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Friday, July 1, 2022

BSEB Class 9 Hindi Godhuli Chapter 10 निबंध Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi Godhuli Chapter 10 निबंध Book Answers

BSEB Class 9 Hindi Godhuli Chapter 10 निबंध Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi Godhuli Chapter 10 निबंध Book Answers
BSEB Class 9 Hindi Godhuli Chapter 10 निबंध Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi Godhuli Chapter 10 निबंध Book Answers


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Bihar Board Class 9th Hindi Godhuli Chapter 10 निबंध Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 9th Hindi Godhuli Chapter 10 निबंध Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 9th
Subject Hindi Godhuli Chapter 10 निबंध
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 9 Hindi निबंध Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
निबंध लेखन का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर-
निबंध मानसिक प्रतिक्रियाओं, भावनाओं एवं विचारों का एक सँवरा रूप है। निबंधकार जीवन के चित्र खींचता है। जीवन के किसी कोने में झाँककर वह जो कुछ पाता है और उसके मन में उसकी जो प्रतिक्रिया होती है, उसे ही वह निबंध के माध्यम से व्यक्त करता है और वह अपना सम्पूर्ण व्यक्तित्व ढाल देता है।

प्रश्न 2.
निबंध लेखन के समय किन बातों का ध्यान रखना जरूरी होता
उत्तर-
निबंध लिखने में दो बातों की आवश्यकता है-भाव और भाषा। बिना संयत भाषा के अभिप्रेत भाव व्यक्त नहीं होता। लिखने के लिए जिस तरह परिमार्जित भाव की आवश्यकता है, उसी तरह परिमार्जित भाषा भी। एक के अभाव में दूसरे का महत्व नहीं।

प्रश्न 3.
लेखक ने निबंध की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर-
लेखक ने निबंध की कोई सर्वसम्मत परिभाषा नहीं दी है लेकिन उन्होंने कहा है कि निबंध में निबंधकार अपने सहज, स्वाभाविक रूप को पाठक के सामने प्रकट करता है। आत्मप्रकाशन ही निबंध का प्रथम और अन्तिम लक्ष्य है। आधुनिक नेबंध के जन्मदाता फ्रांस के ‘मौन्तेय’ माने गये हैं। निबंध की परिभाषा में उन्होंने कहा है कि “निबंध विचारों, उद्धरणों एवं कथाओं का सम्मिश्रण है।”

प्रश्न 4.
निबंध-लेखन में लेखक किस अत्याचार की बात करता है, जिससे निबंध बोझिल, नीरस और उबाऊ हो जाता है?
उत्तर-
विषय-प्रतिपादन के साथ, विचारों के पल्लवन के साथ, भाषा और शैली के साथ, जिसका नतीजा यह होता है कि हिन्दी निबंध नीरस, बोझिल और उबाऊ हो जाता है।

प्रश्न 5.
निबंध-लेखन में हिन्दीतर भाषाओं के उद्धरण में किस बात का ध्यान रखना आवश्यक होता है?
उत्तर-
लेखक का कथन है कि निबंध में हिन्दीतर भाषाओं का उद्धरण जब भी दें, इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि उसका हिन्दी अनुवाद पहले दें, और बाद में टिप्पणी। मूल पंक्तियों का कम-से-कम लेखकों के नाम का हवाला अवश्य दें।

प्रश्न 6.
अच्छे निबंध के लिए क्या आवश्यक है? विस्तार से तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
अच्छे निबंध के लिए कल्पना शक्ति की आवश्यकता है। कल्पना केवल कलाकारों की चीज नहीं, विज्ञान के मूल में भी कल्पना ही है। किसी भी चीज को सुन्दर और सुरुचिपूर्ण बनाने के लिए कल्पना से काम लेना अत्यावश्य हो जाता है। ‘कल्पना अज्ञात लोक का प्रवेशद्वार है। अच्छे निबंध के लिए लेखक ने चार तरह की बातें कही हैं। व्यक्तित्व का प्रकाशन, संक्षिप्तता, एकसूत्रता और अन्विति का प्रभाव।।
व्यक्तित्व के प्रकाशन में निबंधकार ने बताया है कि अपने सहज स्वाभाविक रूप से पाठक के सामने प्रकट होता है। संक्षिप्तता के संबंध में निबंधकार का कहना है कि निबंध जितना छोटा होता है, जितना अधिक गढा होता है, उसमें उतनी ही सघन अनुभूतियाँ होती हैं और अनुभूतियों में गढाव कसाव के कारण तीव्रता रहती है।

