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BSEB Class 8 Sanskrit Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद: Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 8th Sanskrit Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद: Book Answers |
Bihar Board Class 8th Sanskrit Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद: Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 8th |
Subject | Sanskrit Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद: |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 8th Sanskrit Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद: Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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(अष्टमकक्षायाः दृश्यम्, आसनेषु स्थिता: बालकाः बालिकाश्च । पृष्ठभूमौ कृष्णपट्टः समक्षं फलकम्, तस्योपरि मार्जनी पट्टलेखी च । शिक्षकस्य प्रवेशः, सर्वे छात्राः उत्तिष्ठन्ति ।)
अर्थ – अष्टम वर्ग का दृश्य है, अपने-अपने आसन (बेंच) पर लड़के और लड़कियाँ बैठी हैं। पृष्ठभूमि (सामने की दीवार) में श्यामपट्ट (ब्लैकबोर्ड) सामने में टेबुल, उसपर डस्टर और खल्ली है। शिक्षक का प्रवेश होता है। सभी छात्र उठ जाते हैं।).
छात्राः (समवेतस्वरेण) प्रणमामो वयं सर्वे।
अर्थ – छात्रों – (एक स्वर में) हम सब आपको प्रणाम करते हैं।)
शिक्षक (दक्षिणं हस्तमुत्थाप्य) – तिष्ठन्तु सर्वे । ।
अर्थ – (दाहिना हाथ उठाकर) सभी बैठ जाएँ।
भावना – गुरुवर ! अद्य किं पाठयिष्यति ?
अर्थ – (गुरुवर ! आज क्या पढाएँगे?)
शिक्षकः – अद्य अनेकान् विषयान् कथयिष्यामि । आदौ विद्यायाः ‘महत्त्वम् ।
अर्थ- आज अनेक विषयों को कहूँगा । सबसे पहले विद्या के महत्त्व को बताता हूँ।
शीला – शोभनम् । विद्याविषये तु अस्माकमपि जिज्ञासा वर्तते।।
अर्थ – अच्छा है। विद्या के विषय में सुनने की जिज्ञासा हमलोगों की भी।
अर्थ – आज अनेक विषयों को कहूँगा । सबसे पहले विद्या के महत्त्व को बताता हूँ। :
शीला – शोभनम् । विद्याविषये तु अस्माकमपि जिज्ञासा वर्तते ।
अर्थ – अच्छा है। विद्या के विषय में सुनने की जिज्ञासा हमलोगों की भी
शिक्षकः तर्हि एवं प्राचीनं श्लोकं स्मरतु :
अर्थ – तो इस प्राचीन श्लोक को याद करें।
न चौरहार्यं न च राजहार्य, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।..
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम ॥
अर्थ – विद्या चोर के चुराने योग्य नहीं है और न राजा के द्वारा हरने योग्य है, भाईयों के बीच बाँटने योग्य भी नहीं है और न यह भारी ही लगता है। खर्च करने पर सदैव बढ़ता है। इसीलिए तो कहां गया है विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।
मोईन:-अयं तु अतीव प्रसिद्धः श्लोकः । धनानां सीमा वर्तते, विद्या तु असीमा । अपि किञ्चिदस्ति विद्याविषयकं सुभाषितम् ?
अर्थ – यह तो बहुत प्रसिद्ध श्लोक है। धन की सीमा होती है। विद्या – तो असीम (सीमा रहित) है। विद्या विषय पर कोई और भी सुभाषित है?
