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BSEB Class 10 Hindi Godhuli Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Hindi Godhuli Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें Book Answers |
Bihar Board Class 10th Hindi Godhuli Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 10th |
Subject | Hindi Godhuli Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 10th Hindi Godhuli Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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बोध और अभ्यास
पाठ के साथ
भारत से हम क्या सीखें Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
समस्त भूमंडल में सर्वविद सम्पदा और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण देश भारत है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर-
मरत ऐसा देश है, जहाँ मानव मस्तिष्क की उत्कृष्टतम उपलब्धियों का सर्वप्रथम साक्षात्कार हुआ है। यहाँ जीवन की बड़ी-से-बड़ी समस्याओं के ऐसे समाधान ढूँढ निकाले गये हैं जो विश्व के दार्शनिकों के लिए चिन्तन का विषय है। भारत में भूतल पर ही स्वर्ग की छटा बिखरती है। यहाँ की धरती प्राकृतिक सौंदर्य, मानवीय गुण, मूल्यवान रत्न, प्राकृतिक सम्पदा एवं मनीषियों के आध्यात्मिक चिंतन से परिपूर्ण है। यहाँ जीवन को सुखद बनाने के लिए उपयुक्त ज्ञान एवं वातावरण का सान्निध्य मिलता है जो भूमंडल में अन्यत्र नहीं है।
भारत से हम क्या सीखें का सारांश Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन कहाँ हो सकते हैं और क्यों ?
उत्तर-
लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन गाँवों में हो सकते हैं। भारत की सारी परंपरा का आधार ऋषि और कृषि पद्धति है। गाँव में ग्राम पंचायत व्यवस्था देखने को मिलेंगे। कृषि व्यवस्था मंदिर व्यवस्था आदि। जो केवल में मौलिक रूप से देखने को नहीं मिलेंगे।
भारत से हम क्या सीखें प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 3.
भारत को पहचान सकने वाली दृष्टि की आवश्यकता किनके लिए वांछनीय है और क्यों?
उत्तर-
भारत को पहचान करने वाली दृष्टि भारतीय सविल सेवा हेतु चयनित युवा अंग्रेज अधिकारियों के लिए है। भारत में पहुंचने के बाद वहाँ से ज्ञान, सामाजिक व्यवस्थाएँ, विज्ञान आदि का संग्रह और उन्नयन करने की दृष्टि हो। सर विलियम जोन्स की तरह नए युवा अधिकारी भी स्वप्नदर्शी हों और गंगा, सिन्धु के मैदानों में संग्रहणीय वस्तु एवं विद्या इंगलैण्ड लावें।
भारत से हम क्या सीखें क्वेश्चन आंसर Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 4.
लेखक ने किन विशेष क्षेत्रों में अभिरूचि रखने वाले के लिए भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान आवश्यक बताया है ?
उत्तर-
लेखक ने कहा है कि आपकी अभिरूचि की पैठ किसी विशेष क्षेत्रों में है तो भारत में आपको पर्याप्त अवसर मिलेंगे। लोकप्रिय शिक्षा से सम्बद्ध हो, या उच्च शिक्षा, चाहे संसद में प्रतिनिधित्व की बात हो अथवा कानून बनाने की बात हो, चाहे प्रवास संबंधी कानून हो अथवा अन्य कोई कानूनी मसला, सीखने या सिखाने योग्य कोई बात क्यों न हो, भारत के रूप में आपको ऐसी प्रयोगशाला मिलेगी। जैसे-विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकती।
Bharat Se Hum Kya Sikhe Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 5.
लेखक ने वारेन हेस्टिंग्स से संबंधित किस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का हवाला दिया है और क्यों ?
उत्तर-
वारेन हेस्टिंग्स को वाराणसी के पास 172 दारिस नामक सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला था। उन्होंने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशक मंडल की सेवा में सोने के सिक्के यह समझकर भिजवा दिया कि यह एक ऐसा उपहार होगा जिसकी गणना उसके द्वारा प्रेषित सर्वोत्तम दुर्लभ वस्तुओं में की जाएगी। कंपनी के निदेशक उसका ऐतिहासिक महत्त्व नहीं समझ पाये और उन मुद्राओं को गला डाला। वारेन हेस्टिंग्स के लिए सबसे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण घटना था। फिर वह सोचा कि आगे से सावधानी रहे कि ऐतिहासिक वस्तुओं को बचाया जाय।
Bharat Se Ham Kya Sikhen Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 6.
लेखक ने नीतिकथाओं के क्षेत्र में किस तरह भारतीय अवदान को रेखांकित किया है?
उत्तर-
लेखक ने बताया है कि नीति कथाओं के अध्ययन-क्षेत्र में नवजीवन का संचार हुआ है। समय-समय पर विविध साधनों और मार्गों द्वारा अनेक नीति कथाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित रही हैं। भारत में प्रचलित कहावतों और दन्तकथाओं का प्रमुख स्रोत बौद्ध धर्म को माना जाने लगा है, किन्तु इसमें निहित समस्याएँ समाधान की प्रतीक्षा में हैं। लेखक ने एक उदाहरण देकर बताया है कि ‘शेर की खाल में गदहा’ वाली कहावत सबसे पहले यूनानी दार्शनिक प्लेटो के क्रटिलस में मिलती है। इसी तरह संस्कृत की एक कथा यूनान के एक नीति कथा से मिलती है। अर्थात् भारतीय नीति कथाएँ यूनान से कैसे जुड़ी यह एक शोध का विषय है।
Bharat Se Humne Kya Sikha Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 7.
भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक संबंध के प्राचीन प्रमाण लेखक ने क्या दिखाए हैं?
उत्तर-
लेखक के अनुसार यह असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो चुका है कि सोलोमन के समय में ही भारत, सीरिया और फिलीस्तीन के मध्य आवागमन के साधन सुलभ हो चुके थे। साथ ही . इन देशों के व्यापारिक अध्ययन करने पर कुछ संस्कृत शब्दों का प्रयोग मिलता है। इन संस्कृत शब्दों के आधार पर प्रमाणित होता है कि हाथी-दाँत, बन्दर, मोर और चन्दन आदि जिन वस्तुओं के ऑफिसर से निर्यात की बात बाइबिल में कही गयी है, वे वस्तुएँ भारत के सिवा किसी अन्य देश से नहीं लाई जा सकती। ऐतिहासिक अध्ययन से यह भी ज्ञात है कि दसवीं-ग्यारहवीं सदी में भी भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक सम्बन्ध बंद नहीं हुए थे।
प्रश्न 8.