एकसूत्रता के संबंध में निबंधकर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का उदाहरण देकर बताया है कि व्यक्तिगत विशेषता का मतलब यह नहीं कि उसके प्रदर्शन के लिए विचारों की श्रृंखला रखी ही न जाय या जानबझकर उसे जगह-जगह से तोड दिया जाय; भावों की विचित्रता दिखाने के लिए अर्थयोजना की जाय, जो अनुभूति के प्रकृत या लोक सामान्य स्वरूप से कोई सम्बन्ध ही न रखे, अथवा भाषा से सरकस वालों की सी कसरतें या हठयोगियों के से आसन कराये जायँ, जिनका लक्ष्य तमाशा दिखाने के सिवा और कुछ न हो।

निबंध की चौथी और अन्तिम विशेषता ‘अन्विति का प्रभाव’ के संबंध में निबन्धकार का कहना है कि जिस प्रकार एक चित्र की अनेक असम्बद्ध रेख आपस में मिलकर एक सम्पूर्ण चित्र बना पाती हैं अथवा एक माला के अनेक पुष्प एकसूत्रता में ग्रंथित होकर ही माला का सौन्दर्य ग्रहण करते हैं, उसी प्रकार निबंध के प्रत्येक विचार चिन्तन, प्रत्येक भाव तथा प्रत्येक आवेग आपस में अन्वित होकर सम्पूर्णता के प्रभाव की सृष्टि करते हैं।

प्रश्न 7.
निबंध लेखन की क्या प्रक्रिया बताई गई है? पाठ के आधार पर बताएँ।
उत्तर-
निबंध लेखन के लिए कोई एक शिल्प विधान निर्धारित नहीं किया जा सकता। निबंध साहित्य का एक स्वतंत्र अंग है। अतः इसे नियमों में नहीं बाँधा ज़ा सकता। लेकिन सुगठित निबंध लिखने के लिए तीन बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए-विषय-निरूपण या भूमिका, व्याख्या तथा निष्कर्ष।

विद्यार्थियों को भूमिका के रूप में विषय का संक्षिप्त परिचय देना चाहिए। जिस दृष्टिकोण से निबंध लिखा जाय, उसी दृष्टिकोण से भूमिका भी लिखी जानी चाहिए। विश्लेषण निबंध का सार अंश है। यहाँ विद्यार्थी को विषय का विश्लेषण कर समुचित रूप से उसपर प्रकाश डालना चाहिए। निष्कर्ष में ऊपर कही गयी बातों का सारांश दो-चार पंक्तियों में बहुत ही सुन्दर ढंग से देना चाहिए। निष्कर्ष वाक्य ऐसे हों कि निबंध के सौंदर्य और सरलता को बढ़ा दें, साथ ही स्थापित विचारों के पोषक हों।

प्रश्न 8.
निबंध के कितने प्रकार होते हैं? भेदों के साथ उनकी परिभाषा भी दें।
उत्तर-
निबंध के तीन मुख्य प्रकार हैं-भावात्मक, विचारात्मक तथा वर्णनात्मक/भावात्मक निबंध में भाव की प्रधानता रहती है और विचारात्मक निबंध में विचार की। विचारात्मक निबंध का आधार चिन्तन है। हृदय से हृदय की आत्मीयता स्थापित करना इस प्रकार के निबंधों का लक्ष्य है। वर्णनात्मक निबंध में विषय-वस्तु के वर्णन की शैली की प्रधानता रहती है।

प्रश्न 9.
निबंध लेखन के अभ्यास से छात्र किन समस्याओं से निजात पा सकता है?
उत्तर-
निबंध लेखन के अभ्यास से छात्र को अज्ञानतावश और स्पर्धावश समस्याओं से निजात मिल सकता है। अज्ञानतावश इसलिए कि वे यह मानते ही नहीं किं निबंध दस पृष्ठों से भी कम का हो सकता है और स्पर्द्धावश इसलिए कि अमुक ने कागज लिया तो में क्यों न लूँ। अगर बातों को सुरुचिपूर्ण ढंग से कहने की कला आती हो तो निबंध अनेक पृष्ठों का भी हो सकता है और उसे पढ़ने में छात्रों को आनंद भी आएगा तथा छात्रों को बढ़ियाँ अंक भी मिलेंगे।