शिक्षकः-बहूनि सन्ति । यथा-विद्ययाऽमृतमश्नुते, विद्या ददाति विनयम, विद्याविहीनः पशुः इत्यादीनि । अपरमपि अद्य वदिष्यामि ।
अर्थ – बहुतों हैं। जैसे-विद्या से अमृत (अमरता) की प्राप्ति होती है, विद्या विनम्रता देती है। विद्या से विहीन लोग पशु के समान होते हैं इत्यादि । अन्य भी आज बताऊँगा।
पंकज – तत्रापि रोचकं किमपि कथयतु । वयं किशोराः स्मः । अस्माकं जीवनस्य लक्ष्यं वदतु भवान् ।
अर्थ – वहीं पर कुछ रोचक बातें भी कहें । हम सभी किशोर हैं। हमारे जीवन के लक्ष्य को आप बताएँ।
शिक्षक: यस्मिन् देशे समाजे च वयं निवसामः तं प्रति सर्वेषां किशोराणां कर्त्तव्यमस्ति । अस्याम् अवस्थायां स्वस्थम् आचरणं यदि भवेत् तदा सर्वत्र कल्याणं
शान्तिः सुखं च प्रसरेत् । कुत्रापि विषमताभावं न ध रियेत् । यदपि शारीरिक मानसिकं च परिवर्तनं किशोरावस्थायां भवति, तत् सर्व प्राकृतिकमेव । अतः आश्चर्यं नास्ति ।
अर्थ – जिस देश और समाज में हमलोग रहते हैं उसके प्रति सभी किशोरों (युवकों) का कर्तव्य है। इस अवस्था में स्वस्थ आचरण यदि हो , तो सब जगह कल्याण, शान्ति और सुख का प्रसार होगा । कहीं भी विलगाव
का भाव नहीं धारण करना चाहिए । जबकि शारीरिक और मानसिक परिवर्तन किशोर अवस्था में होता है। यह सब प्राकृतिक ही होता है। अतः इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
वसुन्धरा-गुरुवर ! किशोरान् प्रति भवतः कः उपदेशः ?
अर्थ – गुरुवर ! किशोरों के प्रति आपका क्या उपदेश है।
शिक्षकः – किशोराः अस्मिन् वयसि उद्विग्नाः भवन्ति, सर्वत्र शीघ्रतां कुर्वन्ति । तत् नास्ति उचितम् । सर्वं कार्य कालेन भवति । ईर्ष्या, द्वेषः, लोभः, क्रोधः, अपशब्दानां प्रयोगः, आलस्यम् इत्येते सर्वे दोषाः सन्ति । अतः तेषां परित्यागेन किशोराः किशोर्यश्च विद्यायाः पात्राणि भवन्ति । अन्यथा सर्वम् अध्ययनं व्यर्थम्
अपि च येन कार्येण वयं उद्विग्नाः भवामः तथा अपरान् प्रति न करणीयम् । उक्तञ्च
अर्थ – नवयुवक इस उम्र में उत्तेजित हो जाते हैं। सब जगह शीघ्रता करते. हैं। यह उचित नहीं है सभी कार्य समय से होता है। ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, क्रोध, गाली-गलौज का प्रयोग करना और आलस्य ये सभी दोष हैं । अत: इन सबों का परित्याग करने से किशोर और किशोरी (लड़के-लड़कियाँ) विद्या के पात्र होते हैं। अन्यथा सभी पढ़ाई व्यर्थ हो जाता है। जिस कार्य को करने से हमलोग उत्तेजित हो जाते हैं वह कार्य दूसरों के प्रति नहीं करना चाहिए। कहा गया है-
पालनीयं तु सर्वत्र किशोरैरनुशासनम् ।
न क्रोधेन न लोभेन तेषामपि हितं भवेत् ॥
अर्थ – नवयवकों को अनुशासन का पालन सब जगह करना चाहिए। क्रोध और लोभ नहीं करने से उनका (छात्रों का) हित होता है।
त्याज्यं च मादकं द्रव्यं त्यजेदपि कुसंगतिम् ।
पितरौ प्रणमेत् नित्यम् आद्रियेत गुरुनपि ।
अर्थ – मादक पदार्थों का त्याग करना चाहिए। बुरी संगति का त्याग करना चाहिए। माता-पिता को प्रतिदिन प्रणाम करना चाहिए और गुरु का आदर करना चाहिए।