भारत के ग्राम पंचायतों को किस अर्थ में और किनके लिए लेखक ने महत्त्वपूर्ण बतलाया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
लेखक युवा अंग्रेज अधिकारी जो भारतीय सिविल सेवा हेतु चयनित हुए थे उनके लिए भारत के ग्राम पंचायतों का महत्त्वपूर्ण अर्थ बतलाया है। – अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयों के निर्माण और विकास से सम्बद्ध प्राचीन युग के कानून की पुरातन रूपों के बारे में इधर जो अनुसंधान हुए हैं, उनके महत्त्व और वैशिष्ट्य को परख सकने की क्षमता प्राप्त करनी है, तो आपको इसके लिए आज भारत की ग्राम पंचायतों के रूप में इसके प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग अनायास ही मिल जाएगा। ..
प्रश्न 9.
धर्मों की दृष्टि से भारत का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत प्राचीन काल से ही धार्मिक विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ धर्म के वास्तविक उद्भव उसके प्राकृतिक विकास तथा उसके अपरिहार्य क्षीयमाण रूप का प्रत्यक्ष परिचय मिलता है। भारत वैदिक धर्म की भूमि है, बौद्ध धर्म की यह जन्मभूमि है, पारसियों के जरथुस्ट्र धर्म की यह शरण-स्थली है। आज भी यहाँ नित्य नये मत-मतान्तर प्रकट एवं विकसित होते रहते हैं। इस तरह से भारत धार्मिक क्षेत्र में विश्व को आलोकित करनेवाला एक महत्त्वपूर्ण देश है।
प्रश्न 10.
भारत किस तरह अतीत और सुदूर भविष्य को जोड़ता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में आप अपने-आपको सर्वत्र अत्यन्त प्राचीन और सुदूर भविष्य के बीच खड़ा पायेंगे। वहाँ आपको ऐसे सुअवसर भी मिलेंगे जो किसी पुरातन विश्व में ही सुलभ हो सकते हैं। आप आज की किसी भी ज्वलंत समस्या को ले लीजिए। वह समस्या चाहे लोकप्रिय शिक्षा से सम्बद्ध हो, या उच्च शिक्षा, चाहे संसद में प्रतिनिधित्व की बात हो अथवा कानून बनाने की बात हो, चाहे प्रवास संबंधी कानून हो अथवा अन्य कोई कानूनी मसला, सीखने या सिखाने योग्य कोई बात क्यों न हो, भारत के रूप में आपको ऐसी प्रयोगशाला मिलेगी जैसे विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकता।
प्रश्न 11.
मैक्समूलर ने संस्कृत की कौन-सी विशेषताएँ और महत्त्व बतलाये हैं ?
उत्तर-
संस्कृत की सबसे पहली विशेषता है इसकी प्राचीनता, क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा से भी संस्कृत का काल पुराना है। ज्यों ही इन भाषाओं के बीच में संस्कृत आ बैठी कि तत्काल लोगों को एक सही प्रकाश और गर्मी का अहसास होने लगा, और इसी से भाषाओं का पारस्परिक संबंध भी स्पष्ट हो गया। निश्चित ही संस्कृत इन सब भाषाओं की अग्रजा है।
प्रश्न 12.
लेखक वास्तविक इतिहास किसे मानता है और क्यों?
उत्तर-
किसी देश अथवा राज्य की प्राचीनकालीन इतिहास को जानने के लिए आवश्यक है कि पहले हम वहाँ की भाषा की प्राचीनता को जानें। यदि हम यह जानना चाहें कि आर्य लोग अनेक शाखाओं में विभक्त होने से पूर्व चूहे के बारे में जानते थे या नहीं, तो हमें आर्य भाषाओं के शब्दकोष देखने होंगे। भाषा के सहारे आर्यों के विभाजन से पूर्व की सभ्यता एवं सांस्कृतिक अवस्था को जाना जा सकता है। संस्कृत, ग्रीक और लैटिन इन तीनों भाषाओं के एक सामान्य मूल उद्गम-स्रोत तक पहुँचने के लिए हमें बहुत पीछे हटना होगा और पीछे हटकर हम उस . सम्मिलन स्थल पर पहुँच जाएंगे जहाँ से हिन्दू, ग्रीक, यूनानी आदि शक्तिशाली जातियाँ एक-दूसरी से पृथक् हुई थीं। अतीत के अध्ययन से हम पाते है कि आदि आर्य भाषा चिंतन-परम्परा के प्रवाहों के उतार-चढ़ाव से घिसनेवाली चट्टान रही है।
लेखक इसे ही वास्तविक अर्थों में इतिहास मानता है, क्योंकि यह एक ऐसा इतिहास है जो राज्यों, दुराचारों और उनके जातियों की क्रूरताओं की अपेक्षा कहीं अधिक ज्ञातव्य और पठनीय
प्रश्न 13.
संस्कृत और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन से पश्चात्य जगत् को प्रमुख लाभ क्या-क्या हुए?
उत्तर-
संस्कृत और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन के पश्चात् मानव जाति के बारे में हमारे विचार व्यापक और उदार ही नहीं बने हैं तथा लाखों-करोड़ों अजनबियों तथा वर्बर समझे जानेवाले लोगों का भी अपने ही परिवार के सदस्य की भाँति गले लगाना ही नहीं सीखे हैं, अपितु इसने मानव जाति के संपूर्ण इतिहास को एक वास्तविक रूप से प्रकट कर दिखाया है, जो पहले नहीं हो पाया था।
प्रश्न 14.
लेखक ने भारत के लिए नवागंतुक अधिकारियों को किसकी तरह सपने देखने । के लिए प्रेरित किया है और क्यों ?
