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BSEB Class 9 Hindi Godhuli Chapter 8 पधारो म्हारे देश Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi Godhuli Chapter 8 पधारो म्हारे देश Book Answers |
Bihar Board Class 9th Hindi Godhuli Chapter 8 पधारो म्हारे देश Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 9th |
Subject | Hindi Godhuli Chapter 8 पधारो म्हारे देश |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 9th Hindi Godhuli Chapter 8 पधारो म्हारे देश Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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Padharo Mhare Desh In Hindi Bihar Board Class 9 प्रश्न 1.
‘हाकड़ो’ राजस्थानी समाज के हृदय में आज भी क्यों रचा-बसा है?
उत्तर-
कोई हजार बरस पुरानी डिंगल भाषा में और आज की राजस्थानी में भी हाकड़ो शब्द उन पीढ़ियों की लहरों में तैरता रहा है, जिनके पुरखों ने भी कभी समुद्र नहीं देखा था।
Marubhoomi Chali Questions Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 2.
‘हेल’ नाम समुद्र के साथ-साथ अन्य कौन से अर्थ को दर्शाता है?
उत्तर-
इसका अर्थ समुद्र के साथ-साथ विशालता और उदारता भी है।
Class 9 Hindi Chapter 8 Question Answer Bihar Board प्रश्न 3.
किस रेगिस्तान का वर्णन कलेजा सुखा देता है?
उत्तर-
थार रेगिस्तान का वर्णन कुछ ऐसा है कि कलेजा सूख जाता है।
Class 9 Hindi Chapter 8 Bihar Board प्रश्न 4.
भूगोल की किताबें किनके ‘अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह देखती है और क्यों?
उत्तर-
भूगोल की किताबें प्रकृति को वर्षा को यहाँ अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह देखती हैं और राज्य के पश्चिमी क्षेत्र को इस महाजन का सबसे दयनीय शिकार बताती हैं।
प्रश्न 5.
राजस्थानी समाज ने प्रकृति से मिलने वाले इतने कम पानी का रोना क्यों नहीं रोया?
उत्तर-
वातावरण की असमानता के बावजूद भी राजस्थानी समाज ने प्रकृति से – मिलने वाले इतने कम पानी के लिए रोया नहीं अपितु इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और ऊपर से नीचे तक कुछ इस ढंग से खड़ा किया कि पानी का स्वभाव समाज के स्वभाव में बहुत सरल ढंग से बहने लगा।
प्रश्न 6.
“यह राजस्थान के मन की उदारता ही है कि विशाल मरुभूमि में रहते हुए भी उसके कंठ से समुद्र के इतने नाम मिलते हैं?” इस कथन का क्या अभिप्राय है।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ अनुपम मिश्र द्वारा लिखित “पधारो म्हारे देश” शीर्षक से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने राजस्थानी भाषा का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है।
लेखक ने संस्कृत में विरासत से समुद्र के नाम के साथ राजस्थानी लोगों की भाषा में समुद्र के नामों को अंकित किया है जैसे आच, उअह, देधाणा, वडनीर, वारहर, सफरा-भंडार। यह राजस्थान के मन की उदारता है, इसकी दृष्टि भी बड़ी विचित्र रही होगी। सृष्टि की जिस घटना को घटे हुए लाखों बरस हो चुके, जिसे घटने में हजारों बरस लगे, उस सबका जामा घाटा का भी बड़ा विचित्र एवं विचारणीय राजस्थानी भावना का वर्णन किया है।
प्रश्न 7.
जल संग्रह कैसे करना चाहिए?
उत्तर-
राजस्थान के लोगों ने राँको, कुड-कुडियों, बेरियों, जोहड़ों, नाडियो, तालाबों, बावड़ियों और कुएँ, कुँइयों को अखंड हाकड़ों को खंड-खंड कर नीचे उतार कर पानी संचित करने की अनोखी परंपरा का राजस्थान की लोगों ने विकास किया।
प्रश्न 8.
त्रिकूट पर्वत कहाँ है?