समाजस्योपकाराय कुर्याद् देशहिताय च ।
एवं कृते किशोराणां कल्याणं सार्वकालिकम् ॥
अर्थ – समाज के उपकार के लिए और देश के हित के लिए काम करना चाहिए। ऐसा करने से नवयुवकों का सदैव कल्याण रहेगा।
छात्रा: – अतीव कल्याणकरं वस्तुं दर्शितं भवता।
अर्थ – बहुत कल्याणप्रद बातों को बताया आपने ।
(छात्राः प्रमुदिताः प्रतीयन्ते । शिक्षकः वर्गात् निर्गच्छति ।)
अर्थ – (छात्र लोग खुश नजर आते हैं। शिक्षक वर्ग से निकलते हैं।)
शब्दार्थ
आसनेषु = आसनों पर । पृष्ठभूमौ = पृष्ठभूमि में । कृष्णपट्ट = श्यामपट्ट (Blackboard) । समक्षम् = सामने । फलकम् = टेबुल । तस्योपरि = उसके ऊपर । मार्जनी = डस्टर । पट्टलेखी = चॉक । उत्तिष्ठन्ति = उठते हैं। समवेतस्वरेण = एक स्वर में । दक्षिणम् = दायाँ । हस्तमुत्थाप्य (हस्तम् + उत्थाप्य) = हाथ उठाकर । पाठयिष्यति = पढ़ाएँगे। कथयिष्यामि = कहूँगा । आदौ = आरम्भ (शुरू) में । शोभनम् = अच्छा । विद्याविषये =
जिज्ञासा = जानने की इच्छा । तर्हि = तो । स्मरतु = याद रखें । चौरहार्यम् = चोर द्वारा चुराने योग्य । राजहार्यम् = राजा द्वारा छीनने योग्य । भ्रातृभाज्यम् = भाई द्वारा बाँटने योग्य । भारकारि = भार या बोझ देने वाला । व्यये कृते = खर्च करने पर । वर्धत एव = बढ़ता ही है। नित्यम् = हमेशा, सदा । विद्याधनम् = विद्यारूपी धन । सर्वधनप्रधानम् = सभी धनों में प्रधान । असीमा = असीमित । किञ्चित् = कुछ, कोई । विद्याविषयकम् = विद्या से सम्बन्धित । बहूनि = अनेक । विद्ययाऽमृतमश्नुते = विद्या से अमृत प्राप्त होता है ।
(विद्यया + अमृतम् + अश्नुते) । विद्याविहीनः = विद्या से रहित । अपरम् = दूसरा, अन्य । वदिष्यामि = बोलूँगा। रोचकम् = रोचक, मनोरञ्जक । अस्माकम् = हमलोगों का । वदतु = बोलो, बोलिए । भवान् = आप । यस्मिन् = जिसमें । निवसामः = रहते हैं । तम् प्रति = उसके प्रति । सर्वेषाम् = सबका । किशोराणाम् = किशोरों का । अस्याम् अवस्थायाम् = इस अवस्था में । प्रसरेत् = फैलना चाहिए । स्वपरिवारमेव = (स्वपरिवारम् + एव) = अपना परिवार ही । कुत्रापि (कुत्र + अपि) = कहीं । विषमताभावम् = भेदभावपूर्ण भाव । धारयेत् = धारण करना चाहिए । यदपि (यत् + अपि) = जो भी । किशोरावस्थायाम् = किशोरावस्था में । किशोरान् प्रति = किशोरों के प्रति । भवतः = आपका । अस्मिन् = इसमें । वयसि = आयु
छोड़ देने से । पात्राणि = योग्य । अपरान् प्रति = दूसरे के प्रति । करणीयम् = करना चाहिए । उक्तञ्च ( उक्तम् + च) = और कहा गया है। पालनीयम् = पालन करना चाहिए। किशोरैः = किशोरों द्वारा । अनुशासनम् = अनुशासन । तेषामपि (तेषाम् + अपि) = उनका भी। हितम् = हित, कल्याण । भवेत् = होना चाहिए । त्याज्यम् = छोड़ने योग्य । मादकम् = नशीला । द्रव्यम् = पदार्थ । त्यजेत् = छोड़ देना चाहिए । कुसंगतिम् = बुरी संगत (साथ) को । पितरौ = माता-पिता को । प्रणमेत् = प्रणाम करना चाहिए । आद्रियेत = आदर करना चाहिए। गुरुनपि = गुरुओं को भी। समाजस्योपकाराय (समाजस्य + उपकाराय) = समाज के उपकार के लिए । कुर्याद् (कुर्यात्)