प्रश्न 10.
निबंध लेखन में कल्पना का क्या महत्व है? ।
उत्तर-
अच्छे निबंध के लिए कल्पनाशक्ति की आवश्यकता है। जीवन में अच्छा करने के लिए कल्पना की जरूरत पड़ती है। कल्पना केवल कलाकारों की चीज नहीं, विज्ञान के मूल में भी कल्पना ही है। कल्पना अज्ञात लोक का प्रवेश द्वार है।

प्रश्न 11.
आचार्य शुक्ल के निबंध किस कोटि में आते हैं और क्यों?
उत्तर-
आचार्य शुक्ल के निबंध प्रबंध, महानिबंध, शोध-प्रबंध, शोध-निबंध की कोटि में आते है। निबंध विचारों की सुनियोजित अभिव्यक्ति है, इसलिए उसमें कसाव होगा, ढीलापन नहीं। आकस्मिक, लेकिन निरन्तर प्रवाह निबंध के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 12.
ललित निबंध की क्या विशेषता होती है?
उत्तर-
वैयक्तिक निबंध को ही आज ललित निबंध कहा जाता है। शास्त्रीय संगीत के गाढ़ेपन को जिस प्रकार थोड़ा घोलकर सुगम संगीत बना दिया गया है, उसी तरह निबंध को भी लोकप्रिय बनाने के लिए उसकी प्राचीन शास्त्रीयता को एक हद तक ढीला करके लालित्य तत्व से मढ़ दिया गया है।

प्रश्न 13.
निबंध को सुरुचिपूर्ण बनाने की दिशा में भाषा के महत्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
निबंध को आकर्षक, विश्वासोत्पदक, तथा रोचक बनाने के लिए विषय से जुड़ना और जुड़कर अपने अनुभवों का तर्कसंगत ढंग से उल्लेख करना नितांत आवश्यक है। आज निबंध आत्मनिष्ठ होते हैं। भाषा के दृष्टिकोण से निबंध की प्रायः दो शैलियाँ हैं-
प्रसाद शैली और समास शैली।
अति साधारण ढंग से सहज-सुगम भाषा में बात कहना प्रसाद शैली है। प्रसाद शैली में गम्भीर से गंभीर भावों को साधारण शब्दों में अभिव्यक्त किया जाता है। किसी बात को कठिन शब्दों में कहना, साधारण भाषा का प्रयोग न कर असामान्य भाषा का प्रयोग समास शैली का लक्ष्य है।

नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें।

1. हिंदी निबंध की दुर्दशा का एक कारण यह भी है कि छात्र उसे रबर समझकर मनमानी खींचतान करते हैं, जिससे एक पृष्ठवाला निबंध कम-से-कम दो-तीन पृष्ठों तक खिंच ही जाता है। भारत एक कृषि-प्रधान देश है, भारत एक धर्म-प्रधान देश है’ आदि अनेक ऐसे आर्ष वाक्य हैं, जिनका सदियों से हिंदी-निबंधों में प्रयोग हो रहा है और तब ‘अतएव, अर्थात शैली’ के द्वारा इन वाक्यों को लमारकर पूरे पृष्ठ को भद्दे तरीके से भर दिया जाता है, जैसे “भारत एक कृषि-प्रधान देश है।” अर्थात भारत में कृषि की प्रधानता है। तात्पर्य यह कि भारत में कृषक रहते हैं। कहने का मतलब यह है कि भारत के अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर करते हैं।
(क) लेखक तथा पाठ के नाम लिखें।
(ख) हिंदी निबंध में बहुत दिनों से प्रयुक्त होनेवाले कुछ आर्ष वाक्य लिखें। उन्हें लोग किस रूप में प्रयुक्त कर विकृत कर देते हैं?
(घ) पाठ लेखक के लिए कैसी आवृत्तियों से बचने की लेखक ने
सलाह दी है? उदाहरण देकर बताएँ।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-निबंध, लेखक-जगदीश नारायण चौबे

(ख) लेखक के अनुसार निबंध की दुर्दशा का एक विशिष्ट कारण यह है कि छात्र निबंध-लेखन में खींच-तान के प्रयास से उसके आकार को नावश्यक रूप से लंबा कर देते हैं। इस तरह एक पृष्ठ में समाप्त होनेवाले निबंध को वे दो-तीन पृष्ठों तक खींचकर ले जाते हैं और निबंध के स्वरूप को विकृत कर उबाऊ कर देते हैं।