उत्तर-
लेखक ने भारत के लिए नवागंतुक अधिकारियों को सर विलियम जेम्स की तरह सपने देखने के लिए प्रेरित किया है, क्योंकि उन्होंने इंग्लैंड से आरम्भ की हुई अपनी लम्बी समुद्र यात्रा की समाप्ति पर क्षितिज में प्रकट होते हुए भारत के तट का दर्शन करते हुए जो अनुभव किया था वह सुखद था। उन्होंने अनुभव किया था कि एशिया की यह भूमि नानाविध विज्ञान की धात्री, आनन्ददायक ललित कथा उपयोगी कलाओं की जननी, एक से एक बढ़कर शानदार कार्यकलापों ” की दृश्यभूमि, मानव प्रतिभा की जननी एवं धार्मिक विकास की केन्द्रभूमि तथा रीति-रिवाज, परम्पराओं, भाषा की दृष्टि विविधा के कारण सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखी जाने वाली पवित्र भूमि है।
प्रश्न 15.
लेखक ने नया सिकंदर किसे कहा है ? ऐसा कहना क्या उचित है ? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक ने नया सिकंदर भारत को समझने, जानने एवं सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करने हेतु भारत आनेवाले नवागंतुक, अन्वेषकों, पर्यटकों एवं अधिकारियों को कहा है। भारत विजय का सिकंदर ने स्वप्न देखा था। उसी प्रकार आज भी भारतीयता को निकट से जानने के नवीन स्वप्नदर्शी को आज का सिकंदर कहना अतिशयोक्ति नहीं है, यह उचित है। लेखक ने कहा है कि नए सिकंदर को यह सोचकर निराश नहीं हो जाना चाहिए कि गंगा और सिंध के पुराने मैदानों में अब उसके विजय करने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहा। आज भी अध्ययन, शोध, विश्व की विविध प्राचीनतम ज्ञान, विकास सूत्र, प्राच्य देशों के इतिहास और साहित्य के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक शानदार बड़ी-बड़ी अनेक विजय प्राप्त की जा सकती हैं। विश्व के सर्वांगीण विकास हेतु आज भी भारतीयता के सम्यक् ज्ञान की आवश्यकता को लेखक ने अनिवार्य बताया है। साथ-ही भारत में असीम संभावनाओं पर बल दिया है।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
निम्नांकित वाक्यों से विशेष्य और विशेषण पद चुनें –
(क) उत्कृष्टतम उपलब्धियों का सर्वप्रथम साक्षात्कार।
उत्तर-
उपलब्धियों, साक्षात्कार
विशेषण: – उत्कृष्टतम सर्वप्रथमा
(ख) प्लेटो और काण्ट जैसे दार्शनिकों का अध्ययन करनेवाले हम यूरोपियन लोग।
उत्तर-
विशेष्य – लोग
विशेषण – यूरोपियन, हम।
(ग) अगला जन्म तथा शाश्वत जीवन
उत्तर-
विशेष्य – जन्म, जीवन
विशेषण – अगला, शाश्वत।
(घ) दो-तीन हजार वर्ष पुराना ही क्यों, आज का भारत भी।
उत्तर-
विशेष्य- भारत
विशेषण- पुराना, आज, दो-तीन हजार वर्ष।
(ङ)भूले-बिसरे बचपन की मधुर स्मृतियाँ।
उत्तर-
विशेष्य- स्मृतियाँ, बचपन
विशेषण- मधुर, भूले-बिसरे।
(च) लाखों-करोड़ों अजनबियों तथा बर्बर समझे जानेवाले लोगों को भी।
उत्तर-
विशेष्य – लोगों
विशेषण – वर्बर, लाखों-करोड़ो।]
प्रश्न 2.
‘अग्रजा’ की तरह ‘जा’ प्रत्यय जोड़कर तीन-तीन शब्द बनाएँ
उत्तर-
अनुजा, भानुजा, भ्रातृजा।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित उपसर्गों से तीन-तीन शब्द बनाएँ
उत्तर-
प्र = प्रणाम, प्रसंग, प्रवाह निः .
नि = नि:धन, निःश्वास, नि:शेष
अनु = अनुभव, अनुगमन, अनुमान]
अभि = अभिज्ञान, अभिमान, अभिनंदन
विज = विज्ञान, विश्वास, विनाश
प्रश्न 4.
वास्तविक में ‘इक’ प्रत्यय है।
‘इक’ प्रत्यय से पाँच शब्द बनाएँ।
उत्तर-
नैतिक, मौलिक, पुरातात्विक, ऐतिहासिक, साहसिक।
गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर
1. सर्वविध सम्पदा और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण कौन-सा देश है, यदि आप मुझे इस भूमण्डल का अवलोकन करने के लिए कहें तो बलाऊँगा कि वह देश है-भारत। भारत, जहाँ भूतल पर ही स्वर्ग की छटा निखर रही है। यदि आप यह जानना चाहें कि मानव मस्तिष्क की उत्कृटतम उपलब्धियों का सर्वप्रथम साक्षात्कार किस देश ने किया है और किसने जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर विचार कर उनमें से कइयों के ऐसे समाधान ढूंढ निकाले हैं कि प्लेटो और काण्ट जैसे दार्शनिकों का अध्ययन करनेवाले हम यूरोपियन लोगों के लिए भी वे मनन के योग्य हैं, तो मैं यहाँ भी भारत ही का नाम लूंगा। और, यदि यूनानी, रोमन और सेमेटिक जाति के यहूदियों की विचारधारा में ही सदा अवगाहन करते रहनेवाले हम यूरोपियनों को ऐसा कौन-सा साहित्य पढ़ना चाहिए जिससे हमारे जीवन का अंतरतम परिपूर्ण, अधिक-सर्वांगीण, अधिक विश्वव्यापी, यूँ कहें कि सम्पूर्णतया मानवीय बन जाये, और यह जीवन ही क्यों, अगला जन्म तथा शाश्वत. जीवन भी सुधर जाये, तो मैं एक बार फिर भारत ही का नाम लूँगा।
प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) किस देश में भूतल परं स्वर्ग की छटा दिखती है ?
(ग) यूरोपियन के लिए चिंतन करने योग्य भूमि लेखक ने किसे माना है?
(घ) भारत किस विषय में परिपूर्ण कहा गया है ?