उत्तर-
आज के जैसलमेर के पास त्रिकूट पर्वत है।
प्रश्न 9.
‘धरती धोरां री’ किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर-
राजस्थान के पुराने इतिहास में मरुभूमि का या अन्य क्षेत्रों का भी वर्णन सूखे, उजड़े और एक अभिशप्त क्षेत्र की तरह नहीं मिलता। रेगिस्तान के लिए आज प्रचलित धार शब्द भी ज्यादा नहीं दिखता। अकाल पड़े हैं: कहीं-कहीं पानी का कष्ट भी रहा है पर गृहस्थों से लेकर जोगियों ने, कवियों से लेकर मांगणियारों ने, लंगाओं ने, हिन्दू-मुसलमानों ने इसे ‘धरती धोरांरी’ कहा है।
प्रश्न 10.
मरुनायकजी कहकर किसे पुकारा गया है? उनकी भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर-
मरुनायक जी श्रीकृष्ण को कहा गया है। मरुनायक जी का वरदान और फिर समाज के नायकों के वोज, सामर्थ्य का एक अनोखा संजोग हुआ। इस संजोग से बाजलतो-ओजतो यानी हरेक द्वारा अपनाई जा सकने वाली सरल, सुंदर रीति को जन्म मिला।
प्रश्न 11.
राजस्थान में वर्षा का स्वरूप क्या है?
उत्तर-
औसत बताने वाले आंकड़े भी यहाँ का कोई ठीक चित्र नहीं देते। राज्य में एक छोर से दूसरे छोर तक कभी भी एक सी वर्षा नहीं होती। कहीं यह 100 सेंटीमीटर से अधिक है तो कहीं 25 सेंटीमीटर से भी कम।
प्रश्न 12.
‘रीति’ के लिए राजस्थान में ‘वोज’ शब्द है। यह क्या-क्या अर्थ रखता है?
उत्तर-
‘वोज’ शब्द का अर्थ है रचना, युक्ति और उपाय साथ ही, सामर्थ्य, विवेक और विनम्रता के लिए भी इस शब्द का उपयोग होता रहा है।
प्रश्न 13.
लेखक ने ‘जसढोल’ शब्द का किस अर्थ में प्रयोग किया है और क्यों?
उत्तर-
‘जस ढोल’ शब्द का अर्थ है प्रशंसा करना। राजस्थान ने वर्षा के जल का संग्रह करने का अपनी अनोखी परंपरा को विकासित किया और उसके जस का कभी ढोल नहीं बजाया।
प्रश्न 14.
इस फीचर को पढ़कर आपको क्या शिक्षा मिली है? आप, इसका उपयोग कैसे करेंगे?
उत्तर
-इस फीचर को पढ़ने के बाद राजस्थान की समस्या से अवगत होते हुए उसके निदान के लिए वहाँ के लोगों द्वारा किये गये उपायों से हमें क्षा मिलती है कि हम पर्यावरण की रक्षा में आनेवाले दिक्कतों का शक्ति से उन्मान करें। वैज्ञानिक तरीकों या अपनी पुरानी परंपरा से सबक लें।
प्रश्न 15.
लेखक क्यों ‘पधारो म्हारे देस’ कहते हैं?
उत्तर-
देश पानी के मामले में बिल्कुल ‘ऊँचा’ गाने लगे, सूखे माने गए इस हिस्से राजस्थान में, मरुभूमि में फली-फूली जल संग का भव्य परंपरा का विकास हो। इसलिए लेखक ‘पधारो म्हारे देस’ कहा है
नीचे लिखें गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर
1. यह राजस्थान के मन की उदारता ही है कि विशाल मरुभूमि में रहते हुए भी उसके कंठ में समुद्र के इतने नाम मिलते हैं। इसकी दृष्टि भी , बड़ी विचित्र रही होगी। सृष्टि की जिसको घठे हुए ही लाखों वर्ष हो चुके, जिसे घटने में भी हजारों वर्ष लगे, उस सबका जमा-घाटा करने कोई बैठे तो आँकड़ों के अनंत विस्तार के अंधेरे में खो जाने के सिवा और क्या हाथ लगेगा। खगोलशास्त्री लाखों, करोड़ों मील की दरियों को ‘प्रकाश-वर्ष’ से मापते हैं। लेकिन सजस्थान के मन चे तो युगों की भारी-भरकम गुना-भाग को पलक झपक कर निपटा दिया। इस बड़ी घटना को वह ‘पलक दरियाव की तसा याद रखे हैं-पलक झपकते ही दरिया का सुख जाना भी इसमें शामिल है और भविष्य में इस सूखे स्थल का क्षणभर में फिर से दरिया बन जाना भी।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) राजस्थान के मन की क्या उदारता है?