(ग) हिंदी निबंध में बहुत दिनों से प्रयुक्त होनेवाले कुछ आर्ष वाक्य इस तरह के हैं-

  1. भारत एक कृषि-प्रधान देश है,
  2. भारत एक धर्म-प्रधान देश है आदि। इन वाक्यों को लंबाकर इसे विकृत रूप में लिखकर प्रस्तुत किया जाता है-भारत एक कृषि-प्रधान देश है अर्थात भारत में कृषि की प्रधानता है। तात्पर्य यह कि भारत में प्रधान रूप से कृषक रहते हैं।

(घ) लेखक का कहना है कि पाठ लेखक के लिए यह आवश्यक है कि वे उपर्युक्त आवृत्तियों ‘अतएव’, ‘अर्थात् ‘, ‘तात्पर्य यह है’ आदि के अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से मुक्त भाषा-शैली को अपनाकर निबंध के आकार को संतुलित और आकर्षक स्वरूप दें। अन्यथा उनका निबंध ‘दुर्दशा’ का पात्र और परिचायक बनकर रह जाएगा।

(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने अच्छे निबंधों के स्वरूपगत वैशिष्टय पर प्रकाश डाला है। उसने छात्रों को निर्देश दिया है कि वे रबर समझकर खींच-तान के प्रयास से निबंध’को अनावश्यक रूप से लंबा न करें। इसी तरह ‘अतएव’, अर्थात् तथा ‘तात्पर्य यह है’ आदि फालतू शब्दों का व्यर्थ प्रयोग न कर निबंध के स्वरूप को विकृत होने से बचाएँ।

2. अच्छे निबंध के लिए कल्पनाशक्ति की आवश्यकता है। यूँ भी कुछ अच्छा करने के लिए जीवन में कल्पना की जरूरत पड़ी है। कल्पना केवल कलाकारों की चीज नहीं है, विज्ञान के मूल में भी कल्पना ही है। किसी भी चीज को सुंदर और सुरुचिपूर्ण बनाने के लिए कल्पना
से काम लेना अत्यावश्यक हो जाता है। कल्पना अज्ञातलोकं का प्रवेशद्वार है। इसका सहारा लेकर एक ही विषय पर हजारों छात्र हजारों प्रकार के निबंध लिख सकते हैं, जबकि “परिचय, लाभ-हानि, उपसंहार” वाली पुरातन नीति पर लिखे गए हजार निबंध लगभग एक ही तरह के होते हैं। बिलकुल पिटी-पिटाई लीक। एकदम एक-सी पहुँच और पकड़। कहीं भी नवीनता या नियंत्रण नहीं।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) निबंध के साथ-साथ कल्पना-शक्ति का, किन विषयों से और किस रूप में लगाव और महत्त्व है?
(ग) कल्पना-शक्ति को लेखक ने क्या माना है? निबंध-लेखन के क्षेत्र में इसकी क्या उपयोगिता है?
(घ) पुरातन रीति से लिखे गए निबंधों की क्या पहचान है? उसके – क्या दोष हैं?
(ङ) इस गद्यांश का सारांश लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-निबंध, लेखक-जगदीश नारायण चौबे

(ख) लेखक की दृष्टि में सफल निबंध के लिए लेखक को कल्पना-शक्ति से संपन्न होना चाहिए। इससे निबंध बड़े रोचक होते हैं। निबंध-लेखन क्षेत्र के अतिरिक्त कल्पनाशक्ति जीवन में कुछ अच्छा करके दिखाने के लिए भी एक आवश्यक तत्त्व है। कल्पना-शक्ति कलाकारों से जुड़ी चीज तो है ही, यह विज्ञान के मूल में भी एक आवश्यक तत्त्व के रूप में क्रियाशील रहती है। इसी तरह किसी चीज को संदर और आकर्षक बनाने के संदर्भ में भी कल्पना-शक्ति की अनिवार्यता