(ङ) भारत ने किसका साक्षात्कार सर्वप्रथम किया है ?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-भारत से हम क्या सीखें।
लेखक का नाम मैक्समूलर।
(ख) भारत की भूतल पर स्वर्ग की छटा दिखती है।
(ग) भारत-भूमि को।
(घ) सर्वविध सम्पदा और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण भारत को माना गया है।
(ङ) भारत ने मानव मस्तिष्क की उत्कृष्टतम उपलब्धियों का सर्वप्रथम साक्षात्कार किया
2. यदि आपके मन में पुराने सिक्कों के लिए लगाव है, तो भारतभूमि में ईरानी, केरियन, श्रेसियन, पार्थियन, यूनानी, मेकेडिनियन, शकों, रोमन और मुस्लिम शासकों के सिक्के प्रचुर परिणाम में उपलब्ध होंगे। जब वारेन हेस्टिंग्स भारत का गवर्नर जनरल था तो वाराणसी के पास उसे 172 दारिस नामक सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला था। वारेन हेस्टिंग्स ने अपने मालिक ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशक मंडल की सेवा में सोने के सिक्के यह समझकर भिजवा दिये कि यह एक ऐसा उपहार होगा जिसकी गणना उसके द्वारा प्रेषित सर्वोत्तम दुर्लभ वस्तुओं में की जाएगी और इस प्रकार वह स्वयं को अपने मालिकों की दृष्टि में एक महान उदार व्यक्ति प्रमाणित कर देगा। किन्तु उन दुर्लभ प्राचीन स्वर्ण मुद्राओं की यही नियति थी कि कम्पनी के निदेशक उनका ऐतिहासिक महत्त्व समझ ही न पाए और उन्होंने उन मुद्राओं को गला डाला। जब वारेन हेस्टिंग्स इंग्लैंड लौटा तो वे स्वर्ण मुद्राएँ नष्ट हो चुकी थीं। अब यह आप लोगों पर निर्भर करता है कि आप ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ भविष्य में कभी न होने दें।
प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) भारत भूमि में प्रचुर परिमाण में कौन-से सिक्के उपलब्ध होंगे?
(ग) वारेन हेस्टिंग्स को वाराणसी के पास क्या मिला?
(घ) उसने वाराणसी में प्राप्त वस्तु को किसे भेंट में दे दिया? (ङ) निदेशक ने मुद्राओं को क्या किया?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम भारत से हम क्या सीखें।
लेखक का नाम मैक्समूलर।
(ख) भारत में ईरानी, केरियन, यूनानी, शकों, रोमन एवं मुस्लिम शासकों के सिक्के उपलब्ध . मिलेंगे।
(ग) स्वर्ण मुद्राओं से भरा एक घड़ा।
(घ) ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल को।
(ङ) निदेशक ने मुद्राओं को गला डाला।
3. संस्कृत की सबसे पहली विशेषता है इसकी प्राचीनता, क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा से भी संस्कृत का काल पुराना है। जिस रूप में आज यह हम तक पहुंची है, उसमें भी अत्यन्त प्राचीन तत्त्व भली-भाँति सुरक्षित है। ग्रीक और लैटिन भाषाएँ लोगों को सदियों से ज्ञात हैं और निस्संदेह यह भी अनुभव किया जाता रहा था कि इन दोनों भाषाओं में कुछ-न-कुछ साम्य अवश्य है। किन्तु, समस्या यह थी कि इन दोनों भाषाओं में विद्यमान समानता को व्यक्त कैसे किया जाए? कभी ऐसा होता था कि किसी ग्रीक शब्द की निर्माण-प्रक्रिया में लैटिन को कुंजी मान लिया जाता था और कभी किसी लैटिन शब्द के रहस्यों को खोलने के लिए ग्रीक का सहारा लेना पड़ता था। उसके बाद जब गॉथिक और एंग्लो-सैक्सन जैसी ट्यूटानिक भाषाओं, पुरानी केल्टिक तथा स्लाव भाषाओं का भी अध्ययन किया जाने लगा तो इन भाषाओं में किसी-न-किसी प्रकार का पारिवारिक सम्बन्ध स्वीकार करना ही पड़ा। किन्तु, इन भाषाओं में इतनी अधिक समानता कैसे आ गई, और समानताओं के साथ-ही-साथ इतना अधिक अन्तर भी इनमें कैसे पड़ गया, यह रहस्य बना ही रहा और इसी कारण ऐसे अनेक अहैतुकवाद उठ खड़े हुए जो भाषाविज्ञान के मूल सिद्धान्तों के सर्वथा विपरीत है।
प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए। .
(ख) संस्कृत की पहली विशेषता क्या है?
(ग) ग्रीक और लैटिन भाषाओं के बीच क्या समस्या थी?
(घ) सब भाषाओं की अग्रजा किसे कहा गया है ?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम भारत से हम क्या सीखें। .
लेखक का नाम मैक्समूलर।
(ख) संस्कृत की पहली विशेषता इसकी प्राचीनता है।
(ग) दोनों भाषाओं में विद्यमान समानता को कैसे व्यक्त की जाय, यह समस्या थी।
(घ) संस्कृत को सब भाषाओं की अग्रजा कहा गया है।
4. यदि आप लोगों को अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयों के निर्माण और विकास से संबद्ध प्राचीन युग के कानून के पुरातन रूपों के बारे में इधर जो अनुसंधान हुए हैं, उनके महत्त्वं और वैशिष्ट्य को परखने की क्षमता प्राप्त करनी है, तो आपको इसके लिए आज भारत की ग्राम पंचायतों के रूप में इसके प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग अनायास ही मिल जाएगा। भारत में प्राचीन स्थानीय शासन-प्रणाली.या पंचायत-प्रथा को समझने-समझाने का बहुत बड़ा क्षेत्र विद्यमान है।
प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) सरलतम और राजनैतिक इकाइयों की जानकारी का माध्यम क्या है?
