ति देता है। बादल अपने लिए नहीं दूसरों के लिए शरीर धारण करता है। कवि का विरह-चित्त मिलन के उत्कौठत है। जल से परिपूर्ण बादल अपनी वेदन के साथ एक नया भाव जोड़ देता है। जीवन की अनुभूति प्रेम की सहभागिता में है। गगन की सार्थकता में घाटधन्न से है।

शब्दार्थ

नेकु : तनिक भी
सयानप : चतुराई
बाँक : टेढ़ापन
आपन पौ : अहंकार, अभिमान
झझक : झिझकते हैं ।
निसांक : शंकामुक्त
आक : अंक, चिह्न
परजन्य : बादल
सुधा : अमृत
सरसी : रस बरसाओ
परसौ : स्पर्श करो
बिमासी : विश्वासी
मन : माप-तौल का एक पैमाना
छटाँक : माप-तौल का एक छोटा पैमाना


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