(समाजस्य + उपकाराय) = समाज के उपकार के लिए । कुर्याद् (कुर्यात्) = करना चाहिए । देशहिताय = देश के हित के लिए । एवं कृते = ऐसा करने पर । किशोराणाम् = किशोरों का । कल्याणम् = हित । सार्वकालिकम् = हमेशा, सदा । कल्याणकरम् = कल्याण करने वाला । दर्शितम् = दिखाया गया । भवता = आपके द्वारा । प्रमुदिताः = प्रसन्न, खुश । प्रतीयन्ते = प्रतीत होते हैं, लगते हैं। वर्गात् = कक्षा से, वर्ग से । निर्गच्छति = निकलता है।
व्याकरणम्
सन्धि विच्छेद
बालिकाश्च = बालिकाः + च (विसर्ग सन्धि) । तस्योपरि = तस्य + उपरि (गुण सन्धि) । हस्तमुत्थाप्य = हस्तम् + उत्थाप्य । किञ्चिदस्ति = किञ्चित् + अस्ति (व्यञ्जन सन्धि) । विद्ययाऽमृतमश्नुते = विद्यया + अमृतम् + अश्नुते । अपरमपि = अपरम् + अपि । तत्रापि = तत्र + अपि (स्वर सन्धि) । किमपि = किम + अपि । कर्त्तव्यमस्ति = कर्त्तव्यम् + अस्ति । स्वपरिवारमेव । स्वपरिवारम् + एव । कुत्रापि = कुत्र + अपि (स्वर सन्धि) । यदपि = यत् + अपि (व्यञ्जन सन्धि)। किशोरावस्थायाम् = किशोर + अवस्थायाम् (स्वर सन्धि) । प्राकृतिकमेव = प्राकृतिकम् + एव । नास्ति = न + अस्ति (दीर्घ सन्धि) । उद्विग्नाः = उत् + विग्नाः (व्यञ्जन सन्धि) । इत्येते = इति + एते (स्वर सन्धि) । किशोर्यश्च = किशोर्यः + च (विसर्ग सन्धि) । किशोरैरनुशासनम् = किशोरैः + अनुशासनम् (विसर्ग सन्धि) । तेषामपि = तेषाम् + अपि । त्यजेदपि = त्यजेत् + अपि (व्यञ्जन सन्धि)। गरुनपि = गरुन् + अपि ।
प्रकृति-प्रत्यय-विभागः
अभ्यासः
मौखिक
प्रश्न 1.
अधोलिखितानां पदानाम् उच्चारणं कुरुत:
पृष्ठभूमौ, समक्षम्, पट्टलेखी, हस्तमुत्थाप्य, जिज्ञासा, चौरहार्यम्, राजहार्यम्, भ्रातृभाज्यम्, सर्वधनप्रधानम्, किञ्चिदस्ति विद्ययाऽमृतमश्नुते, विद्याविहीनः इत्यादीनि, उद्विग्नाः, अपशब्दानां, किशोर्यश्च, उक्तञ्च, किशोरैरनुशासनम्, त्याज्यम्, कुसंगतिम्, गुरुनपि, समाजस्योपकाराय, सार्वकालिकम्, प्रमुदिताः, निर्गच्छति।
प्रश्न 2.
निम्नलिखितानां पदानाम् अर्थं वदत:
प्रश्नोत्तरं :
कृष्णपट्टः = ब्लैकबोर्ड । समक्षम् = सामने । मार्जनी = डस्टर । हस्तमुत्थाप्य = हाथ उठाकर । चौरहार्यम् = चोर के द्वारा चुराने योग्य । राजहार्यम् = राज के द्वारा हरने योग्य । भ्रातृभाज्यम् = भाई के द्वारा बाँटने योग्य । किञ्चित् = थोड़ा, कुछ। अपरम् = दूसरा । प्रसरेत् = फैलना. चाहिए। विषमता भावम् = भेदभावपूर्ण भाव । उद्विग्ना = उत्तेजित । अपशब्दानाम् = गाली-गलौज का । परित्यागेन = परित्याग से । तेषामपि = उनका भी । त्याज्यम् = त्यागने योग्य । मादकम् = नशीला । कुसंगतिम् :बुरी संगति । पितरौ = माता-पिता । सार्वकालिकम् = हमेशा, सब समय में रहने वाला । प्रमुदिताः = खुश, प्रसन्।
लिखित
प्रश्न 3.