(ग) राजस्थान में किस घटना को घटे लाखों बरस हो चुके? स्पष्ट करें।
(घ) खगोलशास्त्री क्या करते हैं? राजस्थान के मन ने क्या निपटा दिया। स्पष्ट करें।
(ङ) ‘पलक दरियाव’ के अर्थ को राजस्थानी जीवन के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्र।
(ख) राजस्थान की गोद में कभी समुद्र की अपार जलराशि शोभायमान थी।
आज वहाँ मरुभूमि की तप्त बालुकाराशि कहर ढा रही है। यह राजस्थानी मन की उदारत’ है कि इस विपरीत परिस्थिति में भी वे समुद्र की महिमा को भूले नहीं हैं। उन्हें समुद्र के विविध नाम कंठस्थ है। जल से दगा खकर भी वे जलराशि के नाम का जाप कर रहे हैं।
(ग) राजस्थान की भूमि से समुद्र के पलायन की घटना लाखों वर्ष पूर्व घटी घटना है। यह प्रमाण है कि लाखों वर्ष पूर्व कभी राजस्थान में जल-समुद्र लहराता था। लेकिन, परिवर्तन का भौगोलिक चक्र कुछ ऐसा चला कि वहाँ रेत के समुद्र का साम्राज्य फैल गया।
(घ) खगोलशास्त्री लंबी मीलों की दूरियों को ‘प्रकाश-वर्ष में मापते हैं, लेकिन राजस्थानी जीवन-दृष्टि की यह विशेषता रही है कि वे इस दूरी के गणित को पलक-झपट की अल्पावधि में ही हल करके बैठे हुए हैं।
(ङ) ‘पलक दरियाव’ शब्द का अर्थ है-पलक झपकते ही दरिया, अर्थात् नदी का सूख जाना। राजस्थान में कभी समुद्र की अपार जलराशि लहराती थी। लेकिन, एक समय ऐसा भी आया कि वह अपार जलराशि देखते-ही-देखते, अर्थात् पलक झपकते ही सूख गई।
2. भूगोल की किताबें प्रकृति को, वर्षा को यहाँ ‘अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह देखती हैं और राज्य के पश्चिमी क्षेत्र को इस महाजन का सबसे
दयनीय शिकार बताती हैं। इस क्षेत्र में जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, जोधपुर और श्रीगंगानगर आते हैं। लेकिन, यहाँ कंजूसी में भी कंजूसी मिलेगी। वर्षा का ‘वितरण’ बहुत असमान है। पूर्वी हिस्से से पश्चिमी हिस्से की तरफ आते-आते वर्षा कम-से-कम होती जाती है। पश्चिम तक जाते-जाते वर्षा सूरज की तरह ‘डूबने लगती है। यहाँ पहुँचकर वर्षा सिर्फ 16 सेंटीमीटर रह जाती है। इस यात्रा की तुलना कीजिए दिल्ली से, जहाँ 150 सेंटीमीटर से ज्यादा पानी गिरता है, तुलना कीजिए उस गोवा से, कोंकण से, चेरापूँजी से, जहाँ यह आँकड़ा 500 से 1000 सेंटीमीटर तक जाता है। (क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) भूगोल की किताब राजस्थान के संदर्भ में क्या देखती है?