(ग) “निबंध’ पाठ के लेखक की नजर में ‘कल्पना अज्ञात लोक का प्रवेशद्वार है। इस कल्पना-शक्ति का प्रयोग कर एक ही विषय पर हजारों छात्र हजारों ढंग से, हजारों प्रकार के सुरूचिपूर्ण निबंधों को आकर्षक रूप में लिखकर प्रस्तुत कर सकते हैं। इस रूप में कल्पनाशक्ति के उपयोग से सुरुचिपूर्ण ढंग से लिखे हुए निबंध ग्राह्य हो जाते हैं।

(घ) पुरातन रीति पर, अर्थात ‘परिचय, लाभ-हानि’ उपसंहार आदि शब्दों से प्रयुक्त लिखे निबंधों की पहचान और दोष यह है कि वे निबंध अनेक की संख्या में लिखे जाने पर भी सभी एक ही प्रकार और स्वरूप के होते हैं। उनमें कहीं भी नवीनता नहीं होती है और उनकी पहुँच और पकड़ एकदम समान होती है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने पुरातन-पद्धति से लिखे गए निबंधों की विकृति और अग्राह्यता पर प्रकाश डालते हुए छात्रों को कल्पना तत्त्व ऐसे नवीन निबंध तत्त्व का उपयोग करने की सलाह दी है। निबंधकार की यह मान्यता है कि कल्पना-शक्ति के उपयोग से निबंध का स्वरूप आकर्षक, नवीन तथा ग्राह्य हो जाता है।

3. यूँ तो कल्पना और व्यक्तिगत अनुभवों के मेल से बढ़िया निबंध लिखे जा सकते हैं, परंतु निबंध को अगर वजनदार बनाना हो तो तीसरा तत्त्व भी है। विषय से संबंधित आँकड़े, पुस्तकीय ज्ञान, पत्र-पत्रिकाओं की सूचनाएँ तथा विभिन्न लेखों-निबंधों से प्राप्त जानकारियाँ, इन सबों का. यथास्थान उल्लेख करने से निबंध को विचारपूर्ण बनाया जा सकता है। ध्यान इतना जरूर रखना होगा कि परीक्षा में इस तरह के निबंध बहुत ऊबाऊ अथवा बहुत शोधमुखी न हो जाएँ। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी और डॉ. विद्यानिवास मिश्र के वैयक्तिक निबंध इस कोटि में आते हैं, लेकिन वे कहीं से भी उबाऊ प्रतीत नहीं होते।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) लेखक के अनुसार निबंध को वजनदार बनाने के लिए तीसरा तत्त्व क्या है और उसकी क्या उपयोगिता है?
(ग) हिंदी के किन्हीं दो वैयक्तिक निबंधकार के नाम और उनके निबंधों की किसी एक विशेषता का उल्लेख करें।
(घ) परीक्षा में निबंध लिखने में किन-किन बातों पर ध्यान देना जरूरी है?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय/सारांश लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-निबंध, लेखक-जगदीश नारायण चौबे

(ख) निबंधकार के अनुसार निबंध को वजनदार बनाने का तीसरा तन्न है-विषय से संबंधित आँकड़े, किताबी ज्ञान, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित बहुविध सूचनाएँ और विभिन्न लेखों से मिलनेवाली जानकारियाँ। इन्हें संतुलित रूप से उपयोग में लाने से निबंध को हम विचारपूर्ण निबंध की संज्ञा दे सकते हैं। ऐसे विचारपूर्ण निबंध बड़े आकर्षक और ऊबाऊपन के दोषः से सर्वथा मुक्त रहते हैं।

(ग) हिंदी के ढेर सारे वैयक्तिक निबंधकारों में डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी और डॉ. विद्यानिवास मिश्र विशेष चर्चित हैं। इनके द्वारा लिखे गए वैयक्तिक निबंधों की ऐसे तो कई विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं, लेकिन उनमें एक खास विशेषता यह होती है कि ऐसे निबंध विचार-प्रधान होते हैं और किसी रूप में ऊबाऊ न होकर हर रूप में आकर्षक और ग्राह्य होते हैं।