(ग) गद्यांश का सारांश लिखें।
उत्तर-
(क) पाठभारत से हम क्या सीखें। लेखक मैक्समूलर।
(ख)सरलतम और राजनैतिक इकाइयों की जानकारी भारत की ग्राम-पंचायत व्यवस्था के अध्ययन से प्राप्त की जा सकती है।
(ग)भारत की ग्राम-पंचायत व्यवस्था संसार की सबसे प्राचीन सरलतम् और राजनैतिक प्रशासनिक इकाई है। इससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
5. अपने सच्चे आत्मरूप की पहचान में भारत का स्थान किसी भी देश के बाद दूसरे नम्बर ‘ पर नहीं रखा जा सकता। मानव-मस्तिष्क के चाहे किसी भी क्षेत्र को आप अपने विशिष्ट अध्ययन का विषय क्यों न बना लें, चाहे वह भाषा का क्षेत्र हो या-धर्म का, दैवत विज्ञान का हो या दर्शन का, चाहे विधिशास्त्र या कानून का हो अथवा रीति-रिवाजों व परम्पराओं का, प्राचीन काल या शिल्प का हो अथवा पुरातन का, इनमें से किसी में विचरण करने के लिए भले ही आप चाहें, न चाहें आपको भारत की शरण लेनी ही होगी, क्योंकि मानव इतिहास से सम्बद्ध अत्यन्त बहुमूल्य और अत्यन्त उपादेय प्रामाणिक सामग्री का एक बहुत बड़ा भाग भारत और केवल भारत में ही – संचित है।
प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) आत्म रूप की पहचान की दृष्टि से भारत का संसार में क्या स्थान है?
(ग) किन-किन क्षेत्रों की विशिष्ट जानकारी के लिए भारत की शरण लेना जरूरी है?
(घ) गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-भारत से हम क्या सीखें। लेखक- मैक्समूलर।
(ख) आत्मरूप की पहचान की दृष्टि से भारत का स्थान सर्वोपरि है।
(ग) भाषा, धर्म, दैवत विज्ञान, दर्शनशास्त्र, विधि या कानून, रीति-रिवाजों, परम्पराओं और प्राचीन कला या शिल्प एवं पुरातन विज्ञान की विशिष्ट जानकारी के लिए भारत सबसे उपयुक्त स्थान है।
(घ) आत्मरूप को पहचानने की दृष्टि से ही भारतीय साहित्य से बढ़कर कोई साहित्य ही नहीं है। साहित्य ही नहीं, दर्शनशास्त्र, कानून, प्राचीन शिल्प एवं कला, धर्म, दर्शन या भाषा की विस्तृत जानकारी की प्रचुर सामग्री भारत में उपलब्ध है।
6. एक भाषा बोलना एक माँ के दूध पीने से भी बढ़कर एकात्मकता का परिचायक है और भारत की पुरातन भाषा संस्कृत सार रूप से वही है जो ग्रीक, लैटिनं या एंग्लो सेक्सन भाषाएं हैं। यह एक ऐसा पाठ है, जिसे हम भारतीय भाषा और साहित्य के अध्ययन के बिना कभी न पढ़ पाते, और भारत यदि हमें इस एक पाठ के सिवा और कुछ भी न पढ़ा पाता तो भी हम इससे ही इतना कुछ सीख जाते जितना दूसरी कोई भाषा कभी नहीं सिखा पाती।
(क) पाठ और लेखक के नामों का उल्लेख करें।
(ख) एकात्मकता का सबसे बड़ा परिचायक क्या है?
(ग) भारतीय भाषा और साहित्य के अध्ययन के बिना हम क्या नहीं जान पाते हैं ?
(घ) इस गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
(क) पाठ-भारत से हम क्या सीखें। लेखक- मैक्समूलर।
(ख) एकात्मकता का सबसे बड़ा परिचायक है एक भाषा बोलना। यह एक माँ का दूध पीने की भाँति है।
(ग) भारतीय भाषा और साहित्य के अध्ययन के बिना हम कभी न जान पाते कि संस्कृत भाषा भी साररूप से वही है जो ग्रीक, लैटिन या ऐंग्लो सेक्सन की भाषाएँ।
(घ) भारत की पुरातन भाषा संस्कृत सार- रूप से ग्रीक, लैटिन और ऐंग्लो सेक्सन की ही . भाषा है। इस बात का पता भारतीय साहित्य और इतिहास के अध्ययन के सिवा नहीं लगता।
7. संस्कृत तथा दूसरी आर्य भाषाओं के अध्ययन ने हमारे लिए बस इतना ही किया हो, सो बात भी नहीं है। इससे मानव जाति के बारे में हमारे विचार व्यापक और उदार ही नहीं बने हैं तथा लाखों-करोड़ों अजनबियों तथा बर्बर समझे जानेवाले लोगों को भी अपने ही परिवार के सदस्य की भाँति गले लगाना ही हम नहीं सीखें हैं, अपितु इसने मानव-जाति के सम्पूर्ण इतिहास को एक वास्तविक रूप. में प्रकट कर दिखाया है, जो पहले नहीं हो पाया था समूलर।
प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) संस्कृत भाषा के अध्ययन से क्या लाभ हुए हैं ?
(ग) गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ- भारत से हम क्या सीखें।लेखक-मैक्समूलरा
(ख) संस्कृत भाषा के अध्ययन से मानव जाति के बारे में लोगों के विचार व्यापक हैं और सबने जाना है कि जिन्हें बर्बर समझते हैं, वे भी हमारे ही परिवार के सदस्य हैं।
(ग) संस्कृत ने बताया है कि सम्पूर्ण मानव-जाति एक है, संबकी भावनाएं एक-सी है और जिन्हें हम बर्बर कहते हैं वे भी हमारे परिवार के ही अंग हैं। उनसे घृणा करना उचित नहीं।
8. हम सब पूर्व से आए हैं। हमारे जीवन में जो भी कुछ अत्यधिक मूल्यवान है वह हम पूर्व से मिला है और पूर्व को पहचान लेने से ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिसने इतिहास की वास्तविक शिक्षा का कुछ लाभ उठाया है, भले ही प्राच्य-विद्या-विशारद न हो तो भी यह अनुभव अवश्य होगा कि वह नानाविध स्मृतियों से भरे अपने पुराने घर की ओर लौट रहा है।
प्रश्न
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें।
(ख) अपने प्राचीन बास-स्थान के बारे में लेखक का क्या ख्याल है ?
(ग) पर्व को पहचानने से किस विचार की पुष्टि होती है ?
(घ) गद्यांश का निष्कर्ष क्या है?