(ग) “लेकिन, यहाँ कंजूसी में भी कंजूसी मिलेगी।’-इस कथन को स्पष्ट करें।
(घ) ‘राजस्थान में वर्षा का वितरण बहुत असमान है।’ उदाहरण देकर समझाइए।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्रा
(ख) भूगोल की किताब यह बताती है कि राजस्थान वर्षा के मामले में अंतिम, अर्थात् सबसे कम बिंदु पर स्थित है। इस विषय की पुस्तक यह बताती है कि राजस्थान में प्रकृति, अर्थात् वर्षा सबसे कंजूस महाजन बनी हुई है अर्थात् यहाँ वर्षा बहुत कम होती है।
(ग) राजस्थान में वर्षा कंजूस है, अर्थात वहाँ वर्षा कम होती है। वहाँ के आँकड़े यह बताते हैं कि वहाँ वर्षा कम नहीं, अपितु अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम होती है। यहाँ पूरे साल में सिर्फ 60 सेंटीमीटर वर्षा होती है। इसीलिए लेखिका ने कहा है कि यहाँ की वर्षा में कंजूसी नहीं, अपितु बहुत कंजूसी दिखाई पड़ती है।
(घ) राजस्थान में वर्षा का वितरण बहुत असमान है, अर्थात् वहाँ एक समान वर्षा नहीं होती है। पूर्वी हिस्से से पश्चिमी हिस्से की तरफ बढ़ते-बढ़ते हम पाते हैं कि वर्षा कमती चली जा रही है। कहीं यह वर्षा 100 सेंटीमीटर से ज्यादा है, तो कहीं 25 सेंटीमीटर से भी कम।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने वर्षा के मामले में भूगोल की दृष्टि का परिचय दिया है। यहाँ यह भौगोलिक तथ्य उजागर हैं कि राजस्थान में इस देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा कम ही नहीं, बहुत कम वर्षा होती हैं। दूसरी बात यह है कि यहाँ वर्षा का वितरण असमान है-कहीं वर्षा कम है तो कहीं उससे भी बहुत कम है।
3. मरुभूमि में सूरज, गोवा चेरापूँजी की वर्षा की तरह बरसता है। पानी कम और गरमी ज्यादा। ये दो बातें जहाँ मिल जाएँ वहाँ जीवन दूभर हो जाता है, ऐसा माना जाता है। दुनिया के बाकी मरुस्थलों में भी पानी लगभग इतना ही गिरता है, गरमी लगभग इतनी ही पड़ती है। इसलिए वहाँ । बसावट बहुत कम ही रही है। लेकिन, राजस्थान के मरुप्रदेश में दुनिया के अन्य ऐसे प्रदेशों की तुलना में न सिर्फ बसावट ज्यादा है, उस बसावट में जीवन की सुगंध भी है। यह इलाका दूसरे देशों की मरुस्थलों की तुलना में सबसे जीवंत माना गया है।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) राजस्थान में जीवन बड़ा दूभर है। क्यों और कैसे?
(ग) सामान्य रूप से मरुस्थलों की मौसम संबंधी कौन-सी विशेषता है? राजस्थानी मरुस्थल के मौसम से उसका क्या अंतर है?