(घ) परीक्षा में वैयक्तिक निबंध लिखने में यह ध्यान देना लाजिमी है कि ये निबंध बोझिल, ऊबाऊ और शोधमुखी न होकर सहज, सरल, सरस तथा आकर्षक हों। परीक्षा में सामान्य रूप से ऐसे निबंधों को इस विकृत रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि वे शोधमुखी, बोझिल और ऊबाऊ हो जाते हैं।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने लेख निबंध के तीन तत्त्वों-कल्पना, व्यक्तिगत अनुभव और विषय से संबद्ध आँकडों, सूचनाओं और जानकारियों की चर्चा कर तीसरे तत्त्व की सार्थकता और उपयोगिता-विशेष पर बल दिया है। लेखक की दृष्टि में तीसरे तत्त्व के उपयोग से निबंध विचारपूर्ण, शोधमुखी तथा आकर्षक हो जाते हैं और उसमें ग्रहणशीलता का गुण बढ़ जाता है।

4. निबंध कहाँ से शुरू करें और कहाँ खत्म करें, यह भी छात्र पूछते नजर आते हैं। यूँ शुरू तो कहीं से भी किया जा सकता है, उस पंक्ति से भी जिसे खत्म करना तय कर लिया है। फिर भी ‘प्रारंभ’ ऐसा रोचक हो कि पाठक पढ़ने के लिए लालायित हो उठे। प्रारंभिक पंक्तियों में उत्सुकता जगानेवाली क्षमता जरूर होनी चाहिए। ‘भारत अब कृषि-प्रधान देश नहीं है’, ‘मैं अपनी गाय बेचना चाहता हूँ’, “एक प्याली चाय की कीमत अब चार रुपये हो जाएगी’, ‘कल से चाय पीना-पिलाना बंद’ जा सकता है। अंत करना तो बहुत आसान है। जहाँ लगे कि अब मेरे पास कहने को कुछ नहीं, बस वहीं और उसी क्षण लिखना बंद कर
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) निबंध-लेखन के कार्य में छात्र क्या पूछा करते हैं?
(ग) लेखक के अनुसार निबंध के प्रारंभ की क्या विशेषता होनी चाहिए?
(घ) निबंध के विषय-प्रवेश के लिए नमूने के रूप में कुछ वाक्य प्रस्तुत करें।
उत्तर-
(क) पाठ-निबंध, लेखक-जगदीश नारायण चौबे

(ख) निबंध-लेखन के कार्य में छात्र अक्सर यह पूछा करते हैं कि निबंध लिखना हम कहाँ से शुरू करें और उसे कहाँ समाप्त करें। यह सवाल छात्र इसलिए , पूछते हैं कि वे जानते हैं कि निबंध के प्रारंभ और अंत के अंश बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन दो अंशों के आकर्षक रहने पर निबंध की सफलता समझी जाती है।

(ग) लेखक के अनुसार निबंध का प्रारंभ रोचक और पाठकों के लिए आकर्षक होना चाहिए। इसके साथ-ही-साथ निबंध की प्रारंभिक पंक्तियों में पाठकों के मन में उत्सुकता जगानेवाली क्षमता होनी चाहिए। यदि निबंध के प्रारंभ में ये गुण व्याप्त हैं, तभी वे पाठकों के मन को आकर्षित करेंगे और पाठक उसे पढ़ने के लिए लालायित हो उठेंगे। यह निबंध के प्रारंभ की विशेषता होनी चाहिए कि वह निबंध के मकान के लिए सुंदर और भव्य प्रवेश-द्वार बन सके।

(घ) निबंध में प्रवेश के लिए नमूने के रूप में हम इन कुछ वाक्यों को उपस्थित कर सकते हैं-

(क) भारत अब कृषि-प्रधान देश नहीं है।
(ख) मैं अपनी गाय बेचना चाहता हूँ।
(ग) एक प्याली चाय की कीमत अब चार रुपये हो जाएगी।
(घ) कल से चाय पीना-पिलाना बंद। ये वाक्य ऐसे कुछ नमूने हैं जिनको प्रयोग में लाकर हम निबंध के विषय में प्रवेश करने के लिए साधन-संपन्न हो सकते हैं।]

(ङ) लेखक के अनुसार निबंध का अंत करना बिलकुल सामान्य और आसान बात है। इसके लिए किसी खास सावधानी तथा विषय के चयन की आवश्यकता नहीं है। निबंध-लेखक को जहाँ यह लगे कि अब उस निबंध के लिए उसके पास कुछ कहने को नहीं बचा है, बस उसे वहीं तत्काल लिखना बंद कर निबंध लेखन में पूर्णविराम लगा देना चाहिए। इस कार्य में मोह-ममतावश कुछ इससे अधिक लिखने की कोई जरूरत नहीं है। निबंध का ऐसा ही स्वाभाविक अंत विशिष्ट और उत्तम माना जाता है।