उत्तर-
(क) पाठ-हम भारत से क्या सीखें। लेखक-मैक्समूलर।
(ख) लेखक का विचार है कि वे तथा अन्य लोग पूर्व से आए हैं।
(ग) पूर्व को पहचान लेने से इतिहास का ज्ञान न होने पर भी, यह स्पष्ट हो जाता है कि हम सभी पूर्व से आए हैं।
(घ) सभी सभ्यताओं के उत्सर्ग पूर्व में है पश्चिम के लोग भी पूर्व से हो गए हैं। जीवन में जो कुछ भी मूल्यवान है, वह पूर्व की ही देन है, यह इतिहास का सामान्य ज्ञान न रखने वाला भी आसानी से समझ सकता है।
9. भारत में धर्म के वास्तविक उद्भव, उसके प्राकृतिक विकास तथा उसके अपरिहार्य क्षीयमाण रूप का प्रत्यक्ष परिचय मिल सकता है। भारत ब्राह्मण या वैदिक धर्म की भूमि है, बौद्ध धर्म की यह जन्मभूमि है, पारसियों के जरथुस्ट धर्म की यह शरणस्थली है। आज भी यहाँ नित्व नये मत-मतान्सर प्रकट व विकसित होते रहते हैं।
प्रश्न-
(क) भारत में किसका प्रत्यक्ष परिचय मिलता है?
(ख) लेखक ने भारत को ब्राह्मण या वैदिक धर्म की भूमि क्यों कहा है?
(ग) मत-मतानर के प्रकट और विकसित होने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
(क) भारत में धर्म के वास्तविक उद्भव, उसके प्राकृतिक विकास तथा उसके । अपरिहार्य क्षीयमाण रूप का प्रत्यक्ष.परिचय मिलता है।
(ख) भारत में सबसे पहले आर्य संस्कृति आयी थी। जैसे-जैसे वह संस्कृति बढ़ती गई भारत का स्वरूप बदलता चला गया ऋग्वेद वैदिक धर्म की ही देन है। आर्य ब्राह्मणों ने ही वैदिक संस्कृत को विकसित किया है। इसी आधार पर लेखक ने भारत को ब्राहमण या वैदिक धर्म की भूमि कहा है।
(ग) भारत विविध सम्प्रदायों का देश है। बाहर से आनेवाले धर्म भी इसके अभिन्न अंग
बनते चले गये। वर्षों बाद भी वे संस्कृतियों अक्षुण्ण हैं। सभ्यता-संस्कृति के विकास क्रम के साथ ही मत-मतान्तर विकसित होते आ रहे हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
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प्रश्न 1.
फ्रेड्रिक मैक्समूलर किस पाठ के रचयिता हैं?
(क) श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा
(ख) नागरी लिपि
(ग) भारत से हम क्या सीखें
(घ) परम्परा का मूल्यांकन
उत्तर-
(ग) भारत से हम क्या सीखें
प्रश्न 2.
मैक्समूलर कहाँ के रहनेवाले थे?
(क) इंगलैंड
(ख) जर्मनी
(ग) अमेरिका
(घ) श्रीलंका
उत्तर-
(ख) जर्मनी
प्रश्न 3.
भारत कहाँ बसता है ?
(क) दिल्ली के पास ।
(ख) गाँधी में
(ग) शहरों में
(घ) लोगों के मन में
उत्तर-
(घ) लोगों के मन में
प्रश्न 4.
पारसियों के धर्म का क्या नाम है ?
(क) बौद्ध धर्म
(ख) जैन धर्म
(ग) वैदिक धर्म
(घ) जरथुस्ट
उत्तर-
(घ) जरथुस्ट
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति
प्रश्न 1.
मैक्समूलर ने कालिदास के…………………..का जर्मन में अनुवाद किया।
उत्तर-
मेघदूत
प्रश्न 2.
मैक्समूलर को ………………………’ने ‘वेदांतियों का वेदांती’ कहा।
उत्तर-
स्वामी
प्रश्न 3.
वस्तुओं के समान …………………………भी मर-मिट जाते हैं।
उत्तर-
शब्द
प्रश्न 4.
ग्रीक भाषा का ‘मूल’ संस्कृत के………………….शब्द का ही रूप है। .
उत्तर-
मूल
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जनरल कर्मिघम ने कौन-सी रिपोर्ट तैयार की? … या, जनरल कमिंघम का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
जनरल कमित्रम ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट तैयार की।
प्रश्न 2.
वारेन हेस्टिंग्स को कहाँ दारिस.नामक सोने के सिक्के मिले ?
उत्तर-
वारेन हेस्टिंग्स को वाराणसी के पास दारिस नामक सोने के 172 सिक्के मिले।
प्रश्न 3.
भारत में प्राचीन काल में स्थानीय शासन की कौन-सी प्रणाली प्रचलित थी?
उसर-
ग्राम-पंचायत द्वारा स्थानीय शासन चलता था।
प्रश्न 4.
मैक्समूलर ने किन विशेष क्षेत्रों में अभिरुचि रखनेवालों के लिए भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान आवश्यक बताया है ?