निम्नलिखिताना प्रश्नानां उत्तरं एकपदेन लिखत :
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखें):
प्रश्नोत्तरम् :
(क) “गुरु शिष्य-संवादः’ इति पाठे कस्याः कक्षायाः दृश्यम् ?
उत्तरम्-
अष्टम्।
(ख) बालकाः बालिकाश्च कुत्र स्थिताः?
उत्तरम्:
आसनेषु ।
(ग) शिक्षकः पाठेऽस्मिन् कस्याः महत्त्वं दर्शयति ?
उत्तरम्-
विद्यायाः।
(घ) किं न चौरहार्यं न राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं वा वर्वते ?
उत्तरम्-
विद्या।
(ङ) सर्वधन प्रधानं धनं किम् ?
उत्तरम्-
विद्या ।
(च) धनानां सीमा का?
उत्तरम्-
असीमा।
(छ) विद्या किं ददाति ?
उत्तरम्-
विनयम।
(ज) विद्याविहीनः जनः कीदृशः भवति ?
उत्तरम्-
पशुः।
(अ) किशोरावस्थायां किशोराः कीदृशाः भवन्ति ?
उत्तरम्-
उद्विग्नाः।
(ट) किशोरैः सर्वत्र किं पालनीयम् ?
उत्तरम्-
अनुशासनम् ।
(ठ) को नित्यं प्रणमेत् ?
उत्तरम्-
पितरौ ।
(ड) शिक्षकः कस्मात् निर्गच्छति ?
उत्तरम् –
वर्गात् ।
प्रश्न 4.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तर पूर्ण वाक्येन लिखत
(क) कक्षायां शिक्षकस्य प्रवेशे सति सर्वे छात्राः किं कुर्वन्ति ?
उत्तरम्-
कक्षायां शिक्षकस्य प्रवेशेसति सर्वे छात्रा: उत्तिष्ठन्ति ।
(ख) छात्राः समवेतस्वरेण किं वदन्ति ?
उत्तरम्-
छात्राः समवेतस्वरेण वदन्ति यत्-प्रणमामो वयं सर्वे ।
(ग) शिक्षकः कं हस्तम् उत्थाप्य वदति-तिष्ठन्तु सर्वे।
उत्तरम्-
शिक्षकः छात्रान दक्षिणं हस्तम् उत्थाप्य वदति-तिष्ठन्तु सर्वे ।
(घ) शिक्षकः आदौ कस्याः महत्त्वं दर्शयति ?
उत्तरम्-
शिक्षक: आदौ विद्यायाः महत्त्वम् दर्शयति ।
(ङ) किशोरावस्थायाः के के दोषाः सन्ति ?
उत्तर-
किशोरावस्थायाः ईर्ष्या, द्वेषः लोभः, क्रोधः अपशब्दानां प्रयोगः, आलस्यम् आदाः दोषाः सन्ति ।
(च) केषां परित्यागेन किशोरा: किशोर्यश्च विद्यायाः पात्राणि भवन्ति ?
उत्तरम्-
दोषानाम् परित्यागेन किशोराः किशोर्यश्च विद्यायाः पात्राणि भवन्ति ।
(छ) येन कार्येण वयम् उद्विग्नाः भवामः तया कान् प्रति न करणीयम्?
उत्तरम्-
येन कार्येण वयम् उद्विग्ना : भवामः तया अपरान् प्रति न करणीयम् ।
(ज) को नित्यं प्रणमेत् ।
उत्तरम्-
माता-पितरौ नित्यं प्रणमेत् ?
(झ) कान् नित्यम् आद्रियेत ?
उत्तरम्-
गुरुन्, नित्यम् आद्रियेत ।
प्रश्न 5.
मञ्जूषायाः उचितानि पदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत :
पृष्ठभूमौ, समक्षम्, विद्याधनम्, विनयम्, पशुसमानः, अनुशासनम्, कुसंगतिम्, त्याज्यम्, किशोराः, प्राकृतिकम्।
- कृष्णपट्टः ……….. वर्तते ।
- फलकं …………. वर्तते।
- सर्वधनप्रधानं ………….. ।
- विद्या ददाति …………..।
- विद्याविहीनः ………….. ।
- किशोरैः सर्वत्र ………. पालनीयम्।
- ………… त्यजेत् ।
- मादक द्रव्यं …………. उद्विग्ना भवन्ति ।
- किशोरावस्थायां शारीरिक मानसिकं च परिवर्तनं ………. एव ।
उत्तरम्-
- पृष्ठभूमी
- ‘समक्षम्’
- विद्या धनं
- विनयम्
- पशु समानः
- अनुशासनम्
- कुसंगतिम्
- किशोराः
- प्राकृतिकम्।
प्रश्न 6.