(घ) राजस्थान का इलाका सबसे जीवंत माना गया है, क्यों और कैसे?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्रा
(ख) राजस्थान रेगिस्तान की भूमि है। वहाँ पानी बहुत कम है और गर्मी अधिक है। जहाँ ये दोनों बातें रहती हैं वहाँ जीवन दूभर हो जाता है। इसीलिए लेखक ने यह माना है कि अतिवादिता में साँस लेनेवाला राजस्थानी जीवन बड़ा दूभर है।
(ग) सामान्य रूप से दुनिया के मरुस्थलों के क्षेत्र में पानी के अनुपात में ही गरमी पड़ती है यानी जितना कम पानी पड़ता है, गरमी उतनी ही ज्यादा पड़ती है। फलतः उन मरुस्थल प्रदेशों में बसावट कम रही है। लेकिन, राजस्थान में मरुप्रदेश में उन मरुप्रदेशों की तुलना में बसावट अधिक है।
(घ) लेखक की दष्टि में राजस्थान मरुप्रदेश होकर भी बडा जीवंत प्रदेश है। वहाँ के लोगों ने अपने प्रदेश में व्याप्त वर्षा एवं गरमी संबंधी कटु सत्य को चुनौती के रूप में स्वीकारा है और अपने जीवन को कला के साँचे में ढालकर उसे शाश्वत सत्य के रूप में स्वीकारा है। वे कभी मरुस्थल की पीड़ा का रोना नहीं रोते, बल्कि इस पीड़ा में जीवन के उल्लास की सुगंधि का अनुभव करते हैं। इसीलिए, वहाँ का जीवन बड़ा जीवंत है।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक के कथन का आशय यह है कि राजस्थान मरुभूमि का प्रदेश होकर भी जीवन की सुगंधि और जीवंतता का प्रदेश बना हुआ है। वहाँ वर्षा कम होती हैं और गरमी अधिक पड़ती है। इसलिए, वहाँ का जीवन दूभर हो गया है। लेकिन, लेखक ने बताया है कि वहाँ की जीवन-शैली और कला ने जीवन की दूभरता की पीड़ा को बड़े ही व्यावहारिक रूप से आत्मसात् कर लिया है जिससे वहाँ का जीवन बाहर से दूभर, लेकिन भीतर से जीवंत है।
4. पानी के काम में यहाँ भाग्य भी है और कर्तव्य भी। वह भाग्य ही तो था कि महाभारत युद्ध समाप्त हो जाने के बाद श्रीकृष्ण करुक्षेत्र से अर्जुन को साथ लेकर वापस द्वारका इसी रास्ते से लौटे थे। उनका रथ मरुदेश पार कर रहा था। आज के जैसलमेर के पास त्रिकूट पर्वत पर उत्तुंग ऋषि तपस्या करते हुए मिले थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें प्रणाम किया था और उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें वर माँगने को कहा था। उत्तुंग का अर्थ है, ऊँचा। वे सचमुच बहुत ऊँचे थे। उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं माँगा। प्रभु से प्रार्थना की कि “यदि मेरे कुछ पुण्य हैं तो भगवान वर दें कि इस क्षेत्र में कभी जल का अकाल न रहे।” “तथास्तु”, भगवान ने वरदान दिया था।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) “पानी के काम में यहाँ भाग्य भी है और कर्तव्य भी।”-इस कथन को स्पष्ट करें।
(ग) श्रीकृष्ण से राजस्थान में किस ऋषि ने कब और क्या वरदान माँगा था?
(घ) उस ऋषिविशेष के नाम की सार्थकता स्पष्ट करें।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्न
(ख) राजस्थान में पानी के काम में भाग्य और कर्तव्य दोनों है। भाग्य यह है कि इस भूमि पर भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तुंग ऋषि को यह वरदान दिया था कि इस क्षेत्र में कभी जल का अकाल नहीं पड़ेगा। इसलिए वहाँ जल बराबर संचित मिलता है। इस क्षेत्र में वहाँ कर्तव्य भी काम कर रहा है और वह इस रूप में कि वहाँ के लोग काफी प्रयत्न कर प्रकृति से प्राप्त वर्षा जल की एक-एक बूंद को योजनाबद्ध तरीके से संचित किए रहते हैं और प्रयत्नपूर्वक उसका सदुपयोग करते है।