उत्तर-
मैक्समूलर ने भू-विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, जन्तु-विज्ञान/ नृवंश विद्या, पुरातात्विक, इतिहास, भाषा आदि विभिन्न क्षेत्रों में अभिरुचि रखनेवालों के लिए भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान आवश्यक बताया है।
भारत से हम क्या सीखें लेखक परिचय
विश्वविख्यात विद्वान फ्रेड्रिक मैक्समूलर का जन्म आधुनिक जर्मनी के डेसाउ नामक नगर में 6 दिसंबर 1823 ई० में हुआ था । जब मैक्समूलर चार वर्ष के हुए, उनके पिता विल्हेल्म मूलर नहीं रहे । पिता के निधन के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई, फिर भी मैक्समूलर की शिक्षा-दीक्षा बाधित नहीं हुई। बचपन में ही वे संगीत के अतिरिक्त ग्रीक और लैटिन भाषा में निपुण हो गये थे तथा लैटिन में कविताएँ भी लिखने लगे थे । 18 वर्ष की उम्र में लिपजिंग विश्वविद्यालय में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन आरंभ कर दिया । सन् 1994 में उन्होंने ‘हितोपदेश’ का जर्मन भाषा में अनुवाद प्रकाशित करवाया। इसी समय उन्होंने ‘कठ’ और ‘केन’ आदि उपनिषदों का जर्मन भाषा में अनुवाद किया तथा ‘मेघदूत’ का जर्मन पद्यानुवाद भी किया।
मैक्समूलर उन थोड़े-से पाश्चात्य विद्वानों में अग्रणी माने जाते हैं जिन्होंने वैदिक तत्त्वज्ञान को मानव सभ्यता का मूल स्रोत माना । स्वामी विवेकानंद ने उन्हें ‘वेदांतियों का भी वेदांती’ कहा। उनका भारत के प्रति अनुराग जगजाहिर है । उन्होंने भारतवासियों के पूर्वजों की चिंतनराशि को यथार्थ रूप में लोगों के सामने प्रकट किया। उनके प्रकाण्ड पांडित्य से प्रभावित होकर साम्राज्ञी विक्टोरिया ने 1868 ई० में उन्हें अपने ऑस्बोर्न प्रासाद में ऋग्वेद तथा संस्कृत के साथ यूरोपियन भाषाओं की तुलना आदि विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था । उस भाषण को सुनकर विक्टोरिया इतनी प्रभावित हुईं कि उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि प्रदान कर दी, किन्तु उन्हें यह पदवी अत्यंत तुच्छ लगी और उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया । भारतभक्त, संस्कृतानुरागी एवं वेदों के प्रति अगाध आस्था रखने वाले फ्रेड्रिक मैक्समूलर का 28 अक्टूबर सन् 1900 ई० में निधन . हो गया ।
प्रस्तुत आलेख वस्तुत: भारतीय सिविल सेवा हेतु चयनित युवा अंग्रेज अधिकारियों के आगमन के अवसर पर संबोधित भाषणों की श्रृंखला की एक कड़ी है। प्रथम भाषण का यह अविकल रूप से संक्षिप्त एवं संपादित अंश है जिसका भाषांतरण डॉ. भवानीशंकर त्रिवेदी ने किया है । भाषण में मैक्समूलर ने भारत की प्राचीनता और विलक्षणता का प्रतिपादन करते हुए नवागंतुक अधिकारियों को यह बताया कि विश्व की सभ्यता भारत से बहुत कुछ सीखती और ग्रहण करती आयी है । उनके लिए भी यह एक सौभाग्यपूर्ण अवसर है कि वे इस विलक्षण देश और उसकी सभ्यता-संस्कृति से बहुत कुछ सीख-जान सकते हैं । यह भाषण आज भी उतना ही प्रासंगिक है, बल्कि स्वदेशाभिमान के विलोपन के इस दौर में इस भाषण की विशेष सार्थकता है। नई पीढ़ी अपने देश तथा इसकी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-साधना, प्राकृतिक वैभव आदि की महत्ता का प्रामाणिक ज्ञान प्रस्तुत भाषण से प्राप्त कर सकेगी ।
भारत से हम क्या सीखें Summary in Hindi
पाठ का सारांश
प्रस्तुत शीर्षक “भारत से हम क्या सीखें।” वस्तुतः भारतीय सविल सेवा के चयनित युवा अंग्रेज अधिकारी लोगों को प्रशिक्षण के लिए मैक्समूलर साहब द्वारा दिया गया भाषण का अंश है।
पश्चिम जगत् में भारत के संबंध में सही-सही ज्ञान एवं दृष्टि के प्रणेता विश्वविख्यात विद्वान फ्रेड्रिक मैक्समूलर पहला व्यक्ति थे। उन्होंने भारतीय सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, संस्कृत भाषा कला-कौशल आदि का गहराई से अध्ययन किया और दुनियाँ के सामने स्पष्ट किया। स्वामी विवेकानंद ने उन्हें ‘वेदांतियों का भी वेदांती’ कहा।
सर्वविध संपदा और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण कौन-सा देश है, यदि आप मुझे इस भूमण्डल का अवलोकन करने के लिए कहें तो बताऊँगा कि वह देश है—भारत। भारत, जहाँ भूतल पर ही स्वर्ग की छटा निखर रही है। यदि यूनानी, रोमन और सेमेटिक जाति के यहूदियों की विचारधारा में ही सदा अवगाहन करते रहनेवाले हम यूरोपियनों को ऐसा कौन-सा साहित्य पढ़ना चाहिए जिससे हमारे जीवन अंतरतम परिपूर्ण अधिक सर्वांगीण, अधिक विश्वव्यापी, यूँ कहें कि संपूर्णतया मानवीय बन जाये, और यह जीवन ही क्यों, अगला जन्म तथा शाश्वत जीवन भी सुधर जाये, तो मैं एक बार फिर भारत ही का नाम लूँगा।
यदि आपकी अभिरूचि की पैठ किसी विशेष क्षेत्र में है, तो उसके विकास और पोषण के लिए आपको भारत में पर्याप्त अवसर मिलेगा।