5. पाठ लेखक का कर्तव्य है कि छात्र को सही भाषा प्रयोग-संबंधी उदाहरण अपने लेखन के जरिए ही दें, क्योंकि एक अवस्था तक छात्रों की धारणा रहती है कि हिंदी जितनी अलंकृत और अस्वाभाविक होगी, अंक उतने ही अधिक मिलेंगे। भाषा सहज हो। लिखने के समय भी वह उतनी ही सहज रहे, जितनी सोचने के समय रहती है। बीच-बीच में मोहवश ऐसे शब्द न खोंसें, जिन्हें निर्ममतापूर्वक दूसरा आदमी उखाड़ या नोच दे। वाक्य छोटे हों। बड़े-बड़े वाक्य तभी लिखें, जब भाषा की गति को सँभालने और नियंत्रित करने के गुण आ जाएँ। भाषा पर अधिकार हो जाने के उपरांत तो हम जैसा चाहें, वैसा लिख सकते हैं, लेकिन अपने पाठक का ध्यान तब भी उसे रखना होगा। निबंध को सुरुचिपूर्ण बनाने की दिशा में भाषा के महत्त्व को बराबर ध्यान में रखना होगा, तभी मेहनत सार्थक होगी।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) एक अवस्था तक निबंध-लेखन में छात्रों की भाषा-संबंधी क्या गलत धारणा रहती है?
(ग) छात्रों की भाषा-संबंधी गलत अवधारणा को कैसे दूर किया जा सकता है?
(घ) निबंध में कब छोटे वाक्यों की जगह बड़े वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए? निबंध को कैसे सुरूचिपूर्ण बनाया जा सकता
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय/सारांश लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-निबंध, लेखक-जगदीश नारायण चौबे

(ख) निबंध लिखने के क्रम में एक अवस्था तक छात्रों की यह गलत धारणा रहती है कि निबंध की भाषा जितनी अलंकृत, अस्वाभाविक तथा सजी-धजी होगी उस निबंध में उतने ही अधिक अंक मिलेंगे। इसलिए छात्र सहज भाषा का प्रयोग नहीं करते। निबंधकार की दृष्टि में छात्रों की यह धारणा बिलकुल गलत है। अलंकृत भाषा से सजे निबंध कभी भी सफल नहीं कहे जा सकते।

(ग) छात्रों की भाषा-संबंधी इस गलत धारणा को काफी सुगम और सामान्य रूप से दूर किया जा सकता है। इसके लिए उनहें निबंध को सहज भाषा में लिखना चाहिए। भाषा की यह सहजता जिस रूप में निबंध-लेखन के समय रहे, उसी रूप में उसे सोचने के समय भी रहना चाहिए। निबंध-लेखक को बीच-बीच में मोहवश निर्ममतापूर्वक अग्राह्य शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(घ) निबंध में बड़े-बड़े वाक्यों को छोड़कर छोटे-छोटे वाक्य लिखना चाहिए। इससे निबंध को समझने में सरलता बनी रहती है। निबंध के नए लेखकों को उसी समय बड़े-बड़े वाक्य लिखना चाहिए जब उनमें भाषा की गति को नियंत्रित करने और सँभालकर रखने की क्षमता आ जाए। अर्थात्, भाषा पर पहले अधिकार हो जाए तभी वे छोटे-छोटे वाक्यों की जगह बड़े-बड़े वाक्य लिख सकते हैं। निबंध को सुरुचिपूर्ण बनाने के लिए हमें भाषा के महत्त्व को बराबर ध्यान में रखकर उसी के अनुसार निबंध को लिखना होगा।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने सफल निबंध के लिए अपेक्षित भाषा-शैली-संबंधी कुछ बातें लिखी हैं। निबंधकार का कहना है कि विद्यार्थी निबंध लेखक को निबंध में अलंकृत और अस्वाभाविक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उन्हें हर स्थिति में यह सावधानी बरतनी चाहिए प्रयुक्त वाक्य छोटे-छोटे हों। बड़े-बड़े वाक्य वे तब लिखें जब उनमें भापा की गति को सँभालने और नियंत्रित करने की क्षमता आ जाए। भाषा के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही सुरुचिपूर्ण निबंधों का लेखन किया जा सकता है।


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