(ग) महाभारत युद्ध की समाप्ति के उपरांत श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र से अर्जुन को साथ लेकर जब द्वारिका लौट रहे थे, तो रास्ते में आज के जैसलमेर के पास त्रिकूट पर्वत पर तपस्या में लीन उत्तुंग ऋषि को तथास्तु कहकर यह वरदान दिया था कि इस क्षेत्र में कभी जल का अकाल नहीं पड़ेगा।
(घ) उस ऋषि विशेष का नाम था ‘उत्तुंग’ जिसका अभिप्राय है ऊँचा। उत्तुंग ऋषि सचमुच बहुत ऊँचे थे। उन्होंने श्रीकृष्ण से वरदान में अपने लिए कुछ नहीं माँगा, बल्कि प्रदेश के कल्याण के लिए ही वरदान के रूप में श्रीकृष्ण से कुछ माँगा। उनकी माँग थी कि “यदि मेरे कुछ पुण्य है तो भगवान वर दें कि इस क्षेत्र में कभी जल का अकाल न रहे।”
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह दर्शाया है कि राजस्थान में पानी के काम में भाग्य और कर्तव्य दोनों के विधान शामिल है। राजस्थान के पुत्र उत्तुंग ऋषि ने भगवान श्रीकृष्ण से यह वरदान पाया था कि यहाँ जल का कभी अकाल नहीं रहेगा और वह रहता भी नहीं है इसलिए कि लोगों ने कर्म के विधान द्वारा वर्षा से प्राप्त जल की हर बूंद का संचय योजनाबद्ध तरीके से करना सीखा है।
5. जसढोल, यानी प्रशंसा करना। राजस्थान ने वर्षा के जल का संग्रह करने की अपनी अनोखी परंपरा का, उसके जस का कभी ढोल नहीं बजाया। आज देश के लगभग सभी छोटे-बड़े शहर, अनेक गाँव, प्रदेश की राजधानियाँ और तो और देश की राजधानी तक खूब अच्छी वर्षा के बाद भी पानी जुटाने के मामले में बिलकुल कंगाल हो रही है। इससे पहले कि देश पानी के मामले में बिल्कुल “ऊँचा” सुनने लगे, सूखे माने गए इस हिस्से राजस्थान में, मरुभूमि में फली-फूली जल-संग्रह की भव्य-परंपरा का जसढोल बजना ही चाहिए। पधारो म्हारे देस।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) राजस्थान में जल-संग्रह की अनोखी परंपरा क्या है?
(ग) ‘जसढोल’ का अर्थ राजस्थानी समाज के संदर्भ में स्पष्ट करें।
(घ) आज देश के अधिकांश शहर किस मामले में बिलकुल कंगाल हो रहे हैं?
(ङ) राजस्थान में किसका जसढोल बजना चाहिए?
उत्तर-
(क) पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्र
(ख) राजस्थान में जल-संचय की अनोखी परंपरा यह है कि वहाँ कम वर्षा के बावजूद पानी का कभी अकाल नहीं पड़ता, क्योंकि लोग वहाँ पानी जुटाने के मामले में कंगाल नहीं हैं। वे योजनाबद्ध तरीके से वर्षा से प्राप्त जल की हर बूँद को मूल्यवान संपत्ति की तरह सहेज कर रखते हैं।
(ग) राजस्थान के लोग जल-संचय जैसा बड़ा प्रशंसित कार्य करते हैं, लेकिन वहाँ के लोग इस यश का ढोल बजाकर प्रचार नहीं करते। वे चुपचाप पानी जुटाने के मामले में सच्चे कर्म साधक बने रहते हैं।
(घ) आज देश के अधिकांश शहर खूब अच्छी वर्षा के जल से कृतार्थ होकर भी पानी जुटाने के मामले में बिलकुल कंगाल हो रहे है। उन शहरों में राजस्थान की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है फिर भी वहाँ पानी के अभाव की पीड़ा बनी रहती है; क्योंकि वह जल के संचय और सदुपयोग की कला से परिचित नहीं हैं।
(ङ) राजस्थान में जल-संग्रह के कार्य की भव्य परंपरा बन गई है। उस परंपरा का जसढोल बजना चाहिए यानि इस आदर्श परंपरा का प्रचार और प्रसार होना चाहिए ताकि लोग इसे अपने-अपने क्षेत्रों में भी अपनाएँ और उन्हें जल के अकाल की पीड़ा से मुक्ति मिले और इस पीड़ा का उन्हें रोना-रोना न पड़े। इस स्थिति में उनका समग्र जीवन जीवंत और सुगंधमय होगा।
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