यदि आप भू-विज्ञान में रूचि रखते हैं तो हिमालय से श्रीलंका तक का विशाल भू-प्रदेश आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। यदि आप वनस्पति जगत में विचरना चाहते हैं तो भारत एक ऐसी. फुलवारी है जो हकर्स जैसे अनेक वनस्पति वैज्ञानिकों को अनायास ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। यदि आपकी रूचि जीव-जन्तुओं के अध्ययन में है तो आपका ध्यान श्री हेकल की ओर अवश्य होगा, जो इन दिनों भारत के कान्तारों की छानबीन के साथ ही भारतीय समुद्रतट से मोती भी बने रहे हैं। यदि आप नृवंश विद्या में अभिरूचि रखते हैं तो भारत आपको एक जीता-जागता संग्रहालय ही लगेगा। यदि आप पुरातत्व प्रेमी हैं, और यदि आपने यहाँ रहते हुए पुरातत्व के द्वारा एक प्राचीन चाकू या चकमक या किसी प्राणी का कोई भाग ढूंढ़ निकालने के आनन्द का अनुभव किया हो तो आपको जनरल कनिाम की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट पढ़ लेनी चाहिए और तब भारत के बौद्ध सम्राटों के द्वारा निर्मित (नालन्दा जैसे) विश्वविद्यालयों अथवा विहारों के ध्वंसावशेषों को खोद निकालने के लिए आपका फावड़ा आतुर हो उठेगा।
यदि आपके मन में पुराने सिक्कों के लिए लगाव है, तो भारतभूमि में ईरानी, केरियन, थेसियन, पार्थियन, यूनानी, मेकेडिनियन, शकों, रोमन और मुस्लिम शासकों के सिक्के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होंगे। दैवत विज्ञान पर भारत के प्राचीन वैदिक दैवत विज्ञान के कारण जो नया प्रकाश पड़ा है, उसके फलस्वरूप संपूर्ण दैवत विज्ञान को नया स्वरूप प्राप्त हो गया है। ”
नीति कथाओं के अध्ययन क्षेत्र में भी भारत के कारण नवजीवन का संचार हो चुका है, क्योंकि भारत के कारण ही समय-समय पर नानाविध साधनों और मार्गों के द्वारा अनेक नीति कथाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर आती रही हैं।
आपमें से कइयो ने भाषाओं को हीन नहीं, भाषा विज्ञान का भी अध्ययन किया होगा। तो आपको क्या भारत से बढ़कर दूसरा कोई देश दिखाई देता है जहाँ केवल शब्दों का ही नहीं, बल्कि व्याकरणात्मक तत्त्वों के विकास और लय से संबद्ध भाषावैज्ञानिक समस्याओं के अध्ययन का । महत्त्वपूर्ण अवसर प्राप्त हो सके यदि आप विधिशास्त्र या कानून के विद्यार्थी हैं तो आपको विधि-संहिताओं के एक ऐसे इतिहास की जाँच-पड़ताल का अवसर मिलेगा जो यूनान, रोम या जर्मनी के ज्ञात विधिशास्त्रों के इतिहास से सर्वथा भिन्न होते हुए भी इनके साथ समानताओं और विभिन्नताओं के कारण विधिशास्त्र के किसी भी विद्यार्थी के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
यदि आप लोगों को अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयों के निर्माण और विकास से संम्बद्ध प्राचीन युग के कानून के पुरातन रूपों के बारे में इधर जो अनुसंधान हुए हैं, उनके महत्त्व और वैशिष्ट्य को परख सकने की क्षमता प्राप्त करनी है, तो आपको इसके लिए आज भारत की ग्राम पंचायतों के रूप में इसके प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग अनायास ही मिल जाएगा। भारत में प्राचीन स्थानीय शासन प्रणाली या पंचायत प्रथा को समझने-समझाने का बहुत बड़ा क्षेत्र विद्यमान है। भारत ब्राह्मण या वैदिक धर्म की भूमि है, बौद्धधर्म जन्मस्थली है। पारसियों के जखुस्त धर्म की यह शरणस्थली है। आज भी यहाँ नित्य नये मत-मतान्तर प्रकट व विकसित होते रहते हैं।
संस्कृत की सबसे पहली विशेषता है इसकी प्राचीनता क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा से भी संस्कृत का काल पुराना है। संस्कृत में चूहा को मूषः कहते हैं। ग्रीक में मूस, लैटिन में मुस, पुरानी स्लावोनिक में माइस और पुरानी उच्च जर्मन में मुस कहते हैं।
‘मैं हूँ’ जैसे भाव को व्यक्त करने के लिए भला किन्हीं दूसरी भाषाओं में ‘अस्मि’ जैसा । शुद्ध और उपयुक्त शब्द कहाँ मिल पाएगा।
. मैं इसे ही वास्तविक अर्थों में इतिहास मानता हूँ और यह एक ऐसा इतिहास है जो राज्यों के दुराचारों और अनेक जातियों की क्रूरताओं की अपेक्षा कहीं अधिक ज्ञातव्य और पठनीय है। हम सब पूर्व से आये हैं। हमारे जीवन में जो भी कुछ अत्यधिक मूल्यवान है, वह हमें पूर्व से मिला है और पूर्व को पहचान लेने से ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिसने इतिहास की वास्तविक शिक्षा कुछ लाभ उठाया है, भले ही वह प्राच्य-विद्या-विशारद न भी हो तो भी यह अनुभव अवश्य होगा कि वह नानाविध स्मृतियों से भरे अपने पुराने घर की ओर जा रहा है। यदि आप लोग चाहें तो भारत के बारे में वैसे ही सुनहरे सपने देख सकते हैं और भारत पहुँचने के बाद एक से बढ़कर एक शानदार काम भी कर सकते हैं।
शब्दार्थी
अवलोकन : देखना, प्रतीति करना, महसूस करना
अवगाहन : स्नान, गहरे डूबकर समझने की कोशिश करना
वांछनीय : चाहने योग्य, कामना करने योग्य
नृवंश विद्या नृतत्त्व शास्त्र, मानव शास्त्र
परिमाण : मात्रा
दारिस : मुद्रा का एक प्राचीन प्रकार
प्रेषित : भेजा हुआ
दैवत विज्ञान : देव विज्ञान
प्रत्लयुग : प्रागैतिहासिक युग, प्राचीन युग
अनुरूपता : समानता, सादृश्य
क्षय : छीजन, विनाश
अपरिहार्य : जिसे छोड़ा. न जा सके, अनिवार्य
क्षीयमाण : नष्ट होता हुआ
मसला : मुद्दा, विषय
सदाशयता : उदारता, भलमनसाहत
सर्वातिशायी : जिसमें सारी चीजें समाहित हो जायें
विद्यमान : वर्तमान, उपस्थित
अहेतुकवाद : ऐसा सिद्धांत जिसमें हेतु या कारण की पहचान न हो सके
सर्वथा : पूरी तरह से
ज्ञातव्य : जानने योग्य
सारभूत : सार या निष्कर्ष कहा जाने योग्य, आधारभूत
अजनबी : अपरिचित, अज्ञात
बर्बर : जंगली, असभ्य
सुविस्तीर्ण : अतिविस्तृत, खुशफैल, पूरी तरह से फैला हुआ
अनिर्वचनीय : जिसकी व्याख्या न की जा सके, वाणी के परे
धात्री : पालन-पोषण करनेवाली, धारण करनेवाली
प्राच्य : पूर्वी (पाश्चात्य का विलोम), यहाँ भारतीयं के अर्थ में
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