निम्नलिखितानां पदानां बहुवचनं लिखत :
प्रश्नोत्तरम् :
- उत्तिष्ठति = उतिष्ठन्ति ।
- तिष्ठतु = तिष्ठन्तु ।
- पाठयिष्यति = पाठिष्यन्ति ।
- कथयिष्यामि = कथयिष्यामः ।
- स्मरतु = स्मरन्तु ।
- वर्तते = वर्तन्ते ।
- वदिष्यामि = वदिष्यामः।
- भवति = भवन्ति ।
- करोति = कुर्वन्ति ।
- निर्गच्छति = निर्गच्छन्ति ।
प्रश्न 7.
पदानि योजयित्वा लिखत :
प्रश्नोत्तरम् :
- अपरम् + अपि = अपरमपि ।
- हस्तम् + उत्थाप्य = हस्तमुत्थाप्य ।
- अस्माकम् + अपि = अस्माकमपि ।
- अपरम् + अपि = अपरमपि ।
- किम् + अपि = किमपि ।
- कर्तव्यम् + अस्ति = कर्त्तव्यमस्ति ।
- स्वपरिवारम् + एव = स्वपरिवारमेव ।
- प्राकृतिकम् + एव = प्राकृतिकमेव ।
- तेषाम् +.अपि – तेषामपि ।
- गुरुन् + अपि = गुरुनपि।
प्रश्न 8.
संस्कृते अनुवादं कुरुत
प्रश्नोत्तरम्:
- आज क्या पढ़ाएँगे = अद्य किं पाठयिष्यति।
- आरम्भ में विद्या का महत्त्व कहूँगा? = आदौ विद्यायाः महत्त्वं कथयिष्यामि।
- धन की सीमा होती है। = धनस्य सीमा भवति।
- विद्या विनय देती है। = विद्या विनयं ददाति ।
- विद्या से रहित व्यक्ति पशु के समान होता है । = विद्ययाहीन: जनः पशु समानः भवति ।
- छात्र प्रसन्न प्रतीत होते हैं । = छात्राः प्रसन्नप्रतीताः सन्ति ।
प्रश्न 9.
उदाहरणानुसारेण विभक्ति निर्णयं कुरुत
यथा –
आसनेषु – सप्तमी विभक्ति
प्रश्नोत्तरम् :
- बालकाः – प्रथमा विभक्ति
- पृष्ठभूमौ – सप्तमी विभक्ति
- शिक्षकस्य – षष्ठी विभक्ति
- अवस्थायाम् – सप्तमी विभक्ति
- अस्मिन् – सप्तमी एकवचन
- पात्राणि – प्रथमा बहुवचन
- किशोरैः – षष्ठी बहुवचन
- गुरुन् – द्वितीया विभक्ति बहुवचन
- उपकाराय – चतुर्थी बहुवचन
- शिक्षकः – पाठिष्यति
प्रश्न 10.
उदाहरणानुसारेण वचन निर्णयं कुरुत :
यथा –
बालिकाः – बहुवचनम्
प्रश्नोत्तरम्-
- बालकाः – बहुवचनम्
- श्लोकः – एकवचनम्
- पशुः – एकवचनम्
- किशोराः – बहुवचनम्
- पितरौ – द्विवचनम्
प्रश्न 11.
निम्नलिखितानां पदानां सन्धि सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
उत्तरम्-
- तस्य + उपरि = तस्योपरि ।
- तत्र + अपि = तत्रापि ।
- यत् + अपि = यदपि ।
- उत् + विग्नाः उद्विग्नाः ।
- किशोर + अवस्था = किशोरावस्था ।
- किञ्चित् + अस्ति = किञ्चदस्ति ।
- किशोरैः + अनुशासनम् = किशोरैरनुशासनम् ।
- निः + गच्छति = निर्गच्छति